39. Geomorphic Evolution of Kashmir Himalayas (कश्मीर हिमालय का भू-आकृतिक विकास)
Geomorphic Evolution of Kashmir Himalayas
(कश्मीर हिमालय का भू-आकृतिक विकास)
परिचय
कश्मीर हिमालय भारतीय हिमालय का एक अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है, जो अपनी विशिष्ट भू-संरचना, स्थलाकृति, नदियों की व्यवस्था, हिमानी-परिहिमानी प्रक्रियाओं तथा भूकंपीय गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है।
यह क्षेत्र भू-आकृतिक दृष्टि से न केवल भारतीय उपमहाद्वीप का बल्कि सम्पूर्ण एशिया का एक अद्वितीय प्राकृतिक प्रयोगशाला है। कश्मीर की भौगोलिक स्थिति, स्थलाकृतिक विशेषताएँ और भूगर्भीय संरचना इसके दीर्घकालीन भू-आकृतिक विकास की गवाही देती हैं।
भौगोलिक स्थिति और विस्तार
⇒ कश्मीर हिमालय भारतीय हिमालय का पश्चिमोत्तर भाग है।
⇒ यह क्षेत्र 33° से 36° उत्तरी अक्षांश तथा 73° से 80° पूर्वी देशांतरों के बीच फैला है।
⇒ इसके उत्तर में काराकोरम पर्वत तथा अक्साई चिन, दक्षिण में पीरपंजाल, पूर्व में लद्दाख श्रेणियाँ और पश्चिम में पाकिस्तान नियंत्रित क्षेत्र स्थित हैं।
⇒ प्रमुख स्थलरूप: कश्मीर घाटी, जो हिमालयी पर्वतमालाओं से घिरी हुई है और एक अर्ध-तलछटी अवसाद (intermontane basin) का रूप प्रस्तुत करती है।
भूवैज्ञानिक पृष्ठभूमि
कश्मीर हिमालय का भू-आकृतिक विकास भारतीय प्लेट और यूरेशियाई प्लेट के परस्पर संयोग एवं टकराव का प्रत्यक्ष परिणाम है।
(i) प्राकैम्ब्रियन चट्टानें- क्षेत्र में प्राचीन कायांतरित चट्टानें (शिस्ट, निस, क्वार्टजाइट) पाई जाती हैं।
(ii) पैलियोजोइक काल- इस काल में कार्बोनीफेरस व पर्मियन युग की चूना पत्थरी व बलुआ पत्थरी परतें जमीं।
(iii) मेसोजोइक काल- समुद्री निक्षेप (limestones, shales) का प्रभुत्व रहा।
(iv) टर्शियरी काल- भारतीय प्लेट की यूरेशियन प्लेट से टक्कर के कारण शिवालिक, पीरपंजाल तथा महान हिमालय का उत्थान हुआ। इसी समय कश्मीर घाटी का निर्माण हुआ।
(v) क्वाटर्नरी काल- हिमानी व परिहिमानी प्रक्रियाओं का प्रभाव, झेलम बेसिन में झीलों का निर्माण, हंगाम वुल्कैनिक गतिविधियाँ तथा जलोढ़ निक्षेपों का जमाव हुआ।
संरचनात्मक विशेषताएँ
कश्मीर हिमालय में तीन प्रमुख भू-आकृतिक इकाइयाँ मिलती हैं –
1. काराकोरम एवं जास्कार क्षेत्र- उच्च हिमालयी भाग।
2. कश्मीर घाटी- अर्ध-संरचनात्मक अवसाद (trough) जो चारों ओर पर्वतों से घिरी है।
3. पीरपंजाल- दक्षिणी सीमा पर फैली पर्वतश्रेणी।
इन संरचनात्मक इकाइयों के कारण यहाँ विविध स्थलरूप एवं भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ पाई जाती हैं।
प्रमुख स्थलरूप एवं भू-आकृतिक विशेषताएँ
(i) पर्वतीय स्थलाकृतियाँ
⇒नुंगी पर्वत, हर्मुख, त्रिशूल जैसी चोटियाँ।
⇒ उच्च हिमालयी क्षेत्र में तीव्र ढाल, गहरी घाटियाँ तथा नुकीली चोटियाँ (Horn, Aretes) विकसित हैं।
⇒ भ्रंश रेखाओं एवं भ्रंश घाटियों की प्रचुरता।
(ii) कश्मीर घाटी
⇒ यह लगभग 135 किमी लंबी और 32 किमी चौड़ी।
⇒ झेलम नदी द्वारा निकासी।
⇒ घाटी मूलतः एक झील अवसाद थी (प्लीस्टोसीन कालीन Karewa Lake)।
⇒ करेवा निक्षेप विश्व प्रसिद्ध हैं। ये निक्षेप झील अवसादों में जमा अवसाद (silt, clay, sand, lignite) हैं।
