Unique Geography Notes हिंदी में

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GEOGRAPHY OF INDIA(भारत का भूगोल)

40. उद्योग स्थापना की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक

40. उद्योग स्थापना की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक



       उद्योगों की स्थापना केवल उन्हीं स्थानों पर होती है, जहाँ इसके विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उपस्थित हों। उद्योगों को प्रभावित करने वाले कारकों में भौगोलिक, आर्थिक तथा राजनीतिक कारक महत्वपूर्ण हैं। अतः उद्योगों को प्रभावित करने वाले कारकों को दो वर्गों में बाँटा जाता जा सकता है:-

(क) भौगोलिक कारक तथा,

(ख) गैर-भौगोलिक कारक।

(क) भौगोलिक कारक (Geographical Factors)

      उद्योगों को प्रभावित करने वाले मुख्य भौगोलिक कारक निम्नलिखित हैं:-

1. कच्चे माल की उपलब्धता:-

       सामान्यतः उद्योग उन्हीं स्थानों पर स्थापित किए जाते हैं, जहाँ कच्चा माल उपलब्ध होता है। कच्चा माल उद्योगों के लिए चुम्बक का कार्य करता है। भारत में लोहा इस्पात उद्योग केवल उन्हीं स्थानों पर स्थापित किया गया है जहाँ इसमें प्रयोग होने वाला कच्चा माल, जैसे-लौह-अयस्क, कोयला, मैंगनीज आदि प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश तथा बिहार में गन्ने के कारण चीनी उद्योग, महाराष्ट्र तथा गुजरात में कपास के कारण सूती वस्त्र उद्योग, पश्चिम बंगाल में पटसन उद्योग स्थापित किए गए हैं। नाशवान (Perishable) / अल्पकालिक कच्चा माल प्रयोग करने वाले उद्योग तो कच्चे माल के स्रोत से दूर स्थापित हो ही नहीं सकते।

2. शक्ति के साधन:-

     उद्योगों में मशीनें चलाने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है। शक्ति के प्रमुख साधन कोयला, पेट्रोलियम, जल-विद्युत्, प्राकृतिक गैस तथा परमाणु ऊर्जा हैं। लौह-इस्पात उद्योग कोयले पर निर्भर करता है, इसलिए यह उद्योग कोयले की खानों के पास ही स्थापित किया जाता है। दामोदर घाटी का प्रमुख लोहा-इस्पात केन्द्र जमशेदपुर अपनी शक्ति की आवश्यकता झरिया तथा रानीगंज से प्राप्त किए गए कोयले से पूरी करता है।

        पंजाब में औद्योगिक विकास का मुख्य कारण भाखड़ा से प्राप्त की गई जल-विद्युत् ही है। ऐलुमिनियम उद्योग के लिए प्रचुर मात्रा में विद्युत् शक्ति की आवश्यकता होती है, इसलिए यह उद्योग जल-विद्युत अथवा ताप-विद्युत् के स्रोत के निकट ही स्थापित किया जाता है। छत्तीसगढ़ का कोरबा तथा उत्तर प्रदेश का रेनूकूट ऐलुमिनियम उद्योग विद्युत् शक्ति की उपलब्धता के कारण ही स्थापित हुआ है।

3. सस्ते दर पर कुशल श्रमिकों की उपलब्धता:-

    यद्यपि आधुनिक युग में स्वचालित मशीनों तथा कम्प्यूटरों जैसे यंत्रों का प्रचलन बढ़ा है फिर भी औद्योगिक विकास में श्रम का महत्व बराबर बना हुआ है। सस्ते तथा कुशल श्रम की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता औद्योगिक विकास का मुख्य कारक है। कुछ उद्योग श्रम पर ही आधारित होते हैं। फिरोजाबाद में शीशा उद्योग, कानपुर में चर्म उद्योग, लुधियाना में हौजरी तथा जालन्धर एवं मेरठ में खेलों का सामान बनाने का उद्योग मुख्यतः सस्ते, कुशल तथा प्रचुर श्रम पर ही निर्भर हैं।

4. परिवहन एवं संचार के साधन:-

      यातायात मार्ग वे शिराएं हैं, जिनमें से होकर उद्योग की धमनियों का रक्त संचार होता है। कच्चे माल को उद्योग केन्द्र तक लाने तथा निर्मित माल को खपत के क्षेत्रों तक ले जाने के लिए सस्ते तथा कुशल यातायात का प्रचुर मात्रा में होना अनिवार्य है। सड़कों तथा रेलों के जंक्शन तथा सागरीय बन्दरगाह अच्छे औद्योगिक केन्द्र बन जाते हैं। मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली जैसे महानगरों में औद्योगिक विकास मुख्यतः यातायात के साधनों के कारण ही हुआ है।

       परिवहन की भांति संचार के साधन, जैसे-डाक, तार टेलीफोन, कम्प्यूटर भी औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनमें उद्योग सम्बन्धी सूचनाएँ जल्दी मिलती हैं।

5. विस्तृत बाजार की उपलब्धता:-

     उद्योग का सारा विकास तब तक व्यर्थ है। जब तक निर्मित माल की खपत के लिए बाजार की उपलब्धता न हो। बाजार की निकटता से यातायात का खर्च कम हो जाता है और उपभोक्ता को औद्योगिक उत्पाद सस्ते दाम पर मिल सकते हैं। शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं को तो अधिक दूर तक ले जाना असम्भव ही होता है। 

