Unique Geography Notes हिंदी में

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BA SEMESTER/PAPER III

17. हिमालय के विकास के संदर्भ में जल प्रवाह प्रतिरूप/विन्यास

17. हिमालय के विकास के संदर्भ में जल प्रवाह प्रतिरूप/विन्यास



हिमालय के विकास के संदर्भ में जल प्रवाह प्रतिरूप/विन्यास 

        कई पर्वत निर्माणकारी भूसंचलन के कारण प्राचीन टेथिस सागर में नदियों के द्वारा लाकर मलवा जमा किये जाने तथा उनमें पड़े वलन की क्रिया से हिमालय जैसे पर्वत का निर्माण हुआ है। भूवैज्ञानिकों का मत है कि हिमालय पर्वत का निर्माण केनोजोइक महाकल्प के तृतीयक काल में हुए अल्पाइन भूसंचलन से हुआ है। पुन: भूवैज्ञानिकों के अनुसार ओलीगोसीन में महान हिमालय, मायोसीन में मध्य हिमालय तया प्लायोसीन एवं प्लीस्टोसीन कल्प में शिवालिक हिमालय का निर्माण हुआ।

       हिमालय पर्वतीय क्षेत्र के उत्पान और विकास का स्पष्ट प्रभाव नदी के प्रतिरूप पर पड़ा है। जैसे:-   

    कई प्रसिद्ध भूवैज्ञानिकों का मत है कि तृतीयक काल में लघु हिमालय के दक्षिण में उसके समानान्तर एक विशालकाय नदी थी जो पूरब से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती थी। यह नदी उत्तर-पश्चिम भारत में जाकर दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर मुड़ जाती थी। पैस्को और पिल्ग्रीम जैसे भूगोलवेताओं ने इस प्राचीन नदी का नाम शिवालिक नदी या ‘इण्डो ब्रह्मा नदी’ दिया है।

       जब इस नदी में हिमालय के नदियों द्वारा मलवा का लगातार निक्षेपण होता रहा तो इसकी तली में दबाव की क्रिया के कारण इस मलवा में पुन: उत्थान की क्रिया सम्पन्न हुई। इस उत्थान से शिवालिक नदी का जल ढाल के अनुरूप प्रवाहित होने से कई अनुवर्ती नदियों का जन्म हुआ। ये नदियाँ काफी छोटी-2 हैं और मे उत्तर भारत की मुख्य नदियों की सहायक नदी के रूप में प्रवाहित होती है।

       सिन्धु, सतलज, कोसी और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ पूर्ववर्ती नदी के उदाहरण है। पूर्ववर्ती नदी तात्पर्य वैसे नदी से है जिसका निर्माण किसी भी प्रदेश के उत्थान के पूर्व से ही नदी की प्रवाह जारी है। उपरोक्त पूर्ववर्ती नदी के बारे में भूवैज्ञानिकों का मत है कि हिमालय के उत्थान का दर नदी के अपरदन के दर से कम था जिसके कारण उपरोक्त पूर्ववर्ती नदियों ने हिमालय पर्वत को जगह-2 पर अपरदित करके गहरे गॉर्ज और दर्रों का निर्माण की हैं।

         जैसे- सिन्धु नदी नंगा पर्वत के पास काटकर विश्व का सबसे गहरा गॉर्ज सिन्धु गॉर्ज 5200 मी० गहरा का निर्माण करती है। इसी तरह ब्रह्मपुत्र नदी नामचा बरबा के पास गहरे गॉर्ज का निर्माण करती है। सतलज नदी महान हिमालय को काटकर शिपकीला दर्रा का निर्माण करती है।

