Unique Geography Notes हिंदी में

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BA SEMESTER-IIएशिया का भूगोल

1. एशिया की धरातल की संरचना (Asia : Surface Structure)

1. एशिया की धरातल की संरचना (Asia : Surface Structure)


एशिया की धरातल की संरचना⇒

For BA(Hons) Part-I, Paper-II 

                 धरातलीय संरचनाओं पर भू-गर्भ की प्राचीन चट्टानों के विशेष रूप से प्रभाव पड़ता है। प्राचीन चट्टानों की बनाबट का अध्ययन धरातलीय संरचना के आधार पर किया जाता है। एशिया महाद्वीप में धरातलीय संरचना के अंतर्गत भी अनेक विशेषताएँ मिलती है। इस महाद्वीप में उपकल्प(Eozoic Era) की पुरातन चट्टानें से लेकर टर्शियरी युग की नवीनतम चट्टानें मिलती है। चट्टानों की विविधता के साथ-साथ चट्टानों के धरातलीय स्वरूप में भी अनेक विविधताएँ पायी जाती है।
         एशिया महाद्वीप में अनेक ऐसे स्थलखंड विद्यमान है जिनमें धरातलीय परिवर्तन भूगर्भिक हलचलों के कारण उत्पन्न हुए हैं जबकि महाद्वीप पर कुछ स्थलखंड ऐसे भी है जो इन भूगर्भिक हलचलों से प्रभावित नहीं होते हैं। कुछ स्थान पर अयनवृत्तीकरण के कारण चट्टानों का बाहरी रूप अवश्य परिवर्तित हो गया है लेकिन चट्टानों की आंतरिक बनावट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। 
                  एशिया महाद्वीप की धरातलीय संरचना के बारे में विभिन्न भूतत्ववेताओं में मतभेद है फिर भी अधिकांश भूतत्ववेताओं ने एशिया को भूगर्भिक संरचना के आधार पर चार भागों में बाँटा है – 
(1) उत्तर के प्राचीन भूखंड 
(2) दक्षिण के प्राचीन भूखण्ड 
(3) नवीन मोड़दार पर्वत श्रेणियाँ 
(4) अवशेष भाग 
एशिया की धरातल की संरचना(1) उत्तर के प्राचीन भूखंड

                  उत्तर के प्राचीन भूखंडों का विस्तार एशिया महाद्वीप के उत्तरी भाग में हुआ है। इस प्राचीन भूखंड में कैंब्रियन युग से पहले की कठोर चट्टानों का विस्तार पाया जाता है। यह प्राचीन विशाल भूखंड पैंजिया स्थलखंड से अलग हुए विशाल भूखंड है। इन भूखंडों की चट्टानें बहुत कठोर है। इनमें से कुछ चट्टानों का रूप परिवर्तित भी हो गया है। इन भागों में आग्नेय चट्टानों की बहुलता है। मुख्य चट्टानें नाइस, शिष्ट, स्लेट तथा ग्रेनाइट है।

            उत्तर के प्राचीन भूखंड के अंतर्गत चार प्रमुख खंड आते हैं जिनमें एक भूखंड जिसका नाम रूसी चबूतरा है, एशिया महाद्वीप में न होकर यूरोप महाद्वीप में स्थित है लेकिन फिर भी इसका अध्ययन इसलिए आवश्यक हो जाता है क्योंकि इससे एशिया महाद्वीप की संरचना को समझने में सहायता मिलती है। यह एशिया की सीमा से लगा हुआ यूरोप के बाल्टिक सागर तक विस्तृत है, इसलिए इसे बाल्टिक शीट भी कहते हैं। उत्तर के प्राचीनतम भूखंडों के अंतर्गत निम्नलिखित भूखंड सम्मिलित किए जाते हैं –

