Unique Geography Notes हिंदी में

Unique Geography Notes in Hindi (भूगोल नोट्स) वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के उन छात्रों और अध्ययन प्रेमियों को काफी मदद मिलेगी, जिन्हें भूगोल के बारे में जानकारी और ज्ञान इकट्ठा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर नियमित रूप से सभी प्रकार के नोट्स लगातार विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित करने का काम जारी है।

RESEARCH METHODOLOGY

1. Sampling Type : Random, Stratified and purposive

Sampling Type : Random, Stratified and purposive



     शोधकर्ता अपने शोध के लिए समग्र (Whole) से निश्चित संख्या में कुछ सदस्यों या वस्तुओं का चयन (Selection) कर लेता है। इस चयनित संख्या को प्रतिदर्श (Sample) कहा जाता है तथा प्रतिदर्श चयन करने की प्रविधि को प्रतिदर्शन (Sampling) कहा जाता है।

Example:

   यदि कोई शोधकर्ता किसी Universities के 5,000 छात्रों में से 50 छात्रों को अपने शोध में सम्मिलित करने के उद्देश्य से चयन कर लेता है, तो यह 50 छात्रों का चुना हुआ समूह प्रतिदर्श (Sample) कहलायेगा तथा इस प्रक्रिया को प्रतिदर्शन (Sampling) कहा जाता है।

शोध कार्य के प्रमुख पद्धतियाँ

  शोध कार्य मुख्यत: दो पद्धतियों के आधार पर किया जा सकता है:- 

(1) संगणना पद्धति (Census method)

(ii) निदर्शन पद्धति (Sampling method)

    संगणना पद्धति में अध्ययन विषय की समस्त इकाईयों का अध्ययन किया जाता है और उसी के आधार पर निष्कर्ष निकाला जाता है। जबकि निदर्शन पद्धति के अन्तर्गत सभी इकाईयों का अध्ययन न कर समग्र में से कुछ ऐसी इकाईयों को चुना जाता है जो समस्त इकाइयों का अच्छे तरीके से प्रतिनिधित्व करती है। इससे शोधकर्ता अपना ध्यान समग्र (Whole) में व्यर्थ न गवाकर कुछ पर ही केन्द्रित करता है जिससे अध्ययन विषय का गहन अध्ययन, समय और धन की बचत होती है।

⇒ न्यादर्श, प्रतिचयन, प्रतिदर्श, निदर्शन आदि शब्द समानार्थी है। इसके लिए अंग्रेजी शब्द Sampling है।

⇒ दैनिक जीवन में इस पद्धति का बहुत प्रयोग किया जाता है। जैसे- अनाज के बोरे से नमूने लेकर अनाज की जाँच करना, भोजन बनाते समय दाल या चावल के नमूने को लेकर उनकी पकने की जानकारी लेना,  रक्त (blood) की बूंद से शरीर के सभी रक्त के बारे में जानकारी प्राप्त करना इत्यादि।

   गुडे तथा हाट के अनुसार “प्रतिदर्श जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि एक विस्तृत समूह का छोटा प्रतिनिधि है।”

   करलिंगर के अनुसार “किसी जनसंख्या या समष्टि से उसके प्रतिनिधित्व एक अंश चुन लेने को प्रतिचयन कहते है।”

  अत: न्यादर्श किसी विशाल समूह, समग्र या योग का एक अंश है जो कि समग्र का प्रतिनिधि है। अर्थात अंश की वही विशेषताएँ है जो कि सम्पूर्ण समूह या समग्र की है।

प्रतिदर्शन करते समय ध्यान में रखने वाले कारक

(factors to be kept in view During Sampling)

       Sample का चयन करते समय निम्नांकित तीन बातों पर ध्यान देना काफी महत्वपूर्ण है- 

1. जीवसंख्या का का आकार 

(Size of population):-

        यदि Population का आकार छोटा है जैसे- 200 या 300 तो ऐसी स्थिति में सामान्यतः यह देखा गया है कि Researcher सभी सदस्यों को अपने अध्ययन में शामिल कर लेता है, इस प्रकार इस स्थिति में Sampling का प्रश्न ही नहीं उठता है।

    परन्तु यदि Population का आकार बड़ा होता है जैसे- 10,000 या अधिक तो शोधकर्ता को उचित प्रतिदर्श का चयन करना आवश्यक हो जाता है।

2. प्रतिदर्शन की कीमत

(Cast of Sampling):-

      Sampling के सभी प्रक्रियाओं की लागत क्या आयेगी और वह शोधकर्ता के बजट के अनुरूप है या नहीं, यह देखना अति आवश्यक हो जाता है। शोधकर्ता को बजट के अनुसार Sampling  plan में परिवर्तन करना पड़ता है।

3. जीवसंख्या के सदस्यों की प्राप्यता

(Accessibility of members of populations):-

        Sampling करते समय तीसरी बात जो ध्यान में रखना आवश्यक है, वह यह है कि जीवसंख्या के सदस्यों का स्वरूप ऐसा होना चाहिए कि उन्हें आसानी से प्राप्त हो। यदि वे शोधकर्ता के लिए दुर्लभ है तो वैसी परिस्थिति में उन्हें प्रतिदर्श में सम्मिलित नहीं किया जा सकता है और तब शोधकर्ता को अपनी Planning में परिवर्तन करना पड़ता है।

प्रतिदर्श के आधार (Bases of Samipling)

1. समग्र की एकरूपता

(Homogeneity of whole):-

    यदि समग्र विभिन्न इकाइयों में अधिक  भिन्नताएं नहीं है तो जिन इकाइ‌यों को चुना जाएगा वे प्रतिनिधित्वपूर्ण होगी। थोड़ी बहुत भिन्नता तो मिलेगी परंतु साधारणतः यदि उनमें एकरुपता मिलेगी तो चयनित इकाईयों के आधार पर निकाला गया परिणाम विश्वसनीय एवं लाभप्रद होगा।

2. प्रतिनिधित्वपूर्ण चयन

(Representative Selection):-

    इस पद्धति के अंतर्गत समग्र में से इकाइयों को इस प्रकार चुना जाता है कि वे संपूर्ण का प्रतिनिधित्व करें। 

3. अधिक परिशुद्धता की संभावना

(Possibility of much Accuracy):- 

     निदर्शन में शत प्रतिशत परिशुद्धता लाना मुश्किल है, फिर भी यही कोशिश होनी चाहिए कि निदर्शन अधिक-से-अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण हो। प्रतिनिधित्वपूर्ण निदर्शन वास्तविक स्थिति का प्रतिबिंब होता है और उसके निष्कर्ष भी लगभग ठीक होते है।

    सामाजिक घटनाओं की विविधताओं के कारण निदर्शन का चुनाव यदि ठीक कर लिया जाता है तो शुद्धता की संभावना काफी अधिक रहती है।

एक अच्छे प्रतिदर्श की विशेषताएँ

(Characteristics of a good samples)

    अनुसंधान की सफलता एक अच्छे प्रतिदर्श पर निर्भर करती है। सामान्यतः एक श्रेष्ठ प्रतिदर्श में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई

(i) जनसंख्या का प्रतिनिधित्व

(Representative of the Population)

(ii)  प्रतिदर्श का उचित आकार

(Appropriate Size of the Sample)

(iii) इकाईयों को चुने जाने की समान संभावना

(Equal chance of selection of Study units)

(iv) प्रतिचयन पक्षपात रहित होना चाहिए

(Sample Should be free from Bias)

(v) अध्ययन इकाईयों का उचित अनुपात

(Proper Ratio of Study Units)

(vi) अनुसंधान उद्देश्यों के अनुरूप

(According to The aims of Research)

(vii) समय, श्रम व धन की बचत

(Saving of Time, Labour, and money

(viii) सम्भाव्यता सिद्धांत पर आधारित

(Based on probability Theory)

(ix) अशुद्धियों से मुक्त (free from errors)

(x) तर्क पर आधारित

(Based on logic)

(xi) उच्च विश्वसनीयता स्तर

(High level of Reliability)

प्रतिदर्श के सिद्धांत अथवा सोपान

(Principles of sampling)

     प्रतिदर्श चयन करने के लिए किसी-न-किसी प्रतिचयन विधि का प्रयोग किया जाता है। प्रतिचयन सफलतापूर्वक तभी किया जा सकता है जब शोधकर्ता को प्रतिचयन पद्धतियों का आवश्यक ज्ञान हो या उसने उस क्षेत्र में कोई प्रशिक्षण लिया हो। प्रतिदर्श का चुनाव करने के लिए निम्नलिखित पदों या सिद्धांतों का अनुसरण किया जाता है-

⇒ अध्ययन उद्देश्यों का परिभाषीकरण

(Defining the objectives of the Study)

⇒  समष्टि को स्पष्ट करना

(Defining the wholes)

⇒ स्रोत सूची (Source list)

⇒ प्रतिदर्श की इकाईयाँ निर्धारित करना

(Determination of Sample Units)

⇒ प्रतिदर्श के आकार का निर्धारण

(Determination of Sample Size)

⇒ अर्थपूर्ण एवं आवश्यक आंकडों का चयन

(Selection of meaningful and essential Data)

⇒ आवश्यक शुद्धता की मात्रा का पूर्ण निर्धारण

(Predetermination of the degree of the Required precision)

⇒ मापन विधि का परिभाषीकरण

(Defining the method of measurement)

⇒ निर्देश सूची को बनाना

(Construction of Direction list)

प्रतिचयन विधि का चयन

(Selection of Sampling technique)

⇒ पूर्व परीक्षण (Pre-testing)

⇒ अध्ययन क्षेत्र का सफल संगठन

(Successful organisation of field work)

⇒ आँकड़ों का विश्लेषण तथा सारांश

(Analysis and summary of Data)

न्यादर्श के प्रकार / पद्धतियाँ एवं तकनीक

(Method and Technique of sampling)

     न्यादर्श के चयन की प्रमुख पद्धतियाँ निम्न प्रकार से है-

निदर्शन के प्रकार
Probability or Random↓ Non Probability or Non Random↓
1. Simple Random Sampling

साधारण दैव (संयोग) निदर्शन

1. Purposive / Judgement Sampling

उद्देश्यपूर्ण निदर्शन

2. Systematic Sampling

व्यवस्थित निदर्शन

2. Convenience Sampling

सुविधाजनक निदर्शन

3. Stratified Sampling

वर्गीय निदर्शन

3. Quota Sampling

कोटा निदर्शन

4. Cluster Sampling

क्लस्टर  निदर्शन

4. Panel Sampling

पैनल निदर्शन

5. Area Sampling

क्षेत्रीय निदर्शन

5. Snowball Sampling

स्नोबॉल निदर्शन
6. Multi Stage Sampling

बहुस्तरीय निदर्शन



1. दैव (संयोग) निदर्शन पद्धति

(Random Sampling method):-

       इस पद्धति के द्वारा प्रतिदर्श चुनने के लिए सर्वप्रथम संपूर्ण जनसंख्या (Total Population) की इकाईयों की सूची बनाकर उसकी प्रत्येक इकाई को समान मात्रा में महत्व देते हुए आवश्यक इकाईयों को बिना किसी भी पक्षपात के चुन लिया जाता है और ये चुनी हुई इकाइ‌याँ सम्पूर्ण जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करती है। इस प्रतिदर्श में किसी भी इकाई को कोई विशेष महत्व नहीं दि‌या जाता है। इसके अंतर्गत प्रतिदर्श चुनने की अनेक प्रचलित विधियाँ है-

(i) लॉटरी विधि

(Lottery method)

(ii) कार्ड या टिकट विधि

(Card or Ticket Method)

(iii) नियमित अंकन प्रणाली

(Regular marking method)

(iv) अनियमित अंकन प्रणाली

(Irregular marking method)

(v) टिप्पेट प्रणाली

(Tippet method)

(vi) ग्रिड प्रणाली

(Grid method)

(vii) फिसबॉल ड्रा

(Fishbowl Draw)

मुख्य विशेषताएँ:

(i) निष्पक्षता (Impartiality):- चयन की प्रक्रिया में किसी भी व्यक्ति या वस्तु के प्रति पक्षपात नहीं होता।

(ii) समान अवसर (Equal Chance):- प्रत्येक इकाई को चयनित होने का समान अवसर प्रदान किया जाता है।

(iii) सरलता (Simplicity):- यह विधि समझने और प्रयोग करने में सरल होती है।

(iv) प्राकृतिक प्रतिनिधित्व (True Representation):- यह विधि जनसंख्या के सही प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करती है।

दैव निदर्शन के लाभ:

⇒ यह विधि पूर्वाग्रह-मुक्त परिणाम प्रदान करती है।

⇒ प्राप्त नमूना जनसंख्या का सही प्रतिनिधि होता है।

⇒ परिणामों की सामान्यीकरण क्षमता (Generalizability) अधिक होती है।

⇒ यह सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए उपयुक्त होती है।

⇒ इसकी प्रक्रिया वैज्ञानिक और विश्वसनीय होती है।

दैव निदर्शन की सीमाएँ:

⇒ यदि जनसंख्या बहुत बड़ी हो, तो सभी इकाइयों की सूची तैयार करना कठिन होता है।

⇒ कभी-कभी यादृच्छिक रूप से चुने गए नमूने जनसंख्या का पूर्ण प्रतिनिधित्व नहीं कर पाते।

⇒ तकनीकी या समय-संबंधी सीमाओं के कारण इसका प्रयोग हमेशा व्यावहारिक नहीं होता।

निष्कर्ष:

    दैव निदर्शन विधि अनुसंधान में निष्पक्षता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने का एक सशक्त माध्यम है। यह न केवल डेटा संग्रहण की प्रक्रिया को वैज्ञानिक बनाती है, बल्कि परिणामों की सटीकता को भी बढ़ाती है। यद्यपि इसमें कुछ व्यावहारिक कठिनाइयाँ हैं, फिर भी यह शोध पद्धति में सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रभावशाली सैम्पलिंग तकनीक मानी जाती है।



2. वर्गीय निदर्शन प्रणाली

(Stratified Sampling method):-

      वर्गीय निदर्शन प्रणाली में समग्र (Whole) को सजातीय वर्गों में बाँटकर प्रत्येक वर्ग में निश्चित संख्या में इकाईयाँ दैव निदर्शन आधार पर चयनित की जाती है। इसमें शोधकर्ता समग्र की सभी विशेषताओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेता है और इसी आधार पर वह सम्पूर्ण को वर्गों में बाँट देता है। इसके बाद प्रत्येक वर्ग में से निदर्शन का चयन करता है। सभी वर्गों से अलग-अलग निदर्शन चुनकर उन्हें मिला दिया जाता है जिसके द्वारा पूर्ण निदर्शन प्राप्त हो जाता है।

   अर्थात सांख्यिकी (Statistics) और अनुसंधान (Research) में डेटा संग्रहण के लिए विभिन्न प्रकार की नमूना पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं। इन पद्धतियों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण और विश्वसनीय पद्धति है स्तरीकृत नमूना पद्धति (Stratified Sampling Method)। यह एक संभाव्यता-आधारित (Probability-based) नमूना चयन की तकनीक है, जिसमें संपूर्ण जनसंख्या (Population) को विभिन्न उपसमूहों या “स्तरों” (Strata) में विभाजित किया जाता है, ताकि प्रत्येक स्तर से प्रतिनिधि नमूना प्राप्त किया जा सके।

उद्देश्य:

        इस पद्धति का प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है-

⇒ नमूने में विविधता को नियंत्रित करना।

⇒ जनसंख्या के प्रत्येक उपसमूह को उचित प्रतिनिधित्व देना।

⇒ परिणामों की सटीकता (Accuracy) और विश्वसनीयता (Reliability) बढ़ाना।

प्रक्रिया (Steps):

(i) जनसंख्या की पहचान (Identification of Population):-

      पहले उस संपूर्ण जनसंख्या का निर्धारण किया जाता है, जिसके बारे में जानकारी प्राप्त करनी है।

(ii) स्तरीकरण (Stratification):-

     इसके बाद जनसंख्या को किसी समान विशेषता के आधार पर अलग-अलग स्तरों में बाँटा जाता है। उदाहरण – यदि एक विद्यालय के छात्रों का अध्ययन करना है, तो उन्हें कक्षा, लिंग या विषय के आधार पर विभाजित किया जा सकता है।

(iii) नमूना चयन (Selection of Sample):-

     प्रत्येक स्तर से यादृच्छिक या अनुपातिक संख्या में व्यक्तियों का चयन किया जाता है।

(iv) डेटा संग्रहण (Data Collection):-

       चुने गए नमूनों से आवश्यक सूचनाएँ एकत्र की जाती हैं।

(v) विश्लेषण (Analysis):-

      अंततः संपूर्ण डेटा का विश्लेषण कर निष्कर्ष निकाला जाता है।

प्रकार (Types of Stratified Sampling):

1. अनुपातिक स्तरीकृत नमूना (Proportionate Stratified Sampling):-

      इसमें प्रत्येक स्तर से उसी अनुपात में नमूना लिया जाता है, जिस अनुपात में वह संपूर्ण जनसंख्या में उपस्थित है।

2. अननुपातिक स्तरीकृत नमूना (Disproportionate Stratified Sampling):-

      इसमें प्रत्येक स्तर से समान या विशेष अनुपात में नमूना लिया जाता है, चाहे उसका वास्तविक अनुपात जनसंख्या में कुछ भी हो।

लाभ (Advantages):

⇒ यह विधि नमूना त्रुटि (Sampling Error) को कम करती है।

⇒ प्रत्येक उपसमूह का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है।

⇒ विश्लेषण अधिक सटीक और विस्तृत रूप से किया जा सकता है।

⇒ छोटे-छोटे भिन्नताओं को भी पहचाना जा सकता है।

सीमाएँ (Limitations):

⇒ यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत समय-साध्य और महँगी होती है।

⇒ स्तरों का सही निर्धारण करना कठिन होता है।

⇒ यदि स्तरों के भीतर एकरूपता न हो, तो परिणाम भ्रामक हो सकते हैं।

उदाहरण:

     मान लीजिए किसी विश्वविद्यालय में 5000 विद्यार्थी हैं — 3000 स्नातक (UG), 1500 स्नातकोत्तर (PG), और 500 शोधार्थी (PhD)। यदि शोधकर्ता 10% का नमूना लेना चाहता है, तो स्तरीकृत नमूना पद्धति के अनुसार वह 300 UG, 150 PG, और 50 PhD छात्रों को यादृच्छिक रूप से चुन लेगा। इस प्रकार प्रत्येक समूह का उचित प्रतिनिधित्व होगा।

निष्कर्ष:

     इस प्रकार स्तरीकृत नमूना पद्धति अनुसंधान में अत्यंत प्रभावी होती है क्योंकि यह जनसंख्या के सभी उपसमूहों को शामिल कर एक संतुलित और विश्वसनीय परिणाम प्रदान करती है। यद्यपि इसमें समय और संसाधनों की अधिक आवश्यकता होती है, फिर भी यह वैज्ञानिक दृष्टि से सबसे सटीक नमूना चयन विधियों में से एक मानी जाती है।



3. उद्देश्यपूर्ण न्यादर्श प्रणाली

(Purposive Sampling  या Judgmental Sampling):-

      जब अध्ययनकर्ता सम्पूर्ण समूह (Whole) में से किसी विशेष उद्देश्य से कुछ इकाईयाँ निदर्शन के रूप में चयनित करता है, उसे उद्देश्यपूर्ण सप्रयोजन या सविचार निदर्शन प्रणाली कहा जाता है। इस प्रणाली के द्वारा पक्षपात की संभावना अधिक रहती है क्योंकि शोधकर्ता अपनी इच्छानुसार इकाइयों का चयन करता है। सम्पूर्ण समूह की इकाइयों से शोधकर्ता पहले से परिचित समूह होता है। इस प्रणाली द्वारा यथासंभव उद्देश्य की पूर्ति होती है।

      अर्थात उद्देश्यपूर्ण न्यादर्श प्रणाली एक असंभाव्य (Non-probability) नमूना चयन पद्धति है, जिसमें शोधकर्ता अपने अध्ययन के उद्देश्य, अनुभव और ज्ञान के आधार पर नमूना चुनता है। इसमें जनसंख्या के प्रत्येक सदस्य को चुने जाने की समान संभावना नहीं होती, बल्कि केवल वे इकाइयाँ चयनित की जाती हैं जो शोध के उद्देश्य से सबसे अधिक संबंधित होती हैं।

      इस पद्धति का मुख्य उद्देश्य अध्ययन की प्रकृति के अनुरूप ऐसे व्यक्तियों, समूहों या क्षेत्रों का चयन करना है जो आवश्यक सूचनाएँ देने में सक्षम हों। उदाहरण के लिए, यदि शोध “कृषि में तकनीकी नवाचार” पर है, तो केवल उन्हीं किसानों का चयन किया जाएगा जिन्होंने नई तकनीक अपनाई हो।

उद्देश्यपूर्ण नमूना चयन के प्रकार:

(i) समानुपातिक उद्देश्यपूर्ण नमूना (Homogeneous Sampling):-

          इसमें एक जैसे गुणों वाले व्यक्तियों या समूहों का चयन किया जाता है।

(ii) विविधतापूर्ण नमूना (Heterogeneous Sampling):-

         इसमें विभिन्न प्रकार के लोगों या समूहों को शामिल किया जाता है ताकि विविध विचार मिल सकें।

(iii) सर्वोत्तम केस नमूना (Typical Case Sampling):-

       किसी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले सामान्य या विशिष्ट उदाहरणों का चयन किया जाता है।

(iv) चरम या असामान्य केस नमूना (Extreme Case Sampling):-

       इसमें विशेष रूप से उत्कृष्ट या असामान्य मामलों का अध्ययन किया जाता है।

(v) विशेषज्ञ नमूना (Expert Sampling):-

       इसमें किसी विषय के विशेषज्ञों का चयन कर उनसे जानकारी प्राप्त की जाती है।

मुख्य विशेषताएँ:

(i) विवेकाधारित चयन:-

        इस प्रणाली में नमूने का चयन शोधकर्ता के विवेक, अनुभव और अध्ययन के लक्ष्य के आधार पर किया जाता है।

(ii) उद्देश्य-निष्ठ पद्धति:-

       नमूना चयन का उद्देश्य विशेष समस्या या जनसंख्या वर्ग के व्यवहार, विचार या प्रवृत्ति का गहन अध्ययन करना होता है।

(iii) लचीलापन (Flexibility):-

      इसमें चयन की प्रक्रिया में कोई कठोर नियम नहीं होते, जिससे शोधकर्ता अपने अनुसार उपयुक्त इकाइयाँ चुन सकता है।

(iv) गुणात्मक शोध के लिए उपयोगी:-

         यह विधि विशेषतः समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, शिक्षा और नृविज्ञान जैसे क्षेत्रों में उपयोगी होती है जहाँ गुणात्मक जानकारी का संकलन आवश्यक होता है।

(v) लागत और समय की बचत:-

       चूँकि केवल विशेष व्यक्तियों का चयन किया जाता है, इसलिए यह प्रणाली समय और संसाधन दोनों की दृष्टि से लाभकारी होती है।

लाभ (Advantages):

⇒ यह प्रणाली विशिष्ट विषय पर गहन और सटीक जानकारी प्रदान करती है।

⇒ सीमित समय और संसाधनों में भी अध्ययन संभव होता है।

⇒ शोधकर्ता को अध्ययन की दिशा और दायरे पर पूर्ण नियंत्रण रहता है।

⇒ दुर्लभ या संवेदनशील समूहों (जैसे अपराधी, मरीज, शोध विशेषज्ञ आदि) के अध्ययन में अत्यंत उपयोगी है।

सीमाएँ (Limitations):

⇒ इसमें शोधकर्ता की व्यक्तिगत पक्षपात (Bias) की संभावना अधिक होती है।

⇒ चयनित नमूना पूरी जनसंख्या का सही प्रतिनिधित्व नहीं कर पाता।

⇒ इसके निष्कर्षों का सामान्यीकरण (Generalization) कठिन होता है।

⇒ यह वैज्ञानिक दृष्टि से संभाव्यता आधारित विधियों की तुलना में कम विश्वसनीय मानी जाती है।

निष्कर्ष:

     इस प्रकार उद्देश्यपूर्ण न्यादर्श प्रणाली एक ऐसी विधि है जिसमें शोधकर्ता अपने विवेक, अनुभव और शोध उद्देश्यों के अनुरूप उपयुक्त व्यक्तियों या समूहों का चयन करता है। यह विधि विशेष रूप से गुणात्मक अनुसंधानों के लिए उपयोगी है जहाँ उद्देश्य किसी समस्या की गहराई तक जाना होता है, न कि सांख्यिकीय निष्कर्ष प्राप्त करना। हालाँकि इसमें पक्षपात की संभावना बनी रहती है, फिर भी यह सामाजिक विज्ञानों में अनुसंधान की एक अत्यंत प्रभावी और व्यावहारिक पद्धति मानी जाती है।

I ‘Dr. Amar Kumar’ am working as an Assistant Professor in The Department Of Geography in PPU, Patna (Bihar) India. I want to help the students and study lovers across the world who face difficulties to gather the information and knowledge about Geography. I think my latest UNIQUE GEOGRAPHY NOTES are more useful for them and I publish all types of notes regularly.

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