3. Water use, Problems and Conservation in India (भारत में जल उपयोग, समस्या तथा संरक्षण)
Water use, Problems and Conservation in India
(भारत में जल उपयोग, समस्या तथा संरक्षण)
Q. भारत में जल संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता एवं उपयोगिता पर चर्चा कीजिए।
जल प्राकृतिक संसाधन है। मानव सहित जैविक संसार के जीव-जंतुओं के लिए जल अनिवार्य है। यही कारण है कि जल को जीवन से तुलना की जाती है। जल को लेकर यहाँ तक कहा जाने लगा है कि अगला विश्वयुद्ध जल के कारण ही लड़ा जायेगा। पूरे विश्व के 71% भाग पर समुद्री जल का विस्तार हुआ है। कुल स्वच्छ जल की 97% भाग अण्टार्कटिका या ध्रुवीय क्षेत्र में अवस्थित है। शेष तीन 3% जल स्थल पर जलाशयों और भूमिगत जल के रूप में अवस्थित है।
हमारी पृथ्वी के ऊपर 480 लाख घन किमी० जल उपलब्ध है। उनमें से कुछ जल वायुमण्डल में कुछ जल भूमिगत जल के रूप में और शेष जल महाद्वीप और महासागर के रूप में अवस्थित है। भारत जल संसाधन के मामले में एक धनी राष्ट्र है। जल रूपी प्राकृतिक संसाधन का भारत में कई तरह से उपयोग में लाये जाते हैं। जैसे:-
(1) सिंचाई के रूप में:-
जल का उपयोग किसानों के द्वारा कसल के उत्पादन हेतु सदियों से किया जाता रहा है। इसके लिए किसान नहर, नलकूप, कुंआ, तालाब और परम्परागत संसाधनों का उपयोग करते हैं। किसान इन जलाशयों से जल का दोहन कर फसल को शुष्क मौसम में सिंचाई कर बचाने का प्रयास करते हैं। हरित क्रांति ने यह साबित कर दिया है कि सिंचाई, फसलों के उत्पादन और उत्पादकता के बीच सह संबंध पायी जाती है अर्थात् जितना अधिक सिंचाई होगा उतना ही अधिक फसल उत्पादन होने की संभावना होती है।
(2) जलविद्युत के उत्पादन में:-
तापीय ऊर्जा के उत्पादन से कई पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न होने लगी है। अत: इसके विकल्प के रूप में नदियों पर बड़े-2 बाँधों का निर्माण कर जलविद्युत का उत्पादन किया जा रहा है। भारत का पहला जलविद्युत केन्द्र शिवसमुद्रम (1902 ई०) है। भारत में सबसे बड़ा जल-विद्युत केन्द्र भाखड़ा-नांगल टेहरी है।
भारत जलविद्युत उत्पादन हेतु लगभग सभी बड़े-बड़े नदियों पर बाँधों का निर्माण कर चुका है और जिन पर नहीं हुआ है उस पर बाँध बनाने की योजना प्रस्तावित है। भारत की नदियों से 8400 मेगावाट, जलविद्युत का उत्पादन किया जा सकता है। वर्तमान समय में भारत के कुल विद्युत उत्पादन में 24-27% योगदान जलविद्युत का है।
(3) पेयजल के रूप में:-
प्रत्येक जीव अपना प्यास जल का सेवन कर बुझाते हैं। इस तरह जल प्रमुख पोषक तत्त्व के रूप में शामिल हो जाता है। पेयजल की आवश्यकता ग्रामीण एवं नगरीय दोनों क्षेत्रों में है। एक अनुमानित आंकड़ा के अनुसार भारत के मात्र 63% घरों में ही पेयजल की सुविधा उपलब्ध है। इनमें भी मात्र 56% ग्रामीण क्षेत्र में 81.5% नगरी क्षेत्र में पेयजल की सुविधा उपलब्ध है।
ग्रामीण क्षेत्र में पेयजल भूमिगत जल से पूर्ति की जाती है। वहीं नगरीय क्षेत्रों में पास में अवस्थित जलशयों से की जाती है।
(4) घरेलू कार्य के रूप में:-
भारत में जल का प्रयोग घरेलू कार्यों के रूप में भी बड़े पैमाने पर की जाती है। जैसे- स्नान करने में, सफाई कार्य में, खाना बनाने में इत्यादि में।
(5) सौद्योगिक उपयोग में:-
औद्योगिक विकास के लिए पर्याप्त जल की आपूर्ति आवश्यक है। 1972 ई० में स्थापित “सिंचाई आयोग” के अनुसार 50 अरब घन मी० उद्योगों के लिए आवश्यक है लेकिन मात्र 30 अरब घन मी० जल 2000 ई० में उपलब्ध था। 2025 ई0 तक 120 अरब घन मी० औद्योगिक जल की माँग बढ़ने की संभावना है।
(6) परिवहन के रूप में:-
