Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

GEOGRAPHICAL THOUGHT(भौगोलिक चिंतन)

20. भूगोल में फ्रेडरिक रेटजेल के योगदान 

20. भूगोल में फ्रेडरिक रेटजेल के योगदान 


भूगोल में फ्रेडरिक रेटजेल के योगदान 

फ्रेडरिक रेटजेल

            रेटजेल का जन्म 1844 में जर्मनी में हुआ था। इनके पिता एक डयूक के मैनेजर थे। परिवार में कुल चार सदस्य थे। रेट्जेल ने सर्वप्रथम प्राणी विज्ञानी के रूप में हेडलबर्ग विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। बाद में (Jena) विश्वविद्यालय में चले गये।

        31 वर्ष की आयु में रेटजेल म्यूनिख के एक स्कूल में अध्यापक हो गये तथा 1886 तक वहीं रहे। उन्होंने म्यूनिख के नृजाति संग्रहालय में मोरिस वेगनर के साथ कार्य किया। यहीं वे प्रजातियों के आव्रजन से प्रभावित हुये। इस विचार ने उनके भौगोलिक दर्शन को प्रभावित किया। 1886 में रिचथोफेन के बर्लिन जाने के बाद रेटजेल लीपजिंग आये। यहाँ फिशर एवं हेटनर जैसे भूगोलविदों ने रेटजेल के निर्देशन में कार्य किया। रेटजेल मृत्यु पर्यन्त (1904) यहीं रहे।

         फ्रांस के मॉन्टपेलियर नगर में उसने प्रसिद्ध प्राणी-वैज्ञानिक चार्ल्स मार्टिन्स के साथ कार्य किया था। उस समय उसने एक पत्रिका में अपने कुछ लेख प्रकाशित किये थे जिनका शीर्षक ‘भूमध्यसागरीय तट से जीव वैज्ञानिक पत्र’ था। इन लेखों ने वैज्ञानिकों और सरकार का ध्यान उसकी ओर आकर्षित किया था। उसने 1870 के युद्ध में सेवा की थी, जिसके बाद उसको पत्रकार बनाकर पूर्वी यूरोप के देशों में तथा इटली, संयुक्त राज्य, मैक्सिको और क्यूबा में भेजा गया था। अपनी इन यात्राओं में उसने भौगोलिक अध्ययन किये, और धीरे-धीरे प्राकृतिक दृश्यों के वर्णन लिखने की कला में सिद्धहस्त हो गया। उसने कैलिफोर्निया, मैक्सिको और क्यूबा में ‘चीन से प्रवास’ के तथ्यों का अध्ययन किया था। ‘चीनी प्रवास’ पर उसने अपना शोध-प्रबन्ध लिखा था, जिस पर उसे शोध-डिग्री मिली थी।

      1878 में रेटजेल ने उत्तरी अमेरिका के भूगोल पर एक पुस्तक प्रकाशित की थी। उसके विख्यात ग्रन्थ एन्थ्रोपोज्योग्राफी’ का प्रथम खण्ड 1882 में और दूसरा खण्ड 1891 में प्रकाशित हुआ। यह एक प्रतिष्ठित शास्त्रीय ग्रन्थ है, जिसके कारण रेटजेल को मानव भूगोल का जन्मदाता कहा जाता है।

         रेटजेल ने राजनीतिक भूगोल का भी गम्भीर अध्ययन किया था। उसने ‘राजनीतिक भूगोल ग्रन्थमाला’ का प्रथम खण्ड 1897 में, और दूसरा खण्ड 1903 में प्रकाशित किया था। इन ग्रन्थों के अलावा रेटजेल ने कुछ पुस्तकें सामान्य जनता की रूची के लिए भी लिखा थी। उसने भूविज्ञान, मानवजातिशास्त्र, जीवविज्ञान, भौतिक भूगोल तथा मानव समाजों पर बहुत से लेख लिखे थे।

       रेटजेल ने वातावरण तथा मानवीय तथ्यों एवं उनके पास्परिक सम्बन्धों का विश्लेषण किया था। उसने मानव एवं वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों में वातावरण के प्रभावों को महत्वपूर्ण बतलाया था, इसीलिए उसे वातावरण निश्चयवाद के सिद्धान्त का प्रतिपादक माना जाता है।

