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CLIMATOLOGY(जलवायु विज्ञान)BA SEMESTER-IPG SEMESTER-1

1. थार्नथ्वेट का जलवायु वर्गीकरण / Climatic Classification Of Thornthwaite

 1. थार्नथ्वेट का जलवायु वर्गीकरण

(Climatic Classification Of Thornthwaite)


थार्नथ्वेट का जलवायु वर्गीकरण ⇒

थार्नथ्वेट का जलवायु वर्

         थार्नथ्वेट एक अमेरिकी मौसम वैज्ञानिक थे जिन्होंने कोपेन के जलवायु वर्गीकरण की आलोचना करते हुए एक वैकल्पिक जलवायु वर्गीकरण की योजना प्रस्तुत की। वर्तमान समय में कोपेन के जलवायु वर्गीकरण की तुलना में थार्नथ्वेट के वर्गीकरण को अधिक मान्यता प्राप्त है। थार्नथ्वेट ने अपना जलवायु वर्गीकरण अनुसंधान प्रपत्रों के माध्यम से (1931, 1948) प्रस्तुत किया। लेकिन सर्वाधिक मान्यता 1948 में प्रस्तुत जलवायु वर्गीकरण की योजना महत्त्व रखता है। 1948 ई० में प्रस्तुत योजना “ज्योग्राफिकल रिव्यू” नामक पत्रिका में “An approach towards a rational classification of climate” नामक शीर्षक से प्रस्तुत किया।

जलवायु वर्गीकरण का आधार

        थार्नथ्वेट ने अपना जलवायु वर्गीकरण हेतु वनस्पति, तापमान और वर्षा को आधार बनाया। थार्नथ्वेट के अनुसार वनस्पति जलवायु का वायुदाब (बैरोमीटर) मापक यंत्र होता है। अर्थात वनस्पति की विशेषता को जानने के लिए तापमान एवं वर्षा के उन गुणों को जानना आवश्यक है जो वनस्पति के विकास, उनके प्रकार एवं विशेषताओं को निर्धारित करता है।

          थॉर्नथ्वेट ने कहा है कि जलवायु वर्गीकरण हेतु जलवायु के कार्यिक (Functional) अध्ययन आवश्यक है। क्योंकि वर्षा और तापमान की संपूर्ण मात्रा वनस्पतियों के विशेषताओं के निर्धारक नहीं होते है। अतः जलवायु के कार्यिक अध्ययन तापमान एवं वर्षा के प्रभावोत्पादकता के आधार पर किया जाना चाहिए। वर्षा एवं तापमान की प्रभावोत्पादकता को जानने के लिए वाष्पोत्सर्जन का अध्ययन आवश्यक है। अतः यह कहा जा सकता है कि थॉर्नथ्वेट के अनुसार जलवायु का मुख्य आधार वाष्पोत्सर्जन की क्रिया है न कि प्रत्यक्षता वनस्पति, वर्षा और तापमान है।

         वाष्पोत्सर्जन एक जटिल प्रक्रिया है। यह मृदा के नमी और भूमिगत जल स्तर के द्वारा निर्धारित होता है। दूसरी ओर वाष्पोत्सर्जन क्रिया भी मृदा के नमी, भूमिगत जल स्तर, वनस्पति और कृषि को भी निर्धारित करता है। थॉर्नथ्वेट महोदय ने वाष्पोत्सर्जन से सम्बंधित ऐसे चार कसौटियों का पहचान किया है जो जलवायु के निर्धारण में सहायक है। ये चारों कसौटियाँ निम्न प्रकार से है-

(i) नमी /आर्द्रता पर्याप्तता

(ii) तापीय दक्षता

(iii) नमी पर्याप्तता में मौसमी विषमता

(iv) तापीय दक्षता का ग्रीष्म ऋतु में केंद्रीयकरण

         ऊपर के चारों कसौटियों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि तीसरा कसौटी पहला से और चौथा कसौटी दूसरा से संबंधित है। थॉर्नथ्वेट ने यह भी बताया कि प्रथम दो कसौटी वार्षिक परिस्थितियों को बताता है जबकि अंतिम दो कसौटी मौसमी एवं मासिक परिस्थितियों को बताता है।

