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ECONOMIC GEOGRAPHY (आर्थिक भूगोल)

2. ह्विटलसी के कृषि प्रादेशीकरण तकनीक/ विश्व के प्रमुख कृषि प्रदेश/Major Agriculture Region of The World

2. ह्विटलसी के कृषि प्रादेशीकरण तकनीक

(विश्व के प्रमुख कृषि प्रदेश/Major Agriculture Region of The World)


      ह्विटलसी के कृषि

          कृषि अध्ययन में कृषि प्रदेश की संकल्पना का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। कृषि प्रदेश भूमि का एक विस्तृत क्षेत्र है, जिसमें कृषि करने की दशाओं तथा प्रतिरूप में व्यापक रूप से समानता मिलती है तथा जो समीपवर्ती क्षेत्रों से विशिष्ट रूप से भिन्न होता है। कृषि प्रदेशों का सीमांकन फसल-साहचर्य, फसल-पशुपालन साहचर्य तथा फार्म क्रिया प्राविधियों, आदि के मानदण्डों के आधार पर होता है। कृषि प्रदेशों का सीमांकन करने वाले विद्वानों में डी. ह्विटलसी का नाम उल्लेखनीय है।

        सर्वप्रथम 1939 में डी. ह्विटलसी ने कृषि प्रदेशों का वर्गीकरण किया, जिसमें उन्होंने निम्नलिखित आधार तत्वों को प्रदेशों के सीमांकन का मानक आधार (Criterion) माना था।

(1) कृषि फसलों एवं पशुओं का पारस्परिक सम्बन्ध:-

        विश्व में कृषि एवं पशुपालन क्रियाएँ साथ-साथ चलती हैं। दोनों कार्य विस्तृत भूमि एवं मिट्टी की उर्वरता से सम्बन्धित हैं। पशु मानवीय श्रम की पूर्ति करते हैं और मानवीय क्षमता को बढ़ाते हैं। वे दुग्ध, मांस, चमड़ा, हड्डी, खाद जैसे पदार्थों को उपलब्ध कराकर कृषि संस्कृति के महत्वपूर्ण घटक बन जाते हैं। भूमि के अनुकूलतम उपयोग के लिए फसलों एवं पशुओं का साहचर्य आवश्यक होता है। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में यह साहचर्य अलग-अलग प्रकार का मिलता है जो कृषि दशाओं की समानता की प्रादेशिक भिन्नताओं को प्रदर्शित करता है।

(2) कृषि उत्पादन विधियाँ:-

       पृथ्वी के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कृषि की दशाओं में भिन्नता के साथ कृषि की उत्पादन विधियाँ भी बदल जाती हैं जिसके कारण कृषि दशाओं की प्रादेशिक समानता एवं सम्बद्धता मिलती है। उदाहरणार्थ, किसी क्षेत्र में कृषि उत्पादन में पारस्परिक विधियों, जैसे पशुओं तथा हल, आदि का प्रयोग होता है तो किसी क्षेत्र में आधुनिक कृषि यंत्र जैसे ट्रैक्टर, हारवेस्टर, आदि का प्रयोग होता है। किन्हीं क्षेत्रों में फसल उत्पादन सिंचाई पर आधारित है और किन्हीं क्षेत्रों में बिना सिंचाई के कृषि सम्भव है। इसी प्रकार विस्तृत एवं गहन कृषि भी विभिन्न उत्पादन विधियों के उदाहरण हैं।

(3) कृषि में पूंजी, श्रम एवं संगठन आदि के विनियोग की मात्रा:-

       किन्हीं कृषि प्रदेशों में पूँजी का निवेश अधिक होता है तो कहीं श्रम का अथवा कहीं-कहीं दोनों का ही अधिक उपयोग किया जाता है। अतः पूंजी एवं श्रम के विनियोग की मात्राओं की भिन्नता के आधार पर भी कृषि दशाओं की प्रादेशिक समरूपता एवं सम्बद्धता में भिन्नता मिलती है। मानवीय श्रम पर आधारित कृषि जीवन निर्वाहक हो जाती है। यांत्रिक कृषि लाभांश को बढ़ाती है। पूंजी विनियोग से कृषि उत्पादन की मात्रा, किस्म एवं विविधता प्रभावित होती है। संगठन कृषि का एक आवश्यक तत्व है। पिछड़े देशों में प्रत्येक कृषक अलग-अलग कृषि उत्पाद का विनिमय करता है, अतः वह मोल-भव में घाटा उठाता है। उत्पादकों में विपणन की उचित व्यवस्था, मूल्यों पर ध्यान रखना संगठनात्मक पहलू के उत्तम उदाहरण हैं।

