5. एशिया का कृषिगत जलवायु प्रदेश / Aagro-Climatic Region of Asia
5. एशिया का कृषिगत जलवायु प्रदेश
(Aagro-Climatic Region of Asia)
एशिया का कृषिगत जलवायु प्रदेश⇒
प्रश्न प्रारूप
1. एशिया को कृषि प्रदेशों में विभक्त कीजिए और उनकी विशेषताओं का संक्षेप में वर्णन करें।
अथवा
एशिया को प्रमुख कृषिगत जलवायु का वर्णन करें।
उत्तर- किसी भी प्रदेश के जलवायु नियंत्रक तत्वों की भिन्नता के कारण वहाँ के धरातल की बनावट, प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मानव जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। विभिन्न जलवायुगत विशेषताओं से युक्त प्रदेश एक अलग इकाई का निर्माण करते हैं। एशिया को निम्नलिखित कृषिगत जलवायु प्रदेशों में बांटा जा सकता है-
1. भूमध्यवर्ती प्रदेश- इस प्रदेश में इण्डोनेशिया, मलेशिया तथा श्रीलंका शामिल किये जाते है। इसका विस्तार 10° उत्तर से 10° दक्षिण अक्षांश तक पाया जाता है। इस प्रदेश में वर्षभर सूर्य की किरणें लम्बवत पड़ती है, अत: सालभर अत्यधिक गर्मी पड़ती है। यहाँ वर्षा का औसत तापमान 26°C रहता है तथा यहाँ का ताप परिसर 1° रहता है। दैनिक ताप परिसर 9° तक रहता है। अत्यधिक गर्मी के कारण यहाँ पर अल्पवायु दाब अधिक विकसित होते हैं तथा संवहनीय वर्षा अधिक होती है। यहाँ वायु की आर्द्रता तथा बादल की मात्रा वर्षभर अधिक होती है।
इस प्रदेश की असमान जलवायुगत विशेषतायें मानव विकास में बड़ी बाधक है। इसका आर्थिक विकास नहीं हो पाया है। कई भागों में जनसंख्या अधिक है। इस प्रदेश के भिन्न-भिन्न भागों के मानव-जीवन में बड़ा अन्तर है। जहाँ घने वन है वहाँ के निवासी असभ्य है और इनका मुख्य उद्यम जानवरों का शिकार, मछली पकड़ना तथा जंगलों से हाथी दाँत, फल तथा रबड़ आदि वस्तुओं को एकत्र करना है। परन्तु जिन भागों में जंगलों को काट दिया गया है वहाँ आधुनिक प्रकार की कृषि विकसित की गयी है।
2. मानसूनी प्रदेश- यह प्रदेश 7° उत्तर से 30° उत्तरी अक्षांश तक एशिया के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित है। इसके अन्तर्गत भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वर्मा, थाईलैण्ड, कम्बोडिया, लाओस, वियतनाम, फिलिपाइन तथा चीन शामिल है। इस प्रदेश में ग्रीष्म ऋतु शुष्क और शीत ऋतु साधारण गर्म होती है। ग्रीष्म काल के आरम्भ में 37°C से भी अधिक तापमान होता है। किन्तु सभी स्थानों पर औसत तापमान 26°C रहता है। शीतऋतु का तापमान 18°C से 24°C रहता है। समुद्र से दूर के स्थानों पर तापमान काफी गिर जाता है।
ग्रीष्मऋतु में यहाँ विशाल अल्पदाव क्षेत्र बन जाता है और समुद्र की ओर से वाप्पकृत हवायें चलने लगती है। यहाँ वर्षा मूसलाधार होती है। समय और स्थान के अनुसार वर्षा अनियमित तथा अनिश्चित होती है। प्रायः पर्वतीय तथा चक्रवातीय वर्षा होती है। भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून से तथा फिलिपाइन और वियतनाम में दक्षिण-पूर्वी मानसून से वर्षा होती है। व्यापक वर्षा का औसत 100-200 से.मी. होता है। ग्रीष्मकाल में चलने वाले चक्रवातों को चीन में टाइफल, फिलिपाईन में बेग्यूस तथा भारत में लू कहते हैं।
