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BA SEMESTER-IIएशिया का भूगोल

4. एशिया की जलवायु तथा जलवायु क्षेत्र / Climate and Climatic Region of Asia

4. एशिया की जलवायु तथा जलवायु क्षेत्र 

(Climate and Climatic Region of Asia)


एशिया की जलवायु तथा जलवायु क्षेत्र⇒

प्रश्न प्रारूप  

1. एशिया की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिये।

उत्तर- सभी भौतिक तत्वों में जलवायु सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है क्योंकि इसका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव शरीर एवं कार्यों पर पड़ता है। भौतिक एवं सांस्कृतिक भूदृश्यों की विविधता का बहुत कुछ कारण जलवायुविक तत्व ही है। एशिया की संस्कृति एवं आर्थिक विविधता के लिए जलवायु सर्वाधिक उत्तरदायी कारक है।

        एशिया महाद्वीप विश्व का एक ऐसा महाद्वीप है जहाँ विश्व में पाई जाने वाले लगभग सभी प्रकार के मुख्य जलवायु कहीं न कहीं उपस्थित है। साथ ही साथ यहाँ विश्व जलवायु की अतिशय दशाएं जैसे सबसे गर्म स्थान जकोबाबाद, अति शीतल स्थान बर्खोयाँस्क, अतिवृष्टि का स्थान चेरापूंजी एवं अति शुष्क भाग अरब मरुस्थल भी उपस्थित है।

        इस महाद्वीप की जलवायु इस विविधता के लिए इन महाद्वीप की भौगोलिक दशाएं उत्तरदायी है जिनमें महाद्वीप की विशालता, मध्यवर्ती उच्च भूमि की उपस्थिति और अक्षांशीय विस्तार सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक है। 

         एशिया की जलवायु को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक है- 

(i) एशिया की विशालता- इस महाद्वीप की जलवायु को नियंत्रित करने में इसकी विशाल आकृति का प्रभाव सर्वाधिक है। जलवायु की दृष्टि से यूरोप एशिया का महाद्वीप है, अतः दोनों का सामूहिक प्रभाव इसकी जलवायु पर पड़ता है। इन दोनों महाद्वीपों का संयुक्त क्षेत्रफल संपूर्ण स्थलमंडल का लगभग आधा है। इस महाद्वीप की विशालता का प्रमाण इसके भाग से समुद्र तट की दूरी से लगाया जा सकता है। इसका कोई भी तक मध्यवर्ती भाग से 24000 किलोमीटर से अधिक दूर स्थित है। इस तथ्य ने एशिया महाद्वीप के विशाल भूखंड की जलवायु को महाद्वीपीय बना दिया है।

        विशाल स्थलीय प्रभाव के कारण वार्षिक तापांतर में भारी अंतर है (60° से 65° से०) और समुद्र की आर्द्र हवाएं आंतरिक भाग में पहुंचते-पहुंचते शुष्क हो जाती है जिससे न्यूनतम वर्षा होती है। इसके विस्तृत उत्तर भाग पर अति शीत, उष्ण और शुष्क जलवायु की उपस्थिति इसकी विशालता की देन है।

(ii) मध्यवर्ती उच्च भूमि- एशिया महाद्वीप की जलवायु पर, मध्य भाग में फैली हुई उच्च एवं विशाल पर्वत श्रेणियों का प्रभाव पड़ने के कारण महाद्वीप को दो भागों में बांटती है – उत्तरी एशिया एवं दक्षिण एशिया। ये विशाल पर्वत श्रेणियां हिन्द एवं प्रशांत महासागर की ओर से आने वाली जल से भरी हवाओं को उत्तर की ओर जाने से रोक देती है जिनके परिणामस्वरूप एशिया का मध्य एवं उत्तरी भाग वर्षा से वंचित रह जाता है। इसलिए ये भाग अत्यंत शुष्क रह जाते हैं। यही कारण है कि उच्च पर्वत श्रेणियों को विशाल पर्वतीय बाधा के नाम से पुकारा जाता है।

        एशिया की यह मानसूनी हवाएं इन विशाल पर्वतीय श्रेणियों से टकराकर एशिया के दक्षिण एवं दक्षिणी-पूर्वी भागों में वर्षा कर देती है और इस प्रकार एशिया का दक्षिणी तथा दक्षिणी-पूर्वी भाग संसार की सबसे अधिक वर्षा प्राप्त करता है।

