Unique Geography Notes हिंदी में

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BA SEMESTER-ICLIMATOLOGY(जलवायु विज्ञान)

21. जलवायु परिवर्तन के विभिन्न प्रमाण

21. जलवायु परिवर्तन के विभिन्न प्रमाण

 (Evidences of Climatic Change)


जलवायु परिवर्तन के विभिन्न प्रमाण

         यह सनातन सत्य है कि अनुकूल जलवायु के कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव हो पाया है, लेकिन मानवीय और कुछ प्राकृतिक गतिविधियों के कारण जलवायु की दशा बदल रही है। इस स्थिति को जलवायु परिवर्तन (Climate change) की संज्ञा दी जाती है। हाल के वर्षों और दशकों में गर्मी के कई रिकॉर्ड टूट गए हैं: यूएन जलवायु रिपोर्ट 2019 इस बात की पुष्टि करती है कि रिकॉर्ड में साल 2019 दूसरा सबसे गर्म वर्ष था, और 2010-2019 सबसे गर्म दशक। वर्ष 2019 में वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) तथा अन्य ग्रीनहाउस गैसें नए रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई थी। जलवायु में परिवर्तन के कारण ही विशालकाय जीव जैसे डायनासोर आदि जिनकी इस पृथ्वी पर बहुलता थी आज उपलब्ध नहीं है। इसी प्रकार राजस्थान के मरु प्रदेश में किसी समय हिमाच्छादन था। वातावरण की गैसों, धूलकणों तथा जलवाष्प की मात्रा में आये परिवर्तन और रूप में धरातलीय भौतिक दशाओं के परिवर्तन के परिणाम है। धरातलीय दशाओं के अतिरिक्त पृथ्वी के आन्तरिक भागों में होने वाला समस्थिति असंतुलन भी इसके लिए कुछ सीमा तक जिम्मेदार हैं। तारों, ग्रहों तथा उपग्रहों की स्थितियों में परिवर्तन भी पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन को प्रभावित करता है। इस प्रकार जलवायु परिवर्तन को प्रमुख रूप से तीन कारक प्रभावित करते हैं।

1. धरातलीय भौतिक दशाओं में परिवर्तन

2. सौर मण्डलीय स्थितियों में परिवर्तन

3. भूर्भिक दशाओं में परिवर्तन 

          उपरोक्त प्रभावी कारको का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-

1. धरातलीय भौतिक दशाओं में परिवर्तन:-

      पृथ्वी के धरातल पर भौतिक दशाओं में परिवर्तन के प्रमुख कारण धरातल पर बनने वाली विशालकाय नदी जल परियोजनायें, राजमार्ग तथा रेलमार्ग, विशाल औद्योगिक संस्थान, वनों का समाप्त होना, प्रदूषण की वृद्धि, अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि, नगरीकरण व औद्योगीकरण, जलचक्र एवं नाइट्रोजन चक्रों का विनाश आदि है।

       मनुष्य अपनी क्रियाओं से वातावरण को प्रभावित करता है। मनुष्य प्रकृति का अंग है और प्राकृतिक संतुलन के बिना मानव अस्तित्व खतरे में है। यही कारण है कि पृथ्वी में अनियंत्रित वनों की कटाई से उष्ण कटिबंधीय वर्षा में परिवर्तन हुये है। नगरीकरण व औद्योगीकरण ने हरित पेटी संकल्पना प्रायः समाप्त कर दी है। अतः इन क्षेत्रों में ध्वनि, वायु तथा जल प्रदूषणों ने वायुमण्डलीय गैसों में ऑक्सीजन की कमी तथा कार्बन डाईआक्साइड की अधिकता कर दी है।

      इसी प्रकार पृथ्वी की आन्तरिक सतह से सिंचाई हेतु अत्यधिक जल निकास से तथा वर्षा द्वारा जल के पुनः सतह पर एकत्र न होने से जल चक्र विनष्ट हो जाता है और जल का स्तर लगातार गिरता जाता है। बड़े पैमाने पर कीटनाशकों के प्रयोग से वायुमण्डलीय दशाओं में परिवर्तन आता है। पृथ्वी में इनका निर्धारित प्रयोग वायु संतुलन ही स्थापित कर सकता है। चरनोबिल तथा भोपाल दुर्घटनायें विकिरण के प्रभाव को स्पष्ट करती है। इन से स्पष्ट हो चुका है कि गैस तथा परमाणु संयंत्रों से कितना विनाश हो सकता है। पृथ्वी से प्रेरित परीक्षण हेतु उपग्रहों, रॉकेटों तथा वायुयानों के बढ़ते दबाव से भी वायुमण्डलीय दशाओं में अन्तर आता है।

