Unique Geography Notes हिंदी में

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GEOMORPHOLOGY (भू-आकृति विज्ञान)

38. Geomorphic Evolution of Peninsular India (भारतीय प्रायद्वीप का भू-आकृतिक विकास)

Geomorphic Evolution of Peninsular India

(भारतीय प्रायद्वीप का भू-आकृतिक विकास)



परिचय

       भारतीय उपमहाद्वीप का प्रायद्वीपीय भाग भू-वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत प्राचीन, स्थिर एवं जटिल भू-आकृतिक विकास का उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह भाग आर्कियन काल (Archaean Era) से अस्तित्व में है और इसे विश्व के प्राचीनतम भू-भागों में गिना जाता है। यहाँ की स्थलाकृति मुख्यतः पठार, अवशेष पर्वत, भ्रंश घाटियाँ, लावा प्रवाह क्षेत्र, तटीय मैदान और डेल्टा के रूप में विकसित हुई है।

      प्रायद्वीप का भू-आकृतिक विकास केवल भू-आंतरिक शक्तियों (जैसे प्लेट विवर्तनिकी, ज्वालामुखीय गतिविधि, भ्रंश) से ही नहीं बल्कि बाह्य शक्तियों (जैसे नदियाँ, हवाएँ, समुद्री क्रिया, अपक्षय एवं अपरदन) से भी प्रभावित हुआ है।

भूवैज्ञानिक पृष्ठभूमि (Geological Background)

(i) आर्कियन युग (2500–3500 मिलियन वर्ष पूर्व)

⇒ भारतीय प्रायद्वीप का आधारभूत शिल्ड इसी काल में बना।

⇒ प्रमुख चट्टानें – ग्रेनाइट, निस, बेसाल्ट, चार्नोकाइट

⇒ प्रमुख क्रेटॉन: बुंदेलखंड, धारवाड़, सिंहभूम, अरावली

नोट: भूविज्ञान में क्रेटॉन एक प्राचीन, स्थिर महाद्वीपीय क्रस्ट का हिस्सा होता है।

(ii) प्रोटेरोजोइक युग

⇒ अरावली पर्वतमाला का निर्माण (विश्व की प्राचीनतम मुड़ी पर्वतमाला)।

⇒ विंध्यन और सतपुड़ा शृंखलाओं का विकास।

⇒ लौह, ताँबा, मैंगनीज, बॉक्साइट जैसे खनिज उत्पन्न हुए।

(iii) पेलियोजोइक व मेसोजोइक काल

⇒ गोंडवाना अवसाद (कोयला क्षेत्र – झरिया, रानीगंज, सोहागपुर)।

⇒ डेक्कन ट्रैप (65 मिलियन वर्ष पूर्व): विशाल ज्वालामुखीय लावा प्रवाह।

⇒ नर्मदा-ताप्ती भ्रंश घाटियों का निर्माण।

(iv) सिनोजोइक काल

⇒ भारतीय प्लेट के यूरेशियन प्लेट से टकराने पर हिमालय का निर्माण।

⇒ प्रायद्वीप का पुनरुत्थान और नदियों में पुनर्यौवन (Rejuvenation)

स्थलरूपीय विकास (Geomorphic Evolution)