जल का प्रयोग समुद्री एवं आन्तरिक जल परिवहन के रूप में किया जाता है। आज भारत के 95% अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार समुद्र के माध्यम से होता है। भारत में आन्तरिक परिवहन का विकास पर्याप्त मात्रा में नहीं हुआ है फिर भी हल्दिया से प्रयागराज तक गंगा नदी को राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-1, सदया से दुबरी तक ब्रह्मपुत्र नदी में राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या WNH-2, तथा केरल के पास कोवलम को WNH-3 घोषित किया गया है। भारत के डेल्टाई क्षेत्रों में स्थानीय लोग जल का प्रयोग परिवहन के रूप में करते हैं।
(7) जलचक्र के रूप में:-
जलचक्र हमारे पारिस्थैतिक तंत्र का एक प्रमुख प्रक्रिया है जिसके तहत समुद्री जल वाष्पीकृत होकर आकाश में पहुंचता है जिससे वायुमंडल की आर्द्रता बनी रहती है। पुनः ऊँचाई पर जाकर जलवाष्प संघनित होकर बादलों का निर्माण करती है जिससे वर्षण का कार्य होता है।
वर्षा जल भारत के विभिन्न जलाशयों में जल की आपूर्ति करती हैं। जलाधिक्य वाले क्षेत्रों से जल नदियों के माध्यम से समुद्र तक पुनः पहुँच जाते हैं। इस संपूर्ण जलचक्र के दौरान अनेक जीव-जन्तु जल ग्रहण करते हैं जिससे हमारे देश की जैविक विविधता और पर्यावरण सुरक्षित रहती है।
(8) पर्यटन के विकास में:-
जल संघनित होकर बर्फ का निर्माण करती है। पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फ-बारी के कारण पर्यटन उद्योग का विकास बड़े पैमाने पर होता है। बड़े-2 बहुद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ इंदिरा गाँधी कमांड कैनाल क्षेत्र भाखड़ा-नांगल बहुद्देशीय नदी घाटी परियोजना की ओर जल के कारण ही आकर्षित होते हैं। वर्तमान समय में हाइड्रोनिकल पार्क जल की महता को और रेखांकित किया है।
(9) मत्स्य पालन के रूप में:-
इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत में जल का प्रयोग कई प्रकार से किया जा रहा है। जब संसाधनों के अत्याधिक दोहन के कारण यह एक विरल प्राकृतिक संसाधन बन चुका है। अतः जल से संबंधित समस्याओं की पहचान कर उनका संरक्षण आवश्यक है।
जल संसाधन से संबंधित समस्याएँ
भारत में जल संसाधनों से संबंधित समस्याओं को चार शीर्षकों में बाँटकर अध्ययन कर सकते हैं:-
(1) जल उपलब्धता की समस्या:-
भारत में सतही जल का अनुमानित भण्डार 1869 अरब घन मी० है। इनमें से मात्र 690 अरब घन मी० जल उपयोग के लिए उपलब्ध है। भारत के कुल भूमिगत जल का मात्र 450 अरब घन मी० जल उपयोग के लिए उपलब्ध है। 2025 ई० तक भारत में 1050 अरब घन मी० जल की आवश्यकता होगी। ये आँकड़े बताते हैं कि 2025 ई० तक जल की कमी नहीं होगी, लेकिन उसके बाद जल की जबड़दस्त कमी की समस्या उत्पन्न होगी।
भारत में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता में कमी आ रही है। 1951 ई० में प्रति व्यक्ति 5514 घन मी० जल उपलब्ध था जो 2001 ई० में घटकर 1869 घन मी० जल रह गई जो घटते हुए जल उपलब्धता स्पष्ट संकेत है।
प्रादेशिक स्तर पर भी जल संसाधन के वितरण में काफी विषमता है। जैसे-सम्पूर्ण उत्तर भारत का मैदानी क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में भूमिगत जल उपलब्ध है। वहीं दक्षिण भारत में भूमिगत जल का घोर अभाव है। भारत का उ०-पूर्वी क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में वर्षा (2000 सेमी० से अधिक) होती है। जबकि उ०-प० भारत और वृष्टिछाया प्रदेशों में 100 सेमी० से भी कम वर्षा होती है।
भारत में जल की उपलब्धता में मौसम के अनुसार भी विविधता देखी जाती है। जैसे- वर्षा ऋतु में भारत की 90% वर्षा हो जाती है। जबकि शेष ऋतुएं जलाभाव की समस्या से जुझते रहती है।
