12. जर्मन भूगोलवेत्ताओं का योगदान
जर्मन भूगोलवेत्ताओं का योगदान⇒
आधुनिक भूगोल के विकास का श्रेय यूरोपीय चिंतकों को जाता है। यूरोप में भूगोल के विकास को दो काल में बाँटा जा सकता-
(1) पुनर्जागरण काल के पूर्व का भूगोल
(2) पुनर्जागरण काल के बाद का भूगोल
यूरोप में पुनर्जागरण के साथ ही वैज्ञानिक चिन्तन शुरू हुआ जिसका प्रभाव लगभग सभी विषयों पर पड़ा। पुनः जब इंगलैण्ड में औद्योगिक क्रांति हुई तो इस क्रांति का प्रभाव अन्य विषयों पर पड़ा। वैज्ञानिक चिन्तन और औद्योगिक क्रांति का परिणाम था कि भूगोल जैसे विषय में भी गत्यात्मकता का आगमन हुआ। पुनर्जागरण काल के पहले भूगोल में यूनानी और रोमन भूगोलवेताओं का विशेष योगदान था जबकि पुनर्जागरण काल के बाद जर्मन, फ्रांसीसी और ब्रिटिश भूगोलवेताओं का विशिष्ट योगदान रहा है।
उपरोक्त चिन्तनों में जर्मनी भूगोलवेताओं को आधुनिक चिंतन विकसित करने का श्रेय जाता है। जर्मनी में भूगोल के अध्ययन की शुरुआत 18वीं शताब्दी के पूर्व से माना जाता है क्योंकि इसी काल में भूगोल का अध्ययन विद्यालय स्तर पर किया जाने लगा था। प्रारंभिक जर्मन भूगोलवेताओं में इमैनुएल काण्ट तथा फॉस्टर जैसे भूगोलवेताओं का विशिष्ट योगदान रहा है। क्योंकि इन दोनों ने पहली बार उच्च शिक्षण संस्थानों में भौगोलिक अध्ययन पर विशेष जोर दिया। काण्ट महोदय की विशेष रुची खगोल विज्ञान अध्ययन में थी जबकि फॉस्टर की विशेष रुची भूआकृति विज्ञान में था। अत: भूगोल में खगोलशास्त्र और भूआकृति विज्ञान के विकास का श्रेय काण्ट और फॉस्टर को जाता है।
प्रारंभ में भूगोल का अध्ययन इतिहास के अन्तर्गत किया जाता था। भूगोल को इतिहास से अलग करने का श्रेय इमैनुएल काण्ट को जाता है क्योंकि इन्होंने ही सबसे पहले बताया कि किसी भी घटना का अध्ययन स्थान (space) और काल के संदर्भ में किया जाता है। समय के संदर्भ में किसी भी घटना का अध्ययन इतिहास कहलाता है जबकि स्थान के संदर्भ में किसी भी घटना का अध्ययन भूगोल कहलाता है। पुनः काण्ट एवं फॉस्टर ने भूगोल में कई नवीन चिंतन को प्रस्तुत किया है। लेकिन इन दोनों ने ही मिलकर जर्मनी के उच्च शिक्षण संस्थानों में भूगोल को एक विषय के रूप में मान्यता नहीं दिलवा सके।
वास्तव में आधुनिक भूगोल का जन्मदाता हम्बोल्ट और रिटर को माना जाता है। ये दोनों भूगोलवेत्ता एक-दूसरे के समकालीन थे। हम्बोल्ट का जन्म 1769 ई० में हुआ था जबकि रिटर का जन्म 1779 ई० हुआ था लेकिन दोनों की मृत्यु एक ही वर्ष 1859 ई० हुई थी। ये दोनों भूगोलवेता आधुनिक भूगोल के विकास के पोषक थे। लेकिन दोनों के दृष्टिकोण अलग-2 था। सामान्यता दोनों के दृष्टिकोण में अन्तर भूगोल के विधितंत्र से संबंधित था। जैसे:- हम्बोल्ट का मानना था कि भूगोल का विकास Inductive Method (आगमानात्मक विधि) से हुआ। जबकि रिटर के अनुसार Deductive Method (निगमानात्मक विधि) से हुआ है। इन दोनों के मौलिक विचार में अन्तर का प्रमुख कारण दोनों के अलग-2 जीवन का पृष्ठ भूमि था। जैसे- हम्बोल्ट बर्लिन के एक करोड़पति बाप का इकलौता बेटा था। जबकि रिटर एक गाँव से आने वाला गरीब गड़ेडिया का बेटा था।
