Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

GEOGRAPHICAL THOUGHT(भौगोलिक चिंतन)

3. नियतिवाद या निश्चयवाद या पर्यावरणवाद / Determinism or Environmentalism

3. नियतिवाद या निश्चयवाद या पर्यावरणवाद

(Determinism or Environmentalism)


नियतिवाद या निश्चयवाद या पर्यावरणवाद⇒   

      भूगोल में कई प्रकार के द्वैतवाद का विकास हुआ है। इनमें नियतिवाद बनाम सम्भववाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यह द्वैतवाद भूगोल के विषयवस्तु से संबंधित है। यूरोप में जनक जब आधुनिक भूगोल का विकास हुआ तो जर्मन भूगोलवेताओं ने नियतिवाद दृष्टिकोण अपराध। नियतिवादी का तात्पर्य है- भूगोल में प्रकृति की श्रेष्ठता को महत्वपूर्ण मानना। जर्मन विद्वानों के विरुद्ध फ्रांस में संभववाद का उदय हुआ।

       फ्रांसीसी विद्वान भूगोल में मानव के अध्ययन पर अधिक जोर देते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि जर्मनी और फ्रांस में भूगोल में विषय वस्तु को लेकर द्वंद छिड़ गया। यह द्वन्द द्विविभाजन का रूप धारण कर लिया। कालांतर में टेलर महोदय के नियतिवादियों एवं संभावादियों की आलोचना करते हुए तार्किक तरीके  से नवनियतिवाद की संकल्पना प्रस्तुत जिसमें उन्होंने बताया कि नियतिवाद और संभववाद दोनों अलग-2 पहलू नहीं है। बल्कि एक सिक्के के दो पहलू है। अर्थात नियतिवाद और सम्भववाद को नियतिवाद बनाम सम्भववाद के रूप में देखा जाना चाहिए।नियतिवाद या निश्चयवादनियतिवाद

     भूगोल में मानव एवं पर्यावरण के बीच संबंधो का अध्ययन हेतु अनेक पद्धति एवं वैचारिक सम्प्रदाय का विकास हुआ। उनमें से एक विचार निश्चवादी के नाम से जाना जाता है। भूगोल में द्वितीय विश्वयुद्ध तक निश्चयवादी विचार का प्रभाव बना रहा। निश्चयवादी विचार का तात्पर्य है- समय का इतिहास, सभ्यता, जीवनशैली, संस्कृति एवं राष्ट्र की सभी धारणाएँ पर्यावरण के द्वारा निर्धारित एवं संचालित होती है।

सिद्धांत- नियतिवादी संकल्पना मानव को एक निष्क्रिय अभिकर्ता या मोम का पुतला मानता है जिसपर भौतिक तत्व क्रियाशील रहते हैं और उसके व्यवहार तथा निर्णय लेने की प्रवृति को भी नियंत्रित करती है।

नियतिवाद या निश्चयवाद के समर्थन में तर्क

        नियतिवाद की सर्वप्रथम व्याख्या करने का कार्य यूनानी एवं रोमन भूगोलवेताओं ने किया। हिप्पोक्रेटस, अरस्तु, यूथीडेड्स, जोनोफोन जैसे भूगोलवेताओं ने बताया कि भौगोलिक अवस्थिति, पर्यावरणीय अनुकूलता के कारण ही एथेंस नगर को पूरे दुनिया में विशिष्ट महत्त्व प्राप्त है।

(1) हिप्पोक्रेटस ने अपनी पुस्तक एक वायु, जल और स्थान” में बताया है कि माननीय अधिवास वायु, जल, और स्थान के द्वारा ही निर्धारित होते हैं। उन्होंने बताया कि नील नदी घाटी क्षेत्र में सघन जनसंख्या इसलिए पायी जाती है कि वहाँ कृषि कार्य के लिए मानव तथा अधिवास के लिए जल, वायु, और स्थान काफी अनुकूल है।