जलवायु वर्गीकरण की प्रणाली एवं योजना

        थॉर्नथ्वेट महोदय उपरोक्त चारों कसौटियों को आधार मानकर अपना जलवायु वर्गीकरण प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने वर्गीकरण में सांख्यिकी विधियों का प्रयोग कर इसे अधिक वैज्ञानिक स्वरूप देने का प्रयास किया। इन्होंने ने भी जलवायु वर्गीकरण में कोपेन की भाँति सांकेतिक अक्षरों का प्रयोग किया लेकिन कोपेन के सांकेतिक अक्षर जलवायु के प्रत्यक्ष विशेषता को प्रकट करता है जबकि थॉर्नथ्वेट के संकेतिक अक्षर जलवायु के अप्रत्यक्ष गुणों को स्पष्ट करता है।

         थॉर्नथ्वेट ने जलवायु वर्गीकरण हेतु “संभावित वाष्पोत्सर्जन सूचक” को विकसित किया। इसका परिष्कृत मान cm से होगा। थॉर्नथ्वेट ने संभावित वाष्पोत्सर्जन इसलिए ज्ञात करने का प्रयास किया  क्योंकि वाष्पोत्सर्जन का वास्तविक मान कभी भी ज्ञात नहीं किया जा सकता। उन्होंने संभावित वाष्पोतर्जन निकालने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया है। जैसे-

PE=1.6 (10 t/i)a cm.

जहाँ

PE = संभावित वाष्पोत्सर्जन

t = डिग्री सेंटीग्रेड में वार्षिक औसत तापमान

i = प्रत्येक महीने के तापमान के योग का 1/5वाँ भाग

a = यह नियतांक है जिसका मान 1.514 होगा।

        संभावित वाष्पोत्सर्जन सूचकांक की मदद से उन्होंने नमी पर्याप्तता सूचक विकसित किया ताकि पूरे पृथ्वी पर “आर्द्रता प्रदेश” का निर्धारण किया जा सके। थॉर्नथ्वेट के अनुसार प्रत्येक आर्द्रता प्रदेश से एक विशिष्ट जलवायु का सूचक होगा। आर्द्रता प्रदेश के निर्धारण हेतु उन्होंने नमी पर्याप्तता सूचक निम्नलिखित सूत्र के माध्यम से ज्ञात किया है:-

Im= 100 P/PE-1

जहाँ :-

Im = नमी पर्याप्तता सूचक

P = वार्षिक वर्षा cm में

PE = संभावित वाष्पोत्सर्जन

      नमी पर्याप्तता सूचकांक के मदद से विश्व को उन्होंने 9 आर्द्रता प्रदेश या उपजलवायु क्षेत्र  में बाँटा:-

क्रम संकेत आर्द्रता प्रदेश या

उपजलवायु क्षेत्र

Im का मान (आर्द्रता सूचकांक)
1. A अति आर्द्र जलवायु 100 तथा उससे अधिक
2. B4 आर्द्र जलवायु आर्द्र जलवायु 80-100
3. B3 आर्द्र जलवायु 60-80
4. B2 आर्द्र जलवायु 40-60
5. B1 आर्द्र जलवायु 20-40
6. C2 नमी युक्त उपार्द्र जलवायु 0-20
7. C1 शुष्क उपार्द्र जलवायु -33.3 से 0
8. D अर्द्ध मरुस्थलीय जलवायु -66.7 से -33.3
9. E मरुस्थलीय जलवायु -100 से -66.7
              
        थॉर्नथ्वेट ने दूसरी कसौटी अर्थात तापीय दक्षता के आधार पर जलवायु प्रदेशों को उप जलवायु प्रदेशों में बाँटा। तापीय दक्षता का भी निर्धारण संभावित वाष्पोत्सर्जन सूचकांक के आधार पर उन्होंने किया था। उन्होंने तापीय दक्षता के आधार पर विश्व जलवायु को 9 प्रदेश या उप जलवायु प्रदेश में बाँटा:-
क्रम संकेत

तापीय दक्षता प्रदेश

या उप जलवायु क्षेत्र

PE का मान
1. A’ अति गर्म / उष्ण जलवायु 114 तथा उससे अधिक
2. B’4 गर्म जलवायु 99.7 से 114
3. B’3 गर्म जलवायु 85.5 से 99.7
4. B’2 गर्म जलवायु 71.2 से 85.5
5. B’1 गर्म जलवायु 57.0 से 71.2
6. C’2 न्यून उष्ण जलवायु 42.7 से 57.0
7. C’1 न्यून उष्ण जलवायु 28.5 से 42.7
8. D’ टुन्ड्रा जलवायु 14.2 से 28.5
9. E’ हिमाच्छादित जलवायु 14.2 से कम