मानसूनी जलवायु के देश प्राचीन काल से कृषि के लिए प्रसिद्ध है। इस प्रदेश में धान, जूट, चाय, गन्ना, गेहूं, तम्बाकू, मक्का, ज्वार,बाजरा, तिलहन और कपास की खेती होती है। धान इस प्रदेश की मुख्य उपज है जो अधिक वर्षा वाले भागों में उपजायी जाती है। संसार का 90 प्रतिशत चावल एशियाई मानसूनी देशों में पैदा होता है, इसका सबसे प्रमुख उत्पादक चीन और भारत है। चाय इस प्रदेश की दूसरी मुख्य उपज है जो पहाड़ी ढालों पर पैदा की जाती है। संसार की 96 प्रतिशत उपज इसी प्रदेश में होती है।
संसार के उत्पादकों में भारत प्रथम, श्रीलंक द्वितीय और चीन तृतीय स्थान पर है। संसार का सबसे अधिक जूट इस प्रदेश में नदी डेल्टाओं में पैदा होता है। संसार के सबसे बड़े जूट उत्पादक बांग्लादेश और भारत है। गन्ना के उत्पादन में भारत सबसे प्रथम है। इस प्रदेश में कृषि के प्रायः पुराने ढंग के औजार प्रायेग में आते हैं किन्तु भारत, पाकिस्तान तथा दक्षिणी चीन में नवीनतम ढंग के औजारों का तीव्रता से विकास हो रहा है। इस प्रदेश में आबादी काफी सघन है। उत्तम जलवायु तथा अन्य सुविधाओं के कारण यह प्रदेश उन्नति का प्रदेश कहा जाता है। इस प्रदेश में लोग आर्थिक तथा शैक्षणिक दृष्टिकोण से काफी उन्नत है।
3. उष्ण मरुस्थलीय प्रदेश- यह प्रदेश 20° उत्तर अक्षाश से लेकर 30° उत्तर अक्षांश तक फैला हुआ है। इसके अन्तर्गत भारत में चार मरूस्थल, पाकिस्तान में सिन्धु नदी के निचले बेसीन का पूर्वी भाग और पश्चिम एशिया में अरब और सीरिया के मरुस्थल आते है। इस प्रदेश की जलवायु शुष्क एवं विषम है। ग्रीष्म ऋतु में काफी अधिक गर्मी पड़ती है। तापमान 32°C रहता है। परन्तु रात में तापमान में अन्तर पाया जाता है।
दिन-रात का ताप परिसर 21°C तक पहुंच जाता है। शीतऋतु में कठोर सर्दी पड़ती है। इस प्रदेश में 25 से.मी. से अधिक वर्षा नहीं होती है। यह प्रदेश सन्मार्गी हवाओं की पेटी में स्थित है। इस प्रदेश में ग्रीष्मऋतु में धूलभरी आंधियाँ चलती है। शीतऋतु की वायु तीव्र होती है। इस प्रदेश में वर्षा अनिश्चित होती है।
इस प्रदेश में कृषि का विकास नहीं हुआ है। केवल मरुधानों में खजूर, ज्वार, बाजरा तथा तम्बाकू की खेती होती है। जहाँ सिंचाई की सुविधा है, वहाँ खेती होती है। इराक तथा सिन्धु नदी की निचली घाटी में सिचाई की सहायता से खेती की जाती है। सिंचित क्षेत्रों में धान, कपास, गेहूं तथा फल की खेती होती है।
इस प्रदेश की जनसंख्या कम है। केवल मरुधानों के समीप तथा खनिज उत्पादक स्थानों पर ही मानव बस्तियाँ पायी जाती है। यहाँ के निवासी लम्बे तथा गठीले शरीर वाले पाये जाते हैं। ये कृषक तथा पशुपालक होते हैं तथा ऊंट और भेड़-बकरी पालते हैं। अन्य मरुस्थलों के निवासी भ्रमणशील होते है। अरब के बहु इसी प्रकार के हैं। इनका भोजन ऊँट का दूध, खजूर, भेड़-बकरी का मांस इत्यादि है। इनका भोजन ऊंट का दूध, खजूर, भेड़-बकरी का मांस इत्यादि है।
4. भूमध्य सागरीय प्रदेश- पश्चिमी एशिया के 30° उत्तर से 42° उत्तरी अक्षाश के मध्य भूमध्य सागरीय तट पर स्थित तुर्की का पश्चिमी एवं दक्षिण-पश्चिम भाग, लेवनान तथा इजरायल देश इसमें शामिल किये जाते है। इस प्रदेश में ग्रीष्म ऋतु में साधारण गर्मी तथा शीतऋतु में हल्की ठण्ड पड़ती है। ग्रीष्म ऋतु का औसत तापमान 21°C तथा शीतऋतु का तापमान 10°C रहता है। वार्षिक ताप परिसर 17°C तक रहता है तथा दैनिक ताप परिसर 4°C रहता है। इस प्रदेश में शीतऋतु में वर्षा होती है। ग्रीष्मऋतु शुष्क होती है।
