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BA Geography All PracticalBA SEMESTER-IGEOMORPHOLOGY (भू-आकृति विज्ञान)PG SEMESTER-1

17. Karst Topography / कार्स्ट स्थलाकृति

17. Karst Topography

(कार्स्ट स्थलाकृति)



चुना प्रधान वाले क्षेत्रों को कार्स्ट प्रदेश के नाम से जानते हैं। कार्स्ट प्रदेश शब्द एड्रियाटिक सागर के पूर्वी भाग में स्थित चूना पत्थर युक्त मैदान से लिया गया है। युगोस्लाविया के लोग ही चुना पत्थर (limestone) मैदान को कार्स्ट नाम से संबोधित करते हैं।  

        कार्स्ट प्रदेश में भूमिगत जल (underground water)अपरदन का सबसे प्रमुख दूत (agent) होता है। कार्स्ट प्रदेश में बनने वाले स्थलाकृतियों का सबसे पहले 1911 ई०  में जे.डब्ल्यू. बीड  एवं 1918 ई० में जे. स्वीजिक  ने अध्ययन किया था। कार्स्ट स्थलाकृति का निर्माण उन्हीं प्रदेश में होता है जहाँ निम्नलिखित तीन परिस्थितियाँ रहती है:-

(i) जहाँ विलियन (soluble) करने वाली चुना प्रधान चट्टाने पाई जाती हो।

(ii) चुना प्रधान चट्टानों में संरोध (Joints) का विकास हुआ हो।

(iii) चुना प्रधान चट्टानों के नीचे अपारगम्य चट्टान (Impermeable) पाई जाती हो तथा उसके अंदर पर्याप्त ढाल का विकास हुआ हो।

        कार्स्ट स्थलाकृति में निम्नलिखित अपरदित एवं निक्षेपित स्थलाकृति का निर्माण होता है-

अपरदित स्थलाकृति

(1) लैपिज (Lapies)

(2) विलियन रन्ध्र (Swallow Holes) और घोलरन्द्र (Sink Holes)

(3) डोलाइन (Doline)

(4) युवाला (Uvalas)

(5) पोल्जे (Polje) 

(6) पोनोर (Ponor)

(7) अंधी घाटी (Blind Valley)

(8) पोल्जे (Polje)

(9) कार्स्ट खिड़की (Karst Window)

निक्षेपित स्थलाकृति

(1) स्टैलैक्टाइट (Stalactite)

(2) स्टैलेग्माइट (Stalagmite)

(3) कन्दरा स्तम्भ/ गुफा स्तम्भ (Cave Pillars)

(4) टेरारोसा (Tera Rosa)

अपरदित स्थलाकृति

लैपिज (Lapies):

     लैपिज स्थलाकृति की तुलना यारदांग से की जा सकती है। यह यारदांग के समान उबड़-खाबड़ स्थलाकृति है। लैपीज का विकास उसी चूना पत्थर प्रदेश में होता है जहाँ संरोध का विकास नहीं हो पाता है। संरोध के अभाव में चूना पत्थर जल के साथ घुल कर प्रवाहित हो जाती हैं और धरातल पर उबड़-खाबड़ स्थलाकृति का विकास होता है, जिसे लैपीज कहते हैं।

विलियन रन्ध्र और घोलरन्द्र:   

         जिस चूना प्रधान प्रदेश में संरोध का विकास होता है उन प्रदेशों में संरोध के ऊपरी भाग में चूना पत्थर युक्त चट्टान जल में घुलकर भूमिगत हो जाती है जिससे घोलरन्ध्र (Sink Holes) का निर्माण होता है। घोलरन्द्र का आकार एक कीप के समान होता है। लेकिन जब चुना पत्थर चट्टान का विलियन तेजी से होता है तो घोलरन्ध्र के स्थान पर विलियन रन्ध्र (Swallow Holes) का निर्माण होता है। विलियन रन्ध्र का आकार एक बेलन के समान होता है।

डोलाइन (Doline):

