14. WTO (विश्व व्यापार संगठन) की स्थापना के उद्देश्य एवं कार्य
14. WTO (विश्व व्यापार संगठन) की स्थापना के उद्देश्य एवं कार्य

प्रश्न प्रारूप
Q. विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना के उद्देश्यों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- ओपेक जैसे संगठनों के अस्तित्व और वस्तुओं के आयात पर भारी प्रशुल्कों से विश्व में वस्तुओं एवं सेवाओं के मुक्त व्यापार में कृत्रिम बाधा उपस्थित होती है। इन कृत्रिम बाधाओं को दूर करने के लिए तथा अपनी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विकास हेतु तथा मुक्त व्यापार को प्रोत्साहित करने हेतु अनेक देशों ने प्रादेशिक स्तर पर साझा बाजार की स्थापना की है।
इस प्रकार के साझा बाजार का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों के बीच कृत्रिम बाधाओं को दूर करते हुए वस्तुओं एवं सेवाओं के मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना है। साझा बाजार के सदस्य देश अपनी वस्तुओं का आयात-निर्यात बिना किसी प्रतिस्पर्द्धा, भेदभाव और प्रशुल्क दरों के बीच स्वतंत्रतापूर्वक कर सकते हैं।
इस प्रकार के साझा बाजारों में यूरोपियन आर्थिक समुदाय (EEC) या यूरोपियन संघ (EC) या यूरोपियन साझा बाजार (ECM) उल्लेखनीय हैं जिसकी स्थापना 1951 में 6 यूरोपियन देशों द्वारा अपने कोयला और इस्पात उद्योग के समन्वय विकास हेतु हुई।
वर्तमान में 15 सदस्य देशों के साथ यह एक शक्तिशाली साझा बाजार व्यवस्था है। अन्य साझा बाजार व्यवस्था वाले संगठनों में 1994 में कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और मेक्सिको द्वारा स्थापित उत्तरी अमेरिका मुक्त व्यापार समझौता (नाफ्टा), 1973 में 13 केरीबियन देशों द्वारा स्थापित केरीबियन समुदाय और साझा बाजार (केरीकोम), 1969 में स्थापित लैटिन अमेरिकी स्वतंत्र व्यापार संघ (लाफ्टा) उल्लेखनीय हैं।
देशों के बीच मुक्त व्यापार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों के अन्तर्गत हवाना में 1947-48 में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें 53 देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन का गठन करने सम्बन्धी एक चार्टर पर हस्ताक्षर किए, किन्तु अमेरिका का समर्थन न मिल पाने के कारण विश्व व्यापार संगठन स्थापित नहीं किया जा सका।
अन्ततः विश्व व्यापार संगठन की स्थापना 1.1.1995 को प्रशुल्क और व्यापार सम्बन्धी सामान्य करार (General Agreement on Trade and Tarrif) (GATT) के उरुग्वे दौर में हुए समझौते के परिणामस्वरूप हुई। विश्व व्यापार संगठन (WTO) का मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा (Geneva) शहर में स्थित है।
प्रशुल्क और व्यापार सम्बन्धी करार (गैट):-
गेट एक बहुपक्षीय व्यापार सन्धि है जो जेनेवा में 23 देशों के मध्य हुए समझौते के आधार पर 1 जनवरी, 1948 से लागू हुई। इसका उद्देश्य परस्पर सहमति द्वारा व्यापारिक प्रतिबन्धों को समाप्त करना था। गैट वार्ताओं के अब तक कुल बारह चक्र आयोजित किए गए हैं। उरुग्वे के पश्चात् दोहा और कानकुन में इन वार्ताओं के दौर आयोजित किए जा चुके हैं।
सात वर्षीय उरुग्वे दौर में चार नए समझौते हुए जो अब डब्ल्यू. टी. ओ. के मूलभूत समझौते के भाग हैं। ये समझौते निम्न हैं-
1. व्यापार सम्बन्धी बौद्धिक सम्पदा अधिकार (ट्रिप्स),
2. व्यापार सम्बन्धी निवेश उपाय (ट्रिम्स),
3. सेवाओं में व्यापार का सामान्य समझौता (गैट्स)
4. कृषि।
विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य
डंकल समझौते के अन्तर्गत ही गैट के स्थान पर 1 जनवरी, 1995 को विश्व व्यापार संगठन अस्तित्व में आया। इस संगठन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-