        शिवालिक पर्वतीय क्षेत्र के दक्षिण में ‘बोल्डर क्ले’ के जमाव से भावर प्रदेश का विकास हुआ है। इसका निर्माण की प्रक्रिया भी हिमालय के विकास से जुड़ा हुआ है। हिमालय से निकलने वाली नदियाँ जब भावर प्रदेश से गुजरती हैं तो मे विलुप्त हो जाती है जिससे ‘खण्डित अपवाह तंत्र’ का निर्माण करती है। पुनः ये नदियाँ मैदानी क्षेत्र में दृष्टिगत होने लगती है और ढाल के अनुरूप प्रवाहित होने की प्रवृति रखती हैं जिसके कारण “समानान्तर प्रतिरूप” का विकास करती हैं। पुनः हिमालय से निकलने वाली नदियाँ समुद्र में मिलने से पहले कई वितरिकाओं में विभक्त हो जाती है जिससे गुंफिट या जालीदार प्रतिरूप का विकास होता है।

         हिमालय पर्वत का अक्ष एक चाप के समान है जो पूरब से पश्चिम दिशा की ओर स्थित है। हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढाल तीव्र और उत्तरी ढाल मंद है। वलन की क्रिया से हिमालय पर्वत में कई अनुप्रस्थ एवं अनुद्धैर्य घाटियों का विकास हुआ है। अनुद्धैर्य घाटियों से होते हुए नदियाँ प्रवाहित होती थीं लेकिन जब हिमालय का विकास या उत्थान होने लगा तो अनुद्धैर्य घाटियों में प्रवाहित होने वाली जल प्रवाह बाधित हो गई, जिसके कारण इन अनुद्धैर्य घाटियों में कई बड़े-2 झीलों का निर्माण हुआ।

          इन झीलों में जब जल की मात्रा अधिक हो गई तो पहाड़ों के ऊपर से प्रवाहित होने लगी। जिसके फलस्वरूप बहते हुए जल से कई स्थानों पर हिमालय पर्वत को काटकर अनुप्रस्थ घाटियों का निर्माण कर ली। इन संपूर्ण परिघटना से हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों में समान आयताकार अपवाह तंत्र का विकास हुआ है। जैसे- कोसी नदी अपने उद्‌गम क्षेत्र में आयताकार प्रतिरूप का निर्माण करती है।

        हिमालय के उत्थान के पूर्व कई ऐसी नदियाँ थी जो भिन्न-2 दिशाओं से आकर टेथिस सागर में आकर गिरती थी। लेकिन हिमालय के उत्थान के बाद बड़ी-बड़ी नदियों ने छोटी-2 नदियों के जल को अपहरण कर लिया जिससे क्रमहीन अपवाह तंत्र का विकास हुआ। जैसे- ब्रह्मपुत्र नदी ने लोहित एवं दिवांग नदी के जल को अपहृत कर ‘क्रमहीन अपवाह तंत्र’ का विकास किया है।

       भूगर्भशास्त्रियों का अनुमान है कि प्राचीन काल में सतलज और यमुनी नदी राजस्थान से होकर बहती थी। पुन: सरस्वती नामक पौराणिक नदी प्रयागराज के पास आकर गंगा से मिलती थी। लेकिन हिमालय के उत्थान के दौरान उ०-प० भारत में हुए उत्थान से सतलज नदी का अपवाह क्षेत्र खिसक कर उ०-प० की तरफ चला गया और सरस्वती एवं यमुना नदी आपस में मिलकर एक नदी के रूप में प्रवाहित होकर मिलने लगी। इस तरह हिमालय के उत्थान एवं विकास से उ०-प० भारत के नदी तंत्र में कई परिवर्तन हुए।

निष्कर्ष

     उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि हिमालय से निकलने वाली नदियों के ऊप हिमालय के उत्थान एवं विकास का स्पष्ट प्रभाव पड़ा है। यही काण है कि हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में नदी के अनेक प्रतिरूप दिखाई देते है।

हिमालय के विकास के संदर्भ
चित्र: हिमालय की उत्पत्ति एवं विकास

प्रश्न प्रारूप

1. हिमालय के विकास के संदर्भ में जल प्रवाह प्रतिरूप/विन्यास की विवेचना करें।

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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