हम्बोल्ट की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। इसलिए उसने शुरू से वैज्ञानिक विषय की पढ़ाई की और वैज्ञानिक चिन्तन का विकास किया। जबकि रिटर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। इसलिए दर्शनशास्त्र जैसे मानविकी विषय का अध्ययन किया। इसलिए वह ईश्वरवादी विचारों पर जोर दिया। हम्बोल्ट ने अपना वैज्ञानिक विचार “Cosmos” नामक पुस्तक में प्रस्तुत किया जबकि रिटर ने ‘अर्डकुण्डे’ नामक पुस्तक में अपना चिंतन प्रस्तुत किया। हम्बोल्ट विश्व के यात्रा करने के बाद अपना विचार प्रस्तुत किया। उसने अपने जीवन काल में 60,000 मील से भी अधिक यात्रा की। दूसरी ओर रिटर को आरामकुर्सी पर बैठने वाला चिंतक माना जाता है।
हम्बोल्ट ने अपनी यात्रा के दौरान अमेजन नदी के उद्गम स्थल की खोज की। यूरोप का वह पहला व्यक्ति बना जो एण्डीज पर्वत को पार कर पेरू की ठण्डी जलधारा की खोज की। यहाँ तक की चिम्बराजो ज्वालामुखी के क्रेटर में उतरकर बैसाल्टिक चट्टानों का अध्ययन किया। यात्रा के दौरान हमबोल्ट अपने नाव पर एक प्रयोगशाला भी लेकर चलता था। अपने यात्रा के दौरान विभिन्न स्थानों का तापमान का मापन किया और उसके बाद पहली बार समताप रेखा खींचा। पुन: हमबोल्ट मैक्सिको और न्यूयार्क की यात्रा करते हुए यूरोप पहुँचा। यूरोप में आने के बाद रूस के जार (राजा) के अनुरोध पर पुन: उसने यूराल पर्वत और साइबेरियाई क्षेत्र की यात्रा की। वहीं दूसरी ओर रिटर महोदय ने जर्मनी में रहकर विभिन्न प्रकार के भौगोलिक सूचनाओं को एकत्रित कर चिन्तन एवं लेखन का कार्य किया।
हम्बोल्ट अपनी पुस्तक कॉसमॉस में सात संकल्पना विकसित किये हैं।-
(1) पृथ्वी के धरातल का अध्ययन ‘मानवीय अधिवास’ के रूप में किया जाना चाहिए।
(2) भूगोल का अध्ययन क्षेत्रीय वितरण के रूप में किया जाना चाहिए।
(3) भौतिक भूगोल ही सामान्य भूगोल है।
(4) भौगोलिक अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य भौतिक भूगोल और मानवीय संबंधों के अध्ययन होना चाहिए।
(5) भूगोल में पृथ्वी के सभी घटकों का अध्ययन होना चाहिए।
(6) भूगोल में क्रमबद्ध अध्ययन पर जोर दिया जाना चाहिए।
(7) भूगोल के सभी घटक एक-दूसरे से जुड़े हुए है। इसे पार्थिव एकता का सिद्धांत भी कहते हैं।
रिटर ने अपने अध्ययन में हम्बोल्ट के अधिकार संकल्पना को शामिल किया लेकिन दो संकल्पना में रिटर के मत भिन्न था। जैसे:- रिटर के क्रमबद्ध अध्ययन के स्थान पर प्रादेशिक अध्ययन पर विशेष जोर दिया। वहीं प्रकृति या पृथ्वी के स्थान पर मानव के अध्ययन पर इसने विशेष जोर दिया। लेकिन वास्तव में ये दोनों ही भूगोलवेत्ता नियतिवाद के समर्थक थे।
रैटजल अगले महान जर्मन भूगोलला थे। जिन्हें ‘मानव भूगोल’ शुरुआत करने का श्रेय जाता है। इन्होंने भूगोल में “भौतिक भूगोल बनाम मानव भूगोल” का द्वैतवाद शुरू किया। इन्होंने नियतिवाद के स्थान पर पर्यावरण नियतिवाद की संकल्पना विकसित किया। इन्हें भूगोल में राजनीतिक भूगोल और सांस्कृतिक भूदृश्य संकल्पना विकसित करने का श्रेय जाता है। राजनीतिक भूगोल में उन्होंने कहा है कि कोई भी राज्य या समाज जैविक उद्दविकास के समान ही अनेक अवस्थाओं से गुजरकर विकसित होते हैं।” इसी तरह से