          थॉर्नथ्वेट महोदय ने यह भी बताया है कि वार्षिक वर्षा और वार्षिक तापमान किसी भी जलवायु प्रदेश के अंदर पाई जाने वाली मौसमी विशेषता को स्पष्ट नहीं करता है। इसलिए थॉर्नथ्वेट महोदय ने आर्द्रता प्रधान वाले जलवायु क्षेत्र के लिए शुष्कता सूचक और शुष्क जलवायु प्रदेश के लिए आर्द्रता सूचक विकसित किया है।

       शुष्कता सूचक A से लेकर C2 तक के लिए और आर्द्रत सूचक C1 से लेकर E तक लागू होता है। थॉर्नथ्वेट ने ऐसा करने के पीछे तर्क यह दिया कि A से लेकर C2 तक वाले जलवायु क्षेत्र में नमी की कमी नहीं होती है। लेकिन कुछ ऐसे महीने हो सकते हैं जो शुष्क हो। इसी तरह C1 से लेकर E तक वाले जलवायु क्षेत्र में कुछ महीने ऐसे हो सकते हैं। जहाँ हल्की वर्षा या आकस्मिक वर्षा के कारण ही उपलब्ध हो जाती हो।  इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर उन्होंने मौसमी विभिन्नता को स्पष्ट करने हेतु तीसरे चरण का उपयोग किया। जैसे:-

A से C2 के लिए शुष्कता सूचक तालिका

क्रम सांकेतिक अक्षर  आर्द्रता का स्तर  शुष्कता सूचक 
1. r आर्द्रता की कमी कभी नहीं  0-10
2. s ग्रीष्म ऋतु में आर्द्रता की सामान्य कमी  10-20
3. w जाड़े की ऋतु में आर्द्रता में सामान्य कमी  10-20
4. s2 ग्रीष्म ऋतु में आर्द्रता में भारी कमी  20 से अधिक 
5. w2 जाड़े की ऋतु में आर्द्रता की भारी कमी  20 से अधिक 
C1 से लेकर E तक के लिए आर्द्रता सूचक तालिका 
क्रम  सांकेतिक अक्षर  शुष्कता का स्तर  आर्द्रता सूचक 
6. d किसी भी महीने में आर्द्रता की कमी नहीं  0-16.7
7. s जाड़े की ऋतु में अतिरिक्त  16.7-33.3
8. w ग्रीष्म ऋतु में अतिरिक्त आर्द्रता  16.7-33.3
9. s2 जाड़े की ऋतु में बहुत अधिक आर्द्रता  33.3 से अधिक 
10. w2 ग्रीष्म ऋतु में बहुत अधिक आर्द्रता  33.3 से अधिक 
                 
        थॉर्नथ्वेट महोदय ने यह भी बताया है कि औसत तापीय दक्षता का सर्वाधिक प्रभाव ग्रीष्म ऋतु में होता है अर्थात चौथे कसौटी के आधार पर थॉर्नथ्वेट ने कहा है कि तापीय दक्षता को केंद्रीयकरण ग्रीष्म ऋतु में होता है। अतः तापीय दक्षता का मापन थॉर्नथ्वेट ने प्रतिशतता के रूप में व्यक्त करते हुए एक और तालिका का विकास किया है जो ग्रीष्म ऋतु में तापीय दक्षता के केंद्रीयकरण को स्पष्ट करता है। 
क्रम  सांकेतिक अक्षर  गर्मी ऋतू में कुल तापीय दक्षता का प्रतिशत 
1. a’ 48% से कम 
2. b’4 48 – 51.9
3. b’3 51.9 – 56.3
4. b’2 56.6 – 61.6
5. b’1 61.6 – 68 
6. C’2 68 – 76.3
7. C’1 76.3 – 88
8. d’ 88 से अधिक 
               