(2) उपयोग से संबंधित समस्याएँ:-
सभी के लिए स्वास्थ की सुविधा उपलब्ध करवाना भारत सरकार एवं राज्य सरकारों का मौलिक कर्तव्य है लेकिन लोगों को जो जल पीने के लिए मिल रहा है। वह जल 90% तक प्रदूषित हो चुका है। राजस्थान, गुजरात, प० मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र में पेयजल की गंभीर समस्या है। “राष्ट्रीय प्रायोगिक आर्थिक शोध परिषद” के रिपोर्टानुसार भारत के आधे से अधिक ग्रामीण घरों में पेयजल का कोई भी साधन मौजूद नहीं है।
भारत में सिंचाई साधनों का विकास बड़े पैमाने पर हुआ है, लेकिन इसके बावजूद भारत के 2/3 कृषि भूमि वर्षा पर ही निर्भर है। पुनः इसमें क्षेत्रीय विषमताएँ भी देखी जा सकती है।
भूमिगत जल संसाधन के अत्याधिक दोहन के कारण भूमिगत जल स्तर में भारी गिरावट आ रही है। भारत के 10 राज्यों के 114 जिलों में मई-जून में जिलाधिकारियों को सिंचाई कार्य पर रोक लगानी पड़ती है।
भारत में सिंचाई के लिए जो जल उपलब्ध है उसका भी मात्र 40% जल का ही प्रयोग हो पाता है। शेष जल बेकार चले जाते हैं। नदियों पर छोटे-2 बाँध के अभाव में वर्षा जल प्रवाहित होकर समुद्र तक पहुंच जाते हैं।
(3) गुणवता की समस्या:-
भारत में जल प्रदूषण की गंभीर समस्या है। इसका प्रमुख कारण उद्योगों, नगरो, घरेलू अवशिष्ट पदार्थों को जल में प्रवाहित किया जाना है। इसके अलावे कृषि कार्यों में प्रयोग किये जाने वाले रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक है। लोगों की गलत जीवन शैली और धार्मिक रुढ़िवादिता भी जल के प्रदूषित कर रही है।
जिन क्षेत्रों में बड़े-2 बांधों के निर्माण किया गया है उन क्षेत्रों में नीचले स्तर के घुलनशील रासायनिक पदार्थ के ऊपर आ जाने से जल की गुणवत्ता में कमी आ रही है।
(4) प्रबंधन से संबंधित समस्या:-
भारत में पर्याप्त मात्रा में जल की मात्रा उपलब्ध है लेकिन उचित प्रबंधन के अभाव में जल बेकार हो रहे हैं। राजनैतिक एवं प्रशासनिक प्रतिबद्धता में कमी आम व्यक्ति में जागरूकता के अभाव जल संसाधन के समक्ष और जटिल समस्याएं उत्पन्न कर रही है। अत: इनका संरक्षण अति आवश्यक है।
जल संरक्षण के उपाय
जल एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है जिसका संरक्षण अति आवश्यक है। भारत में जल संरक्षण के लिए जा रहे उपायों को चार शीर्षकों में बाँटकर अध्ययन करते हैं।
(1) वर्षा जल संग्रहण:-
भारत में पर्याप्त मात्रा में वर्षा होती है, लेकिन नदियों के माध्यम से जल प्रवाहित होकर समुद्र में चले जाते हैं। अतः वर्षा जल का संग्रहण अनिवार्य है। इसके लिए कई कार्य अपेक्षित है। जैसे- ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिगत जल स्तर से बनाये रखने के परम्परागत सिंचाई साधनों को विकसित किया जा रहा है। जैसे- आहर, तालाब, जोहर इत्यादि का पुनर्निर्माण करवाया जा रहा है।
नगरीय क्षेत्रों में लोगों को नवीन तकनीक पर आधारित जल संग्रहण की हारवेस्टिंग (कटाई/दोहन) के लिए प्रेरित किया जा रहा है। जैसे- नगरीय लोगों के लिए वाटर प्रूफ छत का निर्माण करना अनिवार्य बनाया जा रहा है। इसके तहत छत पर इकट्टा किये गये वर्षा जल को बोरिंग के माध्यम से भूमिगत करने की सलाह दी जाती है। घरों से निकलने वाले अपशिष्ट जल को घर के बाहर गड्डा/गर्त का निर्माण कर जल संग्रहण निर्माण करने की सलाह दी जाती है।