संस्कृतिक भूदृश्य में उन्होंने बताया कि “अलग-अलग वातावरण में अलग-अलग रहन-सहन, खान-पान पोषक, विश्वास, भाषा इत्यादि का विकास होता है। जिससे अलग-2 सांस्कृतिक भूदृश्य विकसित होते हैं। “ रैटजेल ने कई पुस्तकों की भी रचना की। जैसे- “एंथ्रोपोज्योग्रफिया”, “पॉलिटिकल ज्योग्रफी” और “प्रिंसिपुल ऑफ ह्यूमैन ज्योग्रफी”। रैटजेल ने अपने चिंतन पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि “मैने यात्रा की रेखा खींची और उसके बाद मैने वर्णन किया यही मेरा भूगोल है।” उन्होंने यह भी कहा है कि भूगोल एक वर्णात्मक विषय है। पुनः उन्होंने कहा है कि भूगोल में विश्लेषण पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए।
उपरोक्त भूगोलवेताओं के अलावे कई और ऐसे भूगोलवेत्ता हुए जिन्होंने भूगोल में व्यकिगत योगदान देकर भौगोलिक चिन्तन के विकास को समृद्ध किया है। रीचथोपेन महोदय ने भूगोल में क्षेत्रीय विज्ञान को जन्म दिया। वहीं हेटनर महोदय ने मानव भूगोल, विश्व का ‘वृहत प्रादेशिक भूगोल, भूगोल का इतिहास, लक्षण और विधि’ नामक पुस्तक में स्थलाकृतिक विज्ञान और विभिन्न प्रदेशों का अध्ययन विकसित किया। जैलेन महोदय ने ‘भूराजनीति का सिद्धांत’ विकसित किया। जिसमें बताया कि “कोई भी राज्य भूमि की राजनीति करता है।” जैलेन के इस विचारधारा को सबसे अधिक समर्थन हिटलर और उसके सेनापति कार्ल हाउशोफर के द्वारा प्राप्त हुआ। कार्ल हाउशोफर ने भूराजनीति के अध्ययन हेतु “इन्स्टीच्यूट ऑफ ज्यो पोलिटिक्स स्कूल” की स्थापना करवायी।
जर्मन भूगोलवेता में अल्बर्ट पेंक और बाल्थर पेंक जैसे भूगोलवेत्ता प्रमुख हैं, जिन्होंने अमेरिकी भूगोलवेत्ता डेविस के द्वारा प्रस्तुत ‘सामान्य अपरदन चक्र’ सिद्धांत के विरोध में ‘आधुनिक एवं वैज्ञानिक अपरदन चक्र का सिद्धांत’ प्रस्तुत किया। इसी तरह वॉन थ्यूनेन ने कृषि स्थानीयकरण का सिद्धांत, बेबर ने औधोगिक स्थानीयकरण का सिद्धांत, क्रिस्टॉलर ने केन्द्रीय स्थल का सिद्धांत प्रस्तुत कर जर्मन भौगोलिक चिन्तन को समृद्ध किया है।
निष्कर्ष
इस प्रकार ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि आधुनिक भूगोल के विकास में जर्मन भूगोलवेत्ताओं का विशिष्ट योगदान रहा है। इनके योगदान को आज भी विश्व के कई देशों में न केवल मान्यता प्राप्त है बल्कि उसका अध्ययन भी किया जाता है।
उत्तर लिखने का दूसरा तरीका
आधुनिक वैज्ञानिक भूगोल की स्थापना में जर्मनी को प्रथम स्थान दिया जाता है। वहाँ अठारहवीं सदी (कान्ट के समय) से ही भूगोल में आधुनिकता एवं वैज्ञानिकता की नींव पड़ चुकी थी। कान्ट ने सर्वप्रथम भूगोल के लिए कुछ नियमों का प्रतिपादन किया, इस प्रकार यद्यपि उन्होंने भूगोल में वैज्ञानिकता की आधारशिला रखी, परन्तु भूगोल की वास्तविक रूपरेखा उन्नीसवीं सदीं में हम्बोल्ट (Humbolt) व रिटर (C. Ritter) ने तैयार की।
