1. Iron and Steel Industry (लौह-इस्पात उद्योग)
Iron and Steel Industry
(लौह-इस्पात उद्योग)
Q. भारत में लौह इस्पात उद्योग के विकास, स्थानीयकरण, समस्या एवं संभावना की चर्चा विस्तार से करें।
उत्तर- किसी भी राष्ट्र की लौह इस्पात उद्योग आधुनिक अर्थव्यवस्था के बुरी होती है। प्रति व्यकि इस्पात की उपलब्धता के आधार पर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का मूल्यांकन किया जा सकता है। भारत में लौह-इस्पात उद्योग के विकास का इतिहास काफी पुराना है। भारत में कई आदिम समाज परम्परागत तरीके से लैह-इस्पात उत्पादन करने में कार्य करती हैं। जैसे- MP के अगरिया जनजाति के लोग इस कार्य में दक्ष है।
भूगोलवेत्ताओं के अनुसार, भारत में लौह-इस्पात उघोग का इतिहास 4000 वर्ष पुराना है। भारत में प्रथम लोहा का प्रमाण 800 ईसा पूर्व का मिलता है। दिल्ली में कुतुबमीनार के निकट लौह-स्तंभ काफी पुराना है। प्राचीन काल में लौह-इस्पात उत्पादन का तकनीक काफी उन्नत था। यही कारण है कि खुले वातावरण में दिल्ली का लौह स्तंभ स्थित होने के बावजूद आज भी उसमें जंक नहीं लगा।
आधुनिक तरीके से लौह-इस्पात उत्पादन करने का प्रथम प्रयास 1830 ई० में तमिलनाडु के पोर्टोनोवा नामक स्थान पर किया गया जो असफल रहा है। पुन: कच्चे लोहे का उत्पादन पहली बार 1874 ई० में प. बंगाल के कुल्टी में स्थित ‘बराकर आयरन बर्क्स’ में किया गया जो सफल रहा।
भारत में लौह इस्पात उद्योग के विकास के दिशा में वृहत प्रयास 1907 ई० में शुरू हुई जब J.N. टाटा ने शाकची (जमशेदपुर का पुराना नाम) स्थान पर प्रथम इस्पात कारखाना नींव रखी। इससे “टाटा आयरन एण्ड स्टील कंपनी” (टिस्को) कहा गया। इसने 1911 ई० से इस्पात उत्पादन का कार्य प्रारंभ किया। इसके बाद “इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कंपनी लि०” (TISCO) की स्थापना 1918 ई० में प० बंगाल में हीरापुर में किया गया। पुन: 1923 ई० में भद्रावती (कर्नाटक) में विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील कंपनी लि० की स्थापना की गई। प्रारंभ में ये ‘मैसूरु स्टील वर्क्स’ कहलाता था। यह सार्वजनिक क्षेत्र की पहली इस्पात कंपनी थी।
1936 ई० में कुल्टी और हीरापुर के कारखाने को मिलाकर “भारतीय लौह एवं इस्पात कंपनी” का नाम दिया गया। 1953 ई० में बर्नपुर स्थित इस्पात के कारखाने को भारतीय लौह एवं इस्पात कंपनी में मिला दिया गया।
स्वतंत्रता के बाद इस्पात उद्योग के विकास हेतु कई प्रयास किये गये। जैसे- दूसरी पंचवर्षीय योजना में लौह-इस्पात उद्योग का काफी विकास हुआ। पूर्व USSR की सहायता से भिलाई में, ब्रिटेन की सहायता से दुर्गापुर में, प० जर्मनी की सहायता से राउरकेला में एक-एक इकाई की स्थापना की गई। इन तीनों को “हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड” के अन्तर्गत रखा गया। तीसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान पूर्व सोवियत संघ की सहायता से बोकारों में इस्पात के प्लाण्ट लगाये गये जिसने उत्पादन का कार्य 1974 ई० में प्रारंभ किया।
चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान इस्पात उद्योग के विकास की दिशा में कोई विशेष प्रयास नहीं किया गया। लेकिन, भारतीय इस्पात प्राधिकरण की स्थान 1973 ई० में की गई। इसका नाम बदलकर 1978 ई० में (SAIL) स्टील ऑथोरिटी ऑफ इण्डिया लि० कर दिया गया।