        रेटजेल ने ‘एन्थ्रोपोज्योग्राफी’ के प्रथम खण्ड में डार्विन के विकासवाद सिद्धान्त से मिलते-जुलते विचार व्यक्त किये थे। इन विचारों में उसने मानवीय समाजों के इतिहास पर भौगोलिक वातावरण के प्रभावों का दिग्दर्शन किया था। इस खण्ड में उसने ‘इतिहास पर भूगोल का अनुप्रयोग’ समझाया था। ‘एन्थ्रोपोज्योग्राफी’ के दूसरे खण्ड (1891) में सांस्कृतिक वातावरण जनसंख्या, मानवीय बस्तियाँ, जनसंख्याओं के प्रवास तथा सांस्कृतिक लक्षणों के वर्णन किये गये थे।

         रेटजेल ने भौतिक भूगोल के क्षेत्र में भी अनुसंधान किये थे तथा एक भौगोलिक ग्रन्थमाला का सम्पादन किया था। इस ग्रन्थमाला में प्रसिद्ध भूगोलवेत्ताओं की वैज्ञानिक शोध प्रकाशित हुई थी। इस ग्रन्थमाला में हाइम की पुस्तक हिमनदी पर थी। हान की पुस्तक जलवायु विज्ञान पर थी और पैंक की पुस्तक भू-आकृति विज्ञान पर थी। रेटजेल की रूची भौतिक भूगोल में बहुत अधिक थी, इसी कारण अपने जीवन में आगे चलकर जब उसने मानव भूगोल का वर्णन किया, तब उसने वातावरण की शक्तियों को सदा ध्यान में रखा था।

       फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता ब्रूंज ने लिखा है, रेटजेल को पार्थिव सत्यता का बहुत ऊँचा ज्ञान था। वह पृथ्वी पर मानवीय तथ्यों को केवल एक दार्शनिक या इतिहासकार अथवा अर्थशास्त्री की दृष्टि से नहीं, वरन् भूगोलवेत्ता की दृष्टि से देखता था। उसने मानवीय तथ्यों से बहुत से विभिन्न सम्बन्धों को भौतिक तथ्यों के साथ परखा था- जिनमें भूमि की ऊँचाई, जलवायु, वनस्पति आदि भी थे। उसने पृथ्वी के गोले पर मानव समूहों को बसते हुए, जीवकोपार्जन करते हुए, और इतिहास का निर्माण करते हुए देखा था। उसकी दृष्टि एक सच्चे प्रकृतिवादी की दृष्टि थी।

         रेटजेल उन गिने-चुने विद्वानों में से थे जिन्होंने बहुमुखी प्रतिभा के आधार पर भूगोल की सेवा की। उन्होंने पहली बार मानव भूगोल को विकसित किया एवं यह शीघ्र ही वैज्ञानिक स्वरूप लेकर पौधों से विशाल वटवृक्ष की भाँति चहुँदिशा में प्रसारित हो गया। सभी यूरोपीय भूगोलवेत्ताओं ने उसके बुद्धिमत्तापूर्ण कार्यों की सराहना की। वह जीव विज्ञान, भू-विज्ञान, मौसम विज्ञान, आदि विषयों के विद्वान रहे। उसने जीव विज्ञान पर लिखना प्रारम्भ किया और यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के भ्रमण के उपरान्त वह भी हम्बोल्ट की भाँति एक मँजे हुए भूगोलवेत्ता बन गये।

        रेटजेल ने अपनी पूर्व के अनुभवों का मानव भूगोल चिन्तन के विकास में लाभ उठाया। वह डार्विन क विकासवादी सिद्धान्त से बहुत प्रभावित हुए, इसी से उन्होंने भौतिक परिवेश, उसके तत्व एवं उसका मानव पर प्रभाव का बहुमुखी रूप में पता लगाया। उन्होंने पहली बार मानव भूगोल के लिए शब्द का प्रयोग किया। उसके अनुसार मानव भूगोल को भौतिक भूगोल की पृष्ठभूमि में ही सही-सही समझा जा सकता है। मानव भूगोल भू-मण्डल पर स्थल एवं भौतिक परिवेश से नियंत्रित मानवता के विस्तार एवं विवरण समझाता है। वास्तव में, उसने मानव भूगोल साथ-साथ कई विज्ञानों पर लिखा, इसी कारण रेटजेल को जर्मनी में मानव भूगोल के पिता होने का श्रेय प्राप्त है।

