1. राजनीतिक भूगोल की प्रकृति, परिभाषा और कार्यक्षेत्र / Nature, Definition and Scope of Political Geography
1. राजनीतिक भूगोल की प्रकृति, परिभाषा और कार्यक्षेत्र
(Nature, Definition and Scope of Political Geography)
राजनीतिक भूगोल की प्रकृति, परिभाषा और कार्यक्षेत्र⇒
राजनीतिक भूगोल मानव भूगोल के अन्तर्गत एक विशिष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यदि मानव भूगोल पार्थिव पृष्ठभूमि के सन्दर्भ में मानव के बहुमुखी क्रियाकलापों का अध्ययन है, तो राजनीतिक भूगोल उन अनेक मानव क्रिया- कलापों में से राजनीतिक क्रियाकलापों की क्षेत्रीय व्याख्या है।
राजनीतिक भूगोल के सम्बन्ध में प्राचीन काल से ही विद्वान अपने मत प्रकट करते आए हैं। प्रारम्भिक विचारकों के मत पूर्णरूपेण राजनीतिक भूगोल पर केन्द्रित न होकर सामूहिक विचार अभिव्यक्ति के रूप में थे। काण्ट ने 1756 में व्यक्त किया कि राजनीतिक भूगोल राजनीतिक इकाइयों के सम्बन्ध एवं उनकी प्राकृतिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करता है। इसके पश्चात् अनेक विद्वानों ने राजनीतिक भूगोल को परिभाषित किया। यहां नीचे कुछ विद्वानों की परिभाषाएं दी जा रही हैं।
एन. जे. जी. पोण्ड्स के अनुसार- “राजनीतिक भूगोल राजनीतिक दृष्टि से संगठित क्षेत्रों, उनके संसाधनों, विस्तार एवं उन कारणों से सम्बन्धित है जिनसे एक विशिष्ट भौगोलिक स्वरूप का विकास होता है।”
एच. एच. स्प्राउट के अनुसार- “राजनीतिक भूगोल राजनीतिशास्त्र के एक क्षेत्र के रूप में है, क्योंकि राजनीतिशास्त्र की स्थापना प्रादेशिक भूगोल की आधारशिला पर हुई है।”
कार्लसन के अनुसार – “राजनीतिक भूगोल पृथ्वी एवं राज्य के अन्तर्सम्बन्ध का अध्ययन करता है, अतः यह राज्यों में भौगोलिक सम्बन्ध को व्यक्त करता है।”
डी. डिटलसी के अनुसार – “राजनीतिक भूगोल का सार तत्व राजनीतिक क्षेत्र है तथा किसी क्षेत्र का राजनीतिक महत्व उसके जलवायु, भूआकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों से सुस्पष्ट रूप से सम्बन्धित है।”
रिचार्ड हार्टशोर्न के अनुसार – “राजनीतिक भूगोल भिन्न- भिन्न स्थानों में विभिन्न राजनीतिक उपक्रमों को पृथ्वी तल पर व्याप्त विविध लक्षणों से सम्बन्धित कर अध्ययन करता है।”
गोलबेट के अनुसार – “राजनीतिक भूगोल मानव भूगोल का वह भाग है जिसमें उन राजनीतिक घटनाओं का अध्ययन किया जाता है, जिसका क्षेत्रीय सन्दर्भ हो, वैसे ही जैसे जीव विज्ञान जीवों का अध्ययन है।”
कोहेन के अनुसार – “राजनीतिक भूगोल वह विषय है। जो राजनीतिक घटनाओं का भौगोलिक विवेचन प्रस्तुत करता है। अन्य शब्दों में राजनीतिक भूगोल का उद्देश्य राजनीतिक घटनाओं की स्थानानुसार भिन्नताओं को स्पष्ट करना है।”
अलेक्जेण्डर के अनुसार – “राजनीतिक भूगोल धरातलीय लक्षणों के रूप में राजनीतिक प्रदेशों का अध्ययन है। इसके अन्तर्गत राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु मानव द्वारा विभिन्न प्रकार से क्षेत्र के संगठन का अध्ययन किया जाता है।
फाल्कनबर्ग तथा स्टोट्ज के अनुसार – “जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि राजनीतिक भूगोल राजनीतिक इकाइयों का भूगोल है तथा साथ ही यह राष्ट्रों के मध्य अन्तर्सम्बन्धों की भौगोलिक व्याख्या प्रस्तुत करता है।”
रिचार्ड मूर के अनुसार – “राजनीतिक भूगोल, राजनीतिक एवं भौगोलिक उपक्रमों के मध्य स्थानगत अथवा क्षेत्रीय अन्तर्सम्बन्ध को स्पष्ट करता है।”