(2) अरस्तू महोदय ने बताया कि शीत प्रदेश में निवास करने वाले निवासी साहसी और उष्ण प्रदेश में निवास करने वाले निवासी आलसी और डरपोक होते हैं। शीत प्रदेश के निवासी हमेशा शासक होते हैं और उष्ण प्रदेश के निवासी शोसित होते हैं। इसी कारण से नियति(प्रकृति) के द्वारा शोषित एवं शासक वर्गो का निर्धारण होता है।

(3) रोमन भूगोलवेता स्ट्रेबो ने बताया कि दाल, उच्चावच और जलवायु ये सभी प्रकृति प्रदत है। ये तीनों कारक मिलकर मावन के जीवन शैली को विकसित करते हैं।

(4) मध्ययुगीन चिंतकों में बोल्डिंग, मोटेस्क्यू ने बताया कि मानवीय, अधिवास और उसके कार्यकलाप का निर्धारण भौतिक कारक  जैसे- जलवायु, उच्चावच और मृदा के द्वारा निर्धारित होता है। मोंटेस्क्यू ने यहाँ तक बताया कि उपरोक्त तीनों कारकों के द्वारा मानवीय संस्कृति भी निर्धारित होती है।

       निश्चयवादी विचार के विकास में अरब भूगोलवेता जैसे- अलबरुनी, अलमसूदी, इब्न हॉकल, अलइदरिसी, इब्नखाल्दून ने इस विचार को पुष्ट किया।

(5) अलमसूदी ने उत्तर भारत का अध्ययन करके बताया था कि जहाँ पर पर्याप्त मात्रा में भूमिगत जलस्तर उपलब्ध हो वहाँ के लोग हमेशा प्रसन्नचित और विनोदपूर्ण होते है और जबकि शुष्क प्रदेश के निवासी काफी असंतुलित होते हैं।

(6) जर्मन भूगोलवेता काण्ट महोदय ने बताया कि उष्ण प्रदेश के निवाली सुस्त और भिरू होते हैं जबकि शीत प्रदेश के निवासी साहसी और प्रतिज्ञ होते हैं।

* आधुनिक भूगोल में नियतिवादी चिंतन के विकास में जर्मन भूगोलवेता हमबोल्ट के कॉसमोस और रीटर के Erdkunde नामक पुस्तक का विशेष योगदान है। इन दोनों विद्वानों ने न केवल प्रकृति की श्रेष्टता को स्थापित किया वरन् भौतिक भूगोल को ही मुख्य भूगोल माना।

(7) रीटर महोदय ने यहाँ तक बताया कि मानव के शरीर की बनावट, शारिरीक गठन और स्वास्थ्य विभिन पर्यावरणीय विभिन्नता के कारण ही उत्पन्न होती है।

(8) हमबोल्ट ने बताया कि पर्वतीय प्रदेश के लोगों की जीवनशैली मैदानी क्षेत्र के निवासियों की जीवनशैली से भिन्न होता है।

(9) डार्विन ने अपने पुस्तक “Origin of species” में प्राकृतिक चयन का सिद्धांत प्रस्तुत किया जिसमें बताया कि जीवों के उद्द्विकासीय प्रक्रिया को प्राकृतिक कारण ही निर्धारित करते हैं। जो जीव प्रकृति के साथ अनुकूलन स्थापित कर लेते हैं, वे जीवित रह पाते हैं और जो अनुकूलन स्थापित नहीं कर पाते हैं उन्हें प्रकृति परित्याग कर देती हैं।

    डार्विन के सिद्धांत से प्रभावित होकर रैटजेल महोदय ने नियतिवाद के स्थान पर पर्यावरणवाद की संकल्पना प्रस्तुत की। नियतिवाद संकल्पना के तहत मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रकृति के समस्त घटकों के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। जबकि पर्यावरणवाद के तहत प्रकृति के कुछ निश्चित घटकों के प्रभाव का ही विश्लेषण किया जाता है।