(iii) नदी एवं झील स्थलरूप
⇒ झेलम नदी- मुख्य निकासी प्रणाली, वुलर झील से निकलती है।
⇒ डल झील, नागिन झील, मानसर व सुरिनसर झील – सुंदर झील स्थलरूप।
⇒ वुलर झील – एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झीलों में से एक।
(iv) हिमानी एवं परिहिमानी स्थलरूप
⇒ ग्लेशियर घाटियाँ – सिंध, लिद्दर, किशनगंगा।
⇒ सर्क, मोरेन, यू-आकार की घाटियाँ, हंगिंग वैलीज।
⇒ क्वाटर्नरी हिमनियों ने कश्मीर की स्थलाकृति पर गहरा प्रभाव डाला।
भू-आकृतिक विकास की प्रक्रियाएँ
(i) प्लेट विवर्तनिकी एवं भ्रंश
⇒ भारतीय प्लेट का यूरेशियन प्लेट से टकराव।
⇒ मेजर थ्रस्ट: मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT), मेन बाउंड्री थ्रस्ट (MBT), हजारा-कश्मीर सिंटैक्सिस।
⇒ इन भ्रंशों के कारण भूकंपीय गतिविधियाँ अत्यधिक हैं।
(ii) नदी प्रक्रियाएँ
⇒ झेलम एवं उसकी सहायक नदियाँ (लिद्दर, किशनगंगा, सिंध)।
⇒ कटाव, निक्षेपण एवं तलछटी मैदान का विकास।
⇒ Karewa निक्षेपों पर जलोढ़ क्रियाएँ।
(iii) हिमानी प्रक्रियाएँ
⇒ हिमयुगों में विशाल ग्लेशियरों ने घाटियों को यू-आकार का बनाया।
⇒ मोरेन व बहाव द्वारा जलोढ़ का जमाव।
(iv) परिहिमानी प्रक्रियाएँ
⇒ फ्रीज-थॉ चक्र, पाला-कटाव, शैल-खंडन।
⇒ स्क्री ढालों, टैलस ढेरों का निर्माण।
करेवा निक्षेपों का महत्व
⇒ कश्मीर की भू-आकृतिक विकास गाथा का मुख्य आधार।
⇒ झील अवसादों से बने।
⇒ इनमें जीवाश्म अवशेष (हाथी, घोड़ा, गैंडा) पाए गए हैं।
⇒ यह क्षेत्र की पुराजीविकी, पुरा-जलवायु एवं पुरा-भू-आकृतिक अध्ययन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भूकंपीय गतिविधि एवं भू-आकृतिक प्रभाव
⇒ कश्मीर हिमालय विश्व के सबसे सक्रिय भूकंपीय क्षेत्रों में से एक है।
⇒ 2005 का कश्मीर भूकंप (Muzaffarabad Earthquake) इसका उदाहरण है।
⇒ भ्रंश रेखाएँ, भूमि धंसाव, भूस्खलन एवं नदी मार्ग परिवर्तन इस क्षेत्र की प्रमुख भू-आकृतिक समस्याएँ हैं।
मानव एवं भू-आकृतिक अंतःक्रिया
⇒ करेवा निक्षेप कृषि (केसर उत्पादन) के लिए उपयुक्त।
⇒ झीलों का पर्यटन और मत्स्य पालन में महत्व।
⇒ लेकिन शहरीकरण, वनों की कटाई और अवैज्ञानिक भूमि उपयोग से भूमि धंसाव, झील सिकुड़न और भूस्खलन की समस्याएँ।
भू-आकृतिक महत्व
⇒ हिमालय के उद्भव और विकास को समझने में सहायक।
⇒ क्वाटर्नरी हिमानी अध्ययन की प्रयोगशाला।
⇒ करेवा निक्षेप पुराजीविकी के प्रमाण।
⇒ भूकंपीय सक्रियता का अध्ययन स्थल।
⇒ मानव-भू-आकृतिक संबंधों का जीवंत उदाहरण।
निष्कर्ष
कश्मीर हिमालय का भू-आकृतिक विकास एक जटिल किंतु अत्यंत रोचक गाथा है, जिसमें प्लेट विवर्तनिकी, पर्वत निर्माण, भ्रंश, हिमानी-परिहिमानी क्रियाएँ, नदी प्रक्रियाएँ और मानव हस्तक्षेप सभी ने योगदान दिया है।
कश्मीर घाटी के करेवा निक्षेप, झीलें, हिमानी घाटियाँ और भूकंपीय गतिविधियाँ इस क्षेत्र को विशेष बनाती हैं। यह क्षेत्र भूगर्भशास्त्रियों और भू-आकृतिविदों के लिए एक जीवंत प्रयोगशाला है, जो न केवल अतीत की भूवैज्ञानिक घटनाओं का अध्ययन कराता है, बल्कि वर्तमान और भविष्य के पर्यावरणीय व भू-आकृतिक परिवर्तनों के संकेत भी देता है।