ग्रीष्मकाल में यह प्रदेश सन्मार्गी हवाओं की पेटी में पड़ता है, अतः वर्षा नहीं होती है। शीतऋतु में यह प्रदेश पछुआ हवाओं की पेटी में रहता है। इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा 50-100 से भी होती है। इस प्रदेश के निवासियों का मुख्य उद्यम फल उत्पादन करना तथा कृषि है। यहाँ की शुष्क ग्रीष्मऋतु तथा धूपदार मौसम फलों को पकाने तथा स्वादिष्ट बनाने में सहायक होती है। यहाँ के प्रमुख फल नारंगी, नीबू, अंजीर, सेव, अनार और बादाम है। कृषि क्षेत्र में गेहूँ, कपास तथा तम्बाकू पैदा होती है। यहाँ के निवासियों का मुख्य उद्यम कृषि और पशुपालन है। ये उन्नतिशील तथा सम्पन्न है।
5. शुष्क पठारी प्रदेश- इस प्रदेश का विस्तार तुर्की, ईरान तथा अफगानिस्तान में है। अनातोलिया का पठार तथा ईरा-सीस्तान का पठार इस भाग में शामिल है। यह प्रदेश 26° उत्तरी अक्षांश से 45° उत्तरी अक्षांश तक विस्तृत है। इस प्रदेश की जलवायु काफी विषम है। ग्रीष्मऋतु का औसत तापमान 24°C हो जाता है। शीतऋतु का तापमान शून्य तक पहुँच जाता है। इस भाग में शीतऋतु मे वर्षा होती है। वर्षा का वार्षिक औसत 25 से.मी. तक होता है।
यह प्रदेश अभी अविकसित है। मरुस्थलीय पठार तथा विषम जलवायु आर्थिक विकास के प्रतिकूल है। यहाँ के निवासियों का मुख्य उद्यम पशुपालन है। ये अधिकतर ऊंटो, घोड़ों तथा भेड़-बकरियों को लेकर इधर-उधर चराया करते हैं। वहाँ का प्रसिद्ध कृषि धान है। नदियों के सिचाई क्षेत्र में गेहूँ, कपास, तम्बाकू तथा फल पैदा होता है। इस प्रदेश में जनसंख्या बहुत कम है।
पशुपालन यहाँ के लोगों का मुख्य उद्यम है। पशुपालक भ्रमणशील होते हैं। इनके भोजन में दूध और मांस प्रमुख हैं। जहाँ पानी तथा सिंचाई की सुविधा है वहाँ पर कृषि-कार्य होता है। यहाँ के लोगों का मुख्य उद्यम कम्बल और कालीन बुनना, फल सुखाना, शराब बनाना इत्यादि है। यहाँ के लोग काफिला जीवन व्यतीत करते हैं। अत्यधिक पूंजी और श्रम के उपयोग से इस प्रदेश का विस्तार हो रहा है। यद्यपि ईरान तथा अफगानिस्तान में शिक्षा का प्रचार काफी कम हुआ है।
6. तुरान प्रदेश- यह कैस्पियन सागर, अरब सागर तथा साइबेरिया के दक्षिण-पश्चिम की ओर विस्तृत एक प्रदेश है। इसका विस्तार 30° उत्तरी अक्षांश से 42° उत्तरी अक्षांश तक है। इस प्रदेश की जलवायु शुष्क, विषम तथा कठोर है। ग्रीष्मकाल का तापमान 27° से अधिक हो जाता है और जनवरी का तापमान हिमांक से भी नीचे गिरता है। यहाँ की नदियाँ तथा झीलें जम जाती है। उत्तर की सर्द हवा से जाड़े के दिनों हिमपात होता है। यहाँ का वार्षिक ताप परिसर अधिक रहता है।
उत्तरी-पूर्वी तथा उत्तरी-पश्चिम वायु से वर्षा होती है। मैदानी भाग में 16 से.मी. से 40 से मी. तक वर्षा होती है। यह प्रदेश समुद्री प्रभाव से बाहर रहता है। इस प्रदेश का अधिकांश भाग मरुस्थल है। यहाँ वर्षा की कमी तथा सिंचाई का अभाव है। यहाँ के निवासियों का मुख्य उद्यम पशुपालन है। नदी की घाटियो, मरुधानों तथा नदियों की बेसिनों में सिचाई की व्यवस्था की सहायता से यहाँ गेहूँ, कपास, जौ, चुकन्दर तथा फल की खेती होती है। यहाँ मंगोल जाति के लोग रहते हैं।