                 एशिया महाद्वीप के मध्य भाग में स्थित पर्वत श्रेणीयां वर्षा के साथ-साथ इस क्षेत्र के तापमान के वितरण पर भी मुख्य रूप से प्रभाव डालती है। ये पर्वत श्रेणियां एशिया के उत्तरी तथा उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र से आने वाली बर्फीली हवाओं के लिए बाधक बन जाती है तथा इन हवाओं को दक्षिणी तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया में प्रवेश करने से रोकती है। फलस्वरुप दक्षिणी भागों में तापमान इतना अधिक गिरने नहीं पाता है जितना उत्तरी भाग में गिर जाता है। यही कारण है कि भारत और पाकिस्तान में सर्दियों में कुछ उत्तरी भागों में बर्फ नहीं जम जाती है जबकि एशिया के उत्तरी भागों में बर्फ जम जाती है। इस प्रकार ये पर्वत श्रेणियां दक्षिणी भागों में उच्च तापमान बनाए रखने में विशेष रूप से सहायक है तथा दूसरी ओर ये दक्षिण की से चलने वाली गर्म हवाओं को उत्तर की ओर आने से रोक देती है जिसके फलस्वरूप उत्तरी भाग सर्दियों में अधिक तापमान प्राप्त नहीं कर पाता है और अधिक ठंडा हो जाता है।

         अत्यधिक ठंड के कारण एशिया के उत्तर में स्थित आर्कटिक महासागर जम जाता है जिसके परिणामस्वरूप उत्तरी स्थलखंड  और भी अधिक ठंडे हो जाते हैं। यही कारण है कि उत्तरी एशिया का उत्तरी ध्रुवीय भाग अत्यधिक ठंडा होने के कारण विश्व का ‘शीत ध्रुव’ कहलाता है। स्पष्ट है कि ऊंची पर्वत श्रेणियों के कारण एशिया के जलवायु बहुत अधिक विषम हो गई है। पर्वतों के मध्य स्थित पठार वृष्टिछाया में पड़ने के कारण शीत एवं शुष्क है। तिब्बत का पठार, ईरान का पठार और अनातोलिया का पठार इसके अच्छे उदाहरण है।

(iii) अक्षांशीय विस्तार- एशिया की जलवायु को नियंत्रित करने में इसके अक्षांशीय विस्तार का प्रभाव भी महत्वपूर्ण है। महाद्वीप का विस्तार 10° दक्षिणी अक्षांश से 80° उत्तरी अक्षांश तक है। इसका अधिकांश भाग उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। महाद्वीप का उष्णकटिबंधीय भाग, जो विषुवत रेखा के पास स्थित है, उच्च तापमान और संवहनीय वर्षा प्राप्त करता है। चूँकि इस सम्भाग में द्वीपों की प्रधानता है। इसीलिए यहाँ की जलवायु विषुवतीय होते हुए भी प्रतिकूल नहीं है।

       एशिया का अधिकांश भाग समशीतोष्ण कटिबंध में स्थित है जिसके फलस्वरूप लगभग तीन-चौथाई भूखंड पर शीतोष्ण जलवायु का विस्तार है। उत्तरी भाग में साईबेरिया के छोर पर शीत कटिबन्धीय जलवायु पाई जाती है। इस प्रकार एशिया में तीनों कटिबन्धों की जलवायु उपस्थित है।

(iv) अन्य प्रभावकारी कारक- एशिया की जलवायु को प्रभावित करने में अन्य कारकों जैसे चक्रवात और समुद्री धाराओं का उल्लेख भी आवश्यक है।पछुआ हवा के साथ चलने वाले समशीतोष्ण चक्रवात यूरोप पार कर दो शाखाओं में बँट जाते हैं, प्रथम शाखा में चक्रवात साइबेरिया में पहुंचकर हिमपात करते हैं और दूसरी शाखा में चक्रवात काला सागर होते हुए तुर्की, ईरान, इराक, अफगानिस्तान में वर्षा करते हुए भारत पहुंच जाता है।

             भारत के उत्तरी में सर्दियों में वर्षा इन्हीं के आने पर होती है। ग्रीष्म काल में हिंद महासागर, प्रशांत महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से उठने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवात दक्षिणी तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया में वर्षा करते हैं और तूफान से भारी क्षति पहुंचाते हैं। चीन सागर में उठने वाला टाइफून भयंकर चक्रवात का उदाहरण है।

 निष्कर्ष-

         उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि एशिया महाद्वीप जलवायु के दृष्टिकोण से संपूर्ण विश्व का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रश्न प्रारूप 