(4) कृषि उत्पादन के उपभोग का स्वरूप:-

       कृषि पदार्थों की मात्रा, विविधता एवं किस्म उपभोग प्रतिरूप से प्रभावित होती है। यदि कृषि उत्पादन व्यापारिक दृष्टि से किया जाता है जब वहाँ विस्तृत प्रकार की फसलों के विशेषीकरण वाली कृषि होती है जैसे रबर, गन्ना, कॉफी, चाय, गेहूँ, आदि की, परन्तु यदि उत्पादन कृषक के निजी उपभोग के लिए किया जाता है तब वहाँ निर्वाहक कृषि के अन्तर्गत अनाज, दलहन, तिलहन, आदि अनेक फसलों की कृषि की जाती है। अतः कृषि उपज के उपभोग के तरीके से भी कृषि दशाओं में प्रादेशिक विविधता मिलती है जो कृषि प्रदेशों के सीमांकन हेतु आधार प्रदान करती है।

(5) कृषि उत्पादन में प्रयुक्त यन्त्र एवं उपकरण तथा आवास सम्बन्धी दशाएँ:-

          कृषि क्षेत्रों की अपनी संस्कृति होती है। उसमें कृषि उपकरणों का प्रयोग तथा कृषकों की जीवन पद्धतियाँ आती हैं। उदाहरण के लिए यूरोप एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के गाँव जीवन की सभी सुविधाओं से युक्त होते हैं। वहाँ कृषि पद्धति एवं कृषकों का जीवन स्तर उच्च कोटि के होते हैं। दक्षिणी एशिया के अधिकांश गांवों में परिवहन, विद्युत्, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है। अतः कृषकों का जीवन निम्न स्तर का होता है। इस आधार को भी ह्विटलसी ने कृषि प्रदेशों के निर्धारण हेतु प्रयोग में लिया है।

          डी. ह्विटलसी द्वारा वर्गीकृत विश्व के कृषि प्रदेश:-

1. चलवासी पशुचारण प्रदेश (Nomadic Herding Region)

2. व्यापारिक पशुपालन प्रदेश (Livestocking Ranching Region)

3. स्थानान्तरी कृषि प्रदेश (Shifting Cultivation Region)

4. प्रारम्भिक स्थानबद्ध कृषि प्रदेश (Redimental Sedentary tillage Region)

5. चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि प्रदेश (Intensive Subsistence Tillage with Rice Dominant) 

6. चावल विहीन गहन निर्वाह कृषि प्रदेश (Intensive Subsistence Tillage region without Paddy Rice)

7. व्यापारिक बागान कृषि प्रदेश (Commercial Plantation Tillage Region)

8. भूमध्य सागरीय कृषि प्रदेश (Mediterranean Agricultural Region)

9. व्यापारिक अनाज उत्पादक कृषि प्रदेश (Com- mercial Grain Farming Region)

10. व्यापारिक फसल एवं पशु उत्पादक कृषि प्रदेश (Commercial Livestock Crop and Farming Region)

11. निर्वाह फसल एवं पशु उत्पादक कृषि प्रदेश (Subsistence Crop and Livestock Farming Region)

12. व्यापारिक दुग्ध पशुपाल कृषि प्रदेश (Commercial Dairy Farming Region)

13. विशेषीकृत बागवानी या उद्यान कृषि प्रदे (Specialised Horticulture Region)

(i) चलवासी / स्थानान्तरणशील पशुचारण प्रदेश:-

         इस कृषि प्रदेश में अफ्रीका का सहारा प्रदेश, इथियोपिया, मिस्र, सूडान, सऊदी अरब, ईरान, इराक, अफगानिस्तान, पूर्व सोवियत संघ से अलग हुए मध्य एशिया के देश, उत्तरी चीन, मंगोलिया, दक्षिणी अफ्रीका के भाग आते है। यह शुष्क एवं अर्द्धशुष्क प्रदेश है। घास यहाँ प्राकृतिक वनस्पति है। घास के विस्तृत मैदानों में चरवाहों के समूह एक स्थल की घास समाप्त होने पर दूसरे स्थान पर जाते हैं। अतः इसे स्थानान्तरणशील पशुचारण कहते हैं। यहाँ जनसंख्या का घनत्व कम होता है पशुचारण समूह अस्थाई अधिवास बनाते हैं तथा परिवर्तन उनके जीवन का अंग होता है। किरगिज, मसाई, बद्दू जैसे समूह इसके उदाहरण हैं।