(i) जीवन-स्तर में वृद्धि करना।
(ii) पूर्ण रोजगार एवं प्रभावपूर्ण मांग में वृहत्स्तरीय एवं ठोस वृद्धि करना।
(iii) वस्तुओं के उत्पादन एवं व्यापार का विस्तार करना।
(iv) सेवाओं के उत्पादन एवं व्यापार का विस्तार करना।
(v) विश्व के संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करना।
(vi) सुस्थिर या टिकाऊ विकास की आवधारणा को स्वीकार करना।
(vii) पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण करना।
(viii) विकास के वैयक्तिक स्तरों की आवश्यकता के साथ निरन्तर चलते रहने के साधनों में वृद्धि करना।
इन उद्देश्यों में प्रथम तीन गैट के भी उद्देश्य थे। गैट के उद्देश्यों में विश्व संसाधनों के पूर्ण उपयोग की बात कही गई थी जबकि विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्यों में विश्व संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग पर अधिक बल दिया गया तथा सुस्थिर विकास एवं पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण के उद्देश्यों को भी जोड़ा गया है।
अतः विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य अधिक व्यापक एवं प्रभावी हैं। विश्व व्यापार संगठन की प्रस्तावना में विकासशील देशों और विशेष रूप से कम विकसित देशों के लिए ऐसे सकारात्मक प्रयासों की आवश्यकता बताई गई जो उनकी विकासात्मक आवश्यकताओं के अनुरूप अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में उनकी हिस्सेदारी को बढ़ा सकें।
विश्व व्यापार संगठन के प्रमुख कार्य
विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्यों को मूर्तरूप देने के लिए विश्व व्यापार संगठन के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:-
(i) अन्तर्राष्ट्रीय समझौते से सम्बन्धित विचार विमर्श के लिए एक सामूहिक संस्थागत मंच के रूप में काम करना।
(ii) विश्व व्यापार समझौता, बहुपक्षीय तथा बहुवचनीय समझौते के क्रियान्वयन, प्रशासन तथा परिचालन हेतु सुविधाएं प्रदान करना।
(iii) व्यापार एवं प्रशुल्क सम्बन्धी किसी भी मसले पर सदस्यों को विचार-विमर्श हेतु मंच प्रदान करना।
(iv) व्यापार नीति समीक्षा प्रक्रिया (Trade Policy Revise mechanism) से सम्बन्धित नियमों एवं प्रावधानों को लागू करना।
(v) सदस्य राष्ट्रों के बीच विवादों के निपटारे से सम्बन्धित नियमों एवं प्रक्रियाओं को प्रशासित करना।
(vi) वैश्विक आर्थिक नीति निर्माण में अधिक सामजस्य भाव लाने हेतु विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से पूरा-पूरा सहयोग करना।
(vii) विश्व में संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग को बढ़ावा देना।
इस प्रकार विश्व व्यापार संगठन के कार्यों में उन सभी बातों का समावेश है जिससे उसके सदस्य देशों को समझौते से सम्बन्धित मामलों पर विचार विमर्श का एक सामूहिक संस्थागत मंच प्राप्त होने के साथ-साथ एक एकीकृत स्थायी एवं मजबूत बहुपक्षीय प्रणाली द्वारा व्यापार सम्बन्धों को बढ़ाने, वैधानिक ढंग से विवादों के निपटाने और व्यापार नीति समीक्षा प्रक्रिया के प्रावधानों को लागू करने में सहायता मिलेगी।
गैट और उसके पश्चात् विश्व व्यापार संगठन के गठन होने से प्रायः सभी देश इसकी नीतियां एवं प्रावधानों से प्रभावित हुए हैं। 90 के दशक से विश्व स्तर पर उदारीकरण और वैश्वीकरण द्रुतगति से प्रसारित हो रहे हैं। प्रत्येक देश इनका लाभ उठाने के लिए अपनी नीतियों में संशोधन कर रहा है।
उत्तर लिखने का दूसरा तरीका
विश्व व्यापार संगठन
(World Trade Organisation)
परिचय
विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जिसका मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों के बीच व्यापार को मुक्त, पारदर्शी, संतुलित और विवाद-रहित बनाना है।
