24. Concept of social process (सामाजिक प्रक्रिया की अवधारणा)
Concept of social process
(सामाजिक प्रक्रिया की अवधारणा)
Q. सामाजिक प्रक्रिया की अवधारणा तथा विशेषताएँ लिखिए।
Ans- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज के अन्य सदस्यों के साथ मिल-जुलकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। अर्थात् व्यक्ति समाज के अभाव में न तो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है और न ही जीवित रह सकता है।
मानव स्वभावतः लालची, क्रोधी व स्वार्थी होता है। यही वे स्वाभाविक प्रवृत्तियां हैं जो एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से या एक समूह से दूसरे समूह को अन्तःक्रियाएं करने के लिए प्रेरित करती हैं। जब अन्तःक्रियाओं में निरन्तरता होती है तथा ये एक निश्चित परिणाम की ओर बढ़ती हैं तब ऐसी स्थिति में अन्तः क्रियाओं को ही सामाजिक प्रक्रिया कहा जाता है।
मैकाइवर व पेज के अनुसार, “सामाजिक प्रक्रिया का तात्पर्य उस ढंग से है जिसमें एक समूह के सदस्यों के सम्बन्ध एक निश्चित रूप प्राप्त कर लेते हैं।”
इन्होंने सामाजिक प्रक्रिया का अर्थ स्पष्ट करते हुए पुनः लिखा है, “प्रक्रिया का अर्थ वह निरन्तर परिवर्तन है जो एक विशिष्ट स्थिति में पहले से ही विद्यमान शक्तियों की क्रियाशीलता के माध्यम से होता है।”
गिलिन एवं गिलिन के अनुसार, “सामाजिक प्रक्रिया से आशय अन्तः क्रियाओं के उन तरीकों से है जो कि व्यक्ति और समूह के मध्य सम्बन्धों की व्यवस्था को स्थापित करते हैं या परिवर्तित जीवन के प्रचलित तरीकों को अव्यवस्थित कर देते हैं।”
फेयर चाइल्ड के अनुसार, “कोई भी सामाजिक परिवर्तन या अन्तःक्रिया जिससे कोई अनुसन्धानकर्ता किसी ऐसे सुसंगत गुण को देखता है तथा जिसे एक स्पष्ट श्रेणी का नाम दिया जा सकता है, एक विशेष प्रकार के परिवर्तन या अन्तःक्रियाएं जिसमें अमूर्त धारणा के द्वारा कोई सामान्य प्रतिमान देखा जा सकता हो और जिसे स्पष्ट नाम दिया जा सकता हो, को सामाजिक प्रक्रिया कहते हैं।”
लुण्डबर्ग तथा अन्य के अनुसार, “प्रक्रिया सम्बन्धित घटनाओं की उस श्रृंखला को प्रकट करती है, जोकि सापेक्षिक रूप से विशिष्ट और पहले से ही अनुमान योग्य परिणामों की ओर ले जाती है।”
यह परिभाषा स्पष्ट करती है कि सामाजिक प्रक्रिया सामाजिक जीवन में सदैव संचालित रहने वाली वह महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो कि परस्पर सम्बन्धित घटनाओं को एक निश्चित दिशा प्रदान करके निश्चित परिणामों की ओर निरन्तर संचालित रहती है अर्थात् सामाजिक प्रक्रिया अन्तःक्रियाओं की उस श्रृंखला को प्रदर्शित करती है जिनमें न सदैव निरन्तरता बनी रहती है, जो एक निश्चित दिशा व परिणामों की ओर ले जाने वाली रहती है।
सामाजिक प्रक्रिया के आवश्यक तत्व या विशेषताएँ
सामाजिक प्रक्रिया के आवश्यक तत्व या विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :-
(1) क्रमिक घटनाएं:-
कोई भी घटना कितनी ही महत्वपूर्ण क्यों न हो उसे सामाजिक प्रक्रिया तब तक नहीं कहा जा सकता जब तक कि वह किसी निश्चित समयावधि के बाद निरन्तर घटित न होती रहे अर्थात् सामाजिक प्रक्रिया के लिए किसी घटना का घटना मात्र ही आवश्यक नहीं होता है, अपितु घटना की पुनरावृत्ति का होना आवश्यक होता है।
(2) घटनाओं के मध्य सम्बन्ध:-
समाज में घटित होने वाली सभी घटनाएं सामाजिक प्रक्रियाओं की श्रेणी में नहीं आती हैं, क्योंकि उनकी प्रकृति में पर्याप्त अन्तर रहता है तथा उनके क्षेत्रों में भी अन्तर हो सकता है। सामाजिक प्रक्रियाओं में वे ही घटनाएं सम्मिलित की जाती हैं जो समान प्रकृति वाली हों तथा एक-दूसरे से किसी न किसी रूप में परस्पर सम्बन्धित हों।
(3) निरन्तरता:-
निरन्तरता का सामान्य आशय सदैव होते रहने से है। सामाजिक प्रक्रिया के लिए घटनाओं के मध्य सम्बन्ध होने के साथ ही यह अति आवश्यक है कि इन घटनाओं में निरन्तरता का गुण हो। बिना निरन्तरता के भी घटनाओं को सामाजिक प्रक्रिया नहीं कहा जा सकता है।
उदाहरणार्थ परिवार एक सहयोगात्मक संस्था है जिसकी आवश्यकता व्यक्ति को सदैव रहती है। व्यक्ति एक मरणशील प्राणी है, किन्तु परिवार निरन्तर बनी रहने वाली संस्था है। यह कभी समाप्त नहीं होगी।
(4) विशिष्ट परिणाम:-
सामाजिक घटना का एक महत्वपूर्ण तत्व परिणाम की प्राप्ति है। सामाजिक प्रक्रियाएं सामाजिक घटनाओं की एक श्रृंखला के रूप में होती हैं जिनमें निरन्तरता बनी रहती है तथा इसके कुछ परिणाम अवश्य ही सामने आते हैं।
यदि सामाजिक प्रक्रिया की प्रकृति सहयोगात्मक होती है तो इसके परिणामस्वरूप व्यक्तियों में एकता, सहयोग, अपनत्व, आदि गुणों का विकास होता है, समाज में संगठन पनपता है तथा सामाजिक प्रगति होती है, किन्तु यदि प्रक्रिया की प्रकृति असहयोगात्मक है तो परिणाम ठीक विपरीत होते हैं।