        यहाँ के निवासियों का जीवन पशुओं से प्राप्त उत्पादों यथा दूध, मक्खन, पनीर, चमड़ा, माँम, हिड्डी, सींग, खुर पर आधारित रहता है। अन्य वस्तुएँ जो इतर क्षेत्रों से मिलती हैं उनके लिए विलासिता के वर्ग में आती हैं। उनके वस्त्र, तम्बू, हथियार, पशुओं से संबंधित होते हैं। मरुस्थलों में ऊँट, अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में बकरी, भेड़ आई प्रदेशों में गाय, बैल, टुन्ड्रा में रेण्डियर, तिब्बत में याक जैसे जानवर मिलते हैं। इन पशुओं की जीवन निर्वाह हेतु विविध रूपों में प्रयोग किया जाता है।

(2) व्यापारिक पशुपालन प्रदेश:-

         इस प्रदेश का विस्तार मध्य पश्चिमी अमेरिका, मध्य पूर्वी दक्षिणी अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका, यूरोप के सीमित क्षेत्र और आस्ट्रेलिया में है। इन प्रदेशों में अन्न उत्पादन पर कम ध्यान दिया जाता है और पशुपालन पर अधिक।

         क्षेत्रों की विशेषता के अनुसार कहीं गाय, बैल (अमेरिका) तो कहीं भेड़, बकरी (आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड) की प्रधानता है। ये प्रदेश ऊन, चमड़ा, माँस, दूध और उससे बनी वस्तुओं जैसे मक्खन, पनीर का निर्यात करते हैं। पशुओं की नस्ल में सुधार करते हैं तथा विस्तृत चारागाहों की व्यवस्था इनके जीवन का अंग होता है। इन प्रदेशों के घास के मैदान कृषि के लिए उपयुक्त भी नहीं होते हैं। यहाँ वर्षा 35 सेमी० वार्षिक से अधिक नहीं होती है।

        व्यापारिक पशुपालन वैज्ञानिक युग की देन है। त्वरित परिवहन, रेफ्रीजरेशन, रेल, जहाज, ट्रक की सुविधा, औद्योगिक केन्द्रों में वृहद् जनसमूहजन्य माँग आदि इनके अभ्युदय के प्रमुख कारण हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, अर्जेण्टाइना, पेटेगोनिया, उरुग्वे, ब्राजील, चाको का पठार, वेनेजुएला, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड इस तरह की कृषि के पर्याप्त हैं।

       व्यापारिक पशुपालन में कम संख्या में मनुष्यों की आवश्यकता पड़ती है। रखवाली करने वाले कुत्तों और घोड़ों की सहायता से यह कार्य किया जाता है। जीवन पद्धति पशुओं पर आधारित होती है। उत्तम संगठन व्यवस्था, निर्यात के प्रति जागरूकता, पूँजी इसके विकास के आवश्यक तत्व हैं।

(3) स्थानान्तरणशील कृषि:-

      यह कृषि प्रदेश अमेजन घाटी, दक्षिणी वेनेजुएला, गायना, नाइजीरिया, घाना, काँगो, चाड, जिम्बाबे, मालागासी, न्यूगिनी, बोर्नियो, म्यांमार कम्पूचिया जैसे देशों में मिलता है।

       ऐसी कृषि मुख्यत: आदिवासियों द्वारा जंगलों को साफ करके की जाती है तथा कालान्तर में खेत छोड़कर कृषक अन्यत्र नये जंगल साफ करते हैं। इसमें मानवीय श्रम एवं न्यूनतम उपकरण का प्रयोग होता है। इसे असम में झुम, इण्डोनेशिया में लदांग, श्रीलंका में चेना, रोडेशिया में मिल्पा के नाम से जाना जाता है।

