9. चक्रवात, प्रतिचक्रवात और उष्ण कटिबंधीय चक्रवात
9. चक्रवात, प्रतिचक्रवात और उष्ण कटिबंधीय चक्रवात
चक्रवात (Cyclone)
चक्रवात को आँग्ल भाषा में Cyclone कहते है। “Cyclone” शब्द यूनानी भाषा से लिया गया है। जिसका शाब्दिक अर्थ है- सर्प की कुंडली। इस शब्द का प्रयोग जलवायु विज्ञान में प्रथम बार पिडिंगटन महोदय ने किया था।
चक्रवात उस वायुमण्डलीय परिस्थिति को कहते हैं जिसमें हवाएँ एक निम्न वायुदाब केन्द्र के चारों ओर घूमने की प्रवृत्ति रखती है। चक्रवात में ज्यों ही किसी स्थान पर निम्न वायुदाब केन्द्र का निर्माण होता है त्यों ही उच्च वायुदाब केन्द्र से हवाएँ निम्न वायुदाब केन्द्र की ओर दौड़ने लगती है। उच्च वायुदाब केन्द्र से आने वाली हवाओं का मुख्य उद्देश्य निम्न वायुदाब केन्द्र को समाप्त करना होता है। लेकिन निम्न वायुदाब केन्द्र की ओर दौड़ने वाली हवाएँ पृथ्वी की घूर्णन गति के प्रभाव में आकार उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सूई के विपरीत (Anticlock wise) और दक्षिण गोलार्द्ध में घड़ी की सुई की दिशा (Clock wise) में घुमने लगती हैं।
प्रतिचक्रवात (Anti Cyclone)
चक्रवात का उल्टा प्रतिचक्रवात होता है। प्रतिचक्रवात के केन्द्र में एक अपना वायुदाब केन्द्र का निर्माण होता और हवाएँ केन्द्र से बाहर की ओर निकलने की प्रवृति रखती है। उत्तरी गोलार्द्ध में प्रतिचक्रवात Clock wise और दक्षिणी गोलार्द्ध में Anticlock wise घुमने की प्रवृति रखती है।
चक्रवात और प्रतिचक्रवात में अंतर
1. चक्रवात की स्थिति में निम्न वायुदाब केन्द्र और प्रतिचक्रवात की स्थिति में उच्च वायुदाब केन्द्र का निर्माण होता है।
2. चक्रवात में हवा बाहर से केन्द्र की ओर आने की प्रवृत्ति रखती है जबकि प्रतिचक्रवात में केन्द्र से बाहर की ओर जाने की प्रवृत्ति रखती है।
3. चक्रवात की स्थिति में परिवर्तन के फलस्वरूप बादल, वर्षण एवं तेज हवाएं जैसी मौसमी परिस्थतियाँ उत्पन्न होती हैं। वहीं प्रतिचक्रवात की स्थिति में मौसम साफ होने की प्रवृति रखती है।
4. चक्रवात के केन्द्र में हवाएँ नीचे से ऊपर की ओर उठने की प्रवृति रखती है जबकि प्रतिचक्रवात में हवाएँ ऊपर से नीचे की ओर बैठने की प्रवृति रखती है।
5. जिस स्थान पर चक्रवातीय स्थिति उत्पन्न होती है। ठीक उसके ऊपर प्रतिचक्रवातीय स्थिति उत्पन्न होती है। अत: स्पष्ट है कि चक्रवात और प्रतिचक्रवात जलवायु विज्ञान की दो अलग-2 धारणाएँ है।
चक्रवात का वर्गीकरण
विशेषताओं एवं भौगोलिक स्थिति के आधार पर चक्रवात को दो भागों में बाँटते हैं:-
(1) उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclone)
(2) शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Temperate Cylone)
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclone)-
पृथ्वी के दोनों गोलार्द्धों में 8º से 20° अक्षांशों के बीच या उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में किसी निम्न वायुदाब केन्द्र के चारों ओर तेज गति से घुमते हुए वायु से उत्पन्न मौसमी परिस्थितियों को उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहते हैं।
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात की विशेषताएँ
(1) उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति तथा विकास सागरीय सतह से प्राय: प्रारंभ होती है। इसकी उत्पत्ति हेतु सागर एवं स्थल का मिलन बिन्दु आदर्श परिस्थितियाँ उत्पन्न करती हैं।