      डोलाइन घोलरन्ध्र का ही विकसित रूप है। इसका ऊपरी व्यास 30 फीट से 40 फीट तक होता है। इसकी गहराई 6 से 75 फीट तक होता है। डोलाइन एक अस्थायी झील के समान होता है। कुछ समय के बाद इसके जल संरोध के सहारे भूमिगत हो जाते हैं और झील सूख जाती है। युगोस्लाविया से अलग हुए सर्बिया राज्य में डोलाइन के अनेक उदाहरण मिलते हैं।

 

पोनोर (Ponor):

        डोलाइन के नीचे स्थित संरोध के सहारे जब जल भूमिगत होती है तो संरोध के किनारे स्थित चूना पत्थर का विलियन हो जाता है जिसके कारण संरोध काफी चौड़ा हो जाता है। इसी चौड़े संरोध वाले स्थलाकृति को पोनोर कहते हैं। अर्थात् पोनोर एक प्रकार का संरचनात्मक पाइप है, जो डोलाइन एवं उपसतही (Subsurface Cave) के मध्य विकसित होता है। इसका विकास भी संरोध के सहारे होता है। इसे गुफा का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है।

 

युवाला (Uvalas):

    डोलाइन भी क्रमशः बड़ा होता जाता है। जब दो डोलाइन आसपास होते हैं तो बढ़ते-बढ़ते उनके बीच की दीवार टूट कर गिर जाती है और वे आपस में मिल जाते हैं। इससे एक वृहद् गड्ढे का निर्माण होता है, जो युवाला (Uvalas) कहलाता है।

      अर्थात् जब दो या दो से अधिक डोलाइन आपस में मिल जाते हैं तो एक विस्तृत गर्तनुमा स्थलाकृति का निर्माण होता है जिसे युवाला कहते हैं। युवाला का व्यास कई किलोमीटर तक हो सकता है। जल से भर जाने पर यह एक वृहद् झील के रूप में नजर आता है।

 
पोल्जे (Polje)

      अंधी गुफा के ऊपरी छत में घोलरन्ध्र के सहारे विकसित संरोध विलयन की क्रिया से चौड़ा होकर कार्स्ट खिड़की का निर्माण करती है। जब अंधी घाटी का ऊपरी छत धँस जाता है तो धँसान से निर्मित गर्त को पोल्जे कहते हैं।

      पोनोर के सहारे जब विलियन की क्रिया अति तीव्र हो जाती है तो धरातल और अपारगम्य चट्टान के बीच एक चौड़ी गुफानुमा स्थलाकृति का विकास होता है जिसे अंधी घाटी या अंधी गुफा कहते हैं। दूसरे शब्दों में, पोनोर का ही अति विस्तृत भाग अंधी घाटी या अंधी गुफा कहलाता है।

कार्स्ट खिड़की (Karst Window):

     गुफा स्तंभ के अभाव में जब कभी गुफा की छत का कुछ भाग ध्वस्त होकर गिर जाता है तो गुफा की छत में वृहद् छिद्र का निर्माण हो जाता है, जो ‘कार्ट खिड़की’ के नाम से जाना जाता है। इसे खिड़की इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसके द्वारा घरातल के ऊपर से भूमिगत जल-प्रवाह एवं अन्य उपसतही स्थल रूपों को देखा जा सकता है।

निक्षेपित स्थलाकृति

(1) स्टैलैक्टाइट (Stalactite)

(2) स्टैलेग्माइट (Stalagmite)

(3) कन्दरा स्तम्भ/ गुफा स्तम्भ (Cave Pillars)

(4) टेरारोसा (Tera Rosa)

      चुना प्रधान प्रदेशों में निक्षेपण की प्रक्रिया दो स्थानों पर संभव है:-

(i)  धरातल के ऊपर और

(ii) गुफा के अंदर।

     धरातल के ऊपरी भाग में स्थित चूना पत्थर युक्त चट्टानें घुलकर किसी निम्न प्रदेशों में निक्षेपित हो जाती है तो चूना पत्थर युक्त मिट्टी के मैदान का निर्माण करती है। चुना पत्थर युक्त मिट्टी को ही टेरारोसा कहते हैं और निर्मित मैदान को टेरारोसा का मैदान कहते हैं।