          पारिस्थितिक वैज्ञानिक बक्क्ल महोदय ने अपनी पुस्तक “इंगलैंड में सभ्यता का इतिहास” नामक पुस्तक में मानवीय कार्यों का निर्धारक प्रकृति को माना और बताया कि धन का संग्रह तथा उसका विवरण इत्यादि भी जलवायु, मृदा जैसे कारकों पर निर्भर करती है।

      फ्रांसीसी भूगोल लैप्ली ने Place – Work – Folk (स्थान-कार्य-लोकपरम्परा/ संस्कृति) नामक संकल्पना का विकास किया जिसमें उन्होंने बताया कि स्थान कार्य को निर्धारित करता है और कार्य लोक संस्कृति को निर्धारित करता है। इसी तरह लैमोलिन महोदय ने यह बताया कि समाज का सौंदर्यीकरण वातावरण के द्वारा ही किया जाता है।

       कई अमेरिकी भूगोल भूगोलवेताओं ने भी नियतिवादी संकल्पना का समर्थन किया। डेविस महोदय ने “Geographical Essay” नामक पुस्तक में भूदृश्य के विकास पर जलवायु जैसे कारकों को महत्त्वपूर्ण माना।

     अमेरिकी भूगोलवेता मिस सेम्पल ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “Influence of Geographic Environment” (भौगोलिक वातावरण का प्रभाव) में अनेक प्रकार के तथ्यों से नियतिवाद का समर्थन किया। उन्होंने इस पुस्तक में “मानव को धरातल की उपज” बताया। उन्होंने यह भी कहा कि मानव मोम पुतला है। इसे प्रकृति जब चाहे तब चुट‌कियों से मसल सकती है। इस तरह मिस सेम्पल को नियतिवाद का कट्टर समर्थक माना जाता है। इसकी पुस्तक नियतिवाद के समर्थन में लिखा गया अंतिम पुस्तक था।

        उपरोक्त भूगोलवेताओं के अलावे ब्रिटिश भूगोलवेता मैकिण्डर, चिशोल्म, हबर्टसन, रॉबर्टमिल, बोमेन जैसे भूगोलवेताओं ने भी नियतिवाद का समर्थन किया। इन भूगोलवेताओं ने यूरोप, अफ्रीका के कई देशों में अध्ययन कर अपने विचारों को पुष्टि किया। गैडीस महोदय ने यह बताया कि न्यून पोषण से ग्रसित मनुष्य को मलेरिया की बीमारी अधिक होती है। जैसे- भारत के लोग निरामिश भोजन कम करते है जिससे उनमें रोगप्रतिरोधी क्षमता कम होती है। फलतः उनमें मलेरिया जैसी बीमारी होती है। जबकि माँस खाने वाले मनुष्यों में मलेरिया की बीमारी कम होती है।

आलोचना

      द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद नियतिवादी की निम्नलिखित आलोचना किया जाने लगा:-

(i) कुछ विद्वानों ने यह कहा कि नियतिवादी एक पक्षीय विचार प्रस्तुत कर रहे हैं। जिसमें प्रकृति की भूमिका को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत कर रहे हैं।

(ii) O.H.K. स्पेट महोदय में नियतिवादियों की आलोचना करते हुए कहा कि वातावरण अपने आप में अर्थहीन वाक्यांश है, बिना मानव के वातावरण का कोई अस्तित्व नहीं है।

(iii) हार्टशोन महोदय ने नियतिवाद की आलोचना करते हुए कहा कि इस संकल्पना को पूर्णत: त्याग देना चाहिए क्योंकि यह मानव और प्रकृति को अलग करता है।

(iv) नियतिवादी संकल्पना के सबसे आलोचक संभववादी भूगोलवेता हुए जिनमें फ्रांसीसी भूगोलवेता सबसे प्रमुख हैं।

(v) ब्लास महोदय ने कहा कि प्रकृति ज्यादा-से-ज्यादा सलाहकार की भूमिका निभा सकता है न कि निर्णायककर्ता हो सकता है।

