32. चट्टानें एवं चट्टानों का प्रकार (Rocks and its Types)
32. चट्टानें एवं चट्टानों का प्रकार
(Rocks and its Types)
चट्टानें
भू-पटल निर्माण करने वाले पदार्थों को चट्टान कहते है अर्थात भू-पटल का निर्माण चट्टानों से हुआ है। चट्टानें मुख्यतः खनिजों के संयोग से बनती हैं, अर्थात् चट्टानें खनिजों का समुच्चय हैं। पृथ्वी पर लगभग 200 प्रकार के खनिज पाये जाते हैं। इनमें 24 ऐसे हैं, जो मुख्यतः भू-पृष्ठ की चट्टानों का निर्माण करते हैं। अत: इन्हें चट्टान निर्माणक खनिज कहा जाता है। ये खनिज मुख्यतः सिलिकेट, ऑक्साइड एवं कार्बोनेट के रूप में पाये जाते हैं। इन चट्टान निर्माणकारी खनिजों में सिलिकेट सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है एवं इसके बाद ऑक्साइड का स्थान आता है। जैव पदार्थों से निर्मित चट्टानों में खनिज नहीं मिलता है, जैसे- कोयला। चट्टानें पत्थर की तरह कड़ी एवं पंक की तरह मुलायम हो सकती हैं।
चट्टानों के प्रकार (Types of Rocks)
उत्पत्ति के आधार पर चट्टानों को तीन भागों में बांटा गया है-
1. आग्नेय (Igneous)
2. अवसादी (Sedimentary)
3. कायांतरित (Metamorphic)
1. आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks):-
आग्नेय चट्टानों का निर्माण मैग्मा के ठंडा होकर जमने एवं ठोस होने से होता है। चूंकि सर्वप्रथम इसी चट्टान का निर्माण हुआ, अतः इसे प्राथमिक चट्टान (Primary Rock) भी कहा जाता है। ये आधारभूत चट्टानें हैं, जिनसे परतदार एवं रूपांतरित चट्टानों का निर्माण होता है।
⇒ ये चट्टानें रवेदार (Crystalline) होती हैं। जब मैग्मा धरातल पर आकर ठंडा होता है, तब तीव्र गति से ठंडा होने के कारण चट्टानों के रवे बहुत बारीक होते हैं, जैसे- बेसाल्ट। इसके विपरीत जब मैग्मा धरातल के नीचे ठंडा होता है, तब धीरे-धीरे जमने के कारण रवे बड़े-बड़े होते हैं, जैसे- ग्रेनाइट।
⇒ ये चट्टानें तुलनात्मक रूप से कठोर होती हैं, इनमें जल काफी कठिनाई से जोड़ों के सहारे ही अंदर प्रविष्ट हो पाता है।
⇒ इनमें परत का अभाव होता है, परंतु जोड़ (Joints) पाये जाते हैं।
⇒ आग्नेय चट्टानों में जीवों के अवशेष (Fossils) का अभाव होता है।
⇒ ज्वालामुखी चट्टानों में रवों का विकास नहीं होने पर उनका गठन कांच की तरह (Glassy) होता है, जैसे ऑब्सीडियन।
⇒ आग्नेय चट्टानों के उदाहरण- ग्रेनाइट, रायोलाइट, बेसाल्ट, पेग्माटाइट (Pegmatite), साइनाइट (Syenite), डायोराइट (Diorite), एण्डेसाइट (Andesite), गैब्रो (Gabro), डोलेराइट (Dolerite), पेरिडोटाइट (Peridotite) आदि हैं।
आग्नेय चट्टान के प्रकार
स्थिति एवं संरचना के अनुसार आग्नेय चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-
(i) बहिर्भेदी आग्नेय चट्टान (Extrusive Igneous Rocks)
(ii) अंतर्भेदी आग्नेय चट्टान (Intrusive Igeous Rocks)
(i) बहिर्भेदी आग्नेय चट्टान (Extrusive Igneous Rocks)-
