42. Balanced Landform Description of Chhotanagpur Plateau (छोटानागपुर पठार का सन्तुलित भूआकृति विवरण)
Balanced Landform Description of Chhotanagpur Plateau
(छोटानागपुर पठार का सन्तुलित भूआकृति विवरण)
परिचय
छोटानागपुर पठार भारत के पूर्वी भाग में स्थित एक अत्यंत प्राचीन भू-आकृतिक इकाई है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के भूगर्भीय विकास का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करती है।
यह पठार न केवल अपने खनिज संपदा और प्राकृतिक संसाधनों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी स्थलाकृति, संरचना, नदियों की व्यवस्था, और मानव-भू-संबंधों के कारण यह भारत के भौतिक भूगोल में विशेष स्थान रखता है। छोटानागपुर पठार को भारतीय भू-रचना का “खनिज हृदय” (Mineral Heart of India) भी कहा जाता है।
भौगोलिक स्थिति एवं विस्तार
छोटानागपुर पठार का विस्तार मुख्यतः झारखंड राज्य में है, जबकि इसके कुछ भाग छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश तक फैले हुए हैं।
⇒ इसका भौगोलिक विस्तार लगभग 22° से 25° उत्तर अक्षांश तथा 83° से 87° पूर्व देशांतर तक है।
⇒ पठार का औसत ऊँचाई स्तर 700 मीटर से 1100 मीटर के बीच है।
⇒ इसके उत्तर में गंगा समतलभूमि, दक्षिण में महानदी बेसिन, पूर्व में संथाल परगना की पहाड़ियाँ और पश्चिम में बघेलखंड पठार स्थित है।
भूगर्भीय संरचना
छोटानागपुर पठार भारतीय भू-गर्भ के अरावली-धारवाड़ प्रणाली का हिस्सा है। यह क्षेत्र अत्यंत प्राचीन प्री-कैम्ब्रियन शैलों (Pre-Cambrian rocks) से निर्मित है।
⇒ यहाँ नीश, ग्रेनाइट, शिस्ट, क्वार्ट्जाइट, बेसाल्ट और ट्रैप जैसी रूपांतरित शिलाएँ प्रमुख हैं।
⇒ पठार की चट्टानें कठोर और अग्निय प्रकृति की हैं, जिनके बार-बार अपक्षय और अपरदन से वर्तमान स्थलाकृति बनी है।
⇒ भूगर्भीय दृष्टि से यह क्षेत्र स्थिर शील्ड क्षेत्र (Stable Shield Area) है, जहाँ भूकंपीय गतिविधियाँ सीमित हैं।
स्थलाकृति (Relief Features)
छोटानागपुर पठार की स्थलरूप विशेषताएँ अत्यंत विविध हैं। इसे मोटे तौर पर तीन भागों में बाँटा जा सकता है—
(i) उत्तर छोटानागपुर पठार
⇒ यहाँ की ऊँचाई लगभग 300-700 मीटर तक है।
⇒ प्रमुख पहाड़ियाँ हैं- हजारीबाग, गिरिडीह, कोडरमा आदि।
⇒ इस भाग में नदियों द्वारा गहरी घाटियाँ काटी गई हैं।
(ii) मध्य छोटानागपुर पठार
⇒ यह पठार का सबसे विस्तृत क्षेत्र है।
⇒ राँची, लोहरदगा, गुमला और खूंटी जिले इसी भाग में हैं।
⇒ औसत ऊँचाई 700-900 मीटर है।
⇒ यहाँ की सबसे ऊँची चोटी पारसनाथ (1366 मीटर) है।
(iii) दक्षिण छोटानागपुर पठार
⇒ यह पठार का उच्चतम भाग है, जहाँ ऊँचाई 900-1100 मीटर तक पहुँचती है।
⇒ नेतरहाट, लुपुंग, टोटो और रायरंग जैसे पठारी क्षेत्र इसी भाग में हैं।
⇒ इसे “छोटानागपुर का पठारी प्रांगण” भी कहा जाता है।
नदी तंत्र (River System)