(2) इसमें एक निम्न वायुदाब केन्द्र के चारों ओर हवाएँ घूमती है।
(3) इसमें वायु की औसत गति 100 Km/h होती है।
(4) इसमें समदाब रेखाएँ प्रायः गोलाकार होती है।
(5) इसमें दाब प्रवणता तीव्र होती है।
(6) चक्रवात की तीव्रता दाब प्रवणता पर निर्भर करती है। जब दाब प्रवणता कम होती है तो वायुमण्डलीय अवदाब का निर्माण होता है।
(7) उष्ण कटिबंधीय चक्रवात का विस्तार अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र पर होता है।
(8) प्राय: उष्ण कटिबंधीय चक्रवात पूरब से पश्चिम दिशा की ओर गमन करता है।
(9) इसमें अति अल्प समय में तीव्र गति से एवं अधिक मात्रा में वर्षा होती है।
(10) उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के केन्द्र को चक्रवात का आँख (चक्षु) कहा जाता है।
(11) यह शीत ऋतु की उपेक्षा ग्रीष्म ऋतु में अधिक उत्पन्न होता है।
(12) चक्रवात में गर्म एवं आर्द्र हवाएँ ऊपर की ओर उठकर संघनन क्रिया के माध्यम से बादल का निर्माण करती है। संघनन क्रिया के द्वारा परित्यक्त गुप्त उष्मा के द्वारा चक्रवात शक्ति ग्रहण करता है।
(13) यह समुद्र से आर्द्रता को स्थल की ओर लाने में मदद करता है।
(14) चक्रवात के कारण बड़े पैमाने पर जान एवं माल की हानि होती है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्नि दोनों गोलार्द्ध में 8º से 20° अक्षांश के बीच होता है। लेकिन इन्हीं अक्षांशों के बीच द० अटलांटिक महासागर में चक्रवात उत्पन्न नहीं होता है क्योंकि इस क्षेत्र में चक्रवात उत्पन्न करने हेतु स्थलीय भूभाग का अभाव है।
8º से 20° अक्षांश के बीच दोनों गोलार्द्धों में तापीय विषुवत रेखा के सहारे दोनों गोलार्द्धों से आने वाली वाणिज्यिक हवा आपस में मिलती है। जब दोनों गोलार्द्धों से आने वाली वाणिज्यिक हवा का तापमान एक समान होता है तो वैसी परिस्थिति में आपस में केवल मिलने की प्रवृति रखते हैं अर्थात् चक्रवात की आँख का विकास नहीं होता है।
8º से 20° अक्षांश के बीच जल एवं स्थल का वितरण काफी अनियमित है। वाणिज्यिक हवाएँ जब स्थलीय भाग से गुजरती हैं तो उसे स्थलीय वायु राशि और समुद्र के ऊपर से गुजरने वाली हवा को समुद्री वायुराशि कहते हैं। जिन स्थानों पर स्थलीय वायुराशि और समुद्री वायुराशि मिलती है वहाँ पर बला आघूर्ण के कारण हवाएँ घुमने लगती हैं और चक्रवात को जन्म देती हैं।
समुद्री वायुराशि काफी गर्म एवं आर्द्रता से युक्त होती है। जिससे स्वत: समुद्री सतह पर निम्न वायुदाब केन्द्र का विकास होता है। जबकि इसके तुलना में स्थलीय भाग पर उच्च वायुदाब केन्द्र का विकास होता है।
तटीय भागों में स्थलीय एवं समुद्री वायुराशि प्राय: मिलने की प्रवृत्ति रखते हैं। प्रारंभ में वाताग्र की स्थिति उत्पन्न करते हैं। लेकिन बला आघुर्ण के कारण वाताग्र ही चक्रवात के आँख के रूप में तब्दील कर जाता है। फलत: उच्च वायुदाब क्षेत्र से आने वाली हवाएँ आँख को समाप्त करने के लिए दौड़ पड़ती है। लेकिन आँख के केंद्र में पहुँचने के पहले ही हवाएं पृथ्वी की घूर्णन गति के प्रभाव में आ जाती है और ऊपर की ओर प्रक्षेपित कर दिए जाते है।
उष्ण एवं आर्द्र हवाएँ उपर जाकर संघनित होती है। जिससे वर्षण का कार्य प्रारंभ हो जाता है। सम्पूर्ण उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति को नीचे के मानचित्र से समझा जा सकता है।

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात की संरचना