(vi) ब्रूंश महोदय ने नियतिवाद की आलोचना करते हुए कहा कि मानव दिन-दहाड़े पृथ्वी के गर्भ से खनिज पदार्थों को निकाल रहा है और प्रकृति मौन बनी रहती है।

निष्कर्ष

      उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि नियतिवादी संकल्पना के कई कट्टर आलोचक हुए। फिर भी नियतिवादी के विरोध में ही संभववादी संकल्पना का अभ्युदय हुआ। फलत: नियतिवाद बनाम सम्भववाद नामक द्वैतवाद की शुरुआत हुआ जिसके फलस्वरूप भूगोल के विषय वस्तु को विस्तृत आयाम देने में काफी मदद मिली।


नियतिवाद या निश्चयवाद पर नोट्स लिखने का दूसरा तरीका  इस प्रकार है 


नियतिवाद या निश्चयवाद (Determinism)

       मानव और प्रकृति के बीच में सदियों से संतुलन का संबंध रहा है। लेकिन भूगोल में कुछ ऐसे विचारधारा विकसित हुए हैं जिसके तहत कुछ विद्वान प्रकृति को श्रेष्ठ मानते हैं। जबकि कुछ विद्वान मानव को श्रेष्ठ मानते हैं। वैसी विचारधारा जिसमें प्रकृति को श्रेष्ठ माना गया है वैसी विचारधारा को नियतिवाद से संबोधित करते हैं। प्रकृति में सबसे सक्रिय तत्व पर्यावरण होता है। पर्यावरण मानव को सबसे अधिक प्रभावित करता है।

      इसलिए इस विचारधारा को पर्यावरणवाद नाम से भी जानते हैं। प्रकृति के द्वारा घटित घटनाओं के संबंध में यह माना जाता है कि प्रकृति में जो भी घटनाएँ घट रही हैं। वे ईश्वर प्रदत और निश्चय है। इसलिए ऐसी विचारधारा को नियतिवाद या निश्वयवाद कहते हैं।

      निश्चयवाद एक ऐसा दर्शन है जो यह मानता है कि मानव एक निष्क्रिय अभिकर्ता या मोम का पुतला है। प्रकृति मानव के न केवल भौतिक विशेषताओं का बल्कि उसके समस्त सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक चिंतन को प्रभावित करता है। सामान्यत: भूगोल में इस दर्शन का अभिउदय जर्मनी में हुआ।

        नियतिवाद को विकसित करने में कई भूगोलवेताओं का योगदान रहा है। यहाँ तक जर्मन भूगोल विकसित होने के पूर्व कुछ यूनानी एवं रोमन भूगोलवेताओं ने भी इसकी पुष्टि की है। जैसे-यूनानी भूगोलवेताओं वे हिप्पोक्रेटस, अरस्तू इत्यादि का नाम उल्लेखनीय है। हिप्पोक्रेटस ने अपनी पुस्तक “वायु, जल और स्थान” में लिखा है कि “मानवीय अधिवास मूलत: वायु, जल और स्थान जैसे भौतिक कारकों से निर्धारित होते हैं। उन्होंने नील नदी घाटी का उदा० देते हुए बताया है कि नील नदी घाटी में सघन जनसंख्या निवास करती है क्योंकि वहाँ के वायु, जल और स्थान मानव के लिए अनुकूलित है।”

            अरस्तू ने बताया है कि “शीत प्रदेश निवासी शाहसी, राजनैतिक संगठन बनाने में दक्ष और अपने पड़ोसियों पर शासन करने के लिए उपयुक्त होते हैं।” यहाँ तक कि एशिया के लोग इसीलिए कमजोर एवं डरपोक हैं और यूरोप के लोग उन्हें गुलामी के जंजीर में जकड़ लिया है।

          रोमन भूगोलवेता स्ट्रैबो ने अपनी पुस्तक “ढाल, उच्चावच और जलवायु” में लिखा है कि ढाल, उच्चावच और जलवायु प्रकृति के द्वारा प्रदत और ये तीनों ही तत्व मानव जीवन शैली को नियंत्रित करते हैं।