प्रमुख फसलें- 

         इस तरह के कृषि प्रदेश में फसलोत्पादन प्रधान होता है और पशुपालन नगण्य होता है। फसलों में धान (एशियाई देश), मक्का (अमेरिका) और ज्वार-बाजरा प्रधान होते हैं। फसल की देख-रेख निराई-गुड़ाई नहीं होती है। अतः उपज कम होती हैं। कृषक फल संग्रह एवं आखेट भी करते रहते हैं।

      यह कृषि पद्धति पिछड़ी अवश्य है किन्तु प्राकृतिक वातावरण से पूर्णत: समायोजित होती हैं। कृषकों की सूझ-बूझ प्रधान होती है। ऐसे प्रदेशों में अज्ञानतावश वनों की क्षति अवश्य होती है।

(4) प्रारंभिक स्थायी कृषि प्रदेश:-

         यह प्रदेश उत्तर-पूर्वी भारत, मलाया, प्रायद्वीप, सुमात्रा, प० न्यूगिनी, मध्य एण्डीज के देशों में मिलता है। यहाँ खेती सीमित क्षेत्रों में होती है, अतः स्थानान्तरणशीलता संभव नहीं होती। अधिकांश विशेषताएँ स्थानान्तरणशील कृषि प्रदेश के समान होती हैं। बागानी खेती के संलग्न प्रदेशों में, उत्खनन, केन्द्रों से संलग्न भागों में तथा पठारी भागों में यह कृषि मिलती है। यहाँ कृषि गहन भी होती है तथा पशुपालन भी इससे संबंधित होता है। गाय, बैल, भैंस, खच्चर, घोड़े, भेड़, बकरी आदि स्थान एवं क्षेत्र के अनुरूप पाये जाते हैं।

(5) चावल प्रधान गहन निर्वाहक कृषि प्रदेश:-

        इस प्रदेश में बंग्लादेश, श्रीलंका, भारत, दक्षिणी एवं मध्य चीन, म्यांमार, कम्पूचिया, थाईलैण्ड, जावा आदि देश व प्रदेश प्रमुख रूप से आते हैं। यह कृषि प्रदेश प्राकृतिक वातावरण से समायोजित होता है। मानसूनी जलवायु के अधिक वर्षा वाले भाग इसमें आते हैं। अधिक ताप एवं मौसमी परिवर्तन इसकी विशेषता है।

      औसत वार्षिक वर्षा 150 सेमी० से अधिक होती है। समतल मैदानी भागों में मेंड़ बाँध कर धान की खेती की जाती है। अपेक्षाकृत उच्च भाग अथवा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का जैसी फसलें होती हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र का मैदान, कृष्णा, गोदावरी का डेल्टाई भाग, दक्षिणी पश्चिमी भारत का तट, इरावदी, सोनम, मौकांग, सीक्यांग, यॉरिटसीक्यांग, हांगहों के डेल्टाई प्रदेशों को इस कृषि का प्रतीक माना जा सकता है।

        कृषि उत्पादन का प्रमुख उद्देश्य जीवन निर्वाह होता हैं। वर्तमान समय में तकनीकी प्रगति, कृत्रिम खाद, कीटनाशक दवायें, कृषि यंत्रों का प्रयोग आदि से उत्पादन बढ़ा है तथा चावल का निर्यात भी होता है किन्तु तीव्र जनावृद्धि से अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता है।
(6) चावल विहीन गहन निर्वाहक कृषि प्रदेश:-

           इसके अन्तर्गत पाकिस्तान, मध्य पश्चिमी भारत, उत्तरी मंगोलिया, दक्षिणी कोरिया जैसे देश प्रमुख रूप से आते हैं। यहाँ वर्षा का सापेक्ष अभाव तथा तापमान की कमी से गेहूँ की खेती की उपयुक्त दशाएँ मिलती हैं। सिंचाई का प्रसार होने से गेहूँ की खेती का विस्तार हुआ है क्योंकि वह अधिक टिकाऊ एवं प्रमुख खाद्यान्न फसल है। यहाँ वर्षा 150 सेमी से कम होती है। कुछ संक्रमण वाले क्षेत्रों में बरसात में धान (खरीफ) तथा जाड़े में गेहूँ की खेती की जाती है।