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की संरचना चक्रीय होती है। जववायु विज्ञानवेताओं ने इसकी संरचना का अध्ययन क्षैतिज एवं लम्बवत रूप से करते हैं।
(A) क्षैतिज अध्ययन/ संरचना
क्षैतिज रूप से उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कई वलय में विभक्त होता है। सामान्य रूप से एक विकसित उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में कुल 6 रिंग होते हैं। जैसे-
प्रथम रिंग (वलय)⇒
यह चक्रवात का केन्द्र बिन्दु होता है। इसे चक्रवात की आँख कहते हैं। इसका व्यास 5 से 50 Km तक हो सकता है। आकार में यह लगभग वृत के समान होता है। वायुदाब अति न्यून होता है। वायु गर्म होकर ऊपर जाने की प्रवृत्ति रखती है। ठीक इसके ऊपर बादल का निर्माण नहीं होता है क्योंकि उष्ण एवं आर्द्र वायु जब गर्म होकर ऊपर उठती है तो केन्द्र के मध्य भाग में ठंडी एवं शुष्क व नीचे की ओर बैठने की प्रवृत्ति रखती है।
द्वितीय रिंग⇒
यह चक्रवात के चारों ओर स्थित होता है। इसे आँख की दीवाल (Eye Wal) कहते हैं। इसकी चौड़ाई 10 से 20 Km तक होता है। इस रिंग में हवा तेजी से ऊपर की ओर उठती है और आकाश में Cumulo nimbus cloud का निर्माण करती है और इस द्वितीय रिंग में भारी वर्षा होती है।
तृतीय रिंग⇒
इसे स्पाइरल बैण्ड या वर्षा बैण्ड कहा जाता है। द्वतीय रिंग में गरज के साथ भारी वर्षा होती है।
चौथा रिंग⇒
इसे Annular Band कहते हैं। चौथा रिंग में सघन बादल छाये रहते हैं। लेकिन वर्षा बहुत कम होती है। इस रिंग में तापमान उच्च और आर्द्रता निम्न होती है।
पांचवां रिंग⇒
इसे Outer Convective Band कहते हैं। इसमें बादल बहुत कम पाये जाते है। वर्षा नगण्य होती है।
छठा रिंग⇒
यह उष्ण चक्रवात का सबसे बाहरी हिस्सा है। इस रिंग में हवाएँ क्षैतिज रूप से केन्द्र की ओर चलती है। लेकिन इसमें अन्य मौसमी परिस्थितियाँ सामान्य रहती है। छठा रिंग को Outer Band कहते हैं।
1. चक्रवात का आंख (Eye of Cyclone) – अति न्यून वायुदाब
2. चक्रवात का दीवाल (Eye Wall)- क्यूम्लो निम्बस बादल का निर्माण तथा भारी वर्षा
3. वर्षा बैण्ड (Rain Band)- गरज के साथ भारी वर्षा
4. एनुलर बैण्ड (Annular Band)- सघन बादल
5. Outer Convective Band- बहुत कम बादल, नगण्य वर्षा
6. Outer Band- उष्ण चक्रवात का बाहरी हिस्सा
(B) लम्बवत संरचना
मौसम वैज्ञानिकों ने लम्बवत रूप से उष्ण कटिबंधीय चक्रवात को तीन परत में विभक्त करते हैं-
I. In-flow layer⇒
यह चक्रवात का सबसे निचली परत है। इसकी मोटाई घरातल से 3Km ऊँचाई तक होता है। इसमें हवाएँ क्षैतिज रूप से चक्रवात के आँख की ओर अग्रसारित होती है।
II. Middle layer⇒
यह चक्रवात का सबसे प्रमुख हिस्सा है। इसकी मोटाई 3 से 7 Km तक होती है। इसमें हवाएँ ऊपर की ओर उठने की प्रवृति रखती है। साथ ही चक्रीय रूप से घुमते हुए चक्रवात के केन्द्र तक पहुँचने का प्रयास करती है।
III. Out flow layer⇒
यह चक्रवात का सबसे ऊपरी परत है। इसका विस्तार 7 km से ऊपर होता है। इस Layer के मध्य में उच्च वायुदाब केन्द्र होता है तथा हवाएं बाहर की ओर निकलने की प्रवृति रखती है। दूसरे शब्दों में इस Layer में प्रतिचक्रवात की स्थिति होती है।

उष्णकटिबंधीय चक्रवात का वर्गीकरण एवं वितरण
चक्रवात में चलने वाले वायु की गति या चक्रवात की तीव्रता के आधार पर उष्ण कटिबंधीय चक्रवात को तीन वर्गो में बाँटते हैं:-
(1) चक्रवाती अवसाद या चक्रवाती विमोक्ष (Tropical Dipression)–
