27. Components of Environment and their Inter-relationship (पर्यावरण के घटक एवं उनका पारस्परिक संबंध)
Components of Environment and their Inter-relationship
(पर्यावरण के घटक एवं उनका पारस्परिक संबंध)
पर्यावरण (Environment) शब्द का तात्पर्य उस समस्त परिवेश से है जो किसी जीवित प्राणी को चारों ओर से घेरता है। इसमें प्राकृतिक, भौतिक, रासायनिक, जैविक तथा सामाजिक सभी परिस्थितियाँ शामिल होती हैं। प्रत्येक जीव पर्यावरण से संसाधन प्राप्त करता है और उसी में अपने जीवन-चक्र को पूर्ण करता है।
अतः पर्यावरण के विभिन्न घटकों और उनके परस्पर संबंधों का अध्ययन करना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यही संबंध पारिस्थितिक संतुलन (Ecological Balance) और सतत् विकास (Sustainable Development) के आधार होते हैं।
पर्यावरण के प्रमुख घटक (Components of Environment)
पर्यावरण को मोटे तौर पर चार मुख्य घटकों में विभाजित किया जाता है-
1. जैविक घटक (Biotic Components)
इनमें वे सभी जीवित तत्व शामिल हैं जो पर्यावरण में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सक्रिय हैं।
(i) उत्पादक (Producers):- जैसे हरे पौधे, शैवाल, जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन बनाते हैं।
(ii) उपभोक्ता (Consumers):- जैसे शाकाहारी, मांसाहारी एवं सर्वाहारी प्राणी।
(iii) अपघटक (Decomposers):- जैसे जीवाणु, फफूंद, जो मृत पदार्थों को विघटित कर पोषक तत्व पुनः मिट्टी में मिलाते हैं।
2. अजैविक घटक (Abiotic Components)
ये निर्जीव तत्व हैं, जो जीवन के लिए आधार प्रदान करते हैं।
(i) भौतिक तत्व- जल, वायु, मृदा, तापमान, प्रकाश, वर्षा, आर्द्रता।
(ii) रासायनिक तत्व- कार्बन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, फॉस्फोरस, सल्फर आदि।
(iii) भौगोलिक तत्व- स्थलाकृति, पर्वत, नदियाँ, महासागर आदि।
3. सामाजिक एवं सांस्कृतिक घटक (Social & Cultural Components)
मानव समाज ने अपनी सभ्यता, संस्कृति, परंपरा एवं तकनीकी विकास द्वारा पर्यावरण को प्रभावित किया है।
⇒ परिवार एवं समुदाय
⇒ शिक्षा, कला, भाषा
⇒ आर्थिक गतिविधियाँ
⇒ धार्मिक एवं सांस्कृतिक मान्यताएँ
4. निर्मित घटक (Man-made or Anthropogenic Components)
मानव द्वारा निर्मित कृत्रिम परिवेश को इस श्रेणी में रखा जाता है।
⇒ भवन, सड़कें, उद्योग, परिवहन
⇒ मशीनें, तकनीकी साधन
⇒ ऊर्जा स्रोत (विद्युत, कोयला, पेट्रोलियम आदि)
पर्यावरण के घटकों का पारस्परिक संबंध
पर्यावरण के घटक एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। किसी भी घटक में परिवर्तन पूरे पर्यावरणीय तंत्र को प्रभावित करता है।
1. जैविक और अजैविक संबंध
⇒ पौधे सूर्य के प्रकाश, जल और मृदा से पोषक तत्व लेकर भोजन बनाते हैं।
⇒ प्राणी इन पौधों पर निर्भर रहते हैं।
⇒ मृत जीव-जन्तु अपघटकों द्वारा विघटित होकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं।
⇒ यह एक चक्रिय संबंध (Cyclic Relationship) है।
2. जैविक और सामाजिक संबंध
⇒ मानव समाज भोजन, औषधि, ईंधन एवं अन्य संसाधन जीव-जंतुओं और पौधों से प्राप्त करता है।
⇒ पशुपालन, कृषि और मत्स्य पालन जैविक संसाधनों पर आधारित हैं।
⇒ मानव द्वारा वनों की कटाई या अत्यधिक शिकार से जैव विविधता खतरे में पड़ जाती है।
3. सामाजिक और अजैविक संबंध
⇒ मानव समाज जल, मृदा और खनिज जैसे अजैविक संसाधनों पर निर्भर है।
⇒ प्रदूषण और औद्योगिकीकरण ने इन घटकों को प्रभावित किया है।
⇒ उदाहरण : वायु प्रदूषण से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ, भूमि प्रदूषण से कृषि उत्पादन में कमी।
4. जैविक, अजैविक और निर्मित घटकों का संबंध
⇒ जैविक, अजैविक और निर्मित घटक आपस में गहरे रूप से जुड़े हुए हैं और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
⇒ जैविक घटक (पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव) जीवित तत्व हैं जो भोजन, ऊर्जा और पारिस्थितिकी तंत्र के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं।
⇒ अजैविक घटक (मिट्टी, जल, वायु, सूर्य का प्रकाश, तापमान) जीवों के अस्तित्व और विकास के लिए आवश्यक आधार प्रदान करते हैं। इनके बिना जैविक जीवन की कल्पना संभव नहीं है।
⇒ निर्मित घटक (भवन, सड़कें, उद्योग, तकनीकी संसाधन) मानव हस्तक्षेप से निर्मित होते हैं और जैविक-अजैविक घटकों पर निर्भर रहते हैं।
जैसे- उद्योग प्राकृतिक संसाधनों (जल, खनिज, ऊर्जा) का उपयोग करते हैं और जीवित प्राणियों पर प्रभाव डालते हैं।
इन तीनों का संबंध परस्पर आश्रय और प्रभाव का है। यदि किसी घटक में असंतुलन होता है तो अन्य घटक भी प्रभावित होते हैं। इस प्रकार ये तीनों घटक मिलकर पर्यावरणीय तंत्र का निर्माण और संरक्षण करते हैं।
निष्कर्ष
पर्यावरण केवल प्राकृतिक तत्त्वों का समूह नहीं है, बल्कि यह एक जटिल और परस्पर-निर्भर तंत्र है। जैविक, अजैविक, सामाजिक और निर्मित घटक आपस में जुड़कर जीवन को संभव बनाते हैं। यदि इन घटकों के बीच संतुलन बना रहता है, तो पारिस्थितिक तंत्र स्थायी और जीवनोपयोगी रहता है।
हलांकि असंतुलन होने पर प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता संकट जैसी समस्याएँ सामने आती हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति और समाज का यह दायित्व है कि वह पर्यावरणीय घटकों का संरक्षण करे और उनके बीच सामंजस्य बनाए रखे।