34. Sound pollution and their remedial measures (ध्वनि प्रदूषण और इसके उपचारात्मक उपाय)
Sound pollution and their remedial measures
(ध्वनि प्रदूषण और इसके उपचारात्मक उपाय)
परिचय
ध्वनि हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। यह हमारे संचार, आनंद, संगीत और पर्यावरण का हिस्सा है। किंतु जब ध्वनि अपनी प्राकृतिक सीमा को पार कर जाती है और व्यक्ति, समाज अथवा जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य, मानसिक शांति एवं कार्यक्षमता पर विपरीत प्रभाव डालती है, तो उसे ध्वनि प्रदूषण (Sound Pollution) कहा जाता है।
आधुनिक युग में औद्योगिकीकरण, नगरीकरण, वाहनों की वृद्धि, मशीनों एवं लाउडस्पीकरों के अत्यधिक उपयोग के कारण यह एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या बन चुकी है।
परिभाषा
ध्वनि प्रदूषण वह स्थिति है जब किसी क्षेत्र में ध्वनि की तीव्रता (Sound Intensity) मानव श्रवण सीमा (लगभग 60 डेसिबल) से अधिक हो जाती है और वह असहनीय या हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार –
“जब किसी क्षेत्र में ध्वनि की तीव्रता 85 डेसिबल से अधिक हो जाती है, तो वह मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानी जाती है।”
ध्वनि का मापन (Measurement of Sound)
ध्वनि को डेसिबल (Decibel, dB) नामक इकाई में मापा जाता है। नीचे कुछ सामान्य ध्वनियों की तीव्रता दी गई है:
| ध्वनि का स्रोत | तीव्रता (dB) |
| सामान्य बातचीत | 60 |
| भारी यातायात | 90 |
| रेल इंजन | 100 |
| लाउडस्पीकर या संगीत कार्यक्रम | 110-120 |
| जेट विमान | 130-140 |
85 dB से अधिक ध्वनि निरंतर सुनना खतरनाक माना जाता है।
ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख स्रोत (Major Sources of Sound Pollution)
(i) वाहन यातायात (Transportation Noise):-
बसें, ट्रक, ऑटोमोबाइल, मोटरसाइकिलें, ट्रेनें, हवाई जहाज आदि निरंतर शोर उत्पन्न करते हैं। महानगरों में यह प्रमुख कारण है।
(ii) औद्योगिक स्रोत (Industrial Noise):-
कारखानों में चलने वाली भारी मशीनें, टरबाइन, जनरेटर, प्रेस मशीनें आदि लगातार शोर उत्पन्न करती हैं।
(iii) निर्माण कार्य (Construction Activities):-
इमारतें, पुल, सड़कें, मेट्रो आदि निर्माण कार्यों में ड्रिलिंग मशीन, क्रेन और अन्य उपकरण शोर करते हैं।
(iv) सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रम (Social and Religious Functions):-
विवाह, जुलूस, त्यौहारों, राजनीतिक रैलियों और धार्मिक आयोजनों में लाउडस्पीकरों और पटाखों का अत्यधिक प्रयोग होता है।
(v) घरेलू उपकरण (Domestic Appliances):-
टेलीविजन, मिक्सर, वैक्यूम क्लीनर, कूलर, वॉशिंग मशीन आदि भी शोर का कारण बनते हैं।
(vi) विमानन क्षेत्र (Aviation Noise):-
एयरपोर्ट के आसपास लगातार विमान उड़ान भरने और उतरने की आवाज से वातावरण अत्यधिक शोरग्रस्त रहता है।
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Sound Pollution)
1. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
⇒ श्रवण क्षमता में कमी: लगातार ऊँची आवाज़ सुनने से कान की नसें क्षतिग्रस्त होती हैं और स्थायी बहरापन आ सकता है।
⇒ मानसिक तनाव और अनिद्रा: निरंतर शोर मानसिक अशांति, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, चिंता और अवसाद उत्पन्न करता है।
⇒ रक्तचाप में वृद्धि: अत्यधिक ध्वनि से हार्मोनल असंतुलन और रक्तचाप बढ़ता है।
⇒ हृदय रोग: निरंतर शोर से हृदय गति बढ़ती है और हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
⇒ एकाग्रता में कमी: छात्रों और कर्मचारियों में एकाग्रता और उत्पादकता कम होती है।
2. पशु-पक्षियों पर प्रभाव
⇒ पक्षियों की दिशा निर्धारण क्षमता प्रभावित होती है।
⇒ शोर के कारण कई पक्षी अपने प्रजनन स्थल छोड़ देते हैं।
⇒ जलीय जीव भी सोनार तरंगों से प्रभावित होते हैं।
3. पर्यावरण पर प्रभाव
⇒ शोर प्रदूषण से प्राकृतिक पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ता है।
⇒ वन्यजीव क्षेत्रों में प्रजनन दर घटती है।
⇒ पेड़ों की वृद्धि और पौधों की संवेदनशीलता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
भारत में ध्वनि प्रदूषण की स्थिति
भारत में ध्वनि प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ रहा है। राष्ट्रीय पर्यावरण अभियंत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI) के अनुसार, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, पटना और लखनऊ जैसे महानगरों में औसतन ध्वनि स्तर 80 से 100 डेसिबल तक पहुँच गया है।