(i) रुसी चबूतरा 
(ii) अंगारा भूमि 
(iii) चीनी मैसिफ
 (iv) सारडिनियन मैसिफ।
(2) दक्षिण के प्राचीन भूखण्ड
                 उत्तर के प्राचीन भूखंडों की भांति दक्षिण के प्राचीनतम भूखंड कठोर तथा प्राचीनतम चट्टानों द्वारा निर्मित है। यह प्राचीन भूखंड पैंजिया के टूटे हुए स्थल भूखंड है जिन्हें गोंडवाना भूमि के नाम से पुकारते हैं। विद्वानों के अनुसार यह गोंडवाना भूमि प्राचीन समय में दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिण एशिया तथा आस्ट्रेलिया के कुछ भाग में फैली हुई थी। कालांतर में महाद्वीप की रचना के समय इसके टुकड़े हो गए। एशिया महाद्वीप में भी इस गोंडवाना भूमि के दो प्रमुख भूखंड मिलते हैं जो निम्नलिखित है-
1. अरब प्रायद्वीप 
2. प्रायद्वीपीय भारत
             
          कैंब्रियन युग से पहले की चट्टानों द्वारा इन दोनों प्राचीन भूखंडों का निर्माण हुआ है। इन दोनों भूखंडों में आग्नेय तथा रूपांतरित चट्टानों का विस्तार पाया जाता है जिनमें नाइस, शिस्ट तथा बैसाल्ट चट्टानों की प्रधानता है।
(3) नवीन मोड़दार पर्वत श्रेणियाँ
                नवीन मोड़दार पर्वत श्रेणियाँ एशिया महाद्वीप के मध्य भाग में पाई जाती है। पृथ्वी की हलचलों के परिणामस्वरुप टर्शियरी युग में इन पर्वत श्रेणियों का विस्तार हुआ। मध्य जीवकल्प(Mesozoic Era) के अंतिम समय में इन मोड़दार पर्वत श्रेणियों का निर्माण प्रारंभ हो गया तथा तृतीय युग में इन श्रेणियों का विकास पूर्ण रूप से हो पाया। यह पर्वत श्रेणियाँ अनेक मोड़ों द्वारा निर्मित हुई है। इन पर्वत श्रेणियों की चट्टानों में समुद्री मलवा तथा जीव-जंतुओं के अवशेष पाए जाते हैं।
           इनकी उत्पत्ति के बारे में विद्वानों का मत है कि अत्यंत प्राचीन काल में उत्तर-पूरब एवं दक्षिण के प्राचीन स्थित भूखंडों के बीच एक विशाल भू-अभिनति(Geosyncline) था जो जिब्राल्टर से लेकर पूर्वी एशिया तक फैला हुआ था जिसको विद्वानों ने तेथिस सागर के नाम से पुकारा। इस सागर के बचे हुए भाग आज भी एशिया महाद्वीप के पश्चिमी एवं मध्य भागों में भूमध्सायगर, कैस्पियन सागर, काला सागर, अरब सागर आदि के रूप में स्थित है। यह सागर कुछ स्थानों पर अत्यंत गहरा था। 
              टेथिस साग में उत्तर एवं दक्षिण के अनेक धरातलीय पदार्थ, मालवा तथा जीव-जन्तुओं के अवशेष करोड़ों वर्ष तक अपरदन द्वारा सागर की तलहटी में एकत्र होते रहे। इस जमाव क्रिया के फलस्वरुप समुद्र धरातल में अनेक परतें एक के ऊपर एक जमा होती रही। मुख्यतः परमियन काल से आदि नूतनकाल के पदार्थों की एक मोटी सागर की तली पर जमा हो गई। कालांतर में पृथ्वी की भूगतियों के कारण भूखंडों में हलचल उत्पन्न हो गई तथा उत्तर के प्राचीन भूखंड दक्षिण की ओर खिसके। दक्षिण का प्राचीन गोंडवाना भूखंड वह अपने ही स्थान पर स्थिर रहा। इससे दोनों भूखंडों के मध्य टेथिस सागर से जमा मलबे में अनेक मोड़ पड़ गए। जिन भागों में मलबे के परतें अधिक जमा थी और जहाँ भूखंडों का दबाव अधिक पड़ा,  उन क्षेत्रों में ऊँची पर्वत श्रेणियों की उत्पत्ति हुई।