2.  एशिया महाद्वीप की जलवायु की विशेषताओं का वर्ण करें।

अथवा एशिया के शीत एवं ग्रीष्म ऋतु की दशाओं का वर्णन कीजिये।

उत्तर- एशिया महाद्वीप संसार का सबसे विशाल महाद्वीप है। इसमें जलवायु संबंधी अनेक विषमताएँ मिलती है। उदाहरण के लिए संसार का सबसे गर्म भाग जैकोबाबाद तथा संसार का सबसे ठण्डा भाग बर्खोयांस्क इसी महाद्वीप में स्थित है।

        एशिया का दक्षिणी-पश्चिमी एवं मध्य भाग सबसे अधिक तापमान (लगभग 50° सेण्टीग्रेड) प्राप्त करता है जबकि उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्रों में लगभग नौ माह तक कठोर सर्दियाँ पड़ती है और तापमान हिमांक से बहुत नीचे गिर जाता है जो लगभग -50° सेण्टीग्रेड तक पहुँच जाता है। जलवायु की यह विषमता वर्षा के वितरण में भी पाई जाती है।

        संसार की लगभग 50% वर्षा केवल भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैण्ड, लाओस, कम्बोडिया, वियतनाम, इण्डोनेशिया, मलेशिया तथा फिलीपाइन द्वीपसमूह में हो जाती है। इन भागों में वर्षा का सामान्य औसत 250 सेण्टीमीटर से भी अधिक है जबकि एशिया के मध्य एवं दक्षिणी-पश्चिमी भाग वर्षा की कमी के कारण शुष्क एवं मरुस्थलीय हैं। इन भागों में वर्षा का सामान्य औसत 25 सेण्टीमीटर से भी कम है। एशिया महाद्वीप में जलवायु की इस विषमता के मिलने के दो कारण है – 

1. एशिया महाद्वीप की विशालता, 

2. एशिया महाद्वीप के मध्य भाग में उठी हुई पर्वत श्रेणियाँ

               सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणायन होने के कारण कटिबन्धीय विस्तार में परिवर्तन के साथ वायुदाब, वायु दिशा एवं वर्षा की मात्रा में भी परिवर्तन हो जाता है। सामान्य तौर पर यहाँ दो ऋतुयें पाई जाती है – शीत ऋतु एवं ग्रीष्म ऋतु।

शीत ऋतु जलवायविक दशाएँ

        एशिया की जलवायु में शीत ऋतु की दशाएं अधिक प्रभावकारी हैं। शीत ऋतु में सूर्य की किरणें उत्तरी गोलार्द्ध में तिरछी होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप एशिया के विस्तृत भाग में तापमान नीचे चला जाता है। इस अवधि में सम्पूर्ण उत्तरी भाग कम तापमान और ध्रुवीय हवाओं के प्रभाव के कारण शीत कटिबन्धीय हो जाता है।

          विस्तृत भाग का तापमान हिमांक के नीचे चला जाता है और सर्वत्र शुष्क प्रधान ध्रुवीय हवा का साम्राज्य स्थापित हो जाता है। मध्य एशिया की उच्च भूमि अपनी विशेषता के अनुरूप इसमें सहयोग देती है। परिणामस्वरूप आर्कटिक सागर से लेकर तिब्बत के पठार तथा यूरॉल से लेकर प्रशान्त तट कर का सम्पूर्ण भाग शीतल एवं शुष्क हवा के चपेट में आने के कारण कष्टदाई जलवायु का क्षेत्र बन जाता है।

             ध्रुवीय हवाओं की सघनता एवं शीतलता के कारण वायुमण्डलीय दाब बढ़ जाता है।इसे ठण्डी वायुराशि (Cold Airmass) कहा जाता है। इस ऋतु में अधिकतम वायुदाब का केन्द्र मध्य एशिया में केन्द्रित होता है। ध्रुवीय हवाओं के अतिक्रमण के कारण एशिया महाद्वीप पर अयन रेखीय कम वायुदाब की पेटी विलुप्त हो जाती है। मध्यवर्ती भाग पर अधिक वायुदाब  होने के कारण बहिर्मुखी स्थलीय हवाएं चारों ओर चलने लगती हैं जो शुष्क एवं ठण्डी होती हैं। इनके प्रभाव के कारण सम्पूर्ण उत्तरी भाग में शीत-शुष्क जलवायु का विस्तार हो जाता है।

