36. Geomorphic Evolution of Chotanagpur Highlands (छोटानागपुर उच्चभूमि का भू-आकृतिक विकास)
Geomorphic Evolution of Chotanagpur Highlands
(छोटानागपुर उच्चभूमि का भू-आकृतिक विकास)
परिचय
भारत के पूर्वी भाग में स्थित छोटानागपुर का पठार (Chotanagpur Plateau) भू-आकृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। छोटानागपुर उच्चभूमि भारत के झारखण्ड राज्य तथा पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार और छत्तीसगढ़ के कुछ भागों में फैली हुई है। इसे “भारत का रूहा” (Roorh of India) भी कहा जाता है।
इसका औसत विस्तार लगभग 24° से 25° उत्तरी अक्षांश और 83° से 86° पूर्वी देशांतर के बीच है। यह प्राचीन भू-आकृतिक संरचना भारतीय उपमहाद्वीप की भूपर्पटी (Crust) के विकास और अपक्षय-क्षरण की दीर्घकालिक प्रक्रियाओं का परिणाम है।
छोटानागपुर पठार की संरचना, विकास, स्थलाकृति और प्राकृतिक संसाधनों ने न केवल भौगोलिक परिदृश्य को प्रभावित किया है, बल्कि यहाँ की संस्कृति, अर्थव्यवस्था और मानव जीवन पर भी गहरा असर डाला है।
भूवैज्ञानिक संरचना और उत्पत्ति (Geological Structure and origin)
छोटानागपुर पठार की नींव आर्कियन युग (Archaean Eon) की प्राचीन चट्टानों से बनी है, जो 2.5 अरब वर्ष से भी अधिक पुरानी हैं। इन चट्टानों में निस (gneiss) और शिस्ट प्रकार की कायांतरित (Metamorphic) संरचनाएँ शामिल हैं, जो इसकी खनिज संपदा का मुख्य आधार हैं। यह पठार मूल रूप से गोंडवाना भूभाग का हिस्सा था, जो लगभग 12 करोड़ साल पहले टूटकर अलग हो गया और धीरे-धीरे उत्तर की ओर सरकने लगा।
दामोदर घाटी इस पठार के बीच से होकर गुजरती है, जो एक भ्रंश घाटी (Rift Valley) है। यह भ्रंश ऊपरी कार्बोनिफेरस से पर्मियन कल्प में भूगर्भीय हलचलों के कारण बना था। इस घाटी में गोंडवाना क्रम की अवसादी चट्टानें (Sedimentary rocks) पाई जाती हैं, जिनमें भारत का सबसे महत्वपूर्ण कोयला भंडार मौजूद है।
छोटानागपुर पठार भूगर्भीय दृष्टि से प्राचीनतम संरचनाओं में से एक है।
आधार चट्टानें- यहाँ मुख्यतः निस (Gneiss), ग्रेनाइट (Granite), शिस्ट (Schist) तथा क्वार्टजाइट (Quartzite) पाई जाती हैं। ये सभी आर्कियन युग (Archaean Era) की हैं।
कोयला क्षेत्र- दामोदर, स्वर्णरेखा और कोएल नदियों की घाटियों में गोंडवाना शैलें (Gondwana Rocks) पाई जाती हैं, जिनमें कोयले के भंडार हैं।
खनिज संसाधन- लौह अयस्क, बॉक्साइट, मैंगनीज़, ताँबा, यूरेनियम और सोना यहाँ की प्रमुख विशेषता है।
भू-आकृतिक विकास की अवस्थाएँ (Stages of Geomorphic Evolution)
1. प्राचीन पर्वत निर्माण (Archaean Orogeny)
⇒ छोटानागपुर क्षेत्र की उत्पत्ति लगभग अरबों वर्ष पूर्व प्राचीन भूगर्भीय हलचलों से हुई।
⇒ निस, ग्रेनाइट तथा रूपांतरित शैलों ने यहाँ के आधार को निर्मित किया।
⇒ यह क्षेत्र मूलतः पर्वतीय क्षेत्र था, जो समय के साथ अपक्षय और अपरदन से पठार में परिवर्तित हो गया।
2. गोंडवाना काल (Paleozoic- Mesozoic Era)
⇒ लगभग 250 मिलियन वर्ष पूर्व यह क्षेत्र गोंडवाना भूभाग का हिस्सा था।
⇒ दामोदर और स्वर्णरेखा घाटियों में तलछटी शैलों का निर्माण हुआ।
⇒ इस काल में कोयला, बलुआ पत्थर और शेल का निक्षेपण हुआ।
