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Environmental Geography (पर्यावरण भूगोल)

26. Radiation hazards (विकिरण के खतरे)

Radiation hazards

(विकिरण के खतरे)



परिचय 

    मानव सभ्यता के विकास में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। परमाणु ऊर्जा, रेडियोधर्मी पदार्थ और विकिरण विज्ञान ने आधुनिक समाज को नई ऊर्जा, उन्नत चिकित्सा उपचार और औद्योगिक क्रांति प्रदान की है। किंतु इन उपलब्धियों के साथ विकिरण के खतरे भी निरंतर हमारे सामने आते रहे हैं।

     विकिरण (Radiation) वह प्रक्रिया है जिसमें ऊर्जा तरंगों या कणों के रूप में माध्यम अथवा निर्वात में संचारित होती है। यह ऊर्जा कभी जीवनदायी सिद्ध होती है, जैसे सूर्य से प्राप्त विकिरण पौधों की वृद्धि और मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है; तो कभी घातक बन जाती है, जैसे परमाणु बम या परमाणु संयंत्र से निकलने वाला विकिरण।

       विकिरण का खतरा केवल वर्तमान पीढ़ी तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों को भी प्रभावित करता है क्योंकि इसके प्रभाव दीर्घकालिक और आनुवंशिक हो सकते हैं। इसी कारण से विकिरण के खतरे आधुनिक विज्ञान और पर्यावरणीय अध्ययन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है।

परिभाषा और प्रकार

     विकिरण वह प्रक्रिया है जिसमें ऊर्जा का उत्सर्जन और संचरण विद्युतचुंबकीय तरंगों या उपपरमाण्विक कणों के रूप में होता है। इसे दो मुख्य श्रेणियों में बाँटा जाता है:

1. आयनीकरण विकिरण (Ionizing Radiation)

    यह वह विकिरण है जिसकी ऊर्जा इतनी अधिक होती है कि यह परमाणुओं या अणुओं से इलेक्ट्रॉन को बाहर निकालकर आयन बना देता है। इससे कोशिकाओं के डीएनए और अन्य अणु क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इसके उदाहरण हैं– एक्स-रे, गामा किरणें, अल्फा एवं बीटा कण, न्यूट्रॉन विकिरण।

2. अनायनीकरण विकिरण (Non-ionizing Radiation)

    यह विकिरण अपेक्षाकृत कम ऊर्जा वाला होता है और आयनीकरण नहीं करता, किंतु यह भी शरीर और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। उदाहरण हैं- रेडियो तरंगें, माइक्रोवेव, अवरक्त किरणें, पराबैंगनी किरणें और लेजर विकिरण।

     दोनों प्रकार के विकिरणों के खतरे अलग-अलग स्तर पर होते हैं। जहाँ आयनीकरण विकिरण कैंसर और आनुवंशिक दोष उत्पन्न करने की क्षमता रखता है, वहीं अनायनीकरण विकिरण त्वचा रोग, नेत्र रोग और तंत्रिका संबंधी समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है।

विकिरण के स्रोत

प्राकृतिक स्रोत

(i) सौर विकिरण: सूर्य से पराबैंगनी (UV), अवरक्त (IR) और दृश्य प्रकाश निकलता है। इनमें से UV किरणें अधिक मात्रा में हानिकारक हो सकती हैं।

(ii) पृथ्वी की रेडियोधर्मिता: पृथ्वी की परतों में उपस्थित यूरेनियम, थोरियम और पोटैशियम-40 जैसे तत्व लगातार रेडियोधर्मी विकिरण उत्सर्जित करते हैं।

(iii) राडॉन गैस: यह एक रेडियोधर्मी गैस है जो चट्टानों और मिट्टी से निकलकर घरों में पहुँच सकती है।

(iv) कॉस्मिक किरणें: अंतरिक्ष से उच्च ऊर्जा वाले प्रोटॉन और अन्य कण पृथ्वी पर गिरते रहते हैं।

कृत्रिम स्रोत

(i) परमाणु ऊर्जा संयंत्र: विद्युत उत्पादन हेतु प्रयोग किए जाने वाले नाभिकीय रिएक्टरों से रेडियोधर्मी अपशिष्ट निकलते हैं।

(ii) परमाणु हथियार परीक्षण: वायुमंडल में विकिरण फैलाते हैं।

(iii) चिकित्सा क्षेत्र: एक्स-रे, सीटी स्कैन, रेडियोथेरेपी और न्यूक्लियर मेडिसिन।

(iv) औद्योगिक प्रयोग: रेडियोग्राफी, गामा-रे स्कैनिंग, रिसर्च रिएक्टर।

(v) संचार उपकरण: मोबाइल टावर, माइक्रोवेव ओवन और रडार।

विकिरण से खतरे

आयनीकरण विकिरण से खतरे

(i) अल्फा कण (α): ये भारी होते हैं, प्रवेश क्षमता कम होती है, परंतु शरीर के भीतर पहुँचने पर अत्यधिक हानिकारक।

(ii) बीटा कण (β): त्वचा एवं ऊतकों को प्रभावित कर सकते हैं, डीएनए को नुकसान पहुँचा सकते हैं।

(iii) गामा किरणें (γ): गहरी पैठ वाली किरणें, कैंसर और उत्परिवर्तन का कारण।

(iv) न्यूट्रॉन विकिरण: परमाणु हथियारों और रिएक्टरों से निकलता है, अत्यधिक विनाशकारी।