पर्वतीय एवं पठारीय क्षेत्रों में वर्षा जल का संग्रहण तालाबों एवं झीलों में किया जाता रहा है। उसे पुर्नुद्धार की योजना सरकार की है। भारत के उन जिलों में जहाँ पेय जल की गंभीर समस्या मौजूद है उन जिलों में भूमिगत जल दोहन करने के लिए किसानों को लाइसेन्स दिया जा रहा है ताकि मनमानी तरीके से का दोहन आप नहीं कर सके। मनमाने जल दोहन पर रोक लगाने के लिए सरकार नगरीय क्षेत्रों में टैक्स (कर) वसूला करती है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के किसान आज भी इस दायरे से बाहर है। सरकार की योजना है कि भूमिगत जल दोहन करने वाले किसान से टैक्स वसूला जाय।
वर्षा जल के संग्रहण हेतु नदियों पर छोटे-2 बाँधों का निर्माण किया जा रहा है तथा उत्तर भारत की नदियों को दक्षिण भारत की नदियों से जोड़ने की एक योजना चल रही है जिसे “राष्ट्रीय जल ग्रीड योजना” के नाम से भी जानते हैं। इसके द्वारा उतर भारत के बाढ़ वालें पानी को द० भारत के शुष्क प्रदेश में पहुंचाया जा सकेगा।
(2) जल संभर प्रबंधन / जल संभर विकास योजना:-
भारत में जल के संरक्षण हेतु जल संभर प्रबंधन योजना (Water Shade Management Porogramme) चलाया जा रहा है। जल विभाजक एक ऐसा उत्थित भूभाग है जहाँ से वर्षा जल दो विपरीत दिशाओं में बहना प्रारंभ करता है। इसके तहत योजना निर्माणकर्ताओं ने कृषि विकास, वन प्रबंधन और जल संरक्षण का उद्देश्य रखा है। हरियाणा के चंडीगढ़ के पास सूखा माजरी गाँव तथा MP के मकगाँवा गाँव के लोगों ने जल सम्भर विकास योजना का लाभ उठाते हुए जल संरक्षण का अभूतपूर्व प्रयास किया है।
(3) जल को अप्रदूषित रखना:-
जल प्रदूषण का सबसे प्रमुख कारण औद्योगिक कचड़े, नालियों के पानी लौर शौच की जलशयों के किनारे किया जाना इत्यादि है। औद्योगिक इकाईयों को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय सख्त निर्देश दे चुका है कि आप जल को उपचारित करने के बाद ही जल को जलाशयों में छोड़े। नगरों से निकलने वाले जल को उपचारित करने के लिए मैला टंकी की स्थापना की गई है। किसानों को रासायनिक उर्वरक के स्थान पर जैव उर्वरक प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
जल को सुरक्षित रखने के लिए “विद्युत शवदाह गृह” का निर्माण किया जा रहा है। लोग खुले में शौच परित्याग न कर सके, इसलिए जगह पर “सामुदायिक शौचालय” का निर्माण किया जा रहा है। इस क्षेत्र में विन्देश्वरी पाठक की संस्था “सुलभ इंटरनेशनल” सराहनीय कार्य कर रही है।
अन्य उपाय:-
जल संसाधन के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में आधुनिक तकनीक भी कारगर साबित हो रही है। जैसे- वाशिंग मशीन के प्रयोग को बढ़ावा देकर जल की खपत को कम किया जा सकता है। जल संरक्षण पर आधारित विज्ञापन का प्रसारण कर जन जागृति लायी जा सकती है। बढ़ती हुई जनसंख्या और पशुओं की संख्या के कारण जल का निरंतर माँग बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में इनकी संख्या को रोकने वाले कार्यक्रम को त्वरित लागू किया जा रहा है। वन प्रबंधन कर वनों का विस्तार किया जा रहा है ताकि जलचक्र सुचारू रूप से संचालित हो सहे।
निष्कर्ष
इस तरह उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत में जल संसाधन के संरक्षण एवं संवर्द्धन की दिशा में कई महत्वपूर्ण कार्य किये जा रहे हैं, लेकिन पूर्ण राजनैतिक एवं प्रशासनिक प्रतिबद्धता के अभाव में ये सभी कार्यक्रम अपेक्षित परिणाम नहीं दे पा रहे हैं।
अतः इस क्षेत्र में जन जागृति प्रशासनिक एवं राजनैतिक प्रतिबद्धता, जल संरक्षण कार्यक्रम को रोजगार से जोड़कर इस कार्यक्रम को त्वरित किया जा सकता है। राजस्थान के अल्वर क्षेत्र में राजेन्द्र सिंह के द्वारा जल संरक्षण का कार्य बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। अतः उनके ही समान बुद्धिजीवी वर्ग को आगे आकर कार्य करने की आवश्यकता है तभी जल संरक्षण के पूरे लक्ष्य को प्राप्त किया जा सका है।