35. भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश
35. भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश
भारत एक कृषि प्रधान देश है, परन्तु यहाँ कृषि की दशा संतोषजनक नहीं है। भारत की जनसंख्या का लगभग 70% भाग कृषि कार्य में लगा हुआ है लेकिन इसके उपरान्त भी भारतीय कृषक की दशा अच्छी नहीं है। निम्न स्तर पर सीमित विकास के बावजूद आज भी भारतीय कृषक परम्परावादी हैं।
भारतीय किसान कृषि कार्य को एक व्यवसाय के रूप में नहीं करता है, बल्कि जीविकोपार्जन के लिए करता है। कृषि की पुरानी विधियों, पूँजी की कमी, भूमि सुधार की कमी, विपणन एवं वित्त सम्बन्धी कठिनाइयों आदि के कारण भारतीय कृषि की उत्पादकता अत्यन्त न्यून है। अब नई पीढ़ी में शिक्षा एवं कृषि को कमाई का साधन मानने की प्रवृत्ति से भी कृषि एवं कृषक की आर्थिक दशा में कुछ सुधार आने लगा है। भारतीय कृषि की कुछ प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं, जिनसे भारतीय कृषि शताब्दियों से पीड़ित है-
(1) भूमि पर जनसंख्या का निरन्तर बढ़ता हुआ भार:-
भारत में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है, अतः भूमि पर जनसंख्या का भार निरन्तर बढ़ता जा रहा है। जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रतिव्यक्ति उपलब्ध भूमि का औसत कम होता जा रहा है। 1921 में यह 0.8 हेक्टेयर था, 1931 में 0.72, 1941 में 0.64, 1951 में 0.75 तथा 1981 में घटकर यह 0.18 एवं 1997 में 0.09 हेक्टेयर हो गया, जबकि विश्व का यह औसत 4.5 हेक्टेयर प्रति व्यक्ति है। विश्व के कुछ देशों में जैसे- कनाडा में 2.12 है, अर्जेन्टाइना में 1.25 है, रूस में 1.03 है, सं. रा. अमेरीका में 0.89 तथा आस्ट्रेलिया में 3.39 हेक्टेयर प्रति व्यक्ति है।
(2) भूमि का असमान वितरण:-
भारत में भूमि का वितरण बहुत ही असमान एवं असन्तुलित है। देश में आज भी 62 प्रतिशत कृषि भूमि केवल 10 प्रतिशत किसानों के पास है तथा शेष 38 प्रतिशत भाग ही 90 प्रतिशत किसानों के पास है। इस तरह एक ओर जहाँ बड़े किसान अपनी भूमि क्षमता का समुचित उपयोग नहीं कर पाते वहीं दूसरी ओर छोटे किसान अपनी गुजर बसर करने में असमर्थ रहते हैं। यद्यपि भारत में 1952 में जमींदारी प्रथा का उन्मूलन किया जा चुका है, लेकिन स्थिति में आशाजनक सुधार अभी तक नहीं हो पाया है।
(3) कृषि जोतों का बिखराव एवं भूमि का विभाजन:-
भारत में उत्तराधिकार के नियमों के कारण भूमि का बंटवारा होता रहता है। इस कारण खेतों का आकार बहुत छोटा हो गया है। छोटे-छोटे खेत एक स्थान पर न होकर अनेक स्थानों पर बिखरे हुए रहते हैं। इस कारण आधुनिक यंत्रों के द्वारा उन्नत कृषि नहीं की जा सकती है।
(4) कृषि की न्यून उत्पादकता:-
1970 तक देश के अधिकांश भागों में औसत उत्पादन स्तर अधिकांश विकसित व कई विकासशील देशों (मैक्सिको, ब्राजील, फिलीपीन्स) से भी काफी कम रहा, लेकिन अब हरित क्रांति एवं सरकारी प्रयत्नों से स्थिति में कुछ सुधार अवश्य हुआ है। गेहूँ, चावल, तिलहन, दलहन आदि फसलों के प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि हुई है।
(5) सिंचाई के साधनों की कमी:-