इसमें चलने वाली वायु की गति 17 m/s या 62 km/h होती है। इसमें निम्न वायुदाब केन्द्र का निर्माण होता है। लेकिन पूर्ण रूप से चक्रवात की आँख तथा Eye Wall (आँख की दीवाल) का विकास नहीं होता।
(2) विकसित चक्रवात-
वैसी चक्रवात जिसमें घूमने वाले वायु की गति 17 m/s से 33 m/s (62 km/h-117 km/h) तक होती है। इसमें निम्न वायुदाब केन्द्र के साथ-2 चक्रवात की आँख का भी विकास होता है। लेकिन, Eye Wall का निर्माण नहीं होता।
(3) क्षेत्रीय चक्रवात/ अति विकसित चक्रवात-
ऐसे चक्रवात में वायु की गति 33 m/s या 117 km/h से अधिक होता है। हरिकेन, टोरनेडो, जल स्तम्भ (water spont), विली बिली आदि इसके उदाहरण है। साफिर एवं सिम्पसन महोदय ने विध्वंस को आधार मानते हुए इस चक्रवात को 5 श्रेणियों में विभक्त किया है-
श्रेणी हवा की गति
श्रेणी-I 74 से 95 mile/h
श्रेणी -II 96 से 110 mile/h
श्रेणी -III 111 से 130 mile/h
श्रेणी -IV 131 से 155 mile/h
श्रेणी -V 155 mile/h से अधिक
साफिर एवं सिम्पसन ने बताया कि श्रेणी-III से ऊपर वाले चक्रवात विध्वंसक होना प्रारंभ हो जाते हैं। इसलिए अलग-2 श्रेणियों के चक्रवातों का नामांकरण अलग-2 किया जाता है। जैसे:- 2005 ई० में USA में आया हरिकेन श्रेणी-IV के समतुल्य चक्रवात था इसलिए उसका नाम डेनिश रखा गया था। अमेरिका में ही 2006 ई० में आया चक्रवात श्रेणी-V के समतुल्य था जिसका नाम कैटरीना रखा गया था। बंगाल की खाड़ी में 2007 में आया चक्रवात श्रेणी-III का था जिसका नाम सिद्ध रखा गया था।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात का वितरण
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात दोनों गोलार्द्धों में 8º से 20º अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं। लेकिन इन्हीं अक्षांशों के मध्य दक्षिणी अटलांटिक महासागर में चक्रवात उत्पन्न नहीं होता। पूरे विश्व में उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के 6 प्रमुख और दो विशिष्ट क्षेत्र हैं-
(A) प्रमुख क्षेत्र
(1) मैक्सिको की खाड़ी और उसके तटवर्ती क्षेत्र-
यहाँ उष्ण कटिबंधीय चक्रवात को हरिकेन से सम्बोधित करते हैं। जून से अक्टूबर के मध्य उत्पन्न होता है। यह कैरेबियाई द्वीप एवं सागरीय क्षेत्र से उत्पन्न होकर मैक्सिको और दक्षिणी USA की ओर अग्रसारित होता है।
(2) दक्षिणी चीन सागर-
जापान के तटीय क्षेत्र और फिलिपीन्स के आसपास भी उष्ण कटिबंधीय चक्रवात उत्पन्न होता है। जापान में इसे टाइकून और फिलिपीन्स में बाग्यो कहते हैं। जुलाई से अक्टूबर के बीच चक्रवातीय स्थिति उत्पन्न होती है।
(3) फिजी द्वीप के आस-पास-
इसे यहाँ चक्रवात कहा जाता है जो मार्च के महीने में उत्पन्न होता है।
(4) मध्यवर्ती अमेरिका के पश्चिमी तटीय क्षेत्र-
यहाँ भी इसे हरिकेन ही कहते हैं लेकिन मैक्सिकों की खाड़ी में उत्पन्न होने वाली हरिकेन की तुलना में इसकी तीव्रता कम होती है।
(5) दक्षिण हिन्द महासागर में ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी-पश्चिमी भाग-
यहाँ उष्ण कटिबंधीय चक्रवात को बिली-विली कहते हैं।
(6) बंगाल की खाड़ी और अब सागर-
इन दोनों सागरों के बीच भारतीय उपमहाद्वीप स्थित है। यहाँ उष्ण कटिबंधीय चक्रवात एक वर्ष में तीन बार आती है।
प्रथम मानसून प्रारंभ होने के पूर्व आती है जिसे बंगाल में काल वैशाखी, बिहार में अंधड़ और उत्तर पश्चिम भारत में (पंजाब-हरियाणा) तूफान कहा जाता है।