     थॉर्नथ्वेट ने उपरोक्त चारों को कसौटियों के आधार पर विश्व की जलवायु को वर्गीकृत किया है। प्रथम दो कसौटियों के आधार पर उन्होंने आर्द्रता प्रदेश और तापीय दक्षता प्रदेश का निर्धारण किया। प्रथम और द्वितीय तालिका से स्पष्ट है कि पूरे विश्व को 9 आर्द्रता प्रदेश और 9 तापीय दक्षता प्रदेश में वर्गीकृत है। पुनः अंतिम दो कसौटियों के आधार पर सूक्ष्म स्तर पर जलवायु क्षेत्रों का विश्लेषण करने का प्रयास किया है। थॉर्नथ्वेट ने बताया है कि उपरोक्त चारों कसौटियों के आधार पर पूरे विश्व को 120 जलवायु क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है। लेकिन सभी का वर्णन करना संभव नहीं है। इसे कुछ उदाहरण से ही स्पष्ट किया जा सकता है। जैसे :-

(1) C1B’1da’ – भूमध्यसागरीय जलवायु या सन फ्रांसिस्को प्रकार की जलवायु

(2) C2C’2rb’1 – महाद्वीपीय या मास्को प्रकार की जलवायु

(3) EA’da’ – आंतरिक उष्ण मरुस्थलीय जलवायु या एलिस स्प्रिंग प्रकार की जलवायु

आलोचना

वर्षा और तापमान के द्वारा उत्पन्न प्रभावो-उत्पादकता का सही मूल्यांकन संभव नहीं हैं। थॉर्नथ्वेट महोदय ने इस तथ्य को स्वीकार करते हुए संभावित वाष्पोत्सर्जन शब्द का उपयोग किया है जिससे स्पष्ट होता है कि इनका भी वर्गीकरण अनुमानों पर आधारित है।

◆ यह एक जटिल वर्गीकरण की योजना है जिसमें कई सांख्यिकीय विधियों तथा तालिकाओं का प्रयोग किया गया है।

◆ ट्रीवार्था महोदय ने इनका आलोचना करते हुए कहा है कि थॉर्नथ्वेट ने अपने वर्गीकरण में उच्चावच का कोई महत्व नहीं दिया है।

◆ थॉर्नथ्वेट द्वारा प्रस्तावित जलवायु वर्गीकरण की योजना के आधार पर जलवायु क्षेत्र का निर्धारण तभी संभव है जब अति लघु सर पर आँकड़े उपलब्ध हो।

◆ थॉर्नथ्वेट में तापमान एवं वर्षा को अधिक महत्व नहीं दिया है। लेकिन वास्तविकता यह है कि अधिकतर फसलों के चयन में वर्षा एवं तापमान को अधिक महत्व दिया जाता है।

निष्कर्ष

       ऊपर वर्णित खामियों के बावजूद थॉर्नथ्वेट की योजना सर्वाधिक विश्वसनीय योजना मानी जाती है क्योंकि इस योजना के मदद से भूमिगत जल स्तर का निर्धारण, जल प्रबंधन और वानिकी जैसे कार्यों को नई दिशा प्रदान की जा सकती है। 1949 ई० में यूएसए के नवीन कृषि नीति में थॉर्नथ्वेट के जलवायु वर्गीकरण को विशेष महत्त्व दिया गया था। अतः इससे स्पष्ट होता है कि इनका जलवायु वर्गीकरण की विश्वसनीयता बरकरार है।

♦उत्तर लिखने का दूसरा सरल तरीका♦….

       सी. डब्ल्यू. थार्नथ्वेट नामक अमेरिकन जलवायु विज्ञानी ने अपने जलवायु वर्गीकरण की रूपरेखा को 1931 में प्रस्तुत किया। यह वर्गीकरण उत्तरी अमेरिका को आधार बनाकर प्रस्तुत किया गया था। 1933 में इन्होंने इसी वर्गीकरण को आधार बनाकर सम्पूर्ण विश्व को विभिन्न प्रकार के जलवायु प्रदेशों में विभक्त किया। थार्नथ्वेट का वर्गीकरण भी कोपेन के वर्गीकरण से साम्यता रखता है, क्योंकि

(i) कोपेन की भांति थार्नथ्वेट ने भी जलवायु प्रदेशों का सीमांकन मात्रात्मक विधि से किया।

(ii) यह वर्गीकरण भी वनस्पति पर आधारित है।

(iii) विभिन्न जलवायु प्रकारों को कोपेन की भांति ही अक्षरों के संयोगों द्वारा प्रदर्शित किया गया है।

