10. Automobile Industry (मोटर वाहन उद्योग)
Automobile Industry
(मोटर वाहन उद्योग)
विश्व स्तर पर यह बहुत बड़ा उद्योग है और इसका अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान है। इस पर कई सहायक अथवा गौण उद्योग निर्भर करते हैं जिससे यह विभिन्न प्रकार की आर्थिक गतिविधियों को काफी बल प्रदान करता है। इस समय भारत में यह उद्योग काफी पनप गया है और इसमें विभिन्न प्रकार के वाहनों का उत्पादन होता है।
हालांकि स्वतंत्रता से पूर्व भारत में मोटर वाहन उद्योग नगण्य था। केवल आयातित पुर्जों को जोड़ कर वाहन बनाए जाते थे। वर्ष 1928 में ‘जनरल मोटर्स’ मुम्बई ने ट्रकों तथा कारों का संयोजन शुरू किया था। फोर्ड मोटर कं. (इण्डिया) लि. चेन्नई में 1930 तथा मुम्बई में 1931 में कारों तथा ट्रकों का संयोजन शुरू किया। इस उद्योग का वास्तविक विकास प्रीमियर ऑटोमोबाइल लि. कुर्ला (मुम्बई) की स्थापना 1941 में तथा हिन्दुस्तान मोटर्स लि. उत्तरपाड़ा (कोलकाता) की स्थापना 1948 में होने में शुरू हुआ। पिछले तीन-चार दशकों में इस उद्योग ने बड़ी उन्नति की है।
1991 की औद्योगिक उदारीकरण नीति से इस उद्योग को काफी लाभ मिला और अब यह हमारी अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग बन गया है। इस समय देश में 15 कंपनियाँ सवारी कारें व बहुउद्देशीय वाहन, 9 कंपनियाँ व्यावसायिक वाहन, 14 कंपनियाँ 2/3 पहिया वाहन, 14 कंपनियाँ ट्रैक्टर तथा पाँच कंपनियाँ इंजन बनाने में सक्रिय हैं।
स्थानीकरण
मोटर वाहन उद्योग मुख्यतः लौह-इस्पात उत्पादक क्षेत्रों के निकट ही पनपता है क्योंकि इसका मुख्य कच्चा माल इस्पात है। यदि टायर, ट्यूब, बैटरी, पेंट तथा अन्य उपयोगी उत्पाद भी निकटवती क्षेत्र में हो तो सुविधा अधिक हो जाती है।
इसके लिए बन्दरगाह भी उपयुक्त होता है क्योंकि वहां पर आयात-निर्यात की सुविधा होती है। सरकार की विकेन्द्रीकरण की नीति के अन्तर्गत दूर स्थित क्षेत्रों को भी प्राथमिकता दी जाती है।
उत्पादन तथा वितरण
भारतीय मोटर वाहन उद्योग को सनराइज (Sun rise) उद्योग कहा जाता है। पिछले दशक में इस उद्योग ने प्रतिवर्ष 10-12 प्रतिशत की दर से उन्नति की। परन्तु 2008-09 में वैश्विक आर्थिक मन्दी के कारण इस उद्योग को भारी क्षति हुई। इसके बाद शीघ्र ही इस उद्योग में विकास हुआ और भारत एक महत्वपूर्ण उत्पादक बन गया। इस समय भारत विश्व का सातवां बड़ा मोटर वाहन उत्पादक, दूसरा बड़ा दो-पहिया उत्पादक, सबसे बड़ा ट्रैक्टर उत्पादक और पाँचवां बड़ा वाणिज्यिक वाहनों का उत्पादक है।
मोटर वाहनों में मुख्य उत्पादक मुम्बई, चेन्नई, जमशेदपुर, जबलपुर तथा कोलकाता हैं। ये केन्द्र ट्रक, बस, कार, ति-पहिये एवं दो-पहिए सहित सभी प्रकार के वाहनों का निर्माण करते हैं। मोटर साइकिल फरीदाबाद, गुरुग्राम तथा मैसूर में बनाए जाने है। स्कूटरों का निर्माण लखनऊ, सतारा, अकुर्डी (पुणे के निकट), पनकी (कानपुर के निकट) तथा ओधव (अहमदाबाद जिला) में होता है। मारुति उद्योग लि. ने हरियाणा के गुरुग्राम में 1983 में कारों का उत्पादन शुरू किया। इस समय देश में 38 इकाइयाँ चार-पहिया, ति-पहिया तथा दो-पहिया वाहनों का निर्माण कर रही हैं।
वाणिज्यिक वाहन:-
वाणिज्यिक वाहन उद्योग को सवारी तथा माल ढोने वाले दो प्रकार के वाहनों में बांटा जाता है। सवारी वाहनों का उत्पादन मुख्यत: सरकारी संस्थानों द्वारा तथा माल ढोने वाले वाहनों का उत्पादन मुख्यत: निजी क्षेत्र में किया जाता है।