        मध्ययुगीत चिंतकों में बोंडीन और मोण्टेस्क्यू ने बताया कि “मानव का अधिवास और उसका कार्यकलाप जलवायु, उच्चावच और मिट्टी के द्वारा नियंत्रित होती है।

कई अरब भूगोलवेता भी नियतिवादी विचाराधार का समर्थन करते हैं। जैसे- अलमसूदी ने कहा है “उस भूमि में जहाँ जल की अधिकता पायी जाती है वहाँ के निवासी प्रफुल्लित और विनोदप्रिय होते हैं। जबकि शुष्क प्रदेश के निवासी असंतुलित (पागल) और अविनोदप्रिय होते हैं।”

         इतिहासकार जार्ज थाटन ने नियतिवाद विचारधारा को समर्थन करते हुए कहा है कि दो अलग-2 भौगोलिक प्रदेशों में निवास करने वाले निवासी में विभिन्नता भौगोलिक वातावरण के कारण ही उत्पन्न होता है।

          जर्मन भूगोलवेता मैनुएल काण्ट ने दृढ़तापूर्वक कहा है कि उष्ण प्रदेश के निकासी सुस्त और भिरू (डरपोक) होते हैं जबकि शीत प्रदेश के लोग साहसी और दृढ़ होते हैं।

कई आधुनिक भूगोलवेता भी नियतिवाद के कट्टर समर्थक रहे हैं। जैसे-आधुनिक नियतिवाद विचारधारा विकसित करने का श्रेय हम्बोल्ट- और रीटर को जाता है। हम्बोल्ट ने इस विचारधारा का समर्थन “Cosmos” नामक पुस्तक में रीटर ने “अर्दकुण्डे” नामक पुस्तक में किया है।

       इन दोनों भूगोलवेताओं ने न केवल मानव से प्रकृति को श्रेष्ठ मानते हैं बल्कि भौतिक भूगोल को ही मूल भूगोल मानते हैं। हम्बोल्ट ने तर्क देते हुए कहा है कि प्रकृति के ही कारण पर्वतीय प्रदेशों के निवासियों की जीवन पद्धति मैदान के लोगों से भिन्न होती है। इसी तरह रीटर ने कहा है कि भौतिक पर्यावरण ही मानव शरीर के गठन, बनावट और यहाँ तक ही स्वास्थ्य को भी निर्धारित करती है।

        जर्मन भूगोलवेताओं में रेटजेल महोदय नियतिवाद के सबसे बड़े समर्थक रहे हैं। इन्होंने नियतिवाद के स्थान पर ‘वातावरणीय नियतिवाद’ शब्द का प्रयोग किया क्योंकि रैटजेल का मानना था कि मानव के ऊपर सम्पूर्ण प्रकृति का प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि वातावरण का प्रभाव अधिक पड़ता है।

        पारिस्थैतिक वैज्ञानिक वकेल ने अपनी पुस्तक सभ्यता का “सभ्यता का इतिहास इन इंगलैण्ड’ में बताया है कि मानव की सभ्यता प्रकृति के द्वारा ही निर्धारित होती है उन्होंने बताया है कि धन का संग्रह और उनका वितरण की प्रक्रिया भी जलवायु, मिट्टी और खाधान्न आपूर्ति से प्रभावित होती है।

         फ्रांसीसी भूगोलवेता फैब्रिक लैप्ली ने Place-Work-folk (स्थान-कार्य-संस्कृति) संकल्पना विकसित किया। उन्होंने इस संकल्पना में नियतिवाद का समर्थन करते हुए कहा है कि स्थान कार्य का निर्धारक होता है और कार्य संस्कृति का निर्धारक होता है।

            लैमोलीन नामक भूगोलवेता ने नियतिवाद के समर्थन में तर्क देते हुए कहा है कि वातावरण के द्वारा समाज का सौन्दर्यी किया जाता है।

