45. White Revolution in India (भारत में श्वेत क्रांति)
White Revolution in India
(भारत में श्वेत क्रांति)
भारत में श्वेत क्रांति (White Revolution in India):-
भारत की श्वेत क्रांति जिसे ‘ऑपरेशन फ्लड’ के नाम से भी जाना जाता है, वर्ष 1970 में शुरू की गई एक पहल थी जिसका मुख्य उद्देश्य दूध उत्पादन को बढ़ाने के साथ-साथ भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बनाना था।
इस क्रांति का नेतृत्व डॉ० वर्गीज कुरियन ने किया था, जिन्हें ‘श्वेत क्रांति का जनक’ भी कहा जाता है।
ऑपरेशन फ्लड (Operation Flood) वह कार्यक्रम है जिसके कारण “श्वेत क्रांति” हुई। इसने पूरे भारत में उत्पादकों को 700 से अधिक कस्बों और शहरों में उपभोक्ताओं से जोड़ने वाला एक राष्ट्रीय दूध ग्रिड बनाया और मौसमी और क्षेत्रीय मूल्य भिन्नताओं को कम किया, जबकि यह सुनिश्चित किया कि बिचौलियों को खत्म करके उत्पादकों को लाभ का बड़ा हिस्सा मिले।
ऑपरेशन फ्लड की नींव में गाँव के दूध उत्पादकों की सहकारी समितियाँ हैं, जो दूध खरीदती हैं और इनपुट और सेवाएँ प्रदान करती हैं, जिससे सभी सदस्यों को आधुनिक प्रबंधन और तकनीक उपलब्ध होती है।
श्वेत क्रांति का इतिहास (History of White Revolution)
वर्ष 1964-1965 के दौरान भारत में सघन पशु विकास कार्यक्रम शुरू किया गया था, जिसमें देश में श्वेत क्रांति को बढ़ावा देने के लिए पशुपालकों को उन्नत पशुपालन का पैकेज प्रदान किया गया था। बाद में, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड ने देश में श्वेत क्रांति की गति बढ़ाने के लिए “ऑपरेशन फ्लड” नामक एक नया कार्यक्रम शुरू किया।
ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत 1970 में हुई थी और इसका उद्देश्य देश भर में दूध ग्रिड बनाना था। यह NDDB (भारतीय राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड) द्वारा शुरू किया गया एक ग्रामीण विकास कार्यक्रम था।
जब ऑपरेशन फ्लड को लागू किया गया था, तब डॉ. वर्गीस कुरियन राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अध्यक्ष थे। अपने शानदार प्रबंधन कौशल के साथ डॉ. कुरियन ने सहकारी समितियों को क्रांति हेतु सशक्त बनाने के लिए आगे बढ़ाया। इस प्रकार, उन्हें भारत की ‘श्वेत क्रांति का वास्तुकार’ माना जाता है।
कई बड़ी-बड़ी कंपनियों ने इसमें भाग लिया और इस क्रांति को सशक्त बनाया जिसने भारत में ऑपरेशन फ्लड को श्वेत क्रांति में बदल दिया। गुजरात स्थित सहकारी संस्था अमूल-आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड ने ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारत में श्वेत क्रांति के उद्देश्य (Objectives of White Revolution in India)
श्वेत क्रांति के उद्देश्य निम्नलिखित थे:-
⇒ दूध की खरीद, परिवहन और भंडारण का प्रबंधन शीतलन संयंत्रों में करना।
⇒ पशुओं के लिए चारा उपलब्ध कराना।
⇒ सहकारी समितियों द्वारा विभिन्न दुग्ध उत्पादों का उत्पादन और विपणन करना
⇒ बेहतर मवेशी नस्लों (गाय और भैंस), स्वास्थ्य सेवाएँ, पशु चिकित्सा, कृत्रिम गर्भाधान सुविधाएँ और विस्तार सेवाएँ प्रदान करना।
⇒ सहकारी समितियों के विस्तृत नेटवर्क पर आधारित तकनीक के माध्यम से डेयरी उद्योग का प्रबंधन करना।
⇒ गांव के संग्रहण केंद्र पर दूध एकत्र करने के बाद उसे तुरंत दूध शीतलन केंद्र स्थित डेयरी संयंत्र में पहुँचाना।
⇒ शीतलन केन्द्रों का प्रबंधन उत्पादक सहकारी संघों द्वारा किया जाता है, ताकि उनसे कुछ दूरी पर रहने वाले उत्पादकों से दूध एकत्रित करने में सुविधा हो, जिससे बिचौलियों की भूमिका समाप्त की जा सके।
ऑपरेशन फ्लड का महत्व एवं विशेषताएँ (Importance and features of Operation Flood)
(i) दूध उत्पादन में वृद्धि (Increase in milk production):–