इनका उत्पादन 1950 के दशक में शुरू हुआ और 1991 की नई औद्योगिक नीति के बाद इस उद्योग ने बहुत उन्नति की। बस, ट्रक, टैम्पू, तथा तीन पहिया वाहनों का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव क. लि. (TELCO) मध्यम तथा भारी वाहनों का मुख्य उत्पादक है और देश के 70% वाणिज्यिक वाहन बनाता है। चार केंद्रों पर हल्के वाणिज्यिक वाहन बनते हैं ये केंद्र हैदराबाद, पिथमपुर (मध्य प्रदेश), आरसन रूपनगर के निकट (पंजाब) तथा सूरजपुर (उत्तर प्रदेश) हैं। प्रीमीयर ऑटोमोबाइल तथा महेंद्रा एंड महेंद्रा मुम्बई में, अशोका लेलैण्ड लि. एवं स्टैंडर्ड मोटर प्रॉड्क्स ऑफ इंडिया लि. चेन्नई में, हिन्दुस्तान मोटर लि. कोलकाता में तथा बजाज टैम्पो लि. पुणे में सक्रिय है।
उपरोक्त निर्माताओं के अतिरिक्त रक्षा मंत्रालय के अधीन शक्तिमान ट्रक तथा जापान की निस्सान (Nissan) की सहायता से जबलपुर में निस्सान जीप का उत्पादन होता है।
सवारी मोटर वाहन:-
गुरुग्राम (हरियाणा) स्थित मारूति उद्योग लि. अग्रणीय है। जापान की सुजुकी मोटर कॉरपोरेशन के सहयोग से स्थापित की गई इस कंपनी ने 1983 में उत्पादन शुरू कर दिया था। इस समय यह भारत की लगभग 80% कारें बनाती है। इसने कई मॉडल बनाये हैं जिनमें से जैन, बेगन-R, एस्टीम, स्विफ्ट तथा जिप्सी अधिक लोकप्रिय हैं।
मारुति 800 का उत्पादन बन्द कर दिया गया है। हिन्दुस्तान मोटर्स (कोलकाता एवं चेन्नई) तथा प्रीमियम ऑटोमोबाइल्स (मुम्बई), स्टेण्डर्ड मोटर प्रॉड्क्स (चेन्नई) तथा सनराईज इंडस्ट्रीज (बैंगलूरू) अन्य उत्पादक हैं।
1991 की उद्योग नीति के बाद अन्य कंपनियों ने भारत में मोटर वाहन उद्योग में सहयोग दिया। इनमें हुंडई (तमिलनाडु), दायवू (Deawoo of Korea) सूरजपुर (उत्तर प्रदेश), टेल्को, पिम्परी (पुणे के निकट), होंडा आदि प्रमुख हैं।
⇒ जनरल मोटर्स ने ओपेल आस्तरा मैदान में उतारी हैं।
⇒ महेंद्रा के सहयोग से फोर्ट मोटर्स ने फार्ड का निर्माण किया है।
⇒ जापान के मित्शुविशी के सहयोग से मध्य आकर की लान्सन प्रस्तुत की है।
⇒ टेल्को के सहयोग से जर्मनी की मर्सिडीज वैन्ज ने E 220 तथा 250D मॉडल बाजार में उतारे हैं।
⇒ 1998 के अन्तिम चरणों में छोटे एवं मध्यम सवारी कार में बहुत-सी नई गाड़ियां आई जैसे- डेबू की माटिज, टाटा की इंडिका, हुंडई की सेन्ट्रा व मारुति की बेंगन आर, फियट की उनों, अपोलो की कोर्सा आदि।
⇒ 2008 में टाटा ने नानो नामक छोटी कार की रूपरेखा प्रस्तुत की। यह अधिक लोकप्रिय नहीं हो सकी।
इस उद्योग के विकास में कई कारकों का सहयोग रहा। उत्पाद शुल्क (Excise duty) में कमी होने से इस उद्योग को काफी प्रोत्साहन मिला। सवारी गाड़ियों पर उत्पाद शुल्क कम होने से इनकी कीमत कम हो गई और बाजार में इनकी मांग बढ़ गई। इसके परिणामस्वरूप सवारी मोटर वाहनों के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। सरकार की भारत को एशिया का बहुत बड़ा मोटर वाहन उत्पादक देश बनाने की नीति से भी इस उद्योग को काफी प्रोत्साहन मिला। भारतीय बाजार में 65% छोटी कारें हैं जो ‘A’ तथा ‘B’ वर्ग की हैं। इन कारों की कम कीमत एवं इनकी उच्च गुणवत्ता के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं।
भारत में कार पैठ (Car penetration) केवल 28 प्रति हजार व्यक्ति है जो यू. के. की 473 प्रति हजार, संयुक्त राज्य अमेरिका की 816 प्रति हजार, न्यूजीलैण्ड की 837 प्रति हजार तथा आइस लैण्ड 866 प्रति हजार की तुलना में काफी कम है। जहां तक कि अफगानिस्तान (47), भूटान (57) तथा इण्डोनेशिया (77) जैसे पिछड़े दिशों में भी भारत की अपेक्षा कार पैठ बेहतर हैं। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि भारत में मोटर कार उद्योग की मांग बढ़ेगी और भविष्य में यह उद्योग काफी उन्नति करेगा। इस उद्योग के लगभग 87 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ने का अनुमान है।
ऋण की सुविधा से भी इस उद्योग को काफी प्रोत्साहन मिला है। एक समय था जबकि ऋण के लिए लम्बी प्रक्रिया होती थी और ऋण प्राप्त करने में काफी समय लगता था। अब विभिन्न स्रोतों से ऋण आसानी से मिल जाता है और ग्राहकों की क्रय क्षमता बढ़ जाती है। इस समय लगभग 70% कारें ऋण लेकर ही खरीदी जाती हैं।
जीप (Jeeps):-
भारत की लगभग समस्त जीप मुम्बई स्थित महेन्द्रा बनाता है। इसकी वार्षिक क्षमता लगभग 13,000 जीप है।
दो-पहिया वाहन:-
इस वर्ग में मोटर साइकिल, स्कूटर, मोपेड तथा स्कूटी आदि सम्मिलित हैं। यह उद्योग 1950 में शुरू हुआ जब आटोमोबाइल प्रोडक्टस ऑफ इंडिया ने स्कूटरों का निर्माण शुरू किया। वर्ष 1960 में बजाज ऑटो ने इटली की पिआजियों के सहयोग से स्कूटरों का निर्माण शुरू किया। 1980 के दशक में भारत के दो पहिया वाहन उद्योग में अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा शुरू हो गई। विश्व की लगभग सभी बड़ी कंपनियों ने इनका निर्माण शुरू कर दिया। सबसे पहले 1984 में सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन ने (TVS) का निर्माण शुरू कर दिया। इसके अगले वर्ष होंडा ने अपने पैर जमाए। इसके बाद कावासाकी एवं यामाह ने क्रमशः बजाज ऑटो एवं एस्कॉर्ट के साथ समझौते किए। पियाजियों ने (LMR) बाजार में उतारा।
⇒ हीरो होंडा, अपने धारूहेड़ा प्लांट की क्षमता बढ़ा रहा है और इसने गुरुग्राम में एक नया प्लांट लगाया है।
⇒ यामाह एस्कॉर्ट नए वाहनों के निर्माण की योजना बना रहा है और अपने सूरजपुर प्लांट का विस्तार कर रहा है।
⇒ सार्वजनिक क्षेत्र के यूनिट हैदराबाद, बैंगलूरू, सतारा, लखनऊ तथा अलवर में सक्रिय हैं।
⇒ मोटर साइकिल उत्पादन की इकाइयाँ नई दिल्ली, चेन्नई, मैसूर तथा गुड़गांव में हैं। दो पहिया वाहनों में सबसे अधिक बिक्री मोटर साइकिलों की है।
इस समय भारत विश्व में दो पहिया वाहनों का सबसे बड़ा उत्पादक है। दो-पहिया वाहन उद्योग कुल आद्यौगिक सकल घरेलू उत्पाद का 7% योगदान देता है। इससे 2% GST भी प्राप्त होता है। अनुमान है कि भारत में प्रतिवर्ष 190 मिलियन दो-पहिया वाहनों के उत्पादन की क्षमता है। कुल मोटर वाहनों के उत्पादन का लगभग 80% भाग दो पहिया वाहनों का है। भारत में दो पहिया वाहनों के उत्पादन की क्षमता 250 लाख इकाइयाँ है।
भारत में वाहनों का उत्पादन
(हजार इकाईयाँ)
वाहन का नाम | 2019-20 | 2020-21 | परिवर्तन (%) |
दो- पहिया | 21033 | 18350 | – 12.8 |
सवारी गाड़ियां | 3425 | 3062 | – 10.6 |
तीन- पहिया | 1133 | 611 | – 46.1 |
वाणिज्यिक | 757 | 625 | – 17.6 |
उपरोक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि सभी मोटर वाहनों के उत्पादन में 2019-20 की तुलना में 2020-21 में कमी आई है। इसका एक मात्र कारण कोविड-19 था।
नगरीय इलाकों में दो-पहिया वाहन व्यक्तिगत परिवहन के भार को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। देश के लगभग 65% दो पहिया वाहन नगरीय एवं उपनगरीय क्षेत्रों में ही पाए जाते हैं। भारत के अधिकांश नगरों के पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर्याप्त नहीं हैं और ऐसी स्थिति में दो-पहिया वाहन अच्छा विकल्प हैं।