          दक्षिण में हिमालय के अवरोध के कारण भारत में इनका प्रभाव नहीं हो पाता है, जबकि पूरब में इनका प्रवेश चीन की जलवायु को अत्यधिक प्रभावित करता है। जब ये हवाएं तटीय क्षेत्रों के पास पहुँचती हैं तो वाष्प ग्रहण कर तट की ओर मुड़ जाती है, जिससे दक्षिणी कोरिया, मंचूरिया, जापान, फिलीपीन्स आदि में वर्षा प्राप्त होती है।

       इसी प्रकार की स्थलीय हवा उत्तर भारत के अधिक दबाव क्षेत्र से बंगाल की खाड़ी की ओर चलती और मुड़कर कोरोमण्डल तट एवं श्रीलंका में वर्षा करती है। इसे जाड़े की मानसून के नाम से भी पुकारा जाता है। इनका विस्तार दक्षिण-पूर्व एशिया तक हो जाता है, जहाँ संवाहनिक हवाओं के साथ मिलकर ये भारी वर्षा करती हैं। शीत ऋतु में यूरोप पछुवा हवाओं और संलग्न चक्रवातों के प्रभाव में रहता है।

          जब ये चक्रवात यूरोप को पार कर साइबेरिया में प्रवेश करते हैं तो अत्यधिक वायुदाब की पेटी के अवरोध के कारण दो शाखाओं में विभक्त हो जाते हैं। एक शाखा के चक्रवात साइबेरिया और दूसरी शाखा के चक्रवात एशिया माइनर की ओर मुड़ जाते हैं।

        साइबेरिया की ओर जाने वाले चक्रवातों से हिम वर्षा होती है, जबकि एशिया माइनर की ओर आने वाले चक्रवात भूमध्यसागरीय तट के देशों में शीतकालीन वर्षा करते हुए पश्चिम एशिया के देशों जैसे ईरान, अफगानिस्तान के रास्ते भारत तक पहुँच जाते हैं और जाड़े की ऋतु में वर्षा करते हैं। इनका आगमन भारत में पूर्णतः अनिश्चित रहता है। 

          इस प्रकार कुछ लघु क्षेत्रों को छोड़कर जाड़े की ऋतु में सम्पूर्ण एशिया शुष्क रहता है। जाड़े में एशिया के मात्र कुछ क्षेत्र ही वर्षा प्राप्त कर पाते हैं। ऐसे क्षेत्रों में निम्नलिखित विशेष उल्लेखनीय हैं।

1. दक्षिणी-पूर्वी एशिया जहाँ संवाहनिक तरंगों के कारण वर्षा की प्राप्ति होती है। कुछ क्षेत्रों में तटवर्ती हवा के मुड़कर चलने के कारण भी वर्षा होती है जैसे – इण्डोचीन एवं मलाया में।

2. पूर्वी एशिया का तटीय भाग दक्षिणी कोरिया, जापान, पूर्वी चीन, फिलीपीन्स आदि जहाँ स्थलीय हवा के मुड़कर चलने के कारण जाड़े में वर्षा होती हैं। 

3. कोरोमण्डल तट एवं श्रीलंका में जाड़े की मानसून से वर्षा होती है। एशिया माइनर, पश्चिमी एशिया, दक्षिणी-पूर्वी एशिया एवं भारत में पश्चिमी चक्रवातों से वर्षा होती है।

ग्रीष्म कालीन दशाएं

       सूर्य के उत्तरायण होते ही ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है। तापमान में उत्तरोत्तर वृद्धि होने लगती है, जिससे अनेक वायुमण्डलीय स्थितियां परिवर्तित होने लगती है। जाड़े में जो उत्तरी भाग शीत कटिबन्ध बना हुआ था वह गर्म होकर समशीतोष्ण हो जाता है। 100 सेण्टीग्रेड की समताप रेखा टैगा के समानान्तर गुजरती है। तापमान की वृद्धि के फलस्वरूप वायुमण्डली दाब घट जाता है और न्यूनतम वायुदाब का क्षेत्र मध्य एशिया में विकसित हो जाता है। इस समय समुद्रों पर अधिक वायुदाब होता है।

          इसी समय भारतीय उपमहाद्वीप पर एक अन्य कम वायुदाब कि का क्षेत्र विकसित हो जाता है। इससे प्रभावित होकर समुद्री हवाएं आन्तरिक भागों की ओर चलने लगती है, जिनसे वर्षा होती है। इन हवाओं के कारण जहाँ दक्षिणी एवं पूर्वी एशिया में वर्षा होती है, वहीं पश्चिमी एशिया शुष्क रह जाता है। पूरब से चलने वाली लम्बी दूरी तय करने के कारण मध्य एशिया अथवा साइबेरिया में पहुँचते-पहुँचते ये शुष्क हो जाती है, जिससे बहुत कम वर्षा की प्राप्ति हो पाती है।