1931 में प्रस्तुत जलवायु वर्गीकरण

        कोपेन की भांति थार्नथ्वेट का भी यह मानना था कि वनस्पति जलवायु की सूचक होती है तथा वनस्पति वर्षा की मात्रा, तापमान एवं वाष्पीकरण से प्रभावित होती है। थार्नध्वेट ने आंकड़ों की सहायता से वर्षण-वाष्पीकरण सूचक तैयार कर आर्द्रता प्रदेशों (Humidity Provinces) का निर्धारण किया। ये ही आर्द्रता प्रदेश उसके जलवायु वर्गीकरण में प्रथम क्रम के जलवायु प्रदेश बने।

       1931 में थार्नथ्वेट द्वारा प्रस्तुत जलवायु वर्गीकरण वर्षण प्रभाविता (Rainfall Effectiveness) और तापीय दक्षता (Temperature Efficiency) पर आधारित था । वर्षण प्रभावित अनुपात (Ratio) या P/E Ratio ज्ञात करने के लिए कुल मासिक वर्षा को कुल मासिक वाष्पीकरण से विभाजित कर देते हैं तथा 12 महीनों के वर्षण प्रभाविता अनुपात (P/E Ratio) का योग करके वर्षण प्रभाविता सूचक (P/E Index) प्राप्त किया जाता है।

P/E Ratio वर्षण प्रभाविता अनुपात = 11.5 (P/T- 10) 10/9

P = औसत मासिक वर्षण (इंचों में)

T = औसत मासिक तापमान (डिग्री फारेनहाइट में)

        इस सूत्र की सहायता से थार्नथ्वेट ने विश्व को 5 आर्द्रता प्रदेशों में बांटा जिनके बीच की सीमाएं संख्यात्मक रूप से ज्ञात की गईं। ये पांच आर्द्रता प्रदेश विश्व के पांच बड़े वानस्पतिक प्रदेशों यथा वर्षा प्रचुर वन (Rain Forest), वन (Forest), घास के मैदान (Grass land), स्टेपी (Steppe) और मरुस्थल (Desert) से सम्बन्धित है।

        P/E सूचक की भांति ही थार्नथ्वेट ने तापमान दक्षता सूचक (T/ E Ratio) का परिकलन (T – 32) / 4 सूत्र की सहायता से किया। इस सूत्र में T = औसत मासिक तापमान डिग्री फारेनहाइट में है।

        P/E सूचक और T/E सूचक तथा वर्षण के मौसमी वितरण के आधा पर थार्नथ्वेट ने विश्व को 32 जलवायु प्रकारों में विभाजित किया।

आर्द्रता और तापमान पर आधारित जलवायु प्रदेश तथा वर्षण का मौसमी वितरण

आर्द्रता पर आधारित जलवायु प्रदेश

अक्षर/संकेत आर्द्रता प्रदेश वनस्पति का प्रकार वर्षण प्रभाविता सूचकांक
A अत्यधिक आर्द्र वर्षा प्रचुर वन  128 से अधिक 
B आर्द्र वन 64-127
C उपआर्द्र  घास का मैदान 32-63
D अर्द्ध शुष्क  स्टेपी 16-31
E शुष्क मरुस्थल  16 से कम

तापमान पर आधारित जलवायु प्रदेश

अक्षर/संकेत तापमान प्रदेश तापीय दक्षता सूचकांक
A’ उष्णकटिबन्धीय 128 एवं अधिक
B’ समशीतोष्ण कटिबन्ध 64-127
C’ शीतोष्ण कटिबन्ध 32-63
D’ टैगा 16-31
E’ टुन्ड्रा 1-15
F’ हिमाच्छादित 0

वर्षण का मौसमी वितरण

r = सभी ऋतुओं में प्रचुर वर्षा

s = ग्रीष्म में वर्षा की कमी

w = ऋतु शीत ऋतु में वर्षा की कमी

d = सभी ऋतुओं में वर्षा की कमी

थार्नथ्वेट का विश्व का 32 जलवायु प्रकार

AA’r BA’r. CA’r DA’w EA’d D’   E’  F’
AB’r BA’w CA’w DA’d EB’d
AC’r BB’r CA’d DB’w EC’d
BB’w CB’r DB’s
BB’s CB’w DB’d
BC’s CC’r
BC’r CB’d
CB’s  DC’d
CC’s
CC’d

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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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