कान्ट, रिटर, रेटजेल, हम्बोल्ट, रिचथोफेन व हेटनर जैसे भूगोलवेत्ताओं ने वातावरण निश्चयवाद के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। रिचथोफेन तथा हेटनर ने भूगोल को क्षेत्रवर्णी विज्ञान के रूप में समझाने का प्रयत्न किया। जर्मनी के वर्तमान भूगोलवेत्ताओं ने लैण्डशाफ्ट (Landchaft) की विचारधारा का समर्थन किया। भू-राजनीति की विचारधारा का उदय जर्मनी में ही हुआ। हम्बोल्ट ने क्रमबद्ध व रिटर ने प्रादेशिक भूगोल का प्रतिपादन किया। इसी प्रकार की अनेक विचारधाराएँ जर्मन भूगोलवेत्ताओं ने प्रतिपादित की। प्रमुख विचारधाराओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:-
(i) वैज्ञानिक भूगोल (Scientific Geography):-
अठारहवीं सदी में रीनहॉल्ड फॉर्स्टर तथा जार्ज फॉर्स्टर ने वैज्ञानिक ढंग से पृथ्वी के विभिन्न भागों के भौगोलिक तथ्यों के प्रेक्षण (Observations) किए। उन्होंने तथ्यों को एकत्र किया, उनकी तुलना की, वर्गीकरण किया-इस वर्गीकरण में तथ्यों का सामान्यीकरण (Generalization) किया और उनकी कारणात्मक व्याख्याएं लिखीं। उन्होंने भौगोलिक सामग्री का वैज्ञानिक विवेचन किया। इस प्रकार रीनहॉल्ड फॉर्स्टर प्रथम विधितन्त्रीय भूगोलवेत्ता था। जॉर्ज फॉर्स्टर ने उसका अनुसरण किया। कान्ट ने भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान किया। इनके द्वारा तैयार आधार (Foundation) पर ही उत्तरकालीन भूगोलवेत्ताओं ने वर्तमान भूगोल के भव्य भवन का निर्माण किया।
(ii) क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography):-
रीनहॉल्ड फॉर्स्टर, जॉर्ज फॉर्स्टर व कान्ट ने क्रमबद्ध भूगोल में काफी योगदान किया, परन्तु क्रमबद्ध भूगोल का सबसे महान भूगोलवेत्ता हम्बोल्ट था। वस्तुतः वर्तमान भूगोल का संस्थापक व प्रवर्तक हम्बोल्ट को ही माना जाता है। उसकी प्रसिद्ध ग्रन्थमाला कॉसमॉस (Cosmos) में क्रमबद्ध भूगोल है। हम्बोल्ट ने दो ग्रन्थ ‘मध्य एशिया’ (Vol. 1 & Vol. 2) फ्रांसीसी भाषा में प्रकाशित कराए।
(iii) वातावरण निश्चयवाद (Environmental Deter- minism):-
वातावरण निश्चयवाद का जन्म जर्मनी में हुआ। रिटर, रेटजेल व हम्बोल्ट का इसमें मुख्य योगदान था। इस विचारधारा में मानवीय क्रियाओं को प्रकृति द्वारा नियंत्रित बताया गया था।
(iv) भूगोल : क्षेत्रवर्णी विज्ञान (Geography: Chorological Science):-
भूगोल को क्षेत्रवर्णी विज्ञान के रूप में प्रतिपादित करने का श्रेय जर्मन भूगोलवेत्ताओं को ही है। रिचथोफेन व हेटनर का इसमें विशेष योगदान था। इन्होंने भूगोल के अध्ययन क्षेत्र की व्याख्या की थी तथा अन्य क्रमबद्ध विज्ञानों के साथ भूगोल के सम्बन्धों का संश्लेषण किया था:
“Geography is a Chorological Science of the earth’s surface, of the science of earth areas in terms of their differences and their spatial relations.” -Hatner
(v) भू-राजनीति (Geo-Politics):-
‘भू-राजनीति’ शब्द यद्यपि एक स्वीडिश भूगोलवेत्ता द्वारा प्रस्तावित था, परन्तु इसके पूर्व ही रेटजेल के ‘राजनीतिक भूगोल’ से इसका बीजारोपण हो चुका था। सूपान (Supan) की पुस्तक ‘सामान्य राजनीतिक भूगोल के मार्गदर्शक सिद्धान्त’ 1922 में प्रकाशित हुई।
द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व व युद्ध के समय जर्मन लोगों ने अपनी जातीय व सांस्कृतिक श्रेष्ठता का दावा किया था। इसी आधार पर रहने के स्थान का नारा लगाया। इसी के परिणामस्वरूप भू-राजनीति का विकास हुआ।