          भारतीय उपमहाद्वीप की ओर चलने वाली समुद्री हवा मानसून के नाम से जानी जाती है जो एक लघु अवधि में अत्यधिक वर्षा करती है। लेकिन इस प्रकार की मानसूनी हवा से वर्षा की मात्रा और सामयिक वितरण हमेशा अनिश्चित रहता है। इनके साथ जब ऊष्ण चक्रवात मिल जाते हैं तो मूसलाधार वर्षा के कारण बाढ़ और जलप्लावन से अपार धन-जन की हानि होती है। मानसूनी क्षेत्रों में सूखा और बाढ़ सबसे बड़ी आपदा हैं। ऐसे क्षेत्र दक्षिणी, दक्षिणी-पूर्वी और पूर्वी एशिया में स्थित है।

         एशिया में ग्रीष्म कालीन वर्षा शरद कालीन वर्षा से अधिक होती है। यही नहीं औसत वर्षा के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि अधिक वर्षा या सामान्य वर्षा प्राप्त करने वाले भाग कम और कम वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्र अधिक हैं। वर्षों की कमी के कारण यहाँ की जलवायु में बहुत अन्तर देखा जाता है। वर्षा की विषमता इस स्तर की है कि कहीं बाढ़ से लोग बह रहे होते हैं तो कहीं पानी के लिए तरसते है। 100 सेण्टीमीटर औसत वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्रों का प्रतिशत सम्पूर्ण एशिया के क्षेत्रफल के संदर्भ में बहुत कम है।

           एशिया की जलवायु को चरितार्थ करने वाली ऋतुओं के विवेचन से स्पष्ट है कि कि दोनों ऋतुओं में अतिशयता (Extremes) की प्रधानता है। तापमान एवं वर्षा की इस अतिशयता ने यहाँ के निवासियों की कठिनाइयों को बढ़ा दिया है। वार्षिक वर्षा के विश्लेषण से प्रकट होता है कि बहुत लघु क्षेत्र पर आवश्यकता के लिए वर्षा हो पाती है।

         वर्षा के अभाव में पश्चिमी भाग मरुभूमि सदृश्य है तो मध्यवर्ती और उत्तरी भाग स्टेपी घास का मैदान है। सुविधा सम्पन्न वनस्पति पैदा करने वाली जलवायु एशिया के दक्षिणी, दक्षिणी-पूर्वी एवं पूर्वी छोरों पर पाई जाती है, जो पर्याप्त वर्षा के कारण विकसित क्षेत्र है।का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और यहां वर्षा सवहनीय होती है।।

निष्कर्ष:

        उपर्युक्त ऋतुओं के विवेचन से स्पष्ट है कि दोनों ऋतुओं में अतिशयता की प्रधानता है। तापमान एवं वर्षा की इस अतिशयता ने एशिया निवासियों की कठिनाइयों को और बढ़ा दिया है। वार्षिक वर्षा के विश्लेषण से प्रकट होता है कि बहुत कम क्षेत्र पर आवश्यकता के लिये वर्षा हो पाती है। वर्षा के अभाव में पश्चिमी भाग मरुस्थल  और मध्यवर्ती उत्तरी भाग स्टेपी घास का मैदान है।

प्रश्न प्रारूप 

3. एशिया के जलवायवीय प्रदेश का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

अथवा एशिया को जलवायु विभागों में विभक्त कीजिए और उनमें से किन्हीं दो की जलवायु की विशेषताओं का विवेचन कीजिए।

उत्तर- एशिया महाद्वीप ग्लोब के लगभग एक-तिहाई भाग पर फैला हुआ है, अतः इस विशाल महाद्वीप में जलवायु में विविधता पायी जाती है। प्रो. कैसी ने लिखा है कि- “प्रायः सभी प्रकार की जलवायु एशिया महाद्वीप में पायी जाती है।” इस प्रकार इस महाद्वीप की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को ध्यान में रखकर यहाँ की जलवायु का वर्गीकरण अनेक जलवायुविदों ने किया है।