अमेरिकी भूगोलवेताओं में डेविस, हटिंग्टन एवं मिस सेम्पल इत्यादि भी नियतिवाद के समर्थक रहे हैं। हटिंग्टन ने “मानव भूगोल के सिद्धत” नामक पुस्तक में मानवीय कार्यों का विभाजन नियतिवादी दृष्टिकोण से किया है।

       नियतिवाद के सबसे कट्टर समर्थक मिस सेम्पल को माना जाता है। रैटजेल महोदय के शिष्या थी। इसलिए इनके विचारों पर रैटजेल का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इन्हें नियतिवाद का अंतिम भूगोलवेता भी माना जाता है। इन्होंने अपनी पुस्तक “Influence of geographic Environment” नियतिवाद के समर्थन में कई कई प्रस्तुत किया है। वे कहते हैं “मानव पृथ्वीतल का उपज है।”

       पुनः वे कहती हैं “मानव प्रकृति का अभिकर्ता है।” उन्होंने संभववादियों पर चुटकी लेटे हुए लिखा है कि मानव अपने कार्यों का डींग हाँकता है लेकिन प्रकृति मौन रहकर अपने कार्यों को सम्पादित करते रहता है। यहाँ तक कि मानव मोम का एक पुतला है प्रकृति जब चाहे तब उसे चुट‌कियों से मसल सकती है।

            कई ब्रिटिश भूगोलवेता भी नियतिवाद के समर्थक रहे हैं। जैसे कार्ल मेकेये ने सेटलैण्ड द्वीप का अध्ययन करते हुए बताया कि वातावरणीय प्रभाव के कारण ही यहाँ के घोड़ों की ऊँचाई 3.5 फीट रह गया है।

           गैडीस (ब्रिटिश) महोदय ने मानव के स्वास्थ पर पोषण के प्रभाव का अध्ययन किया है। उन्होंने बताया है कि किस क्षेत्र में कौन खाद्य पदार्थ मिलेगा प्रकृति स्वयं करती है। उन्होंने भारत का उदाहरण देते हुए कहा है कि भारत की में मुसलमानों की तुलना में हिन्दुओं में मलेरिया की बीमारी अधिक होती है क्योंकि हिन्दू लोग निरामिश होते हैं।

            इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि नियतिवादियों ने अपने-2 तर्कों के माध्यम नियतिवादी संकल्पना को पुष्ट करने का प्रभाव किया है। यह संकल्पना भूगोल के विषय-वस्तु में द्वितीय विश्वयुद्ध तक विशेष मान्यता रखता था। लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद मानव ने जिस रफ्तार से विकास कार्य किया है वह चौकाने वाला है। अत: कई आधारों पर नियतिवाद की आलोचना भी की जाती है। इसके सबसे बड़े आलोचक फांसासी भूगोलवेता और संभवावादी रहे हैं।

            संभववादियों ने कहा है कि नियतिवाद एक एकांकी विचारधारा है जिसमें प्रकृति को महत्व अधिक दिया गया है और मानव को निष्क्रिय अभिकर्ता माना गया है जो गलत है।

स्पेट महोदय ने नियतिवाद का आलोचना करते हुए कहा है कि प्रकृति या वातावरण अपने आप एक अर्थहीन वाक्यांश है। बिना मानव के वातावरण का कोई महत्व नहीं है।

            ऑस्ट्रेलियाई विद्वान वोल्फ गांग हारटेक ने जर्मनी के दक्षिण भाग में स्थित फ्रैंकफर्ट नगर के सीमान्त क्षेत्रों का अध्ययन करते हुए बताया है कि यहाँ भौतिक तत्वों की भूमिक नगण्य है। सर्वत्र मानवीय भूमिका का परचम लहरा रहा है।

         जर्मन भूगोलवेता होर्टसोन ने कहा है कि नियतिवाद जैसे एकल विचारधारा मानव और प्रकृति को अलग-2 करते हैं। इससे भूगोल में विभाजन की खतरा उत्पन्न होती है। अत: भूगोलवेताओं को ऐसे विचारधारा से बचना चाहिए।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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