3. अपरदन एवं पेडीप्लेन निर्माण (Erosion and Peneplanation)
⇒ लंबे समय तक अपरदन की प्रक्रिया के कारण यहाँ समतल सतह बनी।
⇒ बाद में नदियों ने गहरी घाटियाँ काटीं और पुनः स्थलरूपों में विविधता आई।
⇒ परिणामस्वरूप यहाँ पठारी भू-आकृति (Plateau Topography) और खंडित पर्वतीय स्थलरूप विकसित हुए।
4. टेक्टोनिक हलचलें (Tectonic Movements)
⇒ नियो-टेक्टोनिक गतिविधियों के कारण दामोदर, स्वर्णरेखा, कोएल और शंख जैसी नदियाँ भ्रंश (Faults) रेखाओं के साथ बहती हैं।
⇒ इससे यहाँ ग्राबेन घाटियाँ (Rift Valleys) बनीं, जैसे- दामोदर घाटी।
5. वर्तमान स्थलरूप विकास (Present Landform Development)
⇒ आज छोटानागपुर पठार में विविध स्थलरूप पाए जाते हैं, जैसे-
एकाश्मक पर्वत (Monadnocks/Inselsberg)- जैसे पारसनाथ, नेतरहाट हिल्स।
घाटियाँ- दामोदर, स्वर्णरेखा
झरने- हुंडरु, दशम, रजरप्पा
पठार सतह- रांची, हजारीबाग, पलामू
स्थलरूपों की विशेषताएँ (Landform Characteristics)
पठारी क्षेत्र- रांची पठार सबसे प्रमुख है जिसकी ऊँचाई लगभग 600 मीटर है।
नदी घाटियाँ- दामोदर और स्वर्णरेखा नदियाँ भ्रंश घाटियों में बहती हैं।
झरने और जलप्रपात- अपरदन और भ्रंश क्रियाओं के कारण अनेक जलप्रपात बने हैं।
हुंडरु जलप्रपात (98 मी.)
दशम जलप्रपात (44 मी.)
जोन्हा जलप्रपात
जलवायु प्रभाव एवं अपक्षय
⇒ यहाँ की जलवायु उष्णकटिबंधीय मानसूनी है।
⇒ वर्षा ऋतु में तीव्र अपरदन होता है, जिससे मिट्टी का क्षरण और गहरी घाटियाँ निर्मित होती हैं।
⇒ शुष्क ऋतु में यांत्रिक अपक्षय (Mechanical Weathering) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
खनिज संपदा और आर्थिक महत्व
छोटानागपुर पठार को भारत का खनिज हृदय (Mineral Heartland) कहा जाता है।
⇒ लौह अयस्क- सिंहभूम, सरायकेला
⇒ कोयला- दामोदर घाटी
⇒ यूरेनियम- जादूगोड़ा
⇒ ताँबा- घाटशिला
⇒ बॉक्साइट- लोहरदगा
⇒ सोना- सिंहभूम
खनिज संपदा के कारण यहाँ लौह एवं इस्पात उद्योग, विद्युत उत्पादन तथा अनेक खनिज-आधारित उद्योग विकसित हुए।
मानव-भौगोलिक विकास
⇒ यहाँ की जनसंख्या में आदिवासी समुदाय (मुंडा, संथाल, उरांव, हो आदि) प्रमुख हैं।
⇒ कृषि की अपेक्षा खनन और औद्योगिक गतिविधियाँ अधिक प्रभावी हैं।
⇒ रांची, जमशेदपुर, बोकारो, धनबाद आदि औद्योगिक नगर इसी क्षेत्र में विकसित हुए।
पर्यावरणीय चुनौतियाँ
⇒ खनन और औद्योगीकरण के कारण वनों की कटाई एवं मृदा अपरदन बढ़ा है।
⇒ जलप्रदूषण, वायु प्रदूषण और भूमि क्षरण गंभीर समस्या बन गए हैं।
⇒ आदिवासी समाज के विस्थापन और आजीविका संकट भी भू-आकृतिक विकास से जुड़ी चुनौतियाँ हैं।
निष्कर्ष
छोटानागपुर पठार भारत का एक प्राचीन भू-भाग है जिसने अनेक भूगर्भीय और भू-आकृतिक परिवर्तनों का सामना किया है। प्राचीन पर्वत निर्माण से लेकर वर्तमान खंडित पठारी स्वरूप तक इसकी यात्रा भूगर्भ विज्ञानियों के लिए अत्यंत रोचक अध्ययन का विषय है।
खनिज संपदा और विविध स्थलरूपों के कारण यह क्षेत्र भारत की आर्थिक धुरी भी है। किंतु अनियंत्रित खनन और औद्योगिकरण से उत्पन्न पर्यावरणीय समस्याओं पर ध्यान देना आवश्यक है, ताकि यहाँ का प्राकृतिक संतुलन बना रहे और सतत विकास संभव हो सके।