अन्य विशेषताएँ-

       उपर्युक्त चावल प्रधान एवं गेहूँ प्रधान क्षेत्र नदियों के मैदानी भाग हैं। यहाँ जनसंख्या का घनत्व सर्वाधिक मिलता है, अतः यहाँ स्वभावतः गहन कृषि होती है। मानवीय श्रम का भरपूर प्रयोग होता है। कुछ क्षेत्रों में क्रमश: यांत्रिकीकरण भी हो रहा है। अधिकांश मानसूनी क्षेत्रों में ‘हरित क्रांति’ (Green Revolution) से धान एवं गेहूँ की किस्मों में सुधार हुआ है। उत्पादन की मात्रा बढ़ी है तथा आत्मनिर्भरता के साथ व्यापारिक प्रवृत्ति भी पनपी है। मानूसन की अनिश्चितता से बाढ़ तथा सूखा जैसे प्राकृतिक संकट आते रहते हैं।

         राजनीतिक दृष्टि से यह क्षेत्र लगभग स्थिर है तथा प्रशासन कृषि के विकास का प्रयास कर रहा है। धार्मिकता, रूढ़िवादिता और परम्पराओं का कुप्रभाव कम हो रहा है। विपणन व्यवस्था में शासकीय हस्तक्षेप बढ़ने से छोटे किसानों को लाभ मिल रहा है। भूमिहीन कृषकों को कुछ भूमि मिल रही है। सभी कृषक वैज्ञानिक विधियों को अपना रहे हैं। परिवहन एवं संचार के साधनों का विकास हुआ है। रेडियो, दूरदर्शन एवं समाचार-पत्र भी किसानों को प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं।

(7) व्यापारिक बागानी कृषि प्रदेश:-

          यह कृषि प्रदेश उष्ण कटिबन्धों में मिलती है। लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिणी एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया इसमें प्रधान रूप से आते हैं। यह क्षेत्र एक फसली होता है।

प्रमुख फसलें-

           कोको, कॉफी, चाय, रबर, गन्ना, नारियल, मिर्च-मसाले इसमें प्रधान हैं। गन्ना प० द्वीप समूह, ब्राजील, पूर्वी अफ्रीका, मलागासी होता है। केला, प० द्वीप समूह, मध्य अमेरिका, वेनेजुएला तथा अफ्रीका के कुछ भाग में होता है।

विशेषतायें

       यहाँ कृषि बड़े-बड़े बागानों पर होती है। बगानों में फसल की बुआई, कटाई, सुखाई उसे डिब्बो में बंद करना, निर्यात प्रबंध आदि सभी व्यवस्थायें उपलब्ध होती हैं।

       बागानी खेती अधिकांश विदेशी आधिपत्य में है। वैज्ञानिक विधि का प्रयोग, आधुनिक यंत्र, कीटनाशक, उन्नत बीज यहाँ प्रयोग में लाये जाते हैं।

         श्रमिकों को रहने के लिए घर, स्वास्थ्य, शिक्षा, मनोरंजन आदि के लिए सम्पूर्ण व्यवस्था रहती है। कृषि का उद्देश्य निर्यात करना होता है। स्थानीय जनसंख्या श्रमिक के रूप में कार्य करती है अतः प्रादेशिक विकास नहीं हो पाता है।

         यह कृषि प्रदेश प्रधानतः उष्ण क्षेत्रों में ही मिलता है। पूँजी निवेश इसकी प्रमुख आवश्यकता होती है। इसके उत्पादों की माँग भी स्थाई होती है। कुछ फसलों को कृत्रिम उत्पादों से प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है।

(8) भमूमध्य सागरीय कृषि प्रदेश:-

      यह कृषि प्रदेश भूमध्य सागर के चतुर्दिक स्थित देशों- मध्य स्पेन, इटली, दक्षिणी फ्रांस, यूनान, तुर्की, सीरिया एवं कैलिफोर्निया, दक्षिणी-पश्चिमी आस्ट्रेलिया, दक्षिणी-पश्चिमी अफ्रीका तथा दक्षिणी चिली में मिलता है। वस्तुतः यह भूमध्य सागरीय जलवायु के पर्याप्त हैं। इस प्रदेश में जाड़े में वर्षा होती है और ग्रीष्म काल शुष्क रहता है। अतः यहाँ की फसलों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