एन्थ्रोपोज्योग्राफी (मानव भूगोल):-

         रेटजेल रिटर के विचारों से विशेष रूप से प्रभावित हुआ और स्वयं उसने यह स्वीकार किया कि वह रिटर की अर्डकुंडे रचना को भूतल पर गतिशील विकास के सन्दर्भ में विकसित करना चाहता है। उसने पृथ्वी को एक इकाई के रूप में तो स्वीकार किया परन्तु उसका चिन्तन इस ग्रन्थ में निम्न दो बातों के आधार पर रिटर से भिन्न है:-

(i) उसने इसमें प्रादेशिक वर्णन के स्थान पर मानव भूगोल एवं परिवेश सम्बन्धी व्यवस्थित वर्णन प्रस्तुत किये।

(ii) उसने डार्विन के सिद्धान्त में विश्वास करते हुए मानव को विकास की अन्तिम कड़ी माना।

         अतः उसके इस ग्रन्थ में मानव वितरण के लिए उत्तरदायी कारक एवं प्राकृतिक परिवेश के तत्वों की व्याख्या सरल एवं स्पष्ट भाषा में की गयी है। अतः प्रथम खण्ड को ‘Application of geography to history भी कहा जाता है। उसके अनुसार भूतल पर हमारे कार्यकलापों के निर्धारण में परिवेश के निम्न चारों प्रभावी समूह महत्वपूर्ण हैं।

(i) शारीरिक प्रजातीय लक्षणों वाले प्रभाव,

(ii) मनोवैज्ञानिक प्रभाव,

(iii) जनसमूह की आर्थिक एवं सामाजिक गतिशीलता की न्यूनाधिकता के स्वरूप में फैली प्राकृतिक शाक्तियों के भौगोलिक प्रभाव, एवं

(iv) मानवता के वितरण एवं गतिशीलता को नियंत्रित एवं निर्धारित करने वाले प्रभाव।

           उपरोक्त चारों प्रभावों के कारकों का समूह ही प्राकृतिक परिवेश का प्रमुख आधार है। उसने मानव मन को भी प्राकृतिक परिवेश की उपज माना। उसने प्रथम ग्रन्थ में प्रायः कठोर निश्चयवाद का अनुसरण किया। उसके अनुसार, नियति द्वारा दी गई भूमि पर ही मानव को निवास करना चाहिए एवं उसे वहाँ विधना (प्राकृतिक परिवेश व भाग्य) के नियमों के अनुसार ही मौत का भी वरण करना चाहिये।

         उसने दूसरे खण्ड में मानव समुदाय के तात्कालिक विश्व वितरण की व्याख्या की। उसने भूतल के बसे हुए एवं निर्जन प्राय प्रदेशों के विस्तार को बताते हुए उनकी सीमा निश्चित की। रेटजल ने बताया कि बसी हुई दुनियाँ की सीमा पर बसे हुए बिखरे मानव समुदाय सभ्यता की चौकियाँ हैं। जलवायु के प्रभाव को महत्वपूर्ण बताते हुए उसने प्राचीन सभ्यता-केन्द्रों के उद्भव एवं विकास का कारण भी इसे ही बताया। जल संसाधन असभ्य मानव के लिए प्रमुख बाधा थे परन्तु ज्योंहि मानव ने नौवहन सीख लिया यह बाधा उसके लिए महान राजमार्ग बन गया। 

         मानव एवं उसके विकास के लिए रेटजेल ने तीन कारणों को उत्तरदायी माना, यह है-

(i) (Lage Situation) स्थिति- यह स्थिति अन्य मानव समूहों के सन्दर्भ में है। 

(ii) Raum (Space) स्थान- क्षेत्र की सहसम्बद्धता, क्षेत्र की केन्द्रीयता एवं उनकी सीमावर्ती स्थिति इसके अंग हैं। ऐसा क्षेत्र जनसंख्या की अधिकता के साथ-साथ प्राकृतिक अथवा मानवीय बाघाएँ स्वीकार नहीं करता, एवं

(iii) Rahmen (limits) सीमाएँ- मानव समुदाय प्राकृतिक ढाँचे अथवा निर्धारित सीमा में विकसित होते हैं।

       संक्षेप में, रेटजेल के एन्थ्रोपोज्योग्राफी ग्रन्थ में निम्न तीन समस्याओं की ओर विशेष ध्यान दिया गया है:-

(i) भूतल पर मानव समूहों का वितरण-

            इसमें मानव के जातीय, राष्ट्रीय भाषा एवं धार्मिक स्तर विषयक वर्णन हैं जिन्हें समझने के लिए वांछित मानचित्र चाहिए। वर्तमान में यह सामाजिक एवं सांस्कृतिक भूगोल का अभिन्न अंग माने गये हैं।