यहां की जनसंख्या काफी कम है। यहाँ का बहुत-सा क्षेत्र मानवहीन है। केवल कृषि क्षेत्र में ही स्थायी आबादी है। पशुपालक लोग स्थायी बस गये है। ये अधिकतर चारागाह तथा पानी की तलाश में घूमते है। गर्मियों में ये पहाड़ पर चले जाते हैं और शीतऋतु में मैदानों में उतर आते हैं।
7. स्टेपी प्रदेश- एशिया में यह प्रदेश 45° उत्तर अक्षांश से 60° उत्तरी अक्षांश के मध्य स्थित है। इसमें साइबेरिया का दक्षिणी-पश्चिमी भाग, उत्तरी मंगोलिया तथा पूर्वोत्तर चीन के घास के मैदान शामिल किये जाते हैं। इस प्रदेश की जलवायु पर महाद्वीपीय प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। यहाँ ग्रीष्मकाल में कड़ी गर्मी तथा शीतकाल में कड़ाके की ठंड पड़ती है। ग्रीष्म काल का तापमान 21°C रहता है और शीतऋतु का तापमान 17°C रहता है। वार्षिक ताप परिसर काफी अधिक रहता है।
इस प्रदेश में वर्षा कम अनियमित तथा अनिश्चित होती है। ग्रीष्मऋतु मे समुद्र से चलने वाली हवाओं से जलवृष्टि होती है। यहाँ वार्षिक वर्षा का औसत 25 से.मी. है। कभी-कभी दोपहर के समय अत्यधिक वर्षा होती है। साइबेरिया के स्टेप में जाड़े में शीत लहर चलती है जिसे तुरान कहते हैं। यहाँ के निवासियों का मुख्य उद्यम पशुपालन और पशुचारण है। जहाँ पानी एवं सिचाई की सुविधा है वहाँ कृषि द्वारा गेहूँ, जौ, कपास, तम्बाकू तथा तिलहन की कृषि होती है। पूर्वोत्तर चीन में गेहूं, जौ, राई, सोयाबीन और कोओलिआंग की फसलें उपजाई जाती है।
विषम जलवायु के कारण यहाँ आबादी विरल है और अधिकांश निवासी बनजारे का जीवन व्यतीत करते हैं। ये काल्मुक जाति के होते हैं। एशियाई स्टेप के निवासी करिघिज कहलाते हैं। ये अधिकतर खेमों में निवास करते हैं।
8. चीन प्रदेश- एशिया में चीन प्रदेश 25° उत्तरी अक्षांश से 40° उत्तरी अक्षाश के मध्य विस्तृत है। इसमें मध्यचीन, दक्षिण-पूर्वी चीन, कोरिया तथा दक्षिण जापान को शामिल किया जाता है। इस प्रदेश की जलवायु ठण्डी मानसूनी है। यहाँ शीतऋतु में अधिक सर्दी और ग्रीष्मऋतु में अधिक गर्मी पड़ती है। शीतऋतु में पाला पड़ता है। यहाँ शीतकाल का तापमान 40°C से 13°C रहता है। ग्रीष्म काल का औसत तापमान 24°C-27°C रहता है। कभी-कभी तापमान 32°C तक पहुंच जाता है। यहाँ का वार्षिक ताप-परिसर अधिक होता है। दैनिक ताप-परिसर 11°C तक हो जाता है।
वर्षा का वितरण वर्षभर रहता है किन्तु ग्रीष्मकाल में वर्षा का औसत अधिक रहता है क्योंकि ग्रीष्मकाल में समुद्र की ओर से दक्षिण-पूर्वी मानसूनी हवायें चलती है। जाड़े में हल्की वर्षा होती है। पतझड़ की ऋतु मे वर्षा कम होती है। कभी-कभी आंधी के साथ मूसलाधार वर्षा होती है। यहां के चक्रवातों को टाइफून कहा जाता है। यहाँ के लोगों का मुख्य उद्यम कृषि है। इसकी मुख्य उपज धान, गेहूँ, तम्बाकू, मक्का, चाय और रेशम है। नदियों के मैदानों में अनी का उत्पादन अधिक होता है।
पहाड़ी ढालों पर चाय के बगीचे लगाये जाते है। इस प्रदेश की आबादी काफी घनी है। भिन्न-भिन्न भागों में मानव जीवन में बड़ी विषमता है। यहाँ मंगोल जाति के लोग निवास करते हैं और कृषि कार्य करते हैं।