(i) प्रायद्वीपीय पठार

⇒ “ब्लॉक पठार” के रूप में प्राचीनतम स्थलरूप।

⇒ मुख्य विभाजन:-

1. मध्य भारत पठार विन्ध्य, सतपुड़ा, महादेव, मैकाल।

2. दक्षिण भारत पठार नीलगिरी, पश्चिमी एवं पूर्वी घाट।

3. छोटा नागपुर पठार – कोयला व लौह अयस्क से समृद्ध।

(ii) पर्वतमालाएँ

⇒ अरावली शृंखला अवशेष पर्वत, अपक्षयित।

⇒ विन्ध्य पर्वत क्षैतिज अवसादी शृंखला।

⇒ सतपुड़ा-मैकाल भ्रंशजन्य उत्थान से निर्मित।

(iii) नदियाँ

1. पश्चिमवाहिनी नदियाँ नर्मदा, ताप्ती (भ्रंश गर्त में प्रवाहित)।

2. पूर्ववाहिनी नदियाँ गोदावरी, कृष्णा, कावेरी (डेल्टा निर्मित करती हैं)।

3. नदी घाटी विकास

⇒ युवावस्था: गहरी घाटियाँ।

⇒ प्रौढ़ावस्था: उपजाऊ मैदान।

⇒ वृद्धावस्था: डेल्टा व बाढ़मैदान।

(iv) तटीय मैदान

⇒ पश्चिमी तट: संकीर्ण, ऊँचा, एस्च्युरिन (Estuarine)।

⇒ पूर्वी तट: विस्तृत, डेल्टाई, निक्षेपण प्रधान।

(v) डेक्कन ट्रैप

⇒ ज्वालामुखीय लावा प्रवाह से बना।

⇒ सीढ़ीनुमा स्थलाकृति (Step-like Topography)।

भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

(i) अंतर्जात प्रक्रियाएँ

⇒ प्लेट विवर्तनिकी, भ्रंश, ज्वालामुखीय गतिविधि।

⇒ नर्मदा-ताप्ती गर्त, डेक्कन ट्रैप।

(ii) बहिर्जात प्रक्रियाएँ

⇒ अपक्षय – टोर, इंसेल्बर्ग।

⇒ अपरदन नदियों द्वारा गहरी घाटियाँ।

⇒ समुद्री क्रियातटीय खड़ी चट्टानें, लैगून, डेल्टा।

प्रमुख भू-आकृतिक इकाइयाँ (Major Geomorphic Units)

(i) अरावली पर्वतमाला अपक्षयित अवशेष पर्वत।

(ii) विन्ध्यन श्रेणी क्षैतिज संरचना वाली पठारी श्रेणी।

(iii) सतपुड़ा-मैकाल श्रेणी भ्रंश व उत्थान से निर्मित।

(iv) छोटा नागपुर पठार खनिज संपन्न क्षेत्र।

(v) डेक्कन ट्रैप ज्वालामुखीय शृंखला, basalt plateau।

(vi) पश्चिमी घाट तीव्र ढाल, कोंकण, मालाबार तट।

(vii) पूर्वी घाट अवशेष रूप में, नदियों द्वारा खंडित।

आधुनिक भू-आकृतिक स्वरूप (Present-Day Landforms)

⇒ पेडीप्लेन और पेनिप्लेन स्थलाकृति।

⇒ इंसेल्बर्ग (Monadnocks), टोर।

⇒ नदियों की गहरी घाटियाँ (गोदावरी, नर्मदा)।

⇒ तटीय क्षेत्र में लैगून, डेल्टा, एस्च्युरिन।

⇒ पठारी क्षेत्र में लावा सीढ़ियाँ।

निष्कर्ष (Conclusion)

      भारतीय प्रायद्वीप का भू-आकृतिक विकास बहुस्तरीय और जटिल प्रक्रिया है, जिसमें प्राचीनतम आर्कियन शैलों से लेकर आधुनिक नदियों द्वारा निर्मित मैदान तक सभी तत्व शामिल हैं। इसकी भू-आकृतिक विकास हमें यह बताती है कि यह क्षेत्र एक स्थिर प्राचीन भूखंड होने के बावजूद समय-समय पर ज्वालामुखीय गतिविधियों, विवर्तनिक टक्करों और अपरदन प्रक्रियाओं से प्रभावित रहा है।

     इस प्रकार प्रायद्वीपीय भारत का भू-आकृतिक विकास भारतीय भूगोल के अध्ययन में न केवल अकादमिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि कृषि, खनिज संसाधन, जलविद्युत और मानव बसावट की दृष्टि से भी अत्यंत प्रासंगिक है।

I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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