         ब्राजील के दक्षिणी पूर्वी भाग में टेरारोसा मैदान का विकास हुआ है। इसी मैदान में वहाँ बड़े पैमाने पर कहवा की खेती की जाती है।

     गुफा के अंदर निम्न प्रकार के निक्षेपित स्थलाकृति विकसित होते हैं।

(i)  स्टैलेक्टाइट

(ii) स्टैलेगमाइट

(iii) कन्दरास्तम्भ

(iv) ट्रेवर्टाइन (Travertine)

         स्टैलेगटाइट का निर्माण गुफा के छत के सहारे होता है जबकि स्टैलेगमाइट का निर्माण गुफा के निचली सतह पर होता है।

         जब स्टैलेक्टाइट और स्टैलेगमाइट आपस में मिल जाते हैं तो उससे स्तंभ का निर्माण होता है। जब अंधी गुफा के ऊपरी क्षेत्र में स्थित संरोध के सहारे जल भूमिगत होती है तो चूना पत्थर युक्त जल गुफा के सतह पर बूंद-बूंद टपकने की प्रवृत्ति रखती है। धरातल पर चुनायुक्त जल के गिरते ही जल वाष्पीकृत हो जाता है और चुना का निक्षेपण हो जाता है तो उससे निर्मत गुम्बदाकार स्थलाकृति को स्टैलेगमाइट कहते हैं।

     जब गुफा (कन्दरा) में गुफा के छत के सहारे निर्मित संरोध के सहारे भूमिगत होने वाले जल का रफ्तार काफी धीमी हो तो चुना का निक्षेपण मधुमक्खी के छत के समान गुफा के छत के सहारे हो जाता है जिसे स्टैलेगटाइट करते हैं।

  Karst Topography

     कालांतर में जब स्टैलेक्टाइट और स्टैलेगमाइट मिल जाते हैं तो उसे कन्दरा स्तम्भ करते हैं। जब गुफा के अन्दर चूना पत्थर प्रधान वाले क्षेत्रों में लंबे समय तक अपरदन एवं निक्षेपण का कार्य  चलता रहता है तो अंत में “अपरदन सह निक्षेपित मैदान” मैदान का निर्माण होता है जिसे कार्स्ट मैदान के नाम से जानते हैं। इसे समप्राय मैदान से तुलना की जा सकती है।

ट्रेवर्टाइन (Travertine):

     गुफा की सतह पर निक्षेपित चूना-प्रधान मलबों कोट्रेवर्टाइनकहते हैं। ये प्रायः सफेद, हल्का पीला या पीला-भूरा होते हैं। चूना या कार्बोनेट खनिज की प्रधानता के कारण ये मुलायम एवं पारगम्य होते हैं। बाद में, इन्हीं निक्षेपित मलबों द्वारा कार्स्ट मैदान का निर्माण होता है।

        समप्राय मैदान के समान ही यहाँ भी कठोर चट्टान के टीले मिलते हैं जिसे यूरोप के लोग हम्स (Hums), क्यूबा के लोग मेंगॉट या Hay Stack तक कहते हैं।

निष्कर्ष:

          इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि चुना पत्थर वाले प्रदेश में भूमिगत जल से अनेक प्रकार के अपरादित एवं निक्षेपित स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।

नोट: सर्वप्रथम अमेरिकी भूगर्भवेत्ता जे.डब्ल्यू. बीडे (J.W. Beede) ने सन् 1911 ई. में “कार्स्ट प्रदेश में अपरदन चक्र की संकल्पना” प्रस्तुत की थी। बाद में सन् 1918 ई. में, साइबेरियाई भूगोलवेत्ता जोवान स्वीजिक (Jovan Cvijic) ने यूगोस्लाविया के कार्स्ट क्षेत्र के अध्ययन के आधार पर “कार्स्ट चक्र की संकल्पना” को व्यवस्थित ढंग से सामने रखा।

बिहार के रोहतास पठार पर पायी जाने वाली गुप्त-धाम कंदरा भी अंतर्भौम गुफा का एक प्रमुख उदाहरण है।



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I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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