पांचवी पंचवर्षीय योजना के दौरान पाराद्वीप, सलेम तथा विशाखापतनम में लौह इस्पात केन्द्र की स्थापना की गई। पांचवी पंचवर्षीय योजना के बाद लौह- इस्पात उद्योग के क्षेत्र में निजी क्षेत्रों को बढ़ावा दिया जाने लगा। भारत में कहीं भी इस्पात का कारखाना सार्वजनिक क्षेत्र में नहीं लगाया जा रहा है हलाँकि संयुक्त उपक्रम के रूप में ‘पास्को इण्डिया लिमिटेड’ के द्वारा पाराद्वीप में इस्पात का एक संयंत्र स्थापित की जा रही है। पुनः जिंदल ग्रुप ने महाराष्ट्र, छतीसगढ़ तथा दिल्ली में छोटे-2 इस्पात के कई इकाईयों की स्थापना की है।वर्तमान में लौह-इस्पात उद्योग का विकास निजी क्षेत्रों के माध्यम से जारी है।
स्थानीयकरण
1 टन लौह इस्पात के लिए 5.5 टन खनिज की आवश्यकता पड़ती है। इनमें 2 टन लौह अयस्क, 2 टन कोयला, 0.5 टन चूना-पत्थर, 0.5 टन मैगनीज तथा डोलोमाइट हथा शेष अन्य खनिजों की आवश्यकता पड़ती है। बेबर के अनुसार लौह-इस्पात उद्योग वजन ह्रास उद्योग है। इसलिए इसकी स्थापना समान्यतः कच्चे माल के क्षेत्र में होना चाहिए। पुनः बेबर ने बताया कि लौह-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण में दो खनिज पदार्थों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। ऐसे उद्योगों को स्थापना का निर्धारण त्रिकोण मॉडल से करते हैं। इसे नीचे के चित्र से भी समझा जा सकता है।
अगर भारतीय इस्पात उधोग के स्थानीयकरण की प्रवृति को देखा जाय तो पाते हैं कि भिलाई, भद्रावती तथा सलेम का इस्पात कारखाना लौह-अयस्क क्षेत्र में है। दुर्गापुर, बर्नपुर तथा बोकारो का कारखाना कोयला क्षेत्र में जमशेदपुर तथा राउरकेला का कारखाना लौह अयस्क और कोयला क्षेत्र के मध्य में है। पुनः विशाखापतनम तथा पाराद्वीप का कारखाना बंदरगाह के पास स्थित है।
भारत में कुल 12 लौह-इस्पात संयंत्र है। इनमें से TISCO को छोड़कर सभी कारखाने सार्वजनिक क्षेत्र के है जिसका प्रबंधन का कार्य SAIL करती है। भारत का प्रमुख लौह-इस्पात केन्द्र और उसके स्थानीयकरण को प्रभावित करने वाले कारकों को नीचे देखा जा सकता है।
- जमशेदपुर (झारखण्ड)
लौह अयस्क- गुरुमहीसानी (उड़ीसा के मयूरभंज जिला), नोवामुंडी
कोयला- झरिया, पश्चिमी बोकारो
मैगनीज- क्योंझर , सुन्दरगढ़ से चुना पत्थर
विद्युत एवं जल की आपूर्ति- डिमना झील झील से जल (स्वर्णरेखा और खरकई नदी के संगम पर स्थित), चांडिल बांध परियोजना से जल विद्युत
- भद्रावती (कर्नाटक)
लौह अयस्क- बाबाबुदन की पहाड़ी से (चिकमंगलूर जिला)
कोयला- स्थानीय लकड़ी कोयला
मैगनीज- शिमोगा जिला से
विद्युत एवं जल की आपूर्ति- भद्रा नदी से जल प्राप्ति और महात्मा गाँधी तथा भद्रावती परियोजना से विद्युत की आपूर्ति
- ISCO (बर्नपुर, हीरापुर, कुल्टी-पश्चिम बंगाल)
लौह अयस्क- क्योंझर, मयुरभंज
कोयला- रानीगंज तथा झरिया
मैगनीज- क्योंझर
विद्युत एवं जल की आपूर्ति- बराकर नदी से जल, DVC से विद्युत
- दुर्गापुर
लौह अयस्क- नुवामुन्डी (325 किमी० दूर)
कोयला- झरिया तथा बोकारो से (110 किमी० दूर)
मैगनीज- क्योंझर से
विद्युत एवं जल की आपूर्ति- दामोदर नदी से जल, DVC से विद्युत
- राउरकेला
लौह अयस्क- क्योंझर तथा कोनाई से (75 किमी०)