               टेथिस सागर की इस क्रिया के फलस्वरुप इन नवीन मोड़दार पर्वत श्रेणियों की उत्पत्ति हुई। ये पर्वत श्रेणियां दक्षिण-पश्चिमी एशिया के पश्चिमी किनारे से लेकर दक्षिण-पूर्वी एशिया के पूर्वी किनारे तक विस्तृत है। इनमें मुख्य पर्वत श्रेणियां हिमालय, एशिया माइनर, आरमीनिया, काराकोरम, नानशान, आराकानयोमा इत्यादि है। अन्य पर्वतों में हिंदूकुश, एल्बुर्ज, जैग्रोस, टॉरस, पॉन्टिक, आनातोलिया का पठार, सुलेमान किरथर इत्यादि है। यूरोप का अल्पाइन पर्वत श्रेणियां का निर्माण भी इसी काल में हुआ। इसलिए इन नवीन मोड़दार पर्वत श्रृंखलाओं को अल्पाइन पर्वत श्रेणियों के नाम से पुकारा जाता है।
(4) अवशेष भाग
              एशिया महाद्वीप के इस भाग के अंतर्गत उन संपूर्ण क्षेत्रों का वर्णन किया जाता है जो नवीन मोड़दार पर्वत श्रेणियों के मध्य तथा उत्तर एवं दक्षिण की खंड के मध्य स्थित है। यह क्षेत्र अवशेषी भाग के रूप में जाना जाता है। इस अवशेषी भाग में पाए जाने वाले की चट्टानों का निर्माण पुराजीव कल्प(Paleozoic Era) और मध्य जीवकल्प(Mesozoic Era) में हुआ था ।विद्वानों का मत है कि इन युगों में संपूर्ण पृथ्वी पर विश्वव्यापी हलचलें हुई थी। इन हालचलों की क्रिया के फलस्वरुप पृथ्वी के समस्त धरातल का कुछ भाग ऊपर उठ गया था तथा कुछ भाग नीचे धँस गया था। 
           डिवोनियन युग के अंतर्गत होने वाली कैलीडोनियन हलचलों के अंतर्गत एशिया के इस मध्य धरातलीय भाग में अनेक मोड़दार पर्वतों का निर्माण हुआ। इसके बाद परमियन युग के अंतर्गत होने वाली हरसीनियन हलचलों के परिणामस्वरुप अनेक मोड़दार पर्वतों की उत्पत्ति हुई। इन पर्वतों पर बाद में अपदन क्रिया के फलस्वरूप इनका बाहरी रूप काफी घिस गया। इससे अनेक पर्वत अवशिष्ट पर्वत एवं पठारों का रूप ग्रहण कर गए। चीन का पठार भी इस प्रकार का रूपांतरित पठार है। अपनदन की क्रिया लंबे समय तक होने के कारण अधिकांश पर्वतों ने घिसकर समतल मैदान का रूप ले लिया।
 
निष्कर्ष  :
           निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि एशिया महाद्वीप में धरातलीय संरचना के अंतर्गत भी अनेक विशेषताएँ मिलती है। यहाँ पूरातन चट्टानों से लेकर टर्शियरी युग की चट्टानें पाई जाती है। उत्तर के प्राचीन भूखंड, दक्षिण के प्राचीन भूखंड के साथ-साथ महाद्वीपों के मध्य भाग में नवीन मोड़दार पर्वत श्रेणियाँ देखने को मिलता है। इसके अलावा यहाँ अवशेषी भाग भी पाए जाते हैं।
 
प्रश्न प्रारूप 
Q1. एशिया को संरचनात्मक इकाईयों में विभक्त कीजिए और उसमें से किसी एक का विशद विवरण दीजिए 
 अथवा 
Q2. एशिया की संचना के प्रमुख लक्षणों का वर्णन कीजिए 
अथवा  
Q3. एशिया की भू-रचना की विशेषताओं का वर्णन करें
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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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