इस क्षेत्र में कार्ल हाशोफर (Karl Haushofer) अत्यन्त प्रभावशाली था। उसने अपनी भू-राजनीति की विचारधारा को अपनी पुस्तक ‘मीन कैम्फ’ (Mein Kampf) में प्रस्तुत किया था।
(vi) प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography):-
प्रादेशिक भूगोल का विकास रिटर द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ ‘अर्डकुण्डे’ से हुआ। रेटजेल के ‘मानव भूगोल’ व ‘मानव जाति का इतिहास’ आदि ग्रन्थों में विभिन्न देशों व प्रदेशों के अध्ययन किए गए थे। वॉन रिचथोफेन के ग्रन्थों में चीन के प्रादेशिक वर्णन मानचित्रों के साथ दिए गए थे।
1925 में जर्मन सरकार ने अनेक भूगोलवेत्ताओं को खर्चा देकर भौगोलिक अन्वेषणों के लिए विदेश भेजा। लौटकर उन्होंने वहाँ के प्रादेशिक वर्णन लिखे।
(vii) अवस्थिति सिद्धान्तों का प्रतिपादन (Location theories):-
जर्मनी में अनेक अवस्थिति सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया-
(क) वॉन थूनेन का कृषिवलय सिद्धान्त-
वॉन थूनेन ने कृषि के स्थानीकरण का सिद्धान्त प्रस्तुत किया था। कोई भी कृषक वही फसल उत्पन्न करता है जिससे उसे सर्वाधिक लाभ होता है। किसी नगर के चारों ओर कृषि फसलों का स्थानीयकरण सकेन्द्रीय वृत्त खण्डों के रूप में होगा। प्रथम वलय में शाक, दुग्ध; द्वितीय में ईंधन की लकड़ी का उत्पादन, तृतीय में खाद्यान्न उत्पादन बिना परती भूमि छोड़े, चतुर्थ में खाद्यान्न परती भूमि छोड़कर व पंचम वलय में चरागाह होगा। वॉन थूनेन ने परिवहन लागत को बहुत अधिक महत्व दिया था।
(ख) वेबर का उद्योग अवस्थिति सिद्धान्त-
अल्फ्रेड वेबर (Alfred Weber) जर्मन अर्थशास्त्री था। 1909 में उसने उद्योगों की अवस्थिति का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। वेबर ने किसी उद्योग की स्थापना में परिवहन लागत, श्रम व एकत्रीकरण के प्रभाव को प्रदर्शित किया है।
(ग) क्रिस्ट्रालर के केन्द्रीय स्थिति सिद्धान्त-
वाल्टर क्रिस्ट्रालर (Walter Christraller) आर्थिक भूगोलवेत्ता था। उसने नगरों व व्यापारिक केन्द्रों पर परिवहन, पारस्परिक क्रिया तथा मध्यवर्ती अवसर के प्रभावों व उनके परिणामों को विश्लेषित किया है।
(viii) लैण्डशॉफ्ट का अध्ययन (Study of Landchaft):-
जर्मन विचारधारा के अनुसार भूगोल वह विज्ञान है, जिसमें ‘लैण्डशॉफ्ट’ का अध्ययन होता है। ‘लैण्डशॉफ्ट’ जर्मन भाषा का शब्द है। इसका अर्थ दृश्य, प्रदेश व प्रदेश की विशेषताएं हैं।
(ix) भूगोल की शाखाओं का विशेषीकरण (Specialization of Branches of Geography):-
अठारहवीं सदी में ही कान्ट ने भूगोल की शाखाओं का वर्गीकरण कर दिया था। उन्नीसवीं सदी में रिटर व हम्बोल्ट ने इसको और अधिक स्पष्ट किया। साथ ही उन्होंने इसका विशेषीकरण करना भी प्रारम्भ किया। बीसवीं सदी के मध्य से इस दिशा में विशेष कार्य किया गया है। भूगोल की शाखाओं का विशेषीकरण इस प्रकार किया गया है कि प्रत्येक शाखा एक स्वतंत्र विज्ञान भी हो गई है। जैसे जलवायु विज्ञान, मृदा विज्ञान, भू-भौतिकी, भू-गणित, स्वास्थ्य भूगोल, कृषि भूगोल, परिवहन भूगोल, सैन्य भूगोल, आचरण भूगोल, वाणिज्य भूगोल, आदि।
Bahut achha explanation hai