((ii) उपरोक्त वितरण किस प्रकार भौतिक परिवेश द्वारा प्रभावित है एवं उस पर निर्भर है।

(ii) मानव एवं उसके समाज पर भौतिक परिवेश का स्पष्ट प्रभाव। जैसे जलवायु एवं धरातल का प्रभाव।

           उसने इस प्रकार एन्थ्रोपोज्यॉग्राफी में सामान्यीकरण की प्रक्रिया को अपनाया। अपनी दूरदृष्टी के कारण उसने अपनी ग्रन्थ रचना में वारेनियस की भाँति कोई योजना नहीं बनायी। वह अपने अनुभवों के सहारे बढ़ता गया एवं ज्यों-ज्यों उसका कार्य आगे बढ़ा कई समस्याएँ उसके सम्मुख आयीं तो रेटजेल उनके निराकरण में तथा उससे सम्बन्धित विषय को समझने में लग गया। समुचित अध्ययन हेतु प्रदेशों एवं क्षेत्रों के अध्ययन के दर्शन को रेटजेल के साथ-साथ रिचथोफेन एवं हेटनर ने भी (ऐसे ही अध्ययन को) क्षेत्रीय अध्ययन के सिद्धान्तों को भूगोल का अनिवार्य अंग माना। वर्तमान में इस चिन्तन को विकसित करने का श्रेय हार्टशोर्न को है।

        रेटजेल की मानव भूगोल की धारणा की परिणति राजनीतिक भूगोल में हुई।  रेटजेल की राजनीतिक भूगोल नामक पुस्तक का प्रकाशन 1897 में हुआ था। वे राज्य को पृथ्वी की सतह पर एक विशिष्ट किस्म की भौगोलिक इकाई के रूप में देखते थे। वे राज्य की तुलना जैविक इकाई (जीवशास्त्र) से करते थे। उनके अनुसार राज्य वस्तुतः पृथ्वी पर मनुष्य द्वारा रचित एक संगठन होता है जिसमें जनसंख्या का निवास पाया जाता है।

         उनके अनुसार राज्य एक स्थानिक जीव की तरह है जो अपनी प्रकृति प्रदत्त सीमाओं तक प्रसार करता है। यदि उसके प्रसार को अवरोध नहीं मिलता तो वह अपनी प्राकृतिक सीमाओं को लांघ कर अपनी सीमा का विस्तार करता है। यह प्रवृत्ति विकसित मानव समूहों, बंजारों, चरवाहों, शिकारी समूहों आदि सभी में मिलती है। यहीं से लेवांसराम की सकल्पना का जन्म होता है।

          इस तरह रेटजेल बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे मानव भूगोल के प्रणेता थे। उन्हें नियतिवादी कहना गलत है। यह एक भ्रान्ति थी। भ्रांति का कारण जर्मन भाषा के उनके ग्रन्थों का अंग्रेजी अनुवाद था जिसमें मनुष्य एवं प्रकृति के सम्बन्ध के मापन पर जोर देने के कारण रेटजेल को प्रकृतिवादी कहा गया। चूँकि इनकी शिष्या कुमारी ऐलेन सेम्पुल ने आगे चलकर अति कठोर प्रकृतिवादी विचारधारा प्रस्तुत की अतः उनके गुरू के प्रकृतिवादी होने की धारणा अपने आप पुष्ट होती गई जब आधुनिक लेखकों ने उनके मूल योगदान को पढ़ा तो यह तथ्य स्पष्ट हुआ। रेटजेल ने लीपजिंग में एक भूगोल संस्था की भी स्थापना की थी जो शीघ्र अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की संस्था बनी।

       रेटजेल के समय में या तो भौतिक भूगोल का अधिक अध्ययन हो रहा था या मनुष्य का। मनुष्य के विकास को यंत्रवत् बतलाया गया था तथा मनुष्य का भौगोलिक स्थिति से कोई सम्बन्ध नहीं माना जाता था। रेटजे ने इस अन्तर को पाटने का प्रयास किया। उनके कार्य भौतिक भूगोल एवं मनुष्य के अध्ययन के बीच की कड़ी है। वे प्रकृति के उन नियमों के अध्ययन को आवश्यक मानते थे जो पृथ्वी पर जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करते हैं। उन्होंने मनुष्य को पृथ्वी की एक ईकाई के रूप में भूगोल में समाविष्ट किया। इस प्रयास से भूगोल पुर्नजीवित हो उठा।

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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