वह आग्नेय चट्टानें जिनका निर्माण सतह के ऊपर लावा के ठंडा होने और जमने से होता है, बहिर्भेदी आग्नेय चट्टानें कहलाती हैं। इनमें क्रिस्टल बहुत छोटे होते हैं क्योंकि लावा तेजी से जम जाता है। बेसाल्ट एवं रायोलाइट इसका अच्छा उदाहरण है। इस चट्टान की क्षरण से ही काली मिट्टी का निर्माण होता है जिसे रेगुड़ (Regur) कहते हैं।
(ii) अंतर्भेदी आग्नेय चट्टान (Intrusive Igeous Rocks)-
वह आग्नेय चट्टानें जो सतह के नीचे लावा के ठंडे और ठोस होने से निर्मित होती है,अंतर्भेदी आग्नेय चट्टानें कहलाती है।
इसके दो पुन: उपवर्ग हैं-
(a) पातालिय चट्टान (Plutonic Rock)
इसका निर्माण पृथ्वी के अंदर काफी अधिक गहराई पर होता है। इसका नामकरण प्लूटो (यूनानी देवता) के नाम पर किया गया है। जो पाताल के देवता माने जाते हैं।अत्यधिक धीमी गति से ठंडा होने के कारण इसके क्रिस्टल बड़े बड़े होते हैं। ग्रेनाइट चट्टान इसका उदाहरण है।
(b) मध्यवर्ती चट्टान (Hypobyssal Rock)
ज्वालामुखी के उदगार के समय धरातलीय अवरोध के कारण लावा दरारों, छिद्रों एवं नली में ही जमकर ठोस रूप धारण कर लेता है, बाद में अपरदन की क्रिया के बाद यह चट्टाने धरातल पर नजर आने लगती है। डोलेराइट, मैग्नेटाइट इन चट्टानों के महत्वपूर्ण उदाहरण है।
मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानों के विभिन्न रूप
जब मैग्मा पदार्थ अपने स्रोत क्षेत्र से ऊपर उठकर भूपटल के नीचे ही ठंडा होने की प्रवृति रखता है। तब आन्तरिक ज्वालामुखी स्थलाकृति का निर्माण होता है। जैसे–
⇒ जब मैग्मा पदार्थ अपने स्रोत क्षेत्र से ऊपर उठकर लम्बत ठोस होता है तो डाइक, क्षैतिज ठोस होता है तो सिल, जब उत्तल दर्पण के समान ठोस होता है तो लैकोलिथ, जब अवतल दर्पण के समान ठोस होता है तो लोपोलिथ, जब तरंग के समान ठोस होता है तो फैकोलिथ स्थलाकृति का निर्माण होता है। इसी तरह जब मैग्मा पदार्थ अपने स्रोत क्षेत्र से ऊपर उठकर एक गुम्बद के समान ठोस हो जाते है तो उससे बैथोलिथ का निर्माण होता है।
⇒ रासायनिक संरचना की दृष्टि से आग्नेय चट्टानों को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-
(i) अम्लीय चट्टानें (Acid Rocks)-
इनमें सिलिका की मात्रा अधिक होती है। इनका रंग हल्का होता है। ये चट्टानें अपेक्षाकृत हल्की होती हैं, जैसे-ग्रेनाइट।
(ii) क्षारीय चट्टानें (Basic Rocks)-
इनमें सिलिका की मात्रा कम होती है। इनमें फेरो-मैग्नेशियम की प्रधानता होती है। लोहे की अधिकता के कारण इन चट्टानों का रंग गहरा होता है। इनका घनत्व भी अधिक होता है, जैसे-गैब्रो, बेसाल्ट, रायोलाइट आदि।
⇒ पूर्व की चट्टानों के ऊपर स्थित बेसाल्ट चट्टान टोपी (Caps) के समान दिखाई पड़ता है। इस प्रकार की स्थलाकृति को ‘मेसा’ (Mesa) कहा जाता है।
⇒ अपरदन के कारण मेसा का अधिकांश भाग कट जाता है एवं उसका आकार छोटा होने लगता है। अत्यंत छोटी आकार वाली ‘मेसा’ को ‘बुटी’ (Butte) कहा जाता है।
⇒ धरातल के नीचे परतदार चट्टानों के बीच स्थित लावा गुम्बद (जैसे लैकोलिथ) के ऊपर की मुलायम चट्टानें अपरदन द्वारा नष्ट होती जाती हैं। इस प्रकार लावा गुम्बद धरातल पर दिखने लगता है एवं यह अवरोधक (Resistant) चट्टान संकरी एवं लंबी कटक में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार की स्थलाकृति को “होगबैक’ (Hogback) कहा जाता है।
⇒ हौगबैक से मिलती-जुलती एक स्थलाकृति, जिसका ढाल एवं डिप (Dip) झुका हुआ हो ‘कवेस्टा’ (Questa) कहलाती है।
2. अवसादी/तलछटी/परतदार चट्टानें (Sedimentary or Stratified Rocks):-
ये वे चट्टानें हैं जिनका निर्माण विखण्डित ठोस पदार्थों, जीव-जन्तुओं एवं पेड़-पौधों के जमाव से होता है।
⇒ इन चट्टानों में अवसादों की विभिन्न परतें पायी जाती हैं।
⇒ इन चट्टानों में जीवावशेष (Fossils) पाये जाते हैं।
⇒ धरातल का 75% भाग अवसादी चट्टानों से ढका हुआ है एवं शेष 25% भाग आग्नेय एवं रूपांतरित चट्टानों से आवृत्त है।
⇒ यद्यपि अवसादी चट्टानें धरातल का अधिकांश भाग आवृत्त किये हुए हैं, फिर भी भूपटल के निर्माण में इनका योगदान 5% ही है, शेष 95% भाग आग्नेय एवं रूपांतरित चट्टानों से निर्मित है। इस प्रकार परतदार चट्टानों का महत्त्व क्षेत्रीय विस्तार की दृष्टि से है, भू-पृष्ठ में गहराई की दृष्टि से नहीं।
⇒ ये चट्टानें रवेदार नहीं होती हैं।
⇒ ये चट्टानें क्षैतिज रूप में बहुत कम पाई जाती हैं। पार्श्ववर्ती दबाव के कारण परतों में मोड़ पड़ जाता है अतएव ये चट्टानें सामूहिक रूप से अपनति एवं अभिनति के रूप में पायी जाती हैं।
⇒ इन चट्टानों में जोड़ (Joints) पाये जाते हैं।
⇒ ये चट्टानें प्रायः मुलायम होती हैं (जैसे- चीका मिट्टी, पंक आदि), परन्तु ये कड़ी भी हो सकती हैं (जैसे- बलुआ पत्थर)।
⇒ ये शैलें अधिकांशतः प्रवेश्य (Porous) होती हैं, परंतु चीका मिट्टी जैसी परतदार चट्टानें अप्रवेश्य भी हो सकती हैं।
⇒ इनका निर्माण अधिकांशतः जल में होता है। परंतु लोएस जैसी परतदार चट्टानों का निर्माण पवन द्वारा जल के बाहर भी होता है। बोल्डर क्ले (Boulder Clay) या टिल (Till) हिमानी द्वारा निक्षेपित परतदार चट्टानों के उदाहरण हैं, जिसमें विभिन्न आकार के चट्टानी टुकड़े मौजूद रहते हैं।
3. रूपांतरित या कायांतरित चट्टानें (Metamorphic Rocks):-
जब ताप, दबाव, रासायनिक क्रियाओं आदि के प्रभाव से आग्नेय एवं परतदार चट्टानों का रूप परिवर्तित हो जाता है, तो रूपांतरित चट्टानों का निर्माण होता है। कभी-कभी रूपांतरित चट्टानों का भी रूपांतरण हो जाता है। इस क्रिया को पुनःरूपान्तरण कहा जाता है। रूपांतरण के फलस्वरूप चट्टानों की मूलभूत विशेषताएं जैसे- घनत्व, रंग, कठोरता, बनावट, खनिजों का संघटन आदि आंशिक या पूर्ण रूप से परिवर्तित हो जाती हैं।
कायांतरित चट्टानों के उदाहरण
⇒ आग्नेय से कायांतरित चट्टान-
ग्रेनाइट- नीस,
बेसाल्ट- एम्फी बोलाइट
ग्रेबो- सर्पेन्टइन
⇒ अवसादी से कायांतरित चट्टानें-
बालुवा पत्थर- क्वार्टजाइट,
चूना पत्थर– संगमरमर,
शेल- स्लेट,
कोयला- ग्रेफाइट, हीरा,
⇒ रूपांतरित चट्टान से पुन: रूपांतरित चट्टान
स्लेट- शिष्ट
शिष्ट- फायलाइट