6. सस्ती भूमि तथा जलापूर्ति:-

      उद्योगों की स्थापना के लिए सस्ती भूमि का होना भी आवश्यक है। दिल्ली में भूमि का अधिक मूल्य होने के कारण ही इसके उपनगरों में सस्ती भूमि पर उद्योगों ने द्रुत गति से प्रगति की है। लोहा-इस्पात, वस्त्र-निर्माण तथा रसायन कुछ ऐसे उद्योग हैं, जिनको पर्याप्त मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। इसलिए ये उद्योग जल के स्रोत पर स्थापित किए जाते हैं।

7. अनुकूल जलवायु:-

       उद्योग धन्धों में काम करने वाले श्रमिकों की कार्यकुशलता के लिए जलवायु का स्वास्थ्यवर्द्धक होना आवश्यक है। अधिक उष्ण अथवा आर्द्र एवं कठोर शीत जलवायु श्रमिकों के कार्य में बाधा डालती है। उत्तर-पश्चिमी भारत की जलवायु ग्रीष्म ऋतु में अत्यन्त गर्म तथा शीत ऋतु में ठण्डी होती है, जिससे श्रमिकों की कार्य-कुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत, पश्चिमी तटीय भाग की जलवायु वर्ष भर सम रहती है, जिससे श्रमिकों की कार्य-कुशलता बनी रहती है। यही कारण है कि देश के 24% आधुनिक कारखाने तथा 30% श्रमिक अकेले महाराष्ट्र-गुजरात क्षेत्र में हैं।

        कुछ उद्योगों के लिए तो जलवायु का विशेष महत्व है। उदाहरणतया, सूती वस्त्र उद्योग के लिए आर्द्र जलवायु चाहिए, क्योंकि शुष्क जलवायु में धागा बार-बार टूटता रहता है। इसलिए सूती वस्त्र बनाने वाली अधिकांश मिलें महाराष्ट्र तथा गुजरात में ही हैं। आजकल कृत्रिम आर्द्र-यन्त्रों (Artificial Humidifiers) की सहायता से देश के अन्य भागों में भी सूती वस्त्र उद्योग लगाए गए हैं, परन्तु यह प्रणाली महंगी है।

(ख) गैर-भौगोलिक कारक (Non-Geographical Factors)

      वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकी विकास के साथ, उद्योग-धन्धों की अवस्थिति में भौगोलिक कारकों की भूमिका पहले की भांति अधिक दृढ़ नहीं रही। अतः कुछ गैर-भौगोलिक कारक भी महत्वपूर्ण बन गए हैं, जिनमें आर्थिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक एवं सामाजिक कारक उल्लेखनीय हैं। कुछ महत्वपूर्ण गैर-भौगोलिक कारक निम्नलिखित हैं:-

1. पर्याप्त पूंजी:-

      कोई भी उद्योग बिना पूंजी के नहीं पनप सकता। बिना पूंजी के उद्योगों की स्थापना की कल्पना  बड़े-बड़े नगरों में पूंजीपति उद्योगों में पूंजी लगाते हैं, जिससे उद्योगों का विकास होता है। इसी कारण मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली, आदि बड़े-बड़े नगरों में उद्योग लगे हुए हैं। मोदीनगर में उद्योग स्थापित होने का मुख्य कारण ही मोदी सेठ द्वारा पूँजी निवेश है।

2. सरकार की नीति:-

     सरकार की नीतियाँ उद्योग-धन्धों की अवस्थिति को काफी हद तक प्रभावित करती हैं। सरकार प्रादेशिक असन्तुलन दूर करने के कई प्रयास कर रही है, जैसे- पिछड़े हुए क्षेत्रों में उद्योग-धन्धों की स्थापना करके, जल, वायु और भूमि के प्रदूषण की रोकथाम द्वारा पर्यावरण का संरक्षण तथा कुछ विकसित प्रदेशों में उद्योग-धन्धों के अतिकेन्द्रण को विकेन्द्रण प्रक्रम द्वारा रोकना आदि। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के नियोजन में इन प्रारूपों का विशेष ध्यान रखा गया है। मथुरा के निकट तेल शोधनशाला, कपूरथला में कोच फैक्ट्री तथा जमशेदपुर में उवर्रक संयन्त्र की स्थापना सरकारी नीतियों का ही परिणाम है।

3. औद्योगिक जड़त्व अथवा प्रारम्भिक संवेग (Industrial Inertia or Momentum of Early Start):-

        कुछ उद्योग भौगोलिक परिस्थितियों के कारण स्थापित हो जाते हैं, परन्तु जब वे भौगोलिक सुविधाएँ वहाँ पर समाप्त हो जाती हैं तब भी वे उद्योग वहाँ पर बने रहते हैं। अलीगढ़ में ताला तथा जबलपुर में बीड़ी बनाने के उद्योग इसके उदाहरण हैं।

4. बैंकिंग सुविधा:-

      उद्योग-धन्धों में रोज करोड़ों रुपए का लेन-देन होता है जो बैंकों द्वारा ही सम्भव है। अतः जिन क्षेत्रों में बैंकों की सुविधा हो, वहाँ उद्योग-धन्धों के विकास में सहायता मिलती है।

5. बीमा की सुविधा:-

     बड़े-बड़े उद्योगों में भारी मशीनों को अचानक क्षति पहुंचने का भय रहता है। इसके अतिरिक्त, श्रमिकों की औद्योगिक दुर्घटना से मृत्यु हो जाती है। इन सब परिस्थितियों को देखते हुए बीमे की सुविधा का होना आवश्यक है।

6. राजनीतिक स्थिरता:-

       उद्योगपति उन्हीं प्रदेशों में उद्योग स्थापित करना पसन्द करते हैं जहाँ राजनीतिक स्थिरता हो।

प्रश्न प्रारूप

1. उद्योग स्थापना की अवस्थिति को प्रभावित कने वाले कारकों की विवेचना कीजिये।


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40. उद्योग स्थापना की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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