          विश्व स्तर पर जलवायु वर्गीकरण में इन विद्वानों ने अनेक प्रतीकों का प्रयोग किया है जिनके आधार पर ही एशिया की जलवायु का वर्गीकरण किया गया है। इनमें से कुछ मान्य वर्गीकरण निम्नलिखित हैं-

1. ब्लाडिमिर कोपेन का जलवायु वर्गीकरण

2. थर्नाथ्वेट का जलवायु वर्गीकरण

3. फिंच एवं ट्रिवार्था का जलवायु वर्गीकरण

 4. एल. डब्ल्यू. लायड का जलवायु वर्गीकरण

5. एल. डडले स्टाम्प का जलवायु वर्गीकरण 

6. सामान्य जलवायु वर्गीकरण

एशिया की जलवायु का सामान्य वर्गीकरण (General Climatic Division of Asia)

            उपर्युक्त विद्वानों का जलवायु वर्गीकरणों को ध्यान में रखते हुए एशिया की जलवायु का सामान्य परिचय प्राप्त करने के लिए हम एशिया को निम्नांकित जलवायु विभागों में बाँट सकते हैं :-

(1) भूमध्यरेखीय जलवायु- इस प्रकार की जलवायु मलाया, श्रीलंका और हिन्देशिया में पायी जाती है। यह प्रदेश भूमध्य रेखा के 5° उत्तर और 5° दक्षिण तक फैला हुआ है। इस जलवायु की सबसे बड़ी विशेषता वर्ष भर ऊँचा तापमान व प्रतिदिन वर्षा है।

        औसत वार्षिक तापमान 26° सेल्सियस रहता है। दैनिक तापमान अधिक-से-अधिक 30° सेल्सियस और कम-से-कम 25° सेल्सियस होता है। दैनिक तापान्तर न्यूनतम रहता है। यह प्रदेश उत्तरी-पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक आर्द्र हवाओं के मार्ग में पड़ता है जिससे यहाँ वर्ष भर वर्षा होती है। वर्षा का वार्षिक औसत 200 सेमीo से अधिक है। उष्ण-आर्द्र जलवायु के कारण यहाँ चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार वृक्ष पाये जाते हैं।

एशिया की जलवायु

(2) मानसूनी जलवायु- इस प्रकार की जलवायु पाकिस्तान, भारत, श्रीलंका, म्यांमार (बर्मा), थाइलैण्ड, हिन्दचीन, फिलीपाइन, फारमोसा और जापान आदि देशों में पायी जाती है। यहाँ गर्मी में तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है। कभी-कभी तापमान 40° सेल्सियस से भी ऊपर चला जाता है एवं वार्षिक व दैनिक तापान्तर अधिक होता है। सर्दी की ऋतु में कठोर सर्दी पड़ती है और उत्तरी भागों में तापमान 10° सेल्सियस एवं दक्षिणी भागों में तापमान 23° सेल्सियस के आसपास रहता है।

           ग्रीष्मकाल में यहाँ भयंकर गर्मी पड़ने के करण एशिया के मध्य से स्थल भाग काफी गरम हो जाते है, अत: वहाँ न्यून भार स्थापित हो जाता है। इस समय स्थल की अपेक्षा जल पर अधिक भार बना रहता है।

             अतः इस ऋतु के कारण एशिया के मध्य से स्थल भाग काफी गरम हो जाते हैं, अत: वहाँ न्यून भार स्थापित हो जाता है। इस समय स्थल की अपेक्षा जल पर अधिक भार बना रहता है। अत: इस ऋतु में हवायें जल से स्थलीय भाग की ओर चलती हैं एवं आर्द्र होती है जिससे इन आर्द्र हवाओं से वर्षा होती है। वर्षा की मात्रा एवं वितरण अनिश्चित होता है।

        दक्षिणी-पूर्वी चीन तट,भारत के पश्चिमी घाट एवं असम की पहाड़ियों पर वर्षा का औसत 500 सेमी. से अधिक है, वहीं उत्तरी-पश्चिमी भारत में 25 सेमी. से भी कम वर्षा होती है। यहाँ पतझड़ वनस्पतियाँ पायी जाती हैं।

(3) चीन तुल्य जलवायु- इस प्रकार की जलवायु का प्रमुख क्षेत्र उत्तरी चीन, दक्षिणी कोरिया एवं जापान द्वीप समूह है। यह भाग 30° उत्तरी अक्षांश से 45° उत्तरी अक्षांश के बीच मिलता है। गर्मियों में पर्याप्त गर्मी व सर्दियों में कठोर सर्दी इस जलवायु की मुख्य विशेषता है।