यह केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा निर्धारित मानक (55 dB – दिन में, 45 dB – रात में) से कहीं अधिक है।
कानूनी प्रावधान (Legal Provisions)
(i) पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986:-
ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए इसे पर्यावरण प्रदूषण के दायरे में शामिल किया गया है।
(ii) Noise Pollution (Regulation and Control) Rules, 2000:-
औद्योगिक, वाणिज्यिक, आवासीय और मौन क्षेत्रों के लिए अलग-अलग ध्वनि सीमा निर्धारित की गई है। रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर या ध्वनि यंत्रों के उपयोग पर प्रतिबंध है।
(iii) भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 268, 290, 291:-
सार्वजनिक उपद्रव या असुविधा उत्पन्न करने वाले शोर को दंडनीय अपराध माना गया है।
ध्वनि प्रदूषण के उपचारात्मक उपाय (Remedial Measures for Sound Pollution)
1. तकनीकी उपाय :-
⇒ ध्वनि अवरोधक (Sound Barriers): सड़कों और उद्योगों के आसपास दीवारें, वृक्ष पंक्तियाँ लगाकर ध्वनि अवरोध बनाए जाएँ।
⇒ ध्वनि अवशोषक सामग्री: भवन निर्माण में ध्वनि अवशोषक सामग्री जैसे रबर, फोम, ग्लास वूल का प्रयोग।
⇒ मशीनों की नियमित मरम्मत: पुरानी और शोर करने वाली मशीनों की मेंटेनेंस से ध्वनि कम होती है।
⇒ वाहन नियंत्रण: साइलेंसर यंत्रों का उचित रखरखाव और पुराने वाहनों पर नियंत्रण।
2. नीतिगत और प्रशासनिक उपाय
⇒ ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र निर्धारण: स्कूल, अस्पताल और कोर्ट के आसपास “Silence Zone” बनाना।
⇒ ध्वनि मानक पालन: औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों में निर्धारित डेसिबल सीमा का पालन।
⇒ कानूनी प्रवर्तन: लाउडस्पीकर, पटाखों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में ध्वनि सीमा उल्लंघन पर दंड।
⇒ शहरी योजना: आवासीय और औद्योगिक क्षेत्रों का अलग-अलग नियोजन।
3. सामाजिक और व्यक्तिगत उपाय
⇒ जन-जागरूकता: ध्वनि प्रदूषण के दुष्परिणामों के बारे में शिक्षण संस्थानों और मीडिया द्वारा प्रचार-प्रसार।
⇒ व्यक्तिगत अनुशासन: लाउडस्पीकर, टीवी, रेडियो आदि की आवाज़ सीमित रखें।
⇒ त्यौहारों और समारोहों में संयम: पटाखों और तेज ध्वनि वाले उपकरणों का सीमित प्रयोग।
⇒ पेड़-पौधों का रोपण: वृक्ष ध्वनि अवरोधक की तरह कार्य करते हैं, जिससे ध्वनि तीव्रता कम होती है।
4. वैज्ञानिक उपाय
⇒ Noise Mapping: शहरों के विभिन्न हिस्सों में ध्वनि स्तर का वैज्ञानिक मापन और मानचित्रण।
⇒ Noise Monitoring Systems: निरंतर ध्वनि मापन के लिए ऑटोमेटिक उपकरणों का प्रयोग।
⇒ Green Belt Development: औद्योगिक क्षेत्रों के चारों ओर हरित पट्टी विकसित करना।
⇒ Soundproof Technology: शोर नियंत्रित मशीनों और वाहनों का विकास।
सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास
⇒ CPCB और SPCB (State Pollution Control Board) द्वारा नियमित ध्वनि सर्वेक्षण।
⇒ NGO द्वारा जनजागरूकता अभियान और ध्वनि सीमाओं का पालन सुनिश्चित कराने हेतु कार्य।
⇒ स्वच्छ भारत अभियान और ग्रीन सिटी प्रोग्राम में ध्वनि प्रदूषण को शामिल करना।
अंतरराष्ट्रीय प्रयास
⇒ WHO और UNEP ने ध्वनि प्रदूषण को वैश्विक स्वास्थ्य समस्या के रूप में स्वीकार किया है।
⇒ कई देशों में “Noise Abatement Policies” और “Quiet City Zones” लागू हैं।
⇒ यूरोपीय देशों ने “Environmental Noise Directive (END)” लागू कर नागरिकों के लिए शांत वातावरण सुनिश्चित किया है।
शिक्षा और अनुसंधान की भूमिका
⇒ उच्च शिक्षण संस्थानों में पर्यावरणीय शिक्षा के अंतर्गत ध्वनि प्रदूषण को विशेष रूप से पढ़ाया जाए।
⇒ अनुसंधान संस्थान ध्वनि नियंत्रण की नई तकनीकों का विकास करें।
⇒ स्थानीय निकायों को प्रशिक्षित किया जाए ताकि वे नियमों का पालन करा सकें।
निष्कर्ष
ध्वनि प्रदूषण एक अदृश्य लेकिन गंभीर पर्यावरणीय खतरा है जो मानव स्वास्थ्य, सामाजिक जीवन और पारिस्थितिक तंत्र को गहराई से प्रभावित करता है। इसका समाधान केवल कानूनों या तकनीकी उपायों से नहीं बल्कि जन-सहयोग और जागरूकता से संभव है।
हमें यह समझना होगा कि शांति ही प्रगति का आधार है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए ध्वनि सीमा का पालन करना चाहिए। जन-जागरूकता, कानूनी नियंत्रण और तकनीकी सुधार के माध्यम से हम एक “Noise-Free India” का निर्माण कर सकते हैं।