ए. ई. मूडी के अनुसार – “राजनीतिक भूगोल का अध्ययन मुख्यतः वर्तमान दशाओं से सम्बन्धित होता है, किन्तु भूतकालीन घटनाओं को आज अवस्थित स्वरूप के परिवर्तन के रूप में ध्यान में रखा जाता है।”
जे. आर. बी. प्रेसकॉट के अनुसार- “राजनीतिक भूगोल राजनीतिक निर्णयों एवं क्रियाओं से उत्पन्न भौगोलिक परिणामो से सम्बन्धित है तथा उन सभी भौगोलिक तत्वों को इसमें यथोचित मान्यता प्रदान की जाती है जो राजनीतिक क्रियाओं को प्रभावित करते हैं।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि राजनीतिक भूगोल की प्रकृति से सम्बन्धित स्पष्ट रूप से तीन दृष्टिकोणों का उल्लेख किया जा सकता है। ये सम्बन्ध के अध्ययन के रूप पारिस्थितिकी दृष्टिकोण, क्षेत्रीय एवं स्थानिक दृष्टिकोण तथा संगठनात्मक अथवा आचरणात्मक दृष्टिकोण हैं।
राजनीतिक भूगोल का कार्यक्षेत्र
किसी भी विषय का अध्ययन का वर्णन उसकी विषय वस्तु अथवा कार्यक्षेत्र होता है अर्थात् अध्ययन हेतु क्या सम्मिलित किया जाए और क्या नहीं? किसी भी विज्ञान को सीमाबद्ध करना आवश्यक होता है। क्रमबद्ध विज्ञान की शाखा अथवा भूगोल की विभिन्न शाखाओं के अनुरूप राजनीतिक भूगोल मुख्यतः एक प्रासंगिक अध्ययन है। इसके अन्तर्गत अध्ययन प्रसंग राजनीतिक दृष्टि से संगठित क्षेत्र अथव राज्य है। राजनीतिक क्षेत्र वह क्षेत्र है जिसमें सर्वत्र एक अथव एक से अधिक स्वरूप की राजनीतिक घटनाएं पाई जाती हैं। राजनीतिक घटनाएं वे हैं, जो राजनीतिक लक्षणों से सम्बन्धित हैं तथा जिनका उद्भव राजनीतिक विचारों में निहित शक्तियों के कारण होता है।
राजनीतिक भूगोल के अन्तर्गत राजनीतिक भूदृश्य प्रारूप का विश्लेषण तथा विवरण प्रस्तुत किया जाता है, जो सम्पूर्ण सांस्कृतिक भूदृश्यावली का अंश है अथवा इसमें राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु धरातलीय क्षेत्र के संगठित प्रयोग का अध्ययन किया जाता है। यदि सम्पूर्ण मानव निर्मित भूदृश्यावली का वर्गीकरण विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति तथा उपयोग के आधार पर किया जाए तो राजनीतिक भूदृश्यावली के अन्तर्गत दृश्यमान तत्व सम्भवतः अल्पतम् तथा आर्थिक भूदृश्यावली के तत्व अधिकतम होंगे।
संक्षेप में राजनीतिक भूगोल का अध्ययन क्षेत्र निम्नांकित है:-
(1) राजनीतिक भूगोल के अन्तर्गत राजनीतिक राज्य का सम्पूर्ण अध्ययन किया जाता है।
(2) राज्य में स्थित प्राकृतिक संसाधन जो राज्य की जनसंख्या को प्रश्रय देता है तथा अन्य कार्यों को पूर्ण करता है।
(3) राज्य में निवास करने वाली जनसंख्या का सामाजिक एवं प्रजातीय स्वरूप राज्य की आन्तरिक प्रशासन व्यवस्था को प्रभावित करता है। अतः राजनीतिक भूगोल के अन्तर्गत जनसंख्या, भाषा, जाति, धर्म, आदि का अध्ययन किया जाता है।
(4) राज्य आन्तरिक साधनों के साथ-साथ अन्य राज्यों से प्राप्त संसाधनों पर भी आधारित रहता है। अतः इन्हें प्राप्त करने के लिए विभिन्न समझौतों को करना पड़ता है। ये समझौते विभिन्न कारणों से किए जाते हैं। अतः राजनीतिक भूगोल में इन समझौतों का भी अध्ययन किया जाता है।
(5) राजनीतिक निर्णयों में भौगोलिक उपक्रम महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः इनका भी अध्ययन किया जाता है।
(6) राजनीतिक भूगोल में निर्वाचन से सम्बन्धित तथ्यों का भी अध्ययन किया जाता है।
(7) राजनीतिक भूगोल उन क्षेत्रों का भी अध्ययन करता है जो राजनीतिक दृष्टि से संगठित नहीं हैं, फिर भी किसी भी प्रकार से राजनीतिक घटना से सम्बन्धित होते हैं तथा भविष्य के सम्भावित राजनीतिक क्षेत्र हो सकते हैं।