(अ) जाड़े की फसलें-

         इसके अन्तर्गत गेहूँ, आलू, प्याज, टमाटर, सेम और फल की खेती होती है। यहाँ की फसलों की माँग यूरोपीय नगरों में बहुत होती है। उदाहरणार्थ कैलीफोर्निया से संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट के नगरों को सब्जी एवं फल की आपूर्ति होती है।

(ब) ग्रीष्म ऋतु की फसलें-

         इस ऋतु में सिंचाई द्वारा खेती की जाती है। अंगूर इस मौसम की प्रमुख फसल है। हल्के ढाल वाले क्षेत्रों में अंगूर की बेलें लगाई जाती हैं। सेब, नाशपाती, जैतून, अंजीर, चीकू आदि फल होते हैं, सब्जियाँ भी उगाई जाती हैं।

अन्य विशेषताएँ-

        भूमध्य सागरीय कृषि प्रदेश में कहीं फल एवं सब्जी प्रधान होते हैं तो कहीं-कहीं पशुपालन भी होता है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भेड़-बकरियाँ चराई जाती हैं। ऊन का निर्यात होता है। कहीं माँस के लिए भी पशु पाले जाते हैं।

        यह कृषि प्रदेश धरातल, जलवायु एवं मानवीय तत्त्वों में अद्भुत सामंजस्य प्रकट करता है। धरातलीय विभिन्नता का प्रभाव फसलों एवं सब्जियों पर पड़ता है। यहाँ जनसंख्या का घनत्व अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है। यहाँ से तेल, शराब, माँस, सूखे फल आदि का निर्यात किया जाता है।

(9) व्यापारिक अन्नोत्पादक कृषि प्रदेश:-

           यह कम जनसंख्या वाला ऐसा क्षेत्र है जहाँ कृषि का उद्देश्य व्यापार करना होता है। उत्तरी अमेरिका में प्रेयरी, रूस में स्टेपी, अर्जेण्टाइना में पम्पा, आस्ट्रेलिया में मरे-डार्लिंग बेसिन आदि इसी कृषि प्रदेश में आते हैं।

अन्य विशेषतायें-

          सैकड़ों हेक्टेयर के खेत तथा एकाकी मकान इस प्रदेश में कृषि की पहचान होते हैं। फार्मों में व्यापक पैमाने पर यंत्रों का प्रयोग होता है, तथा एक या दो व्यक्ति मिलकर फसल संबंधी सभी कार्य जुताई-बुआई, निराई-गुड़ाई कटाई-महाई, भण्डारण आदि करते हैं। कटाई के समय कभी-कभी अस्थाई श्रमिक भी लगाये जाते हैं।

          यहाँ कीटनाशक दवाओं का प्रयोग, खाद, सिंचाई का प्रयोग पर्याप्त होता है। वर्षा प्राय: 25 से 50 सेमी० तक होती है अतः गेहूँ ही प्रधान फसल है। यहाँ की मिट्टी में नमी पर्याप्त मात्रा में होती है, अतः प्रति इकाई उपज अधिक होती है।

          कृषि व्यापार पर आधारित होती है। विदेशों में माँग कम होने या कीमत गिरने या अत्यधिक उत्पादन होने पर फसल या तो जानवरों को खिलाई जाती है या जला दी जाती है।

(10) व्यापारिक कृषि एवं पशुपालन प्रदेश:-

         इस कृषि में पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, साइबेरिया के क्षेत्र आते हैं। इस प्रदेश में फसलों का उत्पादन पशुपालन के उद्देश्य से किया जाता है। पशुओं को मोटा करना और उनसे अधिक माँस प्राप्त करना प्रमुख उद्देश्य होता है। हड्डी, चमड़ा, सींग, खुर, अण्डे अदि भी प्राप्त हो जाते हैं।

प्रमुख फसलें-

      प्रमुख फसलों में जई, चरी (Hay) मक्का, आलू, चुकन्दर, गाजर, मटर, गोभी, सेम, शलजम ककड़ी का भी उत्पादन होता है तथा हरे चारे की भी खेती होती है।

अन्य विशेषतायें-

       इस प्रदेश में अनाज, हरा चारा एवं सब्जियों का क्रमानुक्रम में उत्पादन किया जाता है। जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहे।

      संयुक्त राज्य अमेरिका में फार्म विस्तृत होते हैं, जबकि यूरोप में छोटे फार्म पर मकान, पशुशाला, यंत्रागार भंडारगृह बने होते हैं। 