        गर्मियों में तापमान 28° सेल्सियस के लगभग रहता है। सर्दियों में मध्य एशिया से आने वाली बर्फीली हवाओं के कारण तापमान अत्यन्त कम हो जाता है जिससे बर्फ जम जाती है। ग्रीष्म काल में यहाँ मानसून हवाओं से बहुत वर्षा होती है। वर्षा का औसत 100 सेमी. तक होता है। ग्रीष्म ऋतु में उष्ण चक्रवात जिन्हें टाइफून कहते हैं, से घनघोर वर्षा होती है।

(4) उष्ण मरुस्थलीय जलवायु- इस प्रकार की जलवायु एशिया महाद्वीप के दक्षिणी-पश्चिमी भाग, सऊदी अरब, थार के मरुस्थलीय भागों, सीरिया एवं पश्चिमी इराक आदि क्षेत्रों में पायी जाती है। उच्च तापमान तथा शुष्कता यहाँ की जलवायु की प्रमुख विशेषता है। ग्रीष्म ऋतु में तापमान 50° सेल्सियस के आसपास रहता है तथा शीतकाल में तापमान 15° सेल्सियस तक पहुँचता है। शीतकाल की रात्रि में कभी-कभी तापमान हिमांक तक पहुँच जाता है। इस प्रकार की जलवायु में ग्रीष्मकाल में दिन गर्म एवं धूल भरी आँधियाँ एवं लू चलती है जबकि रात्रि के समय आकाश स्वच्छ रहता है एवं तापमान के गिर जाने के कारण रातें ठण्डी रहती हैं।

(5) भूमध्यसागरीय जलवायु- इस जलवायु को रूमसागरीय जलवायु के नाम से भी जाना जाता है। तुर्की, सीरिया, लेबनान, इजराइल, जार्डन, साइप्रस आदि भूमध्यसागरीय निकटवर्ती भागों में इस प्रकार की जलवायु पायी जाती है। ये देश एशिया महाद्वीप के पश्चिम में स्थित है।

         गर्मियों में बहुत गर्मी एवं सर्दियों में वर्षा इस जलवायु की सबसे बड़ी विशेषता है। ग्रीष्मकाल में वर्षा बहुत कम होती है। शीतकाल में चक्रवातों से वर्षा होती है, ग्रीष्मकाल में औसत तापमान 24° सेल्सियस एवं शीतकाल में 10° सेल्सियस रहता है। वर्षा का वार्षिक औसत 50 से 75 सेमी. तक रहता है।

(6) ईरान तुल्य जलवायु- ईरान, पूर्वी इराक एवं अफगानिस्तान में इस प्रकार की जलवायु पायी जाती है। गर्मियों में उच्च तापमान एवं शुष्कता तथा सर्दियों में कड़ी सर्दी इस ऋतु की मुख्य विशेषता है। गर्मियों में तापमान 45° सेल्सियस तक पहुँच जाता है और सर्दियों में तापमान 0° सेल्सियस से भी कम हो जाता है। रात्रि में ओस और कोहरा पड़ता है। औसत वार्षिक वर्षा 25 सेमी. है। वर्षा की कमी के कारण यह जलवायु प्रदेश शुष्क रह गया है।

(7) तूरान तुल्य जलवायु- इस प्रकार की जलवायु एशिया के आन्तरिक भाग में पायी जाती है। समुद्र से अधिक दूरी होने के कारण इस भाग पर सागरीय प्रभाव नगण्य है। अतः यह पूर्णतया महाद्वीपीय जलवायु है। तीव्र गर्मी, कड़ी सर्दी तथा अति न्यून वर्षा इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं। ग्रीष्मकाल में तापमान 40° सेल्सियस तक पहुँच जाता है एवं सर्दियों में तापमान हिमांक बिन्दु से नीचे गिर जाता है। वर्षा का वार्षिक औसत 20 सेमी. है। वर्षा केवल गर्मियों में होती है। शीत ऋतु में वर्षा बहुत कम होती है।

(8) मंचूरिया तुल्य जलवायु- मंचूरिया, उत्तरी जापान, उत्तरी कोरिया और सखालिन द्वीप में पायी जाने वाली जलवायु मंचूरिया तुल्य जलवायु कहलाती है। साधारण गर्मी, कठोर शीत एवं वार्षिक तापान्तर की अधिकता यहाँ की जलवायु की प्रमुख विशेषताएँ हैं। शीत ऋतु में साइबेरिया की ओर से आने वाली ठण्डी हवायें तापमान को गिरा देती हैं। ग्रीष्मकाल में औसत तापमान 22° सेल्सियस और औसत वार्षिक वर्षा 35 सेमी. प्राप्त होती है।