इसका गठन 1 जनवरी 1995 को किया गया था। इससे पहले विश्व व्यापार व्यवस्था को नियंत्रित करने वाला मुख्य समझौता GATT (General Agreement on Tariffs and Trade – 1948) था, जिसे आगे बढ़ाते हुए WTO की स्थापना की गई।
WTO आज वैश्विक व्यापार का सबसे प्रभावशाली संस्थान है, जिसमें 160 से अधिक देश सदस्य हैं। यह न केवल व्यापार नियमों को निर्धारित करता है, बल्कि व्यापार से जुड़े विवादों का समाधान भी करता है।
WTO की संरचना एवं कार्यप्रणाली
WTO एक सदस्य-चालित संगठन है, अर्थात् इसके सभी निर्णय सदस्य देशों की सहमति से लिए जाते हैं। इसकी प्रमुख संस्थाएँ हैं-
1. मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (Ministerial Conference):–
सर्वोच्च नीति-निर्माण निकाय; हर दो वर्ष में बैठक।
2. सामान्य परिषद (General Council):-
दैनिक कार्यों का संचालन; यही विवाद निपटान निकाय (DSB) और व्यापार नीति समीक्षा निकाय (TPRB) के रूप में भी कार्य करता है।
3. विभिन्न समितियाँ:-
कृषि, सेवाएँ, बौद्धिक संपदा (TRIPS), निवेश, प्रतिस्पर्धा आदि।
WTO सभी सदस्यों पर एक समान नियम लागू करता है। इसका प्रमुख सिद्धांत ‘Most Favoured Nation – MFN’ है, जिसके तहत एक देश किसी सदस्य को जो व्यापार लाभ देता है, वह सभी सदस्यों को देना पड़ता है।
WTO के प्रमुख समझौते
1. GATT–1994 (वस्तु व्यापार):-
वस्तुओं पर टैरिफ कम करना, गैर-टैरिफ बाधाओं को हटाना।
2. GATS (सेवाओं पर व्यापार):-
बैंकिंग, बीमा, शिक्षा, पर्यटन आदि सेवाओं का उदारीकरण।
3. TRIPS (बौद्धिक संपदा अधिकार):-
पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क की सुरक्षा।
4. TRIMS (निवेश संबंधी उपाय):-
निवेश पर भेदभाव खत्म करना।
5. कृषि समझौता (AoA):-
कृषि सब्सिडी, बाजार पहुंच और निर्यात सब्सिडी का नियमन।
WTO के उद्देश्य
इस संगठन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-
(i) जीवन-स्तर में वृद्धि करना।
(ii) पूर्ण रोजगार एवं प्रभावपूर्ण मांग में वृहत्स्तरीय एवं ठोस वृद्धि करना।
(iii) वस्तुओं के उत्पादन एवं व्यापार का विस्तार करना।
(iv) सेवाओं के उत्पादन एवं व्यापार का विस्तार करना।
(v) विश्व के संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करना।
(vi) सुस्थिर या टिकाऊ विकास की आवधारणा को स्वीकार करना।
(vii) पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण करना।
(viii) विकास के वैयक्तिक स्तरों की आवश्यकता के साथ निरन्तर चलते रहने के साधनों में वृद्धि करना।
(ix) अंतरराष्ट्रीय व्यापार में मुक्त प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना।
(x) टैरिफ और अन्य प्रतिबंधों को कम कर व्यापार को सरल और पारदर्शी बनाना।
(xi) व्यापार विवादों का निष्पक्ष समाधान करना।
(xii) विकासशील देशों की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखना।
WTO और विकासशील देश
WTO अपने नियमों में विकासशील और अल्प विकसित देशों को विशेष और भिन्न सुविधा (Special and Differential Treatment) देने की व्यवस्था करता है।
⇒ उन्हें कुछ समझौतों को लागू करने के लिए अधिक समय मिलता है।
⇒ निर्यात क्षमता बढ़ाने के लिए तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
⇒ अल्प विकसित देशों को बाजार पहुंच में विशेष रियायत मिलती है।
परंतु अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि WTO विकसित देशों के हितों की अधिक रक्षा करता है और विकासशील देशों की आवाज उतनी प्रभावशाली नहीं होती।
WTO और भारत
भारत WTO का संस्थापक सदस्य है। WTO में भारत की भागीदारी का प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों में देखा जाता है।
सकारात्मक प्रभाव