दूसरा चक्रवात मानसून के दौरान उत्पन्न होती है। इसी चक्रवात के कारण भारत के आंतरिक भागों में मानसूनी वर्षा होती है।
तीसरा चक्रवात मानसून के बाद उत्पन्न होती है। इन चक्रवात का सर्वाधिक प्रभाव कोरोमण्डल तटवर्ती क्षेत्रों (तमिलनाडू, आंध्रप्रदेश) में अधिक होती है।
(B) विशिष्ट क्षेत्र
(1) USA के दक्षिणी भाग⇒
यहाँ उत्पन्न होने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवात को टॉरनेडो कहते हैं। इसका आकार कीप के समान होता है। इसमें चलने वाली वायु की गति 180 Km/h तक होती है। इसके नीचे में व्यास कम और ऊपरी भाग में व्यास अधिक होता है। यह एक ऐसा उष्ण कटिबंधीय चक्रवात् है जिसका आँख का विकास महाद्वीपों के ऊपर होता है।
यह चक्रवात इतना शक्तिशाली होता है कि वाणिज्यिक हवा और पछुवा हवा की दिशा को मोड़ देता है। यह टॉरनेडो विश्व का सबसे विध्वंसक चक्रवात है। यह मिसीसीपी, मिसौरी घाटी या अमेरिका के महान मैदान में उत्पन्न होने वाला चक्रवात है।
(2) दक्षिणी जापान सागर⇒
इस सागर के ऊपर भी एक विशिष्ट उष्ण कटिबंधीय चक्रवात उत्पन्न होता है जिसे Water Spont (जल स्तम्भ) कहते हैं। इसका केन्द्र का विकास सागरीय सतह पर होता है क्योंकि क्यूरोशियो गर्म जलधारा का तापमान 28 से 29ºC तक पहुँच जाता है। इसमें वायु इतनी तीव्र गति से घूमती है कि समुद्री जल भी चक्रवात के साथ घुमने लगते हैं और आसमान में जल प्रक्षेपित कर दिये जाते हैं। जल के साथ-2 समुद्री जीव-जन्तु छोटे मछली इत्यादि भी आसमान में प्रक्षेपित हो जाते हैं। कालान्तर में यही जीव-जन्तु एवं छोटी मछलियाँ वर्षा के साथ धरातल पर गिर पड़ते हैं।
निष्कर्ष:
इस तरह उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि विश्व के अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार के चक्रवात उत्पन्न होते है जिसके कारण मौसमी परिस्थियाँ प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाती है।
- 1. थार्नथ्वेट का जलवायु वर्गीकरण / Climatic Classification Of Thornthwaite
- 2. कोपेन का जलवायु वर्गीकरण /Koppens’ Climatic Classification
- 3. कोपेन और थार्न्थवेट के जलवायु वर्गीकरण का तुलनात्मक अध्ययन
- 4. हवाएँ /Winds
- 5. जलचक्र / HYDROLOGIC CYCLE
- 6. वर्षण / Precipitation
- 7. बादल / Clouds
- 8. भूमंडलीय उष्मण के कारण एवं परिणाम /Cause and Effect of Global Warming
- 9. वायुराशि / AIRMASS
- 10. चक्रवात और उष्णकटिबंधीय चक्रवात /CYCLONE AND TROPICAL CYCLONE
- 11. शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात / TEMPERATE CYCLONE
- 12. उष्ण एवं शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का तुलनात्मक अध्ययन
- 13. वायुमंडलीय तापमान / ENVIRONMENTAL TEMPERATURE
- 14. ऊष्मा बजट/ HEAT BUDGET
- 15. तापीय विलोमता / THERMAL INVERSION
- 16. वायुमंडल का संघठन/ COMPOSITION OF THE ATMOSPHERE
- 17. वायुमंडल की संरचना / Structure of The Atmosphere
- 18. जेट स्ट्रीम / JET STREAM
- 19. आर्द्रता / HUMIDITY
- 20. विश्व की प्रमुख वायुदाब पेटियाँ / MAJOR PRESSURE BELTS OF THE WORLD
- 21. जलवायु परिवर्तन के विभिन्न प्रमाण
- 22. वाताग्र किसे कहते है? / वाताग्रों का वर्गीकरण
- 23. एलनिनो (El Nino) एवं ला निना (La Nina) क्या है?
- 24. वायुमण्डलीय सामान्य संचार प्रणाली के एक-कोशिकीय एवं त्रि-कोशिकीय मॉडल
- 25. सूर्यातप (Insolation)