3. एशिया की अपवाह प्रणाली / Drainage System of Asia
3. एशिया की अपवाह प्रणाली
(Drainage System of Asia)
3. एशिया की अपवाह प्रणाली⇒
विश्व के सबसे विशाल एशिया महाद्वीप के विकास में वहाँ के अपवाह प्रणाली का विशेष महत्त्व होता है। नदियों तथा बहते हुए जल का अध्ययन अपवाह प्रणाली के अंतर्गत किया जाता है। किसी भी देश अथवा महाद्वीप के विकास में उस क्षेत्र की नदियाँ सर्वाधिक सहायक होती है। प्रोफेसर क्रैसी के अनुसार “एशिया में किसी बड़ी विशाल नदी का अभाव है जबकि अनेक छोटी नदियाँ एशिया के आंतरिक भागों से निकलती है।”
एशिया महाद्वीप की अपवाह प्रणाली के अंतर्गत यहाँ की विशाल पर्वत श्रेणियों से निकलने वाली नदियों के मार्ग में ये पर्वत श्रेणियां बाधा उत्पन्न नहीं करती है। इन मध्यवर्ती पर्वत श्रेणियों से निकलने वाली सतत वाहिनी नदियाँ पर्वतीय ढालों के अनुसार बहती हुई पूरब, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण दिशाओं में अपने मार्ग का अनुसरण करती हुई आगे बढ़ जाती है।
एशिया महाद्वीप को अफवाह के दृष्टिकोण से निम्न पॉंच क्षेत्रों में विभाजित किया गया है –
1. प्रशांत महासागर की अपवाह प्रणाली
2. हिंद महासागर की अपवाह प्रणाली
3. आर्कटिक महासागर की अपवाह प्रणाली
4. आंतरिक अपवाह प्रणाली
5. भूमध्यसागरीय अपवाह प्रणाली।
1. प्रशांत महासागर की अपवाह प्रणाली
मध्य एशिया की पर्वत श्रेणियों से निकलने वाली नदियाँ पूरब दिशा की ओर बहती हुई प्रशांत महासागर में गिर जाती है। प्रशांत महासागर अपवाह क्षेत्र का विस्तार कम है। इस अपवाह क्षेत्र में पाई जाने वाली नदियाँ आमूर, हांगहो, यांगटिसीक्यांग, सीक्यांग, मीकांग, मीनाम, लाल इत्यादि है। अन्य नदियों में आमूर की सहायक नदियाँ उसुरी तथा सुँगारी; हांगहो की सहायक नदियाँ वी-हो तथा फेन-हो; यांगटिसीक्यांग की सहायक नदियाँ हान, मिन, कान, चार्लिंग, सियांग इत्यादि है।
इस अपवाह क्षेत्र में अनेक प्रकार की अफवाह स्वरूप देखने को मिलते हैं, जैसे – हांगहो का अपवाह, ओरडोस पठार एवं सिनलिंग पर्वत श्रेणी के निकट भागों में आयताकार अपवाह प्रणाली के रूप में है जबकि यांगटिसीक्यांग अपनी सहायक नदियों के साथ वृक्षीय अपवाह प्रणाली का विकास करती है। वृक्षीय अपवाह प्रणाली में पाए जाने वाले नदियाँ कृषि, परिवहन तथा सिंचाई में अपना विशेष महत्व रखती है। चीन का विशाल उत्तरी मैदान हांगहो की देन है। अपनी प्रतिवर्ष आने वाली भयंकर बाढ़ के कारण चीन का शोक कहलाती है।
2. हिंद महासागर की अपवाह प्रणाली
पश्चिम दिशा में स्थित दजला-फरात नदियों के उद्गम स्थल से लेकर पूरब में मलेशिया तक का विस्तृत क्षेत्र हिंद महासागर अपवाह प्रणाली के अंतर्गत आता है। इस अफवाह क्षेत्र के मुख्य नदियाँ दजला, फरात, सिंधु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र है। अन्य नदियों में इरावदी, सालवीन, चिंदविन, गोदावरी, नर्मदा, ताप्ती, कृष्णा, कावेरी, महानदी इत्यादि है। हिंद महासागर अपवाह क्षेत्र में नदी अपहरण के अनेक उदाहरण मिलते हैं। इरावदी और सिंधु नदियाँ इसके सबसे बड़े उदाहरण है।
प्राचीन काल में उत्तर-दक्षिण घाटी में बहने वाली नदी का सिंधु नदी ने अपहरण किया था। इस प्रकार के नदी अपहरण के अनेक चिन्ह आज भी हिमालय पर्वत पर दिखाई देते हैं। भारत के दक्षिणी प्रायद्वीपीय पर बहने वाली नदियाँ मार्ग परिवर्तन की अपेक्षा अपनी घाटियों को गहरी करने में लगी हुई है। इस प्रकार की नदियों का अपवाह पुर्वोत्पन्न अपवाह प्रणाली के रूप में है। पुर्वोत्पन्न अपवाह प्रणाली में बहने वाली नदियाँ कृषि सिंचाई के दृष्टिकोण से अधिक महत्व रखती है।