कोयला- झरिया, बोकारो तथा तलचर से
मैगनीज- क्योंझर से
विद्युत एवं जल की आपूर्ति- जल शंख नदी से, तालचेर से विद्युत
नोट: शंख नदी (Sankh River) भारत के झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओड़िशा राज्यों में बहने वाली एक नदी है।
- भिलाई
लौह अयस्क- डाली राजहरा से
कोयला- झरिया, बोकारो तथा कोरबा से
मैगनीज- बालाघाट तथा भंडारा से
विद्युत एवं जल की आपूर्ति- तेंदुला बांध से, विद्युत्- कोरवा से
- बोकारो
लौह अयस्क- क्योंझर
कोयला- झरिया
मैगनीज-किरिबुरु
विद्युत एवं जल की आपूर्ति- बोकारो नदी तथा दगहा डैम से जल, विद्युत-चन्द्रपुरा से
- सलेम
लौह अयस्क- शिवाराय की पहाड़ी से
कोयला- नवेली
मैगनीज- सलेम
विद्युत एवं जल की आपूर्ति- जल तथा विद्युत मैटूर बांध से
- विजय नगर
लौह अयस्क- बाबाबुदन की पहाड़ी से
कोयला- सिंगरैनी तथा कान्हन घाटी
मैगनीज- स्थानीय विजयनगर
विद्युत एवं जल की आपूर्ति- तुंगभद्रा परियोजना से
- विशाखापत्तनम
लौह अयस्क- बैलाडीला
कोयला- आस्ट्रेलिया
मैगनीज- बालाघाट
विद्युत एवं जल की आपूर्ति- तुंगभद्रा परियोजना से
समस्या
भारत का लौह इस्पात उद्योग कई समस्याओं से गुजर रही हैं। जैसे-
(1) पूँजी की समस्या:-
इस उद्योग की स्थापना में अधिक पूँजी की आवश्यकता पड़ती है। चूँकि भारत एक विकासशील देश है जिसके सदैव इसके पास पूँजी का अभाव बना रहता है।
(2) आधुनिक तकनीक का अभाव।
(3) सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले इस्पात केन्द्रों में कुप्रबंधन की समस्या।
(4) सरकार द्वारा लौह एवं इस्पात का मूल्य निर्धारित किया जाता है जिसके कारण इस्पात उलादन कंपनी घाटे में रखती है।
(5) लघु इस्पात संयंत्रों का घाटे में चलना।
(6) अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्द्धा।
(7) परिवहन की समस्या।
(8) SAIL द्वारा निराशाजनक प्रदर्शन।
संभावना
निश्चय ही भारतीय इस्पात उद्योग कई समस्याओं के दौर से गुजर रहे हैं। लेकिन भारत के पास लौह अयस्क, कोयला, मैगनीज, चुना-पत्थर इत्यादि का विशाल भण्डार है जिसके आधार पर इस उद्योग का विकास बड़े पैमाने पर किया जा सकता है। भारत की अर्थव्यवस्था दूसरी सबसे तेज गति से विकसित होने वाली अर्थव्यवस्था है जिसके कारण यहाँ पर निर्माण कार्य बड़े पैमाने पर चल रहे हैं जिसके कारण देशी माँग में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
पुन: भारत के किसी भी पड़ोसी देश में इस्पात उत्पादन नहीं होता है। ऐसे में पड़ोसी देशों के साथ संबंध स्थापित क अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पैठ बना सकता है। स्वर्णीम चतुर्भुज परियोजना या सड़क-निर्माण क्रांति, फ्रेड रेलवे कोरीडोर के निर्माण से परिवहन की समस्या समाप्त हो जायेगी। अधुनिक औद्योगिक नीति से विदेशी पूँजी और आधुनिक तकनीक का आगमन भारत में हो रहा है। ओडिशा के पाराद्वीप में निर्मित होने वाला पोस्को इस्पात केन्द्र एक ऐसा केन्द्र है जहाँ अब तक सबसे बड़ा विदेशी पूँजी का निवेश हुआ है।
आर्थिक सुधार के दूसरे चरण में विनिवेश की नीति को अपनाकर प्रबंधन में सुधार लाने प्रयास कर रही है।
निष्कर्ष:
उपरोक्त तथ्यों के विवेचना से स्पष्ट है कि भारत में लौह-इस्पात उद्योग का भविष्य उज्ज्वल है।
Bahut achhi notes h sir