अनायनीकरण विकिरण से खतरे

(i) पराबैंगनी किरणें: त्वचा कैंसर, झुलसना, मोतियाबिंद।

(ii) माइक्रोवेव और रेडियो तरंगें: शरीर के ऊतकों को गर्म कर नुकसान पहुँचा सकती हैं।

(iii) लेजर विकिरण: आँखों और त्वचा पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।

मानव स्वास्थ्य पर विकिरण का प्रभाव

अल्पकालिक प्रभाव

⇒ विकिरण जलन और त्वचा क्षति।

⇒ सिरदर्द, थकान, उल्टी और बुखार।

⇒ रक्त कोशिकाओं में कमी, प्रतिरक्षा तंत्र पर असर।

⇒ तीव्र विकिरण बीमारी (Acute Radiation Syndrome)।

दीर्घकालिक प्रभाव

⇒ कैंसर: ल्यूकेमिया, थायरॉइड कैंसर, फेफड़े का कैंसर।

⇒ आनुवंशिक दोष: डीएनए क्षति के कारण उत्परिवर्तन।

⇒ प्रजनन क्षमता में कमी: पुरुषों और महिलाओं दोनों में।

⇒ तंत्रिका तंत्र विकार: स्मृति ह्रास, मानसिक असंतुलन।

गर्भस्थ शिशु पर प्रभाव

⇒ जन्मजात विकलांगता।

⇒ मानसिक मंदता।

⇒ शारीरिक विकास में कमी।

पर्यावरणीय खतरे

(i) मृदा प्रदूषण: रेडियोधर्मी तत्व लंबे समय तक मिट्टी में बने रहते हैं और कृषि को प्रभावित करते हैं।

(ii) जल प्रदूषण: परमाणु संयंत्रों से निकलने वाला अपशिष्ट नदियों और समुद्र में मिलकर जलीय जीवों और मानव को प्रभावित करता है।

(iii) खाद्य श्रृंखला में संचयन: रेडियोधर्मी पदार्थ पौधों और पशुओं के माध्यम से मनुष्य तक पहुँचते हैं।

(iv) वनस्पति एवं जीव-जंतु पर प्रभाव: वृद्धि रुकना, प्रजनन में बाधा, उत्परिवर्तन।

विकिरण दुर्घटनाएँ और उदाहरण

(i) हिरोशिमा और नागासाकी (1945): परमाणु बम से तत्काल मृत्यु और दीर्घकालिक कैंसर।

(ii) चेरनोबिल (1986): यूक्रेन में परमाणु संयंत्र दुर्घटना, हजारों लोग प्रभावित, पर्यावरण आज भी प्रदूषित।

(iv) फुकुशिमा (2011): जापान में सुनामी से परमाणु संयंत्र दुर्घटना।

(v) मायाक (1957): सोवियत संघ में परमाणु अपशिष्ट विस्फोट।

विकिरण मापन और इकाइयाँ

(i) सीवर्ट (Sv): जैविक प्रभाव का माप।

(ii) ग्रे (Gy): अवशोषित खुराक का माप।

(iii) बेक्वरेल (Bq): रेडियोधर्मी क्षय की दर।

(iv) क्यूरी (Ci): परंपरागत मापन इकाई।

विकिरण सुरक्षा उपाय

तकनीकी उपाय

⇒ विकिरण रोधक ढाल (Lead Shielding, Concrete Walls)।

⇒ अपशिष्ट का सुरक्षित निपटान।

⇒ विकिरण मॉनिटरिंग उपकरण।

⇒ स्वचालित रोबोटिक तकनीक।

व्यक्तिगत सुरक्षा

⇒ सीसे की एप्रन, दस्ताने और चश्मे।

⇒ नियमित डोज मीटर जाँच।

⇒ सुरक्षात्मक वस्त्र।

संस्थागत उपाय

⇒ परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB)।

⇒ अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA)।

⇒ WHO और UNSCEAR की रिपोर्ट।

अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

(i) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर- IAEA, WHO, UNSCEAR और ICNIRP विकिरण सुरक्षा पर कार्यरत हैं।

(ii) भारत में- BARC, AERB और DRDO जैसे संस्थान विकिरण के शांतिपूर्ण उपयोग और सुरक्षा मानकों पर काम करते हैं।

विकिरण और नैतिकता

    विकिरण का प्रयोग दोहरी भूमिका निभाता है। एक ओर यह ऊर्जा उत्पादन, चिकित्सा उपचार और कृषि सुधार में सहायक है, दूसरी ओर हथियारों के रूप में यह मानवता के लिए विनाशकारी साबित हुआ है। इसलिए विकिरण तकनीक के उपयोग में वैज्ञानिक अनुशासन, मानवीय नैतिकता और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है।

निष्कर्ष

    विकिरण का महत्व मानव सभ्यता के विकास में निर्विवाद है। लेकिन इसका अनियंत्रित और अनुचित उपयोग स्वास्थ्य, पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों के लिए घातक साबित हो सकता है।

    विकिरण के खतरों से बचने के लिए सख्त सुरक्षा मानकों, अनुसंधान, पर्यावरणीय संतुलन और वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है।

    यदि विकिरण का उपयोग शांतिपूर्ण, सुरक्षित और जिम्मेदार तरीके से किया जाए तो यह मानवता के लिए वरदान है, अन्यथा यह विनाश का कारण भी बन सकता है।

I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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