इस क्रांति ने भारत के दूध उत्पादन को काफी हद तक बढ़ावा दिया, जिससे देश दुनिया भर में सबसे बड़े दूध उत्पादकों में से एक बन गया। इससे बड़ी आबादी को दूध और डेयरी उत्पादों की उपलब्धता सुनिश्चित हुई।
(ii) ग्रामीण विकास और रोजगार (Rural development and employment):-
इस क्रांति ने लाखों छोटे पैमाने के डेयरी किसानों के लिए आय का एक स्थायी स्रोत प्रदान किया, जिससे ग्रामीण आर्थिक विकास हुआ और डेयरी क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा हुए।
(iii) डेयरी उत्पादों में आत्मनिर्भरता (Self-sufficiency in dairy products):-
भारत दूध की कमी वाले देश से आत्मनिर्भर बन गया है, आयात पर निर्भरता कम हो गई है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो गई है।
(iv) बेहतर पोषण (Better Nutrition):–
दूध और डेयरी उत्पादों की बढ़ती उपलब्धता ने विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर पोषण में योगदान दिया, जिससे कुपोषण से निपटने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद मिली।
(v) महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment):–
कई महिलाएं डेयरी फार्मिंग में सक्रिय रूप से शामिल थीं, और इस क्रांति ने उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया, घरेलू निर्णय लेने और सामुदायिक जीवन में उनकी भूमिका को बढ़ाया।
(vi) आर्थिक विकास (Economic development):-
श्वेत क्रांति ने भारत की जीडीपी को बढ़ावा दिया, जिससे कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को बल मिला।
(vii) सहकारी समितियों का गठन (Formation of co-operative societies):-
श्वेत क्रांति के तहत, सहकारी समितियों का एक मजबूत नेटवर्क स्थापित किया गया, जिसने दूध के संग्रह, प्रसंस्करण और वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(viii) आधुनिक तकनीकों का उपयोग (Use of modern techniques):-
श्वेत क्रांति ने डेयरी फार्मिंग में आधुनिक तकनीकों के उपयोग को बढ़ावा दिया, जिससे दूध उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार हुआ।
(ix) किसानों को सशक्त बनाना (Empowering the farmers):-
श्वेत क्रांति ने किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्त करने और अपनी उपज को संसाधित करने के लिए सहकारी समितियों के माध्यम से संगठित होने के लिए प्रोत्साहित किया।
भारत में श्वेत क्रांति के विभिन्न चरण (Different Phases of White Revolution in India)
ऑपरेशन फ्लड तीन चरणों में शुरू किया गया था जिनकी चर्चा नीचे की गई है:-
1. पहला चरण / First Phase (1970-1980):-
पहला चरण 1970 से शुरू हुआ और 10 वर्षों तक यानि 1980 तक चला। इस चरण का वित्तपोषण विश्व खाद्य कार्यक्रम के माध्यम से यूरोपीय संघ द्वारा दान किए गए मक्खन तेल और स्किम्ड मिल्क पाउडर की बिक्री से किया गया था।
कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन के लिए, पहले चरण के प्रारंभिक चरण में कुछ लक्ष्य निर्धारित किए गए थे। ऐसा ही एक लक्ष्य था, लक्ष्यों को पूरा करने के लिए महानगरों में दूध की विपणन रणनीति में सुधार करना।
2. दूसरा चरण / Second Phase (1981-1985):-
दूसरा चरण 1981 से 1985 तक पाँच वर्षों तक चला। इस चरण के दौरान, दूध शेडों की संख्या 18 से बढ़कर 136 हो गई, दूध की दुकानों का विस्तार लगभग 290 शहरी बाजारों तक किया गया, एक आत्मनिर्भर प्रणाली स्थापित की गई जिसमें 43,000 ग्रामीण सहकारी समितियों में फैले 4,250,000 दूध उत्पादक शामिल थे।
घरेलू दूध पाउडर का उत्पादन वर्ष 1980 में 22,000 टन से बढ़कर 1989 तक 140,000 टन हो गया, और सहकारी समितियों द्वारा दूध के प्रत्यक्ष विपणन के कारण दूध की बिक्री में भी प्रतिदिन कई मिलियन लीटर की वृद्धि हुई। उत्पादन में सभी वृद्धि केवल ऑपरेशन फ्लड के तहत स्थापित डेयरियों की वजह से हुई।
