36. भारत में सिंचाई की आवश्यकता क्यों है?
36. भारत में सिंचाई की आवश्यकता क्यों है?
वर्षा के अभाव में खेतों को कृत्रिम ढंग से जल पिलाने की क्रिया को सिंचाई करना कहा जाता है। भारत एक उष्ण कटिबन्धीय देश है जिसमें कृषि मुख्यतः मानसूनी वर्षा पर ही निर्भर है, किन्तु इस वर्षा की प्रकृति एवं उसके वितरण में कई दोष पाये जाते हैं। इन दोषों को दूर करने एवं नियमित कृषि करने का सर्वोत्तम उपाय सिंचाई की व्यवस्था करना है।
सिंचाई की आवश्यकता के कारण
(1) वर्षा की अनिश्चितता (Uncertainty of Rainfall):-
भारत में वर्षा समय एवं स्थान की दृष्टि से अनिश्चित होती है तथा विभिन्न क्षेत्रों में उसकी मात्रा भी भिन्न होती है। मोटे तौर पर अनुमान लगाया गया है कि प्रत्येक 7 वर्ष में दो बार सूखा पड़ जाता है। अकाल सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को क्षत-विक्षत कर देते हैं। कभी तो समय से बहुत पहले ही वर्षा हो जाती है और कभी लम्बे अन्तराल पर इसी कारण नियमित रूप में कृषि करने के लिए सिंचाई अनिवार्य है।
(2) वर्षा का असमान वितरण (Unequal Distribution of Rainfall):-
यद्यपि देश में वर्षा का औसत 100 सेण्टीमीटर है, किन्तु इसका क्षेत्रीय वितरण असमान है। उदाहरण के लिए पश्चिमी तटीय क्षेत्रों और असम प्रदेश में 250 सेण्टीमीटर से भी अधिक वर्षा होती है। उत्तरी मैदान और प्रायद्वीप के पूर्वी भाग में यह 100 से 200 सेण्टीमीटर ही होती है। पंजाब के मैदान और दक्षिण प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भागों में वर्षा की मात्रा केवल 25 से 100 सेण्टीमीटर होती है।
गंगा नदी के पूर्वी मैदान तथा पश्चिमी समुद्री तट को छोड़ कर अन्य सभी भागों में वर्षा की कमी से सदैव अकाल का संकट बना रहता है। राजस्थान, हरियाणा और दक्षिणी पंजाब में तो बहुत कम वर्षा होने से सिंचाई के बिना खेती करना सम्भव नहीं है। इसी प्रकार दक्षिणी पठार के मध्यवर्ती एवं आन्तरिक भागों में कृषि बिना समुचित सिंचाई के सम्भव नहीं है, क्योंकि इन प्रदेशों में या तो सूखा पड़ता है या फिर वर्षा बहुत कम होती है।
(3) वर्षा का कुछ ही महीनों में सीमित होना (Restriction of Rainfall to few months):-
भारत के सभी भागों में एक ही मौसम में वर्षा नहीं होती। शीतकाल में केवल दक्षिण-पूर्वी भाग में ही वर्षा होती है और शेष भाग सूखे रहते हैं। वर्षा का 74% जून से सितम्बर के महीनों में दक्षिण-पश्चिमी मानसून द्वारा प्राप्त होता है, शेष का एक भाग शीत ऋतु में उत्तर-पूर्वी मानसून द्वारा एवं उत्तर-पश्चिमी भारत में शीतकालीन चक्रवातों द्वारा ऐसी स्थिति में वनस्पति अथवा कृषि उत्पादन के लिए लम्बे शुष्क काल में सिंचाई आवश्यक हो जाती है।
(4) जनसंख्या में वृद्धि (Growth in Population):-
भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 121 करोड़ है। प्रतिवर्ष बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए अधिकाधिक मात्रा में खाद्यान्नों की आवश्यकता पड़ती है। देश में इनका उत्पादन कम होने से अभाव के वर्षों में अनाज आयात करना पड़ता है।
अतः आयात बन्द करने के लिए अतिरिक्त उत्पादन, गहरी खेती और प्रति हेक्टेअर एक से अधिक फसले उगाने से ही सम्भव है। इसके लिए सिंचाई करना अनिवार्य है। ऐसा अनुमान है कि यदि गेहूँ और धान उत्पादक क्षेत्रों में सिंचाई की समुचित व्यवस्था बराबर की जा सके तो इन अनाजों का अतिरिक्त उत्पादन प्रतिवर्ष 1 करोड़ से 1.5 करोड़ टन तक बढ़ाया जा सकता है।
(5) विशेष फसलों के लिए अधिक जल की आवश्यकता (Some Special Crops Require more Water):-
चावल, गन्ना, जूट, मिर्ची, प्याज, लहसुन, आलू, आदि फसलों के लिए नियमित रूप से अधिक जल की आवश्यकता पड़ती है। इसी प्रकार ग्रीष्म काल की फसलें और बरसीम आदि के लिए प्रतिवर्ष 90 सेण्टीमीटर, रसदार फलों के लिए 100 सेण्टीमीटर तथा कठोर फलों के लिए 75 सेण्टीमीटर अतिरिक्त वर्षा की आवश्यकता पड़ती है। अतः अतिरिक्त जल की पूर्ति सिंचाई द्वारा की जाती है।
(6) मिट्टी की प्रकृति (Nature of Soil):-
उत्तरी मैदान तथा नदियों के डेल्टाओं में उपजाऊ कांप मिट्टी पायी जाती है। जिससे थोड़ी सिंचाई करने से ही उत्पादन बढ़ जाता है। अन्य भागों में बलुई और दोमट मिट्टी अधिक समय तक जल रोकने में असमर्थ रहती है, अतः उसे कृषि योग्य बनाए रखने के लिए बार-बार सिंचाई करना आवश्यक हो जाता है।
(7) चारागाहों के विकास के लिए (For Development (of Pastures):-
पशु पालन और दुग्ध व्यवसाय को प्रोत्साहन देने के लिए प्राकृतिक चारागाहों की रक्षा करना आवश्यक है तथा नए चारागाहों के लिए पर्याप्त मात्रा में जल की उपलब्धता होना आवश्यक है।
(8) व्यावसायिक फसलों में वृद्धि के लिए (For Increas- ing Commercial Crops):-
कृषि के अन्तर्गत कुल क्षेत्र के 20% पर व्यावसायिक फसलें पैदा की जाती हैं, जिनसे कृषि उत्पादन के कुल मूल्य का 35% प्राप्त होता है। इन फसलों के अन्तर्गत केवल 16% भाग को ही सिंचाई की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। चूंकि व्यावसायिक फसलों के निर्यात द्वारा भारत को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में लगभग 9% विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है और देश के उद्योगों के लिए कच्चा माल मिलता है, अतः इनके उत्पादन में वृद्धि करने के लिए सिंचाई की विशेष आवश्यकता पड़ती है।
(9) भारत में वर्षा प्रायः तेज बौछारों के रूप में होती है जो कृषि के लिए हितकर नहीं है। इससे वर्षा का जल भूमि में रिस नहीं पाता और भूमि प्यासी रह जाती है। निरन्तर फसलों के उत्पादन के लिए तब सिंचाई करना अनिवार्य हो जाता है।
प्रश्न प्रारूप
1. भारत में सिंचाई की आवश्यकता क्यों है? विवेचना कीजिये।