        फसल चारे के रूप में या अनाज के रूप में पशुओं को खिलाई जाती है तथा विक्रय भी की जाती है।

        पशुओं का विक्रय होता है या माँस तैयार करके बेचा जात है। उत्पादनों का निर्यात विदेशों में किया जाता है। कृषि में पूँजी एवं श्रम का विनियोग अधिक होता है तथा कृषि वैज्ञानिक विधियों से की जाती है।

         आर्थिक दृष्टिकोण से यह खेती लाभदायक होती है। भूमि संरक्षण तथा भूमि की उर्वरता को बनाये रखने का प्रयास किया जाता है। आवश्यकतानुसार फसलों या पशुओं का उत्पादन समायोजित किया जाता रहा है जिनमें हानि नहीं होती है।

(11) निर्वाहक अन्न और पशुपालन प्रदेश:-

       इस प्रकार की कृषि पद्धति पश्चिमी एशिया में तुर्की उत्तरी ईरान, मध्यवर्ती एशिया और उत्तरी साइबेरिया के क्षेत्रों में जलवायु और स्थलीय बाधाओं के कारण विकसित हुई है। यहाँ न तो पूर्ण कृषि पर जीवनयापन आश्रित है और न पशुपालन पर। फलतः अन्नोत्पादन और पशुपालन दोनों से जीवन निर्वाह हो पाता है। यहाँ शुष्कता एवं ठंडा के कारण कंवल एक फसल किसी प्रकार हो पाती है। फलतः पशुपालन आवश्यक हो जाता है।

(12) व्यापारिक दुग्धोत्पादन कृषि प्रदेश:-

         यह कृषि प्रदेश संयुक्त राज्य अमेरिका में बड़ी झीलों के समीप विस्तृत भाग में, पश्चिमी यूरोप में रूस के पश्चिमी मध्य पेटी में तथा दक्षिणी-पूर्वी आस्ट्रेलिया, रूमानिया एवं न्यूजीलैण्ड में मिलता है।

        इस कृषि प्रदेश में दुग्धोत्पादन प्रधान पेशा है। गाय सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होती है। पालतू गायों की किस्में दूध की मात्रा एवं दूध में मक्खन की मात्रा से संबंधित होती है। जर्सी, स्विश, आयरिश, बाउन, होन्सटाइन नस्लें प्रधान हैं। यहाँ सूअर और मुर्गियाँ भी पाली जाती हैं। फसलों में मक्का एवं हरे चारे की प्रधानता होती है।

        ताजे दूध एवं मक्खन, पनीर के निर्यात हेतु लम्बी दूरी तक त्वरित परिवहन साधनों का प्रयाग होता है। पानी के जहाजों पर शीत गृह का निर्माण कर माँस, मक्खन, पनीर का निर्यात होता है।

        दुग्धोत्पादन के निर्माण से संबंधित कारखानों की स्थापना की जाती है। दूध से पाउडर, आइसक्रीम, मक्खन आदि बनाये जाते हैं।

       पशुओं के रहने, नहाने, टहलने, स्वास्थ्य आदि की देखभाल के लिए विस्तृत प्रबंध किये जाते हैं। पशुओं को वातानुकूलित कक्षों में रखा जाता है।

        पशुओं के दूध निकालने के लिये, माँस काटने के लिए और बाल निकालने के लिए मशीनों का प्रयोग किया जाता है। संबंधित फसलों को बोने-काटने हेतु भी यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।

        उत्पादों की पर्याप्त माँग इन कृषि प्रदेशों का आधार है अतः विकसित एवं संपन्न राष्ट्रों से यह कृषि प्रदेश संबंधित है।

(13) विशेषीकृत बागवानी कृषि प्रदेश:-

        संयुक्त राज्य अमेरिका में खाड़ी एवं अटलांटिक तट, कैलीफोर्निया की घाटी, मध्य एशिया, पेरू, ब्राजील तट और दक्षिणी अफ्रीका में ऐसी विशिष्ट कृषि का विकास हुआ है। फल, सब्जी, फूल और कुछ अन्य फसलों की गहन खेती इस क्षेत्र में की जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका का यह क्षेत्र ऐसी फसलों के उत्पादन में अग्रणी है।

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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