3. तीसरा चरण / Third Phase (1985-1996):-
तीसरा चरण भी लगभग 10 वर्षों तक चला, यानी 1985-1996 तक। इस चरण ने डेयरी सहकारी समितियों को विस्तार करने में सक्षम बनाया और कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया। इसने दूध की बढ़ती मात्रा की खरीद और विपणन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे को भी मजबूत किया।
श्वेत क्रांति या ऑपरेशन फ्लड के अंत में 73,930 डेयरी सहकारी समितियां स्थापित की गईं, जिनसे 3.5 करोड़ से अधिक डेयरी किसान सदस्य जुड़े। वर्तमान में श्वेत क्रांति के कारण भारत में कई सौ सहकारी समितियां हैं जो बहुत कुशलता से काम कर रही हैं। इसलिए, यह क्रांति कई भारतीय गांवों की समृद्धि का कारण है।
श्वेत क्रांति की समस्याएँ (Problems of White Revolution)
श्वेत क्रांति की समस्याएं निम्नलिखित हैं:
(i) असमान विकास (Uneven Development):– भारत में श्वेत क्रांति के लाभ भारत के सभी क्षेत्रों में समान रूप से वितरित नहीं हुए। कुछ राज्यों में, विशेष रूप से उत्तर और पश्चिम में, महत्वपूर्ण प्रगति हुई, जबकि अन्य पिछड़ गए, जिसके कारण क्षेत्रीय असमानताएं पैदा हुईं।
(ii) पर्यावरणीय चिंताएं (Environmental concerns):– डेयरी फार्मिंग के तीव्र होने से अतिचारण, जल प्रदूषण और स्थानीय संसाधनों की कमी जैसी समस्याएं उत्पन्न हुईं, जिससे पारिस्थितिक स्थिरता संबंधी चिंताएं बढ़ गईं।
(iii) क्रॉस-ब्रीडिंग पर अत्यधिक जोर (Excessive emphasis on cross-breeding):– विदेशी मवेशियों की नस्लों के साथ क्रॉस-ब्रीडिंग पर ध्यान देने से स्वदेशी मवेशियों की आबादी में गिरावट आई, जो स्थानीय परिस्थितियों के लिए अधिक उपयुक्त हैं और उन्हें कम रखरखाव की आवश्यकता होती है।
(iv) अपर्याप्त बुनियादी ढांचा (Inadequate Infrastructure):– महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, कई ग्रामीण क्षेत्रों में शीत भंडारण, परिवहन और पशु चिकित्सा सेवाओं के लिए बुनियादी ढांचा अपर्याप्त बना हुआ है, जिससे दूध उत्पादन और वितरण की पूरी क्षमता सीमित हो रही है।
(v) आर्थिक असमानताएँ (Economic inequalities):– भारत में श्वेत क्रांति ने कई छोटे और सीमांत किसानों को लाभ पहुँचाया, लेकिन इसने असमानताएँ भी पैदा कीं। अधिक संसाधनों वाले बड़े किसान छोटे किसानों की तुलना में अवसरों का अधिक प्रभावी ढंग से लाभ उठा सकते हैं।
(vi) सहकारी संरचनाओं पर निर्भरता (Dependence on co-operative structures):– भारत में श्वेत क्रांति की सफलता काफी हद तक सहकारी समितियों की दक्षता पर निर्भर थी।
(vii) कुछ क्षेत्रों में कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप ने उनके प्रदर्शन में बाधा उत्पन्न की, जिससे कार्यक्रम का समग्र प्रभाव सीमित हो गया।
(viii) पशु कल्याण के मुद्दे (Animal welfare issues):- दूध उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देने से पशु कल्याण के बारे में चिंताएं पैदा हुईं, डेयरी मवेशियों के लिए खराब रहने की स्थिति, अधिक दूध निकालना और अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल।
(ix) बाजार संतृप्ति (Market saturation):- कुछ क्षेत्रों में, दूध उत्पादन में तीव्र वृद्धि के कारण बाजार संतृप्ति हो गई, जिससे मूल्य में उतार-चढ़ाव और डेयरी किसानों के लिए आर्थिक अस्थिरता पैदा हो गई।
निष्कर्ष: इस प्रकार कहा जा सकता है कि श्वेत क्रांति ने भारत के डेयरी उद्योग में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाया, जिससे न केवल दूध उत्पादन में वृद्धि हुई, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और लोगों के जीवन में भी सुधार हुआ।