भारतीय कृषि अधिकतर मानसूनी वर्षा पर ही निर्भर है और मानसून हमेशा अनियमित बना रहता है। ऐसी स्थिति में सिंचाई के साधनों की अत्यधिक आवश्यकता होती है, किन्तु दुर्भाग्य है कि आज भी सिंचाई के पर्याप्त साधनों का अभाव है। सिंचाई के साधनों के अभाव में आधुनिक ढंग से कृषि कार्य करना कठिन होता है। अतः आज भी भारतीय कृषि की दशा में सुधार नहीं हो सकी।
(6) कृषि आदानों का अभाव:-
भारतीय कृषकों के पास कृषि आदानों (कृषि सामाग्रियों) का हमेशा अभाव बना रहता है, जिससे वे अच्छे बीज, खाद, सिंचाई, कृषि यंत्र आदि का उपयोग नहीं कर पाते हैं। इन साधनों के अभाव में कृषि कार्य करने पर प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होता है।
(7) साख सुविधाओं की कमी:-
भारतीय कृषकों की आर्थिक स्थिति कमजोर है, इस कारण उनके सामने हमेशा आर्थिक संकट बना रहता है। ग्रामीण क्षेत्रों में साख-सुविधाओं का आज भी अभाव है। अतः कृषकों को वित्त पूर्ति के लिए गांव के महाजन एवं साहूकारों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। साहूकार ऊँची ब्याज दर वसूल करता है एवं कृषकों के साथ धोखाधड़ी करता रहता है। इस प्रकार एक बार जो कृषक साहूकार के चंगुल में फंस जाता है फिर उसका बाहर निकलना कठिन होता है। ये देशी महाजन बड़ी मात्रा में कृषकों का शोषण करते हैं, फलतः कृषक अपनी दीन-हीन दशा के कारण कृषि के विकास की ओर ध्यान नहीं दे पाता।
(8) मृदा अपरदन:-
मृदा अपरदन के कारण कृषि भूमि को क्षति पहुंचती है, जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। जहां प्रतिवर्ष विस्तृत क्षेत्रों में भूमि का ह्रास हो जाता है वहां भूमि कृषि योग्य नहीं रहती है।
(9) धार्मिक एवं सामाजिक कारण:-
भारतीय कृषक भाग्यवादी एवं अंधविश्वासी होता है। वह कृषि के विकास पर व्यय करने की अपेक्षा शादी, मृत्यु-भोज, सामाजिक रीति-रिवाजों व त्योहारों पर अपनी क्षमता से अधिक खर्च करता है। इस प्रकार कृषि के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है।
(10) कृषि बीमा का अभाव:-
भारत में कृषि बीमा का अभाव है। किसानों को किसी-किसी वर्ष बाढ़, सूखा एवं विभिन्न प्रकार के कृषि रोगों से कृषि उत्पादन में भारी क्षति उठानी पड़ती है, यहाँ तक कि उस आय से वह उत्पादन का खर्च भी प्राप्त नहीं कर पाता और उनकी स्थिति इतनी दयनीय हो जाती है कि वे आत्महत्या तक के लिए विवश हो जाते हैं। ऐसी अनिश्चितताओं के कारण भारतीय किसान फसलों का व्यावसायिक उत्पादन करने से डरता है, यदि देश में कृषि बीमा का सर्वव्यापीकरण हो जाए तो कृषि उत्पादन में वृद्धि हो सकती है।
(11) विपणन व्यवस्था का अभाव:-
विपणन व्यवस्था का अभाव भारतीय किसान की एक महत्वपूर्ण समस्या है, क्योंकि इसके अभाव में किसान को अपने फसल उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो पाता है। विपणन की व्यवस्था नगरों या कस्बों तक सीमित है, जबकि फसलों का अधिकांश उत्पादन गाँव में ही होता है। अतः उसे अपना माल मण्डियों तक ले जाने के लिए अतिरिक्त परिवहन व्यय की आवश्यकता पड़ती है, विवश होकर वह अपना माल गाँव में कम मूल्य पर ही बिचौलियों को बेच देता है जिससे उसे कम लाभ प्राप्त होता है।
निष्कर्ष:
इस प्रकार भारतीय कृषि अनेक समस्याओं से ग्रस्त है, और आज भी विकसित देशों की तुलना में काफी पिछड़ी स्थिति में है, इसके विकास के लिये अनेकानेक कारगर कदम उठाने की आवश्यकता है।
प्रश्न प्रारूप
1. भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश पर प्रकाश डालिए।