छोटानागपुर पठार से अनेक प्रमुख नदियाँ निकलती हैं जो भारत की पूर्वी दिशा की ओर बहती हैं।
मुख्य नदियाँ –
(i) दामोदर नदी – “बंगाल का शोक” कही जाती है, क्योंकि यह बार-बार बाढ़ लाती थी।
(ii) सुवर्णरेखा नदी – राँची से निकलकर ओडिशा और पश्चिम बंगाल से होते हुए बंगाल की खाड़ी में मिलती है।
(iii) कोएल, बराकर, शंख, दक्षिण कोएल, ब्रह्मणी और बैतरणी ये सभी पठार की जल निकासी में सहायक हैं।
नदियाँ प्रायः पूर्ववाहिनी (East-flowing) हैं। जल निकासी का स्वरूप डेंड्राइटिक पैटर्न (Dendritic Pattern) का है। नदियों ने घाटियाँ काटकर कई जगह गॉर्ज और जलप्रपात बनाए हैं –
जैसे – हुंडरू फॉल्स, दशम फॉल्स, जोंरी फॉल्स, हिरनी फॉल्स आदि।
जलवायु (Climate)
पठार की जलवायु उष्ण कटिबंधीय मानसूनी प्रकार की है, परन्तु ऊँचाई के कारण यहाँ तापमान अपेक्षाकृत कम रहता है।
⇒ ग्रीष्म ऋतु: अप्रैल से जून तक, तापमान 35°C–40°C तक जाता है।
⇒ वर्षा ऋतु: जून से सितंबर तक, औसत वार्षिक वर्षा 1200–1500 मिमी।
⇒ शीत ऋतु: नवम्बर से फरवरी तक, तापमान 10°C–15°C तक गिर जाता है।
राँची और नेतरहाट जैसे स्थानों में जलवायु अत्यंत सुखद है, इसलिए इन्हें “भारत के छोटे शिमला” कहा जाता है।
मृदा (Soil)
पठार की मृदाएँ मुख्यतः अपक्षय से बनी हैं-
⇒ लाल और पीली मृदा (Red and Yellow Soil) – सबसे अधिक क्षेत्र में पाई जाती हैं।
⇒ लेटराइट मृदा (Laterite Soil) – उच्च पठारी भागों में, लौह ऑक्साइड से युक्त।
⇒ काली मृदा – कुछ दक्षिणी क्षेत्रों में, ज्वालामुखीय चट्टानों के कारण।
⇒ ये मृदाएँ पोषक तत्वों में गरीब हैं, इसलिए कृषि उत्पादकता कम है।
वनस्पति और जीव-जंतु
छोटानागपुर पठार में घने वन पाए जाते हैं, जो मुख्यतः उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वनों (Tropical Deciduous Forests) के रूप में हैं।
मुख्य वृक्ष- साल, सागौन, बांस, अर्जुन, बेल, महुआ, तेंदू, और पलाश।
वन्यजीव- हाथी, बाघ, भालू, लोमड़ी, और कई प्रकार के पक्षी।
यह क्षेत्र भारत का एक जैव-विविधता हॉटस्पॉट माना जाता है।
खनिज संपदा (Mineral Resources)
छोटानागपुर पठार को भारत का “खनिज भंडार गृह” कहा जाता है। यहाँ से भारत के कुल खनिज उत्पादन का लगभग 40% प्राप्त होता है।
मुख्य खनिज-
⇒ लौह अयस्क (सिंहभूम, चिरिया, गोवा)
⇒ कोयला (दामोदर घाटी, गिरिडीह, झरिया, बोकारो)
⇒ अभ्रक (गया, हजारीबाग, कोडरमा)
⇒ बॉक्साइट, तांबा, मैंगनीज, क्रोमाइट आदि।
खनिज संसाधनों ने यहाँ के औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित किया है।
मानव बसावट एवं आर्थिक गतिविधियाँ
पठार की आबादी अपेक्षाकृत विरल है, किन्तु संसाधनों की प्रचुरता ने यहाँ उद्योगों और नगरों के विकास को बढ़ावा दिया है।
मुख्य नगर- राँची, जमशेदपुर, धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, हजारीबाग।
मुख्य उद्योग-
⇒ इस्पात उद्योग (जमशेदपुर, बोकारो, रौरकेला)
⇒ कोयला और बिजली उद्योग
⇒ खनन और परिवहन
⇒ कुटीर उद्योग और वन आधारित उद्योग।
कृषि की दृष्टि से यह क्षेत्र अपेक्षाकृत पिछड़ा है, क्योंकि मृदा उर्वरता कम और वर्षा अस्थिर है।
भू-आकृतिक विकास की प्रक्रिया
छोटानागपुर पठार की भू-आकृति का निर्माण दीर्घकालिक अपक्षय, अपरदन और उत्थान की प्रक्रियाओं से हुआ है।
⇒ प्रारंभिक काल में यह एक विशाल पेनिप्लेन (Peneplain) था।
⇒ बाद में टेक्टोनिक उत्थान के कारण इसमें दरारें (faults) बनीं, जिससे पठारी रूप प्राप्त हुआ।
⇒ नदियों ने समय के साथ घाटियाँ और जलप्रपात बनाए।
⇒ वर्तमान में यह अपक्षय की परिपक्व अवस्था में है।
संतुलित भूआकृतिक दृष्टि से विश्लेषण
“संतुलित भूआकृतिक विवरण” का अर्थ है- क्षेत्र की प्राकृतिक संरचना, स्थलरूप, जलवायु, जैविक तत्वों और मानव क्रियाओं के बीच संतुलन की व्याख्या।
(क) भौतिक संतुलन
पठार की ऊँचाई, ढाल और नदियों की दिशा में प्राकृतिक संतुलन दिखाई देता है। नदियाँ पूर्व की ओर प्रवाहित होकर जल निकासी संतुलित करती हैं।
(ख) जैविक संतुलन
वनस्पति और मृदा का पारस्परिक संबंध क्षेत्रीय पारिस्थितिकी को संतुलित बनाए रखता है। जहाँ वन नष्ट हुए हैं, वहाँ मृदा अपरदन बढ़ा है।
(ग) मानव-प्राकृतिक संतुलन
खनन, उद्योग और शहरीकरण के बढ़ते प्रभाव से यह संतुलन कुछ हद तक बिगड़ा है, किंतु वन संरक्षण, पुनर्वनीकरण और पर्यावरणीय योजनाओं से संतुलन पुनः स्थापित करने के प्रयास जारी हैं।
पर्यावरणीय समस्याएँ
⇒ खनन और औद्योगीकरण से मृदा एवं जल प्रदूषण।
⇒ वनक्षेत्र में कमी और जैव विविधता का ह्रास।
⇒ जल स्रोतों का क्षरण एवं नदियों में गाद जमाव।
⇒ आदिवासी समुदायों का विस्थापन।
⇒ भूमि अपरदन और मरुस्थलीकरण की प्रवृत्ति।
संरक्षण और विकास के उपाय
⇒ सतत खनन नीति अपनाना।
⇒ वन पुनर्जीवन और वृक्षारोपण कार्यक्रम।
⇒ मृदा संरक्षण तकनीकें – सीढ़ीदार खेती, कंटूर बंडिंग।
⇒ जल निकासी का नियोजन।
⇒ पर्यावरण-अनुकूल औद्योगिक नीति।
⇒ स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना।
निष्कर्ष
इस प्रकार छोटानागपुर पठार भारतीय भू-आकृति का एक जीवंत उदाहरण है, जहाँ प्रकृति और मानव दोनों ने मिलकर भू-दृश्य को आकार दिया है। इसकी कठोर चट्टानें, जलप्रपात, खनिज संपदा, और वन इसे विशेष पहचान देते हैं।
यह पठार न केवल भारत की औद्योगिक शक्ति का आधार है, बल्कि पारिस्थितिक संतुलन का भी महत्वपूर्ण क्षेत्र है। अतः आवश्यक है कि इसके संसाधनों का दोहन संतुलित एवं सतत विकास के सिद्धांतों पर आधारित हो, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस भू-आकृतिक धरोहर का लाभ उठा सकें।
प्रश्न प्रारूप
1. छोटानागपुर पठार का सन्तुलित भूआकृति विवरण प्रस्तुत करें।
नोट: डेंड्राइटिक पैटर्न– डेंड्राइटिक पैटर्न वह जल निकासी आकृति है जो किसी पेड़ की शाखाओं जैसी दिखती है और समान रूप से अपक्षयित भू-भाग पर विकसित होती है।