      ये सभी धरातलीय परिवर्तन कम या अधिक मात्रा में जलवायु के विभिन्न कारकों को प्रभावित करते हैं।

जलवायु परिवर्तन2. भूगर्भिक दशाओं में परिवर्तन:-

        पृथ्वी की सतह तथा वायु मण्डलीय परिवर्तनों का प्रभाव आन्तरिक भागों में पड़ता है। ज्वालामुखी तथा भूकम्पों की संख्या में लगातार वृद्धि पृथ्वी के अन्दर होने वाले परिवर्तनों को सिद्ध करती है। अब तक प्राप्त ज्ञान के अनुसार ज्वालामुखी तथा भूकम्पीय दशाओं का प्रभाव प्रायः पृथ्वी की कमजोर पर्त वाले भागों में होता था। परन्तु अब अत्यन्त ठोस तथा स्थिर भूभागों में भी भूकम्प तथा ज्वालामुखी उद्गार देखने को मिलते हैं। जर्जिया का भूकम्प इसका नवीनतम उदाहरण है। पृथ्वी में होने वाली अपरदन निक्षेपण तथा समस्थिति परिवर्तन आदि कारकों के साथ-साथ विशाल जल परियोजनायें, परमाणु परीक्षणों तथा बड़े पैमाने पर होने वाली उत्खनन क्रियाओं के फलस्वरूप पृथ्वी के बाह्य तथा आन्तरिक भागों में संबंध परिवर्तित हो रहे हैं। इन परिवर्तनों से आन्तरिक क्रियायें तीव्र हो जाती है। आन्तरिक क्रियाओं से होने वाले उद्गार एवं झटके पृथ्वी की सतह पर वायु-ताप तथा जलवायु आदि दशाओं में परिवर्तन करते हैं।

जलवायु परिवर्तन

3. सौर मण्डलीय स्थिति में परिवर्तन:-

        तारों, ग्रहों, उपग्रहों, नीहारिकाओं, उल्काओं आदि के मध्य प्राकृतिक संतुलन पाया जाता है। इस संतुलन के पीछे सौरमण्डलीय निरक्षेप तथा सापेक्षिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति है। सौर परिवार के अन्तर्गत सूर्य धब्बों के प्रभाव से पृथ्वी पर औसत ताप बढ़ जाता है। इसी प्रकार ग्रहों के परिभ्रमण मार्ग में आने से सापेक्षिक आकर्षण बढ़ता है, इससे भी वायुदाब कम तथा तापीय असंतुलन बढ़ जाता है। चन्द्रमा में पाये जाने वाले धब्बों का प्रभाव भी पृथ्वी पर पड़ता है। वैज्ञानिक परीक्षणों से सिद्ध हुआ है कि पृथ्वी की सूर्य तथा चन्द्रमा के सन्दर्भ में स्थिति से पृथ्वी पर तापीय असंतुलन बढ़ता है। खगोलशास्त्रीय अध्ययनों से सिद्ध हो चुका है कि सौर मण्डलीय प्रभावों से वायुमण्डलीय परतों में गैसीय अनुपात असंतुलित हो रहा है।

जलवायु परिवर्तन

निष्कर्ष:-

      निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि ओजोन परतों का पतला पड़ना, पृथ्वी में औसत तापमान का बढ़ना, हरित गृह प्रभाव में अनवरत वृद्धि, उष्णकटिबन्धीय वर्षा की मात्रा में स्थानिक एवं कालिक अन्तर, नगरीय तथा वनों की स्थितियों में परिवर्तन आदि पृथ्वी में जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट संके है।

प्रश्न प्रारूप

1. जलवायु परिवर्तन के विभिन्न प्रमाणों का उल्लेख करें।


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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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