(9) तिब्बत तुल्य जलवायु- इस जलवायु प्रदेश का विस्तार तिब्बत व पामीर के पठारी भाग हैं। तिब्बत व पामीर के पठार समुद्र तल से 3500 मीटर से अधिक ऊँचे हैं। ये दोनों पठार चारों ओर से पर्वतों से घिरे हुए हैं। इस कारण यहाँ की जलवायु में अति विषमता पायी जाती है।

        गर्म व लघु ग्रीष्मकाल तथा कठोर व लम्बा शरदकाल इस जलवायु की प्रमुख विशेषता है। ग्रीष्मकाल में तापमान 20° सेल्सियस के निकट रहता है एवं शीतकाल में तापमान हिमांक बिन्दु से नीचे पहुँच जाता है। दैनिक तापान्तर बहुत अधिक पाया जाता है। सर्दियों में पाला पड़ता है। वर्षा गर्मियों में होती है। वर्षा का औसत 70 सेन्टीमीटर तक पाया जाता है।

(10) अल्टाई तुल्य जलवायु- एशिया महाद्वीप के मध्य भाग में अल्टाई पर्वतमाला के निकटवर्ती भागों में इस तरह की जलवायु पायी जाती है। सामान्य व लघु ग्रीष्मकाल तथा अति कठोर व लम्बा शीतकाल इस जलवायु की प्रमुख विशेषता है। ग्रीष्मकाल में तापमान 10° सेल्सियस के लगभग रहता है किन्तु शीतकाल में तापमान -25° तक पहुँच जाता है। सर्दियों में अत्यन्त शीतल व बर्फीली हवायें चलती जो चारों तरफ बर्फ जमा देती हैं। अधिकांश वर्षा ग्रीष्मकाल में होती है। वर्षा बर्फ व जल दोनों रूपों में होती है। वर्षा का वार्षिक औसत 100 सेमी. तक पाया जाता है।

(11) प्रेयरी तुल्य जलवायु- इस प्रकार की जलवायु को मध्य अक्षांशीय महाद्वीपीय या स्टेपी जलवायु के नाम से भी पुकारते हैं। यह जलवायु पश्चिमी साइबेरिया तथा मंगोलिया के घास के मैदानों में पायी जाती है। साधारण गर्मी तथा कठोर शीत इस ऋतु की प्रमुख विशेषता है।

         ग्रीष्मकाल में तापमान 24° सेल्सियस तक पाया जाता है। शीत ऋतु में बर्फीली तथा ठण्डी हवायें चलती हैं जिससे तापमान हिमांक बिन्दु से नीचे चला जाता है, कभी-कभी तापमान -50° सेल्सियस तक चला जाता है। विश्व का सबसे ठण्डा स्थान बर्खोयांस्क इसी जलवायु क्षेत्र में स्थित है। वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है जिसका वार्षिक औसत 40 सेमी. है। वर्षा से घास उग जाती है जिसे स्टेपी घास के नाम से जाना जाता है।

(12) टैगा तुल्य जलवायु- एशिया महाद्वीप के अत्यन्त ठण्डे प्रदेश साइबेरिया के उत्तरी क्षेत्र में स्थित कोणधारी टैगा वन प्रदेश में यह जलवायु पायी जाती है। ग्रीष्मकाल 3 माह एवं शीतकाल 9 माह की अवधि का होता है। ग्रीष्मकाल 5° सेल्सियस तक सामान्य तापमान रहता है जबकि शीतकाल में तापमान -50° सेन्ट्रीग्रेड तक पहुँच जाता है।

        शीत ऋतु बड़ी कठोर व दीर्घ अवधि वाली होती है। कठोर सर्दी के कारण यहाँ अत्यधिक सहन शक्ति वाले कोणधारी वन पाये जाते हैं। ग्रीष्मकाल में हल्की वर्षा होती है एवं शीत ऋतु में वर्षा बर्फ के रूप में होती है। वर्षा का वार्षिक औसत 50 सेमी. पाया जाता है।

(13) टुण्ड्रा तुल्य जलवायु- आर्कटिक महासागर के किनारे पर हिममण्डित क्षेत्र में इस प्रकार की जलवायु पायी जाती है। यह क्षेत्र वर्ष भ हिम से आवृत्त रहता है।

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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