गंगा एवं सिन्धु का मैदान एशिया का प्रसिद्ध एवं सबसे अधिक उपजाऊ मैदान है। म्यांमार की इरावदी ने इस देश को एक सुचारू आर्थिक जीवन प्रदान किया है। इराक अपनी दोनों नदियों दजला एवं फरात की देन है। इस क्षेत्र में मिलने वाली नदियाँ इस क्षेत्र की जल की कमी की समस्या को बहुत कुछ अंश तक दूर करने में सहायक रही है। इस क्षेत्र में बहने वाली नदियों में वर्ष भर जला भरा रहता है।
3. आर्कटिक महासागर की अपवाह प्रणाली
एशिया महाद्वीप की सबसे विशाल अपवाह प्रणाली एशिया के उत्तरी भाग में स्थित आर्थिक महासागरीय प्रवाह प्रणाली है। इस अपवाह प्रणाली में बहने वाली नदियाँ उच्च व गर्म प्रदेशों से निकलकर उत्तर के विशाल मैदान में बहती हुई आर्कटिक महासागर में जाकर गिरती है। आर्थिक सागर के अधिकांश भाग में वर्ष भर बर्फ के जमे रहने के कारण इस क्षेत्र के नदियाँ अपने मुहानों पर गिरने के पूर्व दोनों किनारों पर फैल जाती है जिससे नदियों के बेसिनों एवं समुद्र-तटीय भागों के निकट अनेक विस्तृत दलदल बन जाते हैं।
दलदली भाग एवं शीत ऋतु में बर्फ जम जाने के कारण इस क्षेत्र की नदियों का कोई आर्थिक महत्व नहीं है। आर्कटिक महासागर में बर्ष के अधिकांश भाग में बर्फ जमी रहती है, इस कारण इस महासागर में किसी बंदरगाह का निर्माण नहीं हुआ है। इसलिए व्यापारिक दृष्टिकोण से इस क्षेत्र की नदियों का कोई महत्व नहीं है। इस क्षेत्र की तीन विशाल नदियों ओब, यनीसी तथा लीना संसार की बड़ी नदियों में से है। इस क्षेत्र की नदियों में इन्दिगिरिका, कोलीमा, यना इत्यादि है। शीतकाल में कुछ नदियों का जल ऊपरी भाग में जम जाता है।
4. आंतरिक अपवाह प्रणाली
आंतरिक अपवाह प्रणाली पश्चिम में आनातोलिया से लेकर पूरब में मंचूरिया तक विस्तृत है। इस अपवाह प्रणाली में पाई जाने वाली नदियाँ वर्षा तथा वर्ष के ऊपर निर्भर हैं। बर्फ पिघलने के कारण इन नदियों को पर्याप्त मात्रा में जल मिल जाता है। ये नदियाँ बहकर झीलों अथवा आन्तरिक सागरों में गिर जाती है अन्यथा जल की मात्रा कम होने के कारण यह नदियाँ मध्य एशिया के शुष्क रेतीले भागों में सूखकर नदियाँ आमू दरिया और सर दरिया है जो अरल सागर में गिरती है।
अन्य नदियों में इली, चू, तारिम, खोतान इत्यादि है जो बालकश झील तथा लैपनौर झील में गिरती है। इस अफवाह क्षेत्र में नदियों की अपेक्षा झीलों का महत्व अधिक है। कैस्पियन, अरल तथा बालकश झीलें उल्लेखनीय है। इस अपवाह क्षेत्र का विस्तार एशिया की लगभग 80 लाख पर किलोमीटर भूमि पर है लेकिन इनका कोई आर्थिक महत्व नहीं है।
5. भूमध्यसागरीय अपवाह प्रणाली
एशिया महाद्वीप के पश्चिमी भाग में भूमध्य सागर विस्तृत है। एशिया के दक्षिणी-पश्चिमी भाग के देशों की नदियों का जल भूमध्य सागर में गिरता है। भूमध्य सागर अपवाह क्षेत्र का विस्तार बहुत कम है। टर्की, सीरिया, लेबनान, इजरायल, जॉर्डन तथा साइप्रस देशों तक ही सीमित है। इस जल-प्रवाह क्षेत्र का एशिया की जल-प्रवाह प्रणाली में विशेष महत्व है क्योंकि आरमीनिया की गाँठ ने भूमध्य सागर का केवल थोड़े से ही क्षेत्र में संपर्क रहने दिया है। इस क्षेत्र में एशिया की कोई विशाल नदी भी नहीं है। केवल छोटी नदियाँ भूमध्य सागर में जाकर गिरती है जिनका कोई आर्थिक महत्व नहीं है। टर्की से निकलने वाली मनीसा तथा मैंडेरिस नदियाँ एवं सीरिया से निकलने वाली ओरोनटेस नदी ही इस जल प्रवाह क्षेत्र की मुख्य नदियाँ है जो भूमध्य सागर में गिरती हैं।
प्रश्न प्रारूप
Q1. एशिया की अपवाह प्रणाली का सविस्तार वर्णन कीजिए।
अथवा
Q2. एशिया के जल-प्रवाह का वर्णन कीजिए ।