1. निर्यात अवसरों में वृद्धि:- सेवाओं के क्षेत्र, विशेषकर IT और BPO (Business process outsourcing) में भारत को भारी लाभ मिला।
2. प्रतिस्पर्धा में वृद्धि:- उद्योगों ने बेहतर तकनीक अपनाई और निर्यात-उन्मुख उत्पादन बढ़ा।
3. कृषि निर्यात में सुधार:- मसाले, चाय, कॉफी, समुद्री उत्पादों के निर्यात में बढ़ोतरी।
4. FDI प्रवाह में वृद्धि:- वैश्विक व्यापार मानकों के कारण निवेश में पारदर्शिता आई।
नकारात्मक प्रभाव
1. कृषि क्षेत्र पर दबाव:- विकसित देशों द्वारा भारी सब्सिडी के कारण भारतीय किसानों को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा मुश्किल।
2. दवा क्षेत्र में प्रभाव:- TRIPS समझौते के कारण दवाओं पर पेटेंट नियम कड़े हुए, जिससे सस्ती जनरिक दवाओं का उत्पादन सीमित हो सकता है।
3. आयात में वृद्धि:- सस्ते विदेशी उत्पादों के कारण घरेलू उद्योग पर दबाव बढ़ा।
4. निर्णय लेने में असमानता:- WTO में विकसित देशों का प्रभाव अधिक माना जाता है।
WTO की आलोचनाएँ
⇒ यह संगठन बहुराष्ट्रीय कंपनियों और विकसित देशों को अधिक लाभ पहुंचाता है।
⇒ कृषि सब्सिडियों के मामले में असमानता विकसित देश अधिक सब्सिडी देते हैं जबकि विकासशील देशों पर रोक।
⇒ पर्यावरण और श्रम मानकों पर स्पष्ट नियम नहीं।
⇒ TRIPS समझौता गरीब देशों की स्वास्थ्य सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है।
⇒ निर्णय-प्रक्रिया बहुत जटिल और धीमी है।
WTO के समक्ष चुनौतियाँ
1. वैश्विक संरक्षणवाद का बढ़ना:-
कई देश घरेलू उद्योग बचाने के लिए प्रतिबंध बढ़ा रहे हैं।
2. विवाद निपटान तंत्र में संकट:-
अपीलीय निकाय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में अड़चनें।
3. डिजिटल व्यापार:-
नए नियम बनाने की आवश्यकता।
4. कृषि सुधार:-
विकसित देशों की सब्सिडी नीति WTO को चुनौती देती है।
5. बहुपक्षीय वार्ताओं में गतिरोध:- दोहा विकास एजेंडा वर्षों से अधर में।
भारत की मांगें और रुख
⇒ कृषि सब्सिडियों में न्यायसंगत नियम।
⇒ खाद्य सुरक्षा के लिए Public Stockholding व्यवस्था को स्थायी समाधान।
⇒ विकासशील देशों की विशेष सुविधाएँ जारी रहें।
⇒ सेवाओं में Mode-4 (लो-कॉस्ट वर्कफोर्स मूवमेंट) को मजबूत करना।
⇒ भारत WTO में विकासशील देशों की सामूहिक आवाज को मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
निष्कर्ष
WTO वैश्विक व्यापार व्यवस्था का केंद्रीय स्तंभ है, जिसने दुनिया भर में व्यापार को अधिक उदार और पारदर्शी बनाया है। हालांकि इसके सामने चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं विशेषकर विकसित और विकासशील देशों के बीच असमानता, कृषि सब्सिडी, और पेटेंट नियमों के विवाद।
भारत जैसे विकासशील देशों के लिए WTO एक अवसर और चुनौती दोनों है। सही नीति-निर्माण, सामूहिक कूटनीति और राष्ट्रीय हितों के साथ तालमेल रखते हुए WTO भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर और मजबूत बनाने में सहायक हो सकता है।
नोट:
GATT: The General Agreement on Tariffs and Trade
GATS: The General Agreement on Trade in Services
TRIPS: The Agreement on Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights
TRIMS: The Agreement on Trade-Related Investment Measures
♣ लो-कॉस्ट वर्कफोर्स मूवमेंट (Low-Cost Workforce Movement):-
यह एक ऐसा श्रम-गतिशीलता (labour mobility) मॉडल है, जिसमें कम लागत पर उपलब्ध श्रमिक एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र, या एक देश से दूसरे देश में आर्थिक अवसरों, जीवन-स्तर सुधार और रोजगार सुरक्षा की तलाश में स्थानांतरित होते हैं। यह अवधारणा मुख्यतः वैश्वीकरण, औद्योगिकीकरण और सेवा क